मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी पर उर्दू में लिखी एम. के. शहाजी की पुस्तक के नए संस्करण का प्रकाशन उर्दू अकादमी द्वारा किया जाएगा।

छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी पर उर्दू में लिखी एम. के. शहाजी की पुस्तक के नए संस्करण का प्रकाशन उर्दू अकादमी द्वारा किया जाएगा। ओल्ड कस्टम हाउस में आयोजित उर्दू अकादमी की बैठक में फौजिया खान ने कहा कि पुरानी पड़ चुकी योजनाओं को लागू करने की जगह बदली परिस्थितियों के अनुसार विकास कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। बैठक में इस बात पर सहमती बनी कि उर्दू अकादमी मौलाना आजाद आर्थिक विकास निगम के साथ समन्वय करके अपना काम करेगा। उर्दू अकादमी कार्याध्यक्ष डॉ. अब्दुल सत्तार एम. आई. दलवी, सदस्य सचिव डॉ. कासिम इमाम और अकादमी के अन्य सदस्यों ने भाग लिया।

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

महाराष्ट्र में हिन्दी में शपथ लेने वाले समाजवादी पार्टी के अबू आसिम आजमी को सम्मानित किया जाएगा

बाबरी मस्जिद विध्वंस की पूर्व संध्या पर समाजवादी पार्टी कानपुर में अल्पसंख्यक सम्मेलन का आयोजन कर रही है। इस सम्मेलन में महाराष्ट्र में हिन्दी में शपथ लेने वाले समाजवादी पार्टी के अबू आसिम आजमी को सम्मानित किया जाएगा व इसके साथ ही साथ शहर के मुस्लिम धर्म गुरुओं और उलेमाओं को बुलाकर उनकी समस्याओं पर चर्चा की जाएगी। इस सम्मेलन में एसपी के महासचिव अमर सिंह भी शामिल हो रहे है। समाजवादी पार्टी ने कल्याण सिंह फैक्टर के कारण नाराज हुए मुसलमानों के बीच अपनी पैठ बनाने के प्रयास फिर से तेज कर दिए हैं। इसी के तहत मुस्लिम बहुल जिले कानपुर में शनिवार यानी पांच दिसंबर को शहर में एक अल्पसंख्यक सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष जितेन्द्र बहादुर सिंह ने बताया कि कल दोपहर में मचेचैम्बर हाल में अल्पसंख्यक सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। इस सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में अबू आसिम आजमी को आमंत्रित किया गया है। महाराष्ट्र विधान सभा में जिस तरह से हिन्दी भाषा में शपथ लेने के लिए आजमी के साथ दुर्व्यवहार किया गया था। इसलिए पार्टी उन्हें हिन्दी भाषा का गौरव बचाने के लिए विशेष सम्मान से सम्मानित करेगी व उनका शहर पहुंचने पर जोरदार स्वागत करेगी।

बुधवार, 25 नवंबर 2009

आशीर्वाद संस्था के राजभाषा पुरस्कार वितरित हुए

अभी पिछले दिनों आशीर्वाद संस्था के राजभाषा पुरस्कार वितरित हुए हैं। इस संस्था द्वारा पिछले २५ वर्षों से राजभाषा के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य करने वाले कार्यालयों को पुरस्कृत किया जाता है ।इस बाद सॉफ्टवेयर टेक्नॉलाजी पार्क ऑफ इंडिया को प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ है और महानगर टेलीफोन निगम , मुंबई रेलवे विकास कॉर्पोरेशन को पुरस्कृत किया गया है । राजभाषा के रूप में हिन्दी के विद्वानों को भी इस मौके पर पुरस्कृत किया गया जिनमें प्रमुख हैः अमीन सयानी, माया गोविन्द, डॉ। सुनील कुमार अग्रवाल, रवीन्द्र जैन, डॉ। रामजी तिवारी, डॉ। सुशीला गुप्ता, मुकेश शर्माआदि ।

सोमवार, 23 नवंबर 2009

अब तो मेरे बच्चे अंग्रेजी में ही पढ़ेंगे।

मेरे परिवार की अंग्रेजी से मुठभेड़ गुलाम भारत में शुरू हुई थी। दादा जी संस्कृत के अध्यापक थे। एक बार बनारस में रहने वाले गांव के ही एक सज्जन से दादा जी की कुछ झड़प हो गई तो उनके अंग्रेजीदां लड़के ने डैम फूल जैसी कोई गाली बक दी। दादा जी इसका मतलब नहीं समझ पाए, लेकिन लड़के के लहजे से स्पष्ट था कि वह उन्हें अंग्रेजी में गाली दे रहा है। तभी उन्होंने तय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए, अब तो मेरे बच्चे अंग्रेजी में ही पढ़ेंगे। उस समय, जब संस्कृत मिजाज वाले परिवारों में बच्चों को ईसाई स्कूलों में भेजना विधर्मी कृत्य माना जाता था, उन्होंने मेरे ताऊ, पिता और चाचा का नाम आजमगढ़ शहर के वेस्ली मिशन स्कूल में लिखा दिया। यहां से मेरे परिवार में एक नए युग की शुरुआत हो सकती थी, लेकिन वह नहीं हुई। अंग्रेजी हमारे यहां प्रतिक्रिया की भाषा ही बनी रही। इसका श्रीगणेश गाली से हुआ था और दो-चार जवाबी गालियां दे लेने के बाद इसका काम पूरा हो गया। अलबत्ता इस बीच परिवार की एक शाखा निखालिस अंग्रेजी की राह पर बढ़ चली। अपने चाचा की आलमारियां मैंने सिर्फ अंग्रेजी उपन्यासों से भरी पाईं। चचेरे भाई-बहनों को भी आपस में और माता-पिता से हमेशा अंग्रेजी में ही बात करते देखा। लेकिन जैसे ही वे घर से निकल कर जिंदगी की राह पर लौटे, वैसे ही ठेठ बनारसी या गोरखपुरिया हो गए। वे पढ़े-लिखे पेशों में हैं लेकिन उनकी रोटी अंग्रेजी से नहीं निकलती। अंग्रेजी उपन्यास उन्हें अब भी पसंद हैं, लेकिन उनके हाथ में मैंने कभी कोई क्लासिक चीज नहीं देखी। चर्चित उपन्यासकार चेतन भगत ने भारत में अंग्रेजी अपनाने वालों की दो किस्में बताई हैं। एक ई-1, यानी वे, जिनके मां-बाप अंग्रेजी बोलते रहे हैं, जिनका बोलने का लहजा अंग्रेजों जैसा हो गया है और जो सोचते भी अंग्रेजी में हैं। दूसरे ई-2, यानी वे, जिन्होंने निजी कोशिशों से अंग्रेजी सीखी है और जिनका अंग्रेजी बोलना या लिखना हमेशा अनुवाद जैसा अटकता हुआ होता है। भगत का कहना है कि वे अपने पाठक ई-1 के बजाय ई-2 में खोजते हैं, और भारत में अंग्रेजी का भविष्य भी इसी वर्ग पर निर्भर करता है। अंग्रेजी के साथ भारतीयों के बहुस्तरीय रिश्तों को देखते हुए कोई चाहे तो ई-1, ई-2 के सिलसिले को ई-3 और ई-4 तक फैला सकता है। मसलन, वे लोग जिनका अंग्रेजी में पहली पीढ़ी का दखल भी दहलीज लांघने तक ही सीमित है, या वे, जो बस इतना जान पाए हैं कि अंग्रेजी का अखबार किधर से पकड़ने पर सीधा और किधर से उल्टा होता है। सवाल यह है कि ये सारी श्रेणियां क्या अनिवार्यत: ई-1 की ओर बढ़ रही हैं? या फिर ई-2 जैसी कोई बहुत बड़ी स्थायी श्रेणी ही भारत में अंग्रेजी का प्रतिनिधित्व करेगी? जो लोग भी अभी ई-1 में शामिल हैं, या होने का दावा करते हैं, उनके पीछे की पीढि़यां कभी न कभी ई-4, ई-3 या ई-2 जैसे मुकामों से जरूर गुजरी होंगी, लिहाजा गणितीय तर्क से इस नतीजे तक पहुंचा जा सकता है कि एक दिन भारत के ज्यादातर लोग अंग्रेजी मुहावरे में ही सोचने, बोलने और लिखने लगेंगे। लेकिन तजुबेर् से लगता है कि ई-1 की तुलना में ई-2 का अनुपात तेजी से बढ़ने के साथ ही अंग्रेजी कुलीनता का मिथक कमजोर पड़ने लगा है और एक किस्म के लेवल प्लेइंग फील्ड की शुरुआत हो जाती है। किसी धौंस, अनुशासन या मजबूरी के तहत नहीं, सहज जीवनचर्या के तहत अंग्रेजी अपना कर उसी में सोचने-समझने और मजे करने वाली कोई पीढ़ी मेरे परिवार में अब तक नहीं आई है। अमेरिका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में रह रहे सबसे नई पीढ़ी के छह-सात लड़के, लड़कियां और बहुएं अंग्रेजी में लिखते-पढ़ते जरूर हैं, लेकिन इसके लिए मेरे चाचा और उनके बेटे-बेटियों की तरह कई साल तक सचेत ढंग से हिंदी से कटने की जरूरत उन्हें कभी नहीं पड़ी। वे इंजीनियर, डॉक्टर या सीए होकर ग्लोबल हुए हैं, अंग्रेज होकर नहीं। उन्हें पता है कि अंग्रेजी का दखल उनकी जिंदगी में कहां शुरू होता है और कहां पहुंच कर खत्म हो जाता है।

रविवार, 22 नवंबर 2009

रविवार शाम राजभवन में गवर्नर बी.एल. जोशी ने मौर्या को शपथ दिलाई।

आशीर्वाद संस्था का राजभाषा पुरस्कार सम्पन्न
आशीर्वाद संस्था का राजभाषा पुरस्कार समारोह आज हुआ हालांकि इस समारोह के निमंत्रण में एक मंत्री का नाम था परन्तु वह नहीं आए क्योंकि राजनेता की अपनी मजबूरियां होती है उन्हें हिन्दी समारोह से कुछ ज्यादा नहीं मिल पाता ।
इस समारोह में ६० प्रसिद्ध् हिन्दीप्रेमियों को सम्मानित किया गया जिनमें प्रसिद्ध् आवाज के जादूगर अमीन सयानी, हरीश भीमानी, रामजी तिवारी, मुकेश शर्मा, रवीन्द्र जैन, माया गोविन्द, डॉ। सुनील कुमार अग्रवाल, आदि का समावेश है ।
राजभाषा पुरस्कार तथा चल वैजयन्तियां भी प्रदान की गई । इस मौकेपर एक स्वर से यह बात सामने आई ​कि अब हमें राजभाषा के रूप में हिन्दी को बनाए रखने के लिए एक जागरण अभियान चलाने की आवश्यकता है

सोमवार, 16 नवंबर 2009

हिंदी के विकास से ज्यादा चिंता आज हिंदी को बचाने के बारे में दिखाई देती है।

आजाद भारत के एक सबसे महत्वाकांक्षी मिशन में गहरी दरारें पड़ चुकी हैं। यह मिशन था पूरे देश की एक राष्ट्रभाषा के विकास का। संवैधानिक रूप से न सही भावनात्मक रूप से ही सही, हिंदी में एक राष्ट्रभाषा बनने की भरपूर संभावनाएं देखी गई थीं। महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, केरल, बंगाल, उड़ीसा और पंजाब सभी प्रदेशों के नेताओं में इसे लेकर आम सहमति थी। आज नजारा पूरी तरह बदला हुआ है। हिंदी के विकास से ज्यादा चिंता आज हिंदी को बचाने के बारे में दिखाई देती है। महाराष्ट्र या तमिलनाडु ही नहीं, खुद हिंदी क्षेत्र में हिंदी सहमी हुई है। अंग्रेजी के आतंक से सिमटी-सकुचाई हिंदी से अब उर्दू ही नहीं, भोजपुरी और मैथिली वाले भी दूरी बनाने की कोशिश करते नजर आने लगे हैं। मोटे तौर पर पिछले साठ सालों में हिंदी के विकास की तीन धाराएं देखने को मिलती हैं। एक तो वह जो हिंदी विभागों में पलती रही है। यह साहित्यिक और संस्कृतनिष्ठ हिंदी है। विभाग के बाहर आकर इस हिंदी की सांस फूलने लगती है। इस हिंदी के वक्ता को शब्द नहीं मिलते और श्रोता को अर्थ समझ में नहीं आता। एक और हिंदी है। मीडिया और बाजार के मंच पर सवार यह हिंदी इंडियन आइडल बनकर पुरस्कार और प्यार तो पा रही है पर बाजार के इस मंच ने इसे एक विशेषण भी दिया है - बाजारू हिंदी। भाषा को लेकर गंभीर लोग इसे बोलने में अपनी हेठी समझते हैं। तीसरी है सरकारी हिंदी। यह सरकार के अपने विभागों द्वारा रचे गए शब्दकोषों से निकलकर सरकारी कागजों पर सिमटकर रह गई है। इससे बाहर इसके वक्ताओं और श्रोताओं, दोनों का टोटा है। हिंदी का यह खंडित विकास गवाह है कि हिंदी के विकास के लिए की गई कोशिशों में समग्र दृष्टि का अभाव रहा है। प्राय: हिंदी को वर्चस्व के राजनीतिक उपकरण की तरह इस्तेमाल किया गया। इसके लिए जिस सांस्कृतिक श्रम और कोशिश की जरूरत थी, वह काम नहीं किया गया। हिंदी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है- यह तर्क देने वाले भूल गए कि बहुमत के आधार पर सरकार भले ही बन जाए, पर भाषाएं नहीं बनतीं। भाषा का काम समाज में ज्ञान का संरक्षण, संवर्धन और संप्रेषण होता है। इसके लिए राजनीतिक आधार और संख्या बल से ज्यादा जरूरी होता है सांस्कृतिक श्रम और मनोबल। हिंदी समाज में न तो नए ज्ञान-विज्ञान को हिंदी में समेट लेने की आकुलता दिखी और न ही अशिक्षितों को साक्षर बनाकर अपनी सांस्कृतिक स्वीकार्यता बढ़ाने की ललक। आज भी हिंदी प्रदेशों में साक्षरता दर देश में सबसे कम है। इसलिए कहने वाले इसे अनपढ़ों की भाषा कहने से भी बाज नहीं आते। और इतिहास गवाह है कि त्रिभाषा फॉर्म्युला अपनाने में सबसे ज्यादा बेईमानी भी हिंदी वालों ने ही दिखाई। नतीजा हुआ कि हिंदी के राष्ट्रभाषा बन जाने का दावा राजनीतिक मुहावरे में ही व्यक्त होता रहा। इस प्रकार राष्ट्रभाषा का मुद्दा वर्चस्व की लड़ाई की तरह प्रकट हुआ। इसलिए पूरे देश में इसकी प्रतिक्रिया भी राजनीतिक मुहावरे में ही हुई और आज भी हो रही है। अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई ने जो हिंदी के लिए जो जगह बनाई थी, हिंदी उसको भर नहीं सकी। अपनी वैधता के लिए हिंदी वालों ने संविधान की दुहाई देने और हिंदी के राष्ट्रभाषा होने के अंधविश्वास को फैलाने के अलावा कुछ नहीं किया। हिंदी के विकास के लिए श्रम के नाम पर जो कुछ किया गया, वह शब्दकोष और पारिभाषिक शब्दकोष के निर्माण से आगे आज तक नहीं जा पाया है। और खुद हिंदी समाज में इन शब्दकोषों की स्वीकार्यता नहीं है। इस प्रकार बनी हिंदी रघुवीरी हिंदी नाम से मजाक-मखौल का विषय बन गई है। हिंदी समाज आज तक इस भुलावे में जी रहा है (खुद भारत सरकार का राजभाषा विभाग उसे उस मुगालते में रखे हुए है) कि राष्ट्रभाषा जैसा कोई संवैधानिक पद है और इस सम्मान पर हिंदी का जन्मजात हक है और यह उसे मिलना ही चाहिए। जन्मजात हक की इस मानसिकता से संचालित हिंदी के मठाधीश आज तक यह नहीं समझ सके हैं कि आज के आधुनिक-लोकतांत्रिक युग में हर सत्ता को, चाहे वह राजनीतिक हो या शैक्षिक हो या फिर भाषाई, सभी को अपनी वैधता हासिल करनी होती है और बार-बार हासिल करनी होती है। इस वैधता का अंतिम स्त्रोत जनता खुद होती है। आज हिंदी की वैधता के दूसरे स्त्रोत भी सूख रहे हैं। वह भी खुद हिंदी वालों के कारण। हिंदी की जो तीन धाराएं पहचानी गई हैं, उनमें तालमेल की कोई कोशिश तक देखने को नहीं मिलती है। बल्कि इन धाराओं से जुड़े लोग एक दूसरे को कठघरे में खड़ा करने का कोई मौका भी नहीं चूकते। साहित्यिक हिंदी पर आरोप है कि वह संस्कृतनिष्ठ हिंदी है और उससे आलोचकों को हिंदूवाद की दकियानूसी बू आती है। इसी तरह बाजार की अंग्रेजी मिश्रित हिंदी पर आरोप है कि वह बाजारू हो चली है। उधर सरकारी हिंदी को न किसी के आरोपों की परवाह है और न किसी की तारीफ की। महज शब्दकोष गढ़ने वाली इन संस्थाओं को तो यह परवाह भी नहीं है कि वे कम से कम अपने शब्दकोषों का ऑनलाइन उपलब्ध तो करा दें। इससे शायद उनके कुछ नए शब्द प्रचलन में आ जाएं! वैसे यह हिंदी पर बाजारू होने का आरोप काफी रोचक है। यह ठेठ हिंदी वालों का आरोप है। यह एक विडंबना है कि बाजार और कैंप की भाषा के रूप में विकसित हुई उर्दू को उर्दू वालों ने कभी इस तरह नहीं धिक्कारा, लेकिन कुछ हिंदी वाले हिंदी को बाजारू कह कर जरूर तिरस्कृत करते हैं। ऐसा आरोप लगाने वालों को यह जानना चाहिए कि ज्ञान कक्ष में बैठ कर साहित्य रचने वालों की भाषा जल्दी ही किताबों में दम तोड़ देती है, लेकिन बाजारों में फलने-फूलने वाली भाषा सबसे ज्यादा विकसित होती है। इसलिए हिंदी वालों को हिंदी की इस दशा के लिए दूसरों को कोसने की बजाय इस पर गौर करना चाहिए कि एमएनएस कार्यकर्ताओं का गुस्सा हिंदी पर ही क्यों उतरा? अंग्रेजी में शपथ लेने पर किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई। कहीं हमारी सुस्ती की वजह से ही तो देश के लिए एक राष्ट्रभाषा का सपना यूं मुक्कों और घूसों के नीचे दम नहीं तोड़ रहा है। हिंदी अगर पढे़-लिखों की भाषा होती, तब भी क्या उसे बोलने वाले यूं अपमानित होते?

रविवार, 15 नवंबर 2009

सचिन सरीखा बनें नेक नैनों का तारा

राज ठाकरे जैसे कट्टरपंथी नेता जब मराठी मानुष के नाम पर राजनीति करते हैं , तो अक्सर प्रसिद्ध मराठी हस्तियों की राय पूछी जाती है। ज्यादातर हस्तियां इस बात से कन्नी काटती रही हैं। लेकिन सचिन तेंडुलकर ने इस मुद्दे पर बोलने की हिम्मत दिखाई है। हालांकि , सेफ खेलते हुए उन्होंने बीच का रास्ता अपनाया है। सचिन तेंडुलकर ने कहा है कि मुंबई भारत की है। उन्होंने कहा कि मैं मराठी हूं , मुझे मराठी होने पर गर्व है लेकिन मुंबई पूरे भारत की है और मैं भारत के लिए खेलता हूं। तेंडुलकर 15 नवंबर को क्रिकेट में अपने 20 साल पूरे कर रहे हैं। इसके लिए आजकल वह कई कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं। ऐसे ही एक कार्यक्रम में जब उनसे मराठी मानुष के मुद्दे पर पूछा गया तो उन्होंने यह बात कही। सचिन ने कहा कि मैं मराठी हूं और इस पर मुझे गर्व है , लेकिन मैं भारतीय भी हूं। मुंबई में शुक्रवार को मीडिया से मुखातिब सचिन तेंडुलकर ने बहुत की खूबसूरती से पत्रकारों के सवालों के जवाब दिए। वे हिंदी , मराठी और अंग्रेजी में सवालों के जवाब ठीक उसी तरह दे रहे थे जैसे क्रिकेट के मैदान में शॉट खेलते हैं। करीब दो दशक पहले कराची के नैशनल स्टेडियम में सर्दियों की एक सुबह सचिन ने अपने सपनों सरीखे क्रिकेट करियर की शुरुआत की
बकौल सचिन वह लम्हा उनके क्रिकेट जीवन का सबसे खुशगवार क्षण था। सचिन तेंडुलकर कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण ( डेब्यू ) उनके लिए एक सपने जैसा था , जिसे आज भी वह जी रहे हैं। सचिन यहीं नहीं रुकते। जब बात क्रिकेट और देश की हो रही हो तो सचिन चुप भी कैसे रहें। उन्होंने कहा , '' भारतीय क्रिकेट टीम की कैप पहनने के बाद मैंने जो कुछ भी हासिल किया वह सब देश के लिए था। क्रिकेट को पसंद करने वालों का प्यार मेरे लिए सबसे अहम है। आप को अपनी कामयाबी की खुशी बांटने के लिए लोगों की जरूरत महसूस होती है और मेरे पास एक अरब से ज़्यादा लोग हैं और ये मेरे लिए काफी है। '' कामयाबी का मंत्र क्या है ? सचिन ने इस सवाल का जवाब दिया कि घर में एक अलिखित नियम था : लोगों को भूत ( जो बीत गया ) के बारे में बात करने दो , आप सिर्फ आगे की सोचो। सचिन ने इस मौके पर पूरे धीरज के साथ मीडिया के सवालों का घंटों सामना किया। जितनी देर वह मीडिया से मुखातिब रहे , आमतौर पर , उतनी देर में वह क्रिकेट मैदान पर सैकड़ा ठोक देते हैं। लेकिन मास्टर ब्लास्टर घबराए नहीं और सवालों के सटीक जवाब दिए।

गुरुवार, 12 नवंबर 2009

हिंदी या अन्य किसी भारतीय भाषा के विरोध से बचें

वीएचपी ने कहा है कि मराठी भाषी लोग हिंदी या अन्य किसी भारतीय भाषा का विरोध नहीं करें, ऐसा क

रना राष्ट्रीय अखंडता का अपमान है। वीएचपी के महासचिव प्रवीण तोगड़िया ने यहां एक बयान में कहा, 'वीएचपी मराठी लोगों से दरख्वास्त करती है, जो लोग हिंदुओं के हितों के लिए लड़ते रहे हैं,हिंदी या अन्य किसी भारतीय भाषा के विरोध से बचें। ऐसे काम राष्ट्रीय अखंडता के खिलाफ हैं।'

शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

श्रद्धांजलिः जोशी बड़े प्रभाष काल दे गए गवाही

वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी का गुरुवार

की रात निधन हो गया। वह 72 साल के थे। उनके शोक संतप्त परिवार में पत्नी , 2 पुत्र , एक पुत्री और नाती - पोते हैं। दिल का दौरा पड़ने के कारण मध्य रात्रि के आसपास गाजियाबाद की वसुंधरा कॉलोनी स्थित उनके निवास पर उनकी मृत्यु हो गई। उनकी पार्थिव देह को विमान से आज दोपहर बाद उनके गृह नगर इंदौर ले जाया जाएगा जहां उनकी इच्छा के अनुसार , नर्मदा के किनारे अंतिम संस्कार कल होगा।

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

एशियन हार्ट इंस्टीटयूट इज दा बैस्ट

लोग कहते है ​कि जब से प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सर्जरी हुई है, डॉ. रमाकान्त पाण्डा का नाम बहुत आगे आ गया है । लेकिन यह सत्य है ​कि डॉ. रमाकान्त पाण्डा ने कडी मेहनत और लग्न से यह मुकाम हासिल किया है । अभी कुछ दिन पहले दिनांक 23 अक्टूबर 2009 को ​बिमला गुप्ता का एसेण्डिग अरोटा रूट इन्कलूडिंग वाल चेंज का सफल आपरेशन डॉ. पाण्डा ने किया । ज्ञातव्य है ​कि इससे पहले इस आपरेशन के लिए जसलोक हस्पताल के डॉ. हेमन्त कुमार , बोम्बे हास्पीटल के डॉ. भट्टाचार्य आ​दि तथा अनेकानेक डॉक्टरों से इसके बारे में चर्चा की जा चुकी थी, सभी का मत था ​कि आपरेशन का निर्णण् मेरी जिन्दगी का अहम निर्णय होगा क्यों​कि इसमें यह तो दिमागी हालत खराब हो जाएगी या पेरेलॉसिस होने की आशंका 80 प्रतिशत रहेगी । श्रीमती बिमला गुप्ता नहीं चाहती थी ​कि वे आपरेशन के बाद अपंगों की जिन्दगी जिऐं । इसमें डॉ. रमाकान्त पाण्डा नेविश्वास दिलाया ​कि वे इस आपरेशन को पूरी लगन से करेंगे और 95 प्रतिशत ठीक ही करेंगे । हुआ भी वही, जो डॉ. पाण्डा ने कहा , वही हुआ ।आज श्रीमती बिमला गुप्ता स्वस्थ है और रूम में शिफ्ट हो गई हैं शायद दो या तीन दिन में उनके घर आने की संभावना है ।और इसका श्रेय जाता है डॉ.पाण्डा और उनकी टीम को।

शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

दीवाली यानी रोशनी का त्योहार।

जाहिर है, ऐसे में मोमबत्तियों व दीयों की बेहद इंपोर्टेन्स होती है और बाजार में इसकी तमाम वैराइटी मौजूद है। इस साल कैंडल्स में फ्लोटिंग कैंडल (पानी में तैरती हुई), स्ट्रॉबरी, जैस्मिन, डबल मोल्ड कैंडल, डिप कैंडल, जेल कैंडल, चंक्स कैंडल, लिली या लोट्स की खुशबू देती कैंडल, वनीला, स्ट्रॉबेरी व चॉकलेट जैसे फ्लेवर्स वाली कैंडल्स वगैरह की खासी डिमांड है। इनके अलावा, और भी कई तरह की कैंडल्स लोगों को काफी लुभा रही हैं। टेपर : इसे डिनर कैंडल भी कहा जाता है। यह 6 से 18 इंच तक लंबी होती हैं और सस्ती होने के साथ ये अच्छी रोशनी भी देती हैं। यही वजह है कि दीवाली के दिन डेकोरेशन में ये कैंडल्स खूब यूज की जाती हैं। ये 40 से लेकर 250 रुपये तक की रेंज में मौजूद हैं। पिलर कैंडल : ये टेपर कैंडल की तुलना में शेप में मोटी होती हैं। ये कलरफुल होती हैं, इसलिए इसे आप खास जगहों मसलन, गेट, ड्राइंग रूम के कोने में या डाइनिंग टेबल के सेंटर में सजा सकते हैं। यह तब ज्यादा सुंदर दिखती हैं, जब कई कलर्स वाली कैंडल्स को एक साथ जलाकर रखा जाए। कीमत की बात करें, तो ये 50 रुपये से लेकर एक हजार रुपये तक में उपलब्ध हैं। कंटेनर, जार और फ्लिड कैंडल : इन्हें कंटेनर के अंदर फिट किया जाता है। कंटेनर के अंदर से बाहर आती इनकी कलरफुल रोशनी काफी मोहक लगती है, इसलिए फेस्टिव मौके पर खास इफेक्ट डालने के लिए ये बेहतरीन हैं। टी लाइट कैंडल : ये हाई क्वॉलिटी वैक्स से तैयार की जाती हैं और अच्छी खुशबू देती हैं। ये साइज में छोटी, एक इंच चौड़ी और सिलेंडर के आकार की होती हैं। ये मेटल होल्डर में उपलब्ध हैं। चूंकि यह सेफ होती हैं, इसलिए लोग पटाखे जलाने के लिए भी इनका खूब इस्तेमाल करते हैं। जेल कैंडल : ये कलर्ड होती हैं और स्पेशल विजुअल इफेक्ट छोड़ती हैं, जो दीवाली जैसे माहौल को रंगीन बना देता है। दीवाली के मौके पर ये बतौर कैंडल के जलाने के साथ ही डेकोरेटिव आइटम्स होने का भी काम करती हैं। ये मैंगो, पपाया, स्वीट लेमन, स्ट्रॉबेरी, एप्रिकोट, पाइनेपल, लवेंडर, सेफरन जैसी तमाम तरह की वैराइटी में मिल जाती हैं। गैस कैंडल्स : गैस कैंडल तकरीबन 20 घंटे तक जल सकती है, इसलिए इसे दीवाली के मौके पर गिफ्ट देने के तौर पर भी खूब इस्तेमाल किया जाता है। परफ्यूम कैंडल : दीवाली जैसे मौके के लिए परफ्यूम कैंडल भी आपके लिए अच्छा ऑप्शन बन सकती हैं। ये दिखने में तो सुंदर लगती ही हैं, जलाने पर कमरे को भी खुशबू से भर देती हैं। ये छोटे- छोटे कंटेनर्स में भी उपलब्ध हैं। डिजाइनर कैंडल : घर को अट्रैक्टिव लुक देने में डिजाइनर कैंडल खासी मददगार होती हैं और ये कई अट्रैक्टिव शेप्स में उपलब्ध हैं। फ्लावर्स कैंडल : ये मिनी ग्लास में कलरफुल वैक्स में मिलती हैं। इस समय सनफ्लॉवर कैंडल्स ज्यादा पसंद की जा रही हैं। इसके अलावा, रोज, लिली, ऑर्किड आदि भी खासी पसंद की जा रही हैं। ये शो पीसेस के तौर पर भी रखी जा सकती हैं। स्पार्कलिंग कैंडल्स : स्पार्कलिंग कैंडल्स चार्मिंग व अट्रैक्टिव दिखती हैं और घर को झिलमिलाता इफेक्ट देती हैं। हैंडमेड कैंडल : ये आपको ऐपल, ऑरेंज, मैंगो, लेमन जैसी शेप्स में मिल जाएंगी। शैंडलियर कैंडल : ये भगवान गणेश, लक्ष्मी जी, स्वस्तिक, ओम, श्री और दूसरे कई सिंबल्स में मार्किट में उपलब्ध हैं। दीए में है ढेरों वैराइटी दीयों में इस समय सिंपल, नक्काशी वाली दीये, पंचमुखी व अष्टमुखी दीये, कंबाइन स्टैंड वाले दीये, दीये विद स्टैंड, कलरफुल दीये जैसे तमाम ऑप्शन मार्किट में मौजूद हैं। इसके अलावा, टेराकोटा दीया और टेराकोटा फिश दीया भी खासा पसंद किया जा रहा है। वैसे, दीवाली पर टेराकोटा के दीये जलाना शुभ माना जाता है। यही वजह है कि टेराकोटा में बाजार में सिंपल और डिजाइनर दोनों ही तरह के दीयों की भरमार है। इस बार स्टैंडिंग दीये खूब पसंद किए जा रहे हैं। स्टैंड पर चार या छह दीये डिजाइन किए गए हैं और स्टैंड को खूबसूरत नक्काशी से सजा दिया गया है। ये राउंड शेप के अलावा, स्क्वेयर व पत्ती की शेप में भी मिल जाएंगे। इसके अलावा, अलग-अलग रेंजों और डिजाइनों में खूबसूरत डिजाइन वाले कई तरह के दीयों में मार्किट में अच्छी-खासी वैराइटी मौजूद है।

बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

आशीर्वाद ने पुरस्कार घोषितकिए

राजभाषा के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य करने वाले सरकारी कार्यालयों/ उपक्रमों/ बैंकों को नगर की प्रतिष्ठित संस्था आशीर्वाद ने पुरस्कार घोषितकिए है । जिसकी जानकारी आशीर्वाद के कार्यालय से संपर्क कर ली जा सकती है ।

यह संस्था पिछले २० वर्षो से राजभाषा के प्रोत्साहन केलिए प्रोत्साहन स्वरूप पुरस्कार देती आ रही है । इसी क्रम में संस्था के निदेशक उमाकान्त बाजपेयी ने बताया कि इस वर्ष राजभाषा अधिकारियों को भी पुरस्कारदिए जा रहे है । स्वागत

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

साहित्य अकादमी ने जिन कवियों लेखकों को आमंत्रित किया, उन्हें पत्र हिन्दी अथवा क्षेत्रीय भाषाओं की जगह अंग्रेजी में लिख भेजा।

कितना कठिन होता है, जब हमें अपनी ही भाषा से दूर कर दिया जाए। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन काम करने वाले साहित्य अकादमी ने। पिछले महीने अकादमी के क्षेत्रीय कार्यालय, मुम्बई द्वारा गोवा में हिन्दी पखवाड़ा गतिविधि के तहत कार्यक्रम आयोजित हुए। इसके लिए साहित्य अकादमी ने जिन कवियों लेखकों को आमंत्रित किया, उन्हें पत्र हिन्दी अथवा क्षेत्रीय भाषाओं की जगह अंग्रेजी में लिख भेजा। ऐसा ही एक आमंत्रण पत्र सिंधु दुर्ग की कवियित्री प्रतीक्षा संदीप देवलते को भी भेजा गया। अंग्रेजी में लिखे गए पत्र में प्रतीक्षा को गोवा में काव्यपाठ के लिए आमंत्रित किया गया था। हालांकि, हिंदी पखवाड़े के लिए अंग्रेजी में लिखा आमंत्रण पाकर प्रतीक्षा ने विरोध स्वरूप कार्यक्रम में भाग नहीं लिया। साहित्य अकादमी की इस कारगुजारी से आहत देवलते ने एनबीटी को बताया कि राष्ट्रभाषा एवं राजभाषा के साथ ऐसा मजाक आखिर कब तक चलेगा। अंग्रेजी में लिखा आमंत्रण पत्र पाकर मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा और मैंने कार्यक्रम में शामिल न होना ही उचित समझा।

बुधवार, 23 सितंबर 2009

झूठे आंकडो के सहारे आखिर कब तक टिकोगे

वैसे तो यह सर्वविदित है कि भारत सरकार में झूटे आंकडे देकर ही आम आदमी को तसल्ली दी जाती है । सादगी का ढोंग रेल यात्रा करके ही किया जाता है परन्तु वास्तव में यदि पूरे खर्च का आकलन किया जाए तो वह हवाई यात्रा से कम ही रहेगा ।
राजभाषा के रूप में हिन्दी की भी कमाबेस वही हालत है, आंकडे बनाए जाते है और तिमाही रिपोर्ट मे दे दिए जाते है । हर बार यही कहा जाता है कि उच्च अधिकारी दस्तखत करने से पहले आंकडों की जांच कर ले, लेकिन फुर्सत किसे है इसकी ।
आंकडो के बल पर राजभाषा शील्ड, इंदिरा गांधी राजभाषा शील्ड प्राप्त करने के समाचार आ रहे है वे कार्यालय भी इस दौड में आ गए है जिनके यहां राजभाषा के रूप में हिन्दी का कुछ भी काम नहीं होता , फिर विश्वसनीयता कहां है और किसे फिक्र है इस प्रकार की विश्वसनीयता को बनाए रखने की क्योंकि जब काम बिना जांच के ही पूरा हो रहा है और बिना किए ही शील्ड मिल रहे है तो फिर काम क्यों किया जाए । कहते हैं कि यदि काम किया जाएगा तो गलती भी होगी और गलती होगी तो खिंचाई भी होगी । अतः कोई भी राजभाषा अधिकारी नहीं चाहता कि इस प्रकार के पचडे में पडे, उसे तो अपने उच्च अधिकारी को प्रसन्न रखना है और उसके लिए चाहिये एक शील्ड । सो झूटे आंकडों के आधार पर प्राप्त कर लेता है और साल भर आराम करता है या कहानी , लेख और कविता रचकर अपनी विद्वता का प्रदर्शन करता है । मैं तहेदिल से ऐसे अधिकारियो को बधाई देता हूं और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं ।

रविवार, 20 सितंबर 2009

औरहो गया हिन्दी का श्राद्ध्


हिन्दी वालों ने कर दिया हिन्दी का श्राद्ध् तथा एक साल के लिए कर दी सरकारी दफ्तरों से हिन्दी की छुट्टी । यह कोई नई बात नहीं है, साठ साल से यही हो रहा है और अनन्त काल तक इसी प्रकार होता रहेगा । यह एक संयोग है कि इस साल श्राद्ध् अमावश्या तथा हिन्दी के सप्ताह मनाने का दिन एक ही था । सभी कार्यालयों के अध्यक्ष 14 सितम्बर को तो संदेश वाचन में व्यस्त थे या इंदिरा गांधी पुरस्कार की दौड में । हिन्दी सप्ताह मनाया गया तथा 14 सितम्बर से 18 सितम्बर तक यह आयोजन हुआ । बडी बडी बाते कही गई, बडे बडे भाषण और व्याख्यान दिए गए । हिन्दी के सम्मान में सभी ने गुणगान कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री की । अपने अपने विभागाध्यक्ष से इस कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए पुरस्कार प्राप्त किया और हिन्दी को एक साल के लिए खूंटी पर टांग दिया अब यही सबकुछ अगले साल होगा ।
सरकारी कार्यालयों में हिन्दी में सर्वोत्कृष्ट कार्य करने के लिए हर साल की तरह इस साल भी स्व. इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार भारत की महामहिम राष्ट्रपति महोदया के कर-कमलों से पाकर कार्यालयाध्यक्ष धन्य हो गए लेकिन किस कीमत पर, केवल झूठ के सहारे । धारा 3(3) का शत प्रतिशत अनुपालन दिखाया गया जबकि जो कागजात उन कार्यालयों से कंप्यूटर से जॅनरेट होते है , वे सभी केवल और केवल अंग्रेजी में ही जारी हो रहे है । मैं इस तथ्य को इसलिए कह रहा हूं कि यह मामला संसदीय राजभाषा समिति की अनेकानेक बैठकों में उठा है और इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार पाने वाले कार्यालयाध्यक्षों ने संसदीय राजभाषा समिति के समक्ष यह स्वीकार किया है कि उनके यहां राजभाषा अधिनियम की धारा 3(3) का अनुपालन नहीं हो पा रहा है विशेषकर कंप्यूटर जनित दस्तावेज तो केवल अंग्रेजी में जारी हो रहे है । इस तथ्य के बाद भी इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार दिया जाना शायद स्व. इंदिरा गांधी जी को कभी भी स्वीकार नहीं होता । क्या इस तथ्य पर राजभाषा विभाग गौर करेगा कि इसकी इंक्वारी सीबीआई से कराई जाए और झूटे आंकडे जिन कार्यालयों ने दिये है उस आंकडों के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकारी के विरूद्ध् कडी कार्रवाई हो तो शायद भारत का आम आदमी अपनी भाषा के कार्यान्वयन का सपना देख सके । अन्यथा प्रणाम राजभाषा विभाग को और उनके ऐसे अधिकारियों को जो केवल कुछ गिफ्ट लेकर इस प्रकार का घृणित अपराध करते है कि अपनी भाषा के प्रति ही भृष्ट आचरण करते हैं । मैं ऐसे विभागो को भी प्रणाम करता हूं जो झूटे आंकडे देकर पुरस्कृत हो रहे हैं । वे सभी धन्य हैं ।

बुधवार, 16 सितंबर 2009

राजभाषा को खूंटी पर टांग रहे है राजभाषा कर्मी, बधाई

बडे सौभाग्य की बात है कि आज भी भारत जैसे देश की कोई राजभाषा नहीं है यदि है तो केवल कागजों पर, जिन लोगों ने यह स्वप्न संजोये थे कि हिन्दुस्तानी भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो , यदि आज की तस्वीर को देखते जो कि बदलते परिवेश के कारण हो गई है तो शायद वे अपनी करनी पर पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ और नहीं सोचते । आज भारत देश के सभी राजभाषा कर्मी राजभाषा सप्ताह मना रहे है और कविता , भाषण यहां तक कि हिन्दी के नाम पर पाक प्रतियोगिताएं भी करा रहे हैं । यह भी केवल इसी माह तक सीमित रहेगा । भारत सरकार के मंत्रालयों से संदेश आते है कि इन्हे पढा जाए और इनपर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए । बस उनका काम यहीं तक सीमित है वे केवल सुनिश्चित करने को लिखा सकते है सुनिश्चित करा नहीं सकते क्योंकि वे स्वयं बदलते परिवेश के कारण हुए बदलाव में ढल नहीं पाए है आज भी अनेकानेक कार्यालयों में हिन्दी कर्मी कंप्यूटर नहीं सीख पाए है तो किस ताकत पर वे कंप्यूटरों पर राजभाषा के रूप में हिन्दी सुनिश्चित करा सकते है । आज हमारा मत है कि हिन्दी को राजभाषा कर्मियों से भगवान बचाए , शायद भारत का जनमानस अपनी भाषाओं को अपना ले । मुझे बहुत अच्छा लगा कि तमिल के एक केन्द्रीय मंत्री ने स्पष्ट कहा कि मुझे संसद में तमिल में बोलने की छूट होनी चाहिये यह स्वागत योग्य है कम से कम इसी तरह भारतीय भाषाओं का भविष्य तो अंधकारमय नही रहेगा ।

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

हिन्दी मठाधीशों को प्रणाम करता हूं

हिन्दी को राजभाषा के रूप में अपनाना चाहिये, केवल दिवस मनाने से कोई अर्थ नहीं, अब समय आ गया है कि सरकारी दफ्तरों से हिन्दी अफसर नाम का मठाधीश हटा दिया जाए और हिन्दी को अपने आप फलने फूलने दिया जाए ।
भारत को आजाद हुए 63 साल बीत गए, कई सरकार आई और कई गई, वही ढाक के तीन पात, भारत को अभी तक अपनी भाषा नहीं मिल पाई ।सारे भारत में केन्द्रीय सरकारी कार्यालयों मे राजभाषा सप्ताह, राजभाषा दिवस, और यहां तक कि राजभाषा माह मनाए जा रहे है । वही पुरानी ढर्रे की प्रतियोगिताएं, वही पुराने संदेश, और वही पुराने ढंग । न कुछ बदला है और न ही कुछ बदलेगा । हिन्दी विभाग में बैठक हिन्दी अधिकारी वही पुराने ढंग से अपने अपने राग अलापते रहेंगे और एक प्रतीकात्मक कार्य अपने ढंग से करते रहेगे ।
आज के बदलते युग में वैश्विक सोच, उसे कार्यान्वन करने के लिए उपयुक्त ज्ञान की आवश्यकता है जो कि आज के तथाकथित हिन्दी अफसरों के पास नहीं है बहुत से मेरे साथी है जिन्हे आज भी कंप्यूटर चलाना नहीं आता और इस 14 सितम्बर 2009 को उन्हें इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार मिल गया है । मैं इस प्रकार के हिन्दी मठाधीशों को प्रणाम करता हूं और भगवान से प्रार्थना करता हूं कि मेरे भारत को इस प्रकार के मठाधीशों से बचाए ।

बुधवार, 9 सितंबर 2009

बेचारे अनाथ राजभाषा कर्मी (अधीनस्थ कार्यालयों के)

भारत के संविधान की धारा 343 में कहा गया है कि भारत के संघ की राजभाषा देवनागरी लिपि में हिन्दी होगी और भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप प्रयोग में लाया जाएगा । भारत के संघ की राजभाषा हिन्दी को भारत के संघ में लागू करने के लिए राष्ट्रपति जी ने आदेश जारी किए, राजभाषा अधिनियम और राजभाषा नियम बना । इन्हें सरकारी तंत्र में लागू करने के लिए विभिन्न सरकारी कार्यालयों में हिन्दी अधिकारी, वरिष्ठ हिन्दी अधिकारी, हिन्दी अनुवादक श्रेणी -I अथवा वरिष्ठ अनुवादक तथा हिन्दी अनुवादक श्रेणी -II अथवा कनिष्ठ अनुवादक भर्ती किए गए । चूंकि मंत्रालयों और उनके विभागों का स्वरूप अपेक्षाकृत बड़ा होता था, वहाँ वरिष्ठ हिन्दी अधिकारी, हिन्दी अधिकारी, वरिष्ठ अनुवादक तथा कनिष्ठ अनुवादक के पद होते थे । किंतु संबद्ध एवं अधीनस्थ कार्यालयों को स्वरूप कुछ छोटा होता था वहाँ हिन्दी अधिकारी, वरिष्ठ अनुवादक (अधीनस्थ कार्यालयों में हिन्दी अनुवादक श्रेणी -I) तथा कनिष्ठ अनुवादक (अधीनस्थ कार्यालयों में हिन्दी अनुवादक श्रेणी II) के पद सृजित किए गए ।

मंत्रालयों, विभागों और संबद्ध कार्यालयों के राजभाषा संबंधी पदों में पदोन्नति के अधिक अवसर सृजित करने के लिए, अन्य केद्रीय सिविल सेवा संवर्गों की तर्ज पर, 1983-84 में केद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग का गठन किया गया । अधीनस्थ कार्यालयों को यह कह कर इस संवर्ग में शामिल नहीं किया कि निकट भविष्य में अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा संबंधी पदों को भी इस संवर्ग में शामिल किया जाएगा । किन्तु वह निकट भविष्य 25-26 वर्ष बाद आज भी नहीं आया । संवर्ग से पहले हिन्दी अधिकारी का वेतनमान 650-1200 होता था, वरिष्ठ अनुवादक और कनिष्ठ अनुवादक के वेतनमान क्रमश: 550-900 और 425-640 या 425-700 होते थे । अधीनस्थ कार्यालयों के हिन्दी अनुवादक श्रेणी I और हिन्दी अनुवादक श्रेणी II के वेतनमान क्रमश: 550-800 और 425-640 होते थे । सभी समकक्ष पदों की शैक्षणिक योग्यताएँ, कर्तव्य आदि समान होने पर भी मंत्रालयों, विभागों और संबद्ध कार्यालयों के राजभाषा पदों को अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा पदों से अकारण ही ऊंचा माना गया था ।

चौथे वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सहायक निदेशक (राजभाषा) / हिन्दी अधिकारी का वेतनमान रू. 2000-3500, वरिष्ठ अनुवादक का रू. 1640-2900 और कनिष्ठ अनुवादक का वेतनमान रू. 1400-2600 निर्धारित किया गया । अधीनस्थ कार्यालयों के हिन्दी अनुवादक श्रेणी I को रू. 1640-2900 और हिन्दी अनुवादक श्रेणी II को 1400-2600 का वेतनमान दिया गया ।

पाँचवे वेतन आयोग की स्वीकृत सिफारिशों में हिन्दी अधिकारी / सहायक निदेशक (राजभाषा) को रू. 6500-200-10500 का, वरिष्ठ अनुवादक / हिन्दी अनुवादक श्रेणी I को रू. 5500-175-9000 का तथा कनिष्ठ अनुवादक / हिन्दी अनुवादक श्रेणी II क ाट रू. 5000-150-8000 का वेतनमान प्रदान किया गया । यहाँ तक सब ठीक-ठाक था । किन्तु क टद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग के सदस्यों को निदेशक (राजभाषा) के स्तर तक पदोन्नति के अवसर प्राप्त थे तो अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मी जिस पद पर भर्ती होते थे उसी पद पर सेवा निवृत्त होने या मृत्यु को प्राप्त हेने को विवश थे । के.सचि.रा.भा.से.संवर्ग के सदस्यों का एक मंत्रालय से दूसरे मंत्रालय में स्थानांतरण संभव था किन्तु अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मी एक अधीनस्थ कार्यालय में जा तो सकते थे, अपने प्रधान कार्यालय या मंत्रालय / विभाग में नहीं जा सकते थे । पदोन्नति के अवसर निर्माण करने हेतु अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मियों ने विभिन्न राजभाषा सम्मेलनों, बैठकों, सभाओं आदि में राजभाषा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से अनुरोध किया कि अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मियों को भी केद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग में शामिल किया जाए । किन्तु राजभाषा विभाग के सक्षम अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी । परिणामस्वरूप, अधीनस्थ कार्यालयों के अधिकतर राजभाषा संबंधी पदों को आइसोलेटिड पोस्ट बताकर एसीपी योजना के अन्तर्गत वित्तीय प्रोन्नयन के रूप में पाँचवें वेतन आयोग द्वारा संतुस्त वेतनमानों की अनुक्रमाणिका / तालिका का अगला वेतनमान थमा दिया गया जबकि संवर्ग के सदस्यों को पदोन्नति क्रम का अगला वेतनमान । इस बात को एक उदाहरण से इस प्रकार समझा जा सकता है कि संवर्ग के सहायक निदेशक (राजभाषा) वेतनमान 6500-200-10500) को एसीपी योजना में वित्तीय प्रोन्नयन के रूप में रू. 10,000-375-15200 का वेतनमान दिया गया जबकि अधीनस्थ कार्यालय के हिन्दी अधिकारी (वेतनमानः6500-200-10500) को रू. 7450-225-11500 का वेतनमान I

अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मी इस अन्याय के विरूद्ध कितनी ही गुहार लगा लें, उनकी कोई नहीं सुनता -न राजभाषा विभाग और नही पीड़ित राजभाषा कर्मियों का प्रशासनिक विभाग / मंत्रालय I केद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (C.A.T.) द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के ऐसे ही एक प्रकरण में दिए गए निर्णय / आदेश का भी इन बहरें लोगों पर कोई असर नहीं पड़ता क्योंकि अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मियों का कोई संगठन नहीं है जो इस अन्याय के विरूद्ध बार-बार न्यायालय का दरवाजा खटखटाता रहे I

दिल्ली में केद्रीय लोक निर्माण विभाग भारत सरकार का एक अधीनस्थ कार्यालय है और इसके कनिष्ठ अनुवादकों को रू. 1400-2600 के बजाए रू. 1400-2300 का वेतनमान दिया गया था और साथ ही में यह भी हिदायत जारी की गई थी कि यदि गलती से किसी कनिष्ठ हिन्दी अनुवादक को रू. 1400-2600 का वेतनमान देकर उसका वेतन उसमें निर्धारित कर दिया गया हो तो पुनः उस कनिष्ठ हिन्दी अनुवादक का वेतन रू. 1400-2300 में निर्धारित किया जाए और भुगतान किया गया अधिक वेतन वापिस लिया जाए I

सीपीडब्ल्यूडी के अनुवादकों की एसोसिएशन ने OA 1 57 / 90 की पंजीकरण संख्या से केद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) में आवेदन किया कि वापसी संबंधी सरकारी आदेश पर रोक लगे और सीपीडब्ल्यू के कनिष्ठ हिन्दी अनुवादकों क ाट केद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग के कनिष्ठ हिन्दी अनुवादकों के समान रू. 1400-2600 का वेतनमान दिया जाए । माननीय केद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की मुख्यपीठ ने 10.1.1992 को सीपीडब्ल्यूडी ट्रान्सलेटर्स एसोसिएशन के पक्ष में निर्णय देते हुए के.प्रशा.न्याया. द्वारा 24.9.1991 को वाद सं. ओए 1310 / 89 - (वी.के. शर्मा और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य) में प्रतिवादियों को आदेश दिया था वह आर्म्ड फोर्सेस हैडक्वार्टर्स (एएफएचक्यू / इन्टरसर्विसेस आर्गेनाइजेशन) रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ और कनिष्ठ हिन्दी अनुवादकों को दिनांक 1.1.1986 से क्रमशः रू. 1600-2600 के स्थान पर रू. 1640-2900 का और रू. 1400-2300 के स्थान पर रू. 1400-2600 का वेतनमान, वेतन निर्धारण के परिणामजन्य सभी लाभ, बकाया राशि, और आनुषगिक भत्ते आदि प्रदान करे I इस प्रकरण में माननीय न्यायाधिकरण ने रणधीर सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 1982, SCC (L&S) प्रकरण में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के हवाले से बताया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय का मानना था कि जहां सभी प्रासंगिक विचारणीय बातें समान हैं, अलग विभागों में एक जैसे पदों पर काम करने वाले व्यक्तियों के साथ वेतनादि के मामले में अलग-अलग व्यवहार नहीं करना चाहिए I ( The Tribunal relied upon decision of the Supreme Court in Randhir Singh Vs Union of India, 1982 SCC (L & S) wherein the Supreme Court observed that where all the relevant considerations are the same persons holding identical posts must not be treated differently in the matter of their pay merely because they belong to different departments).

यहाँ भी सीपीडब्ल्यूडी प्रशासन भेदभाव करने से पीछे नहीं रहा और उसने संशोधित वेतनमान ट्रांस्लेटर्स एसोसिएशन के सदस्यों को ही दिए, बाकी को नहीं । ट्रांस्लेटर्स एसोसिएशन ने अदालत की अवमानना का प्रकरण CCP 212 of 1993 दायर किया । इस प्रकरण में भी कैट की प्रिंसिपल बैंच ने ट्रांस्लेटर्स एसोसिएशन के पक्ष में फैसला दिया और एक बहुत महत्वपूर्ण सिद्धांत का प्रतिपादन किया, When a judgement is declaratory in character, it is applicable to all those who fall in that class and that each and every individual should not be compelled to approach the Courts for getting the relief. The Govt. as a model employer must on its own accord similar benefits to everyone similarly situate.

इसके बाद, राजभाषा विभाग ने 8 नवंबर 2000 को का.ज्ञा.सं. 12/2/97-OL(S) के द्वारा, केसचिराभासे के वरिष्ठ हिन्दी अनुवादकों और कनिष्ठ हिन्दी अनुवादकों को स्वीकृत वेतनमान क्रमशः रू. 5500-9000 और रू. 5000-8000 इस सेवा संवर्ग से बाहर के वरिष्ठ हिन्दी अनुवादकों और कनिष्ठ हिन्दी अनुवादकों को भी प्रदान करने का निदेश जारी किया I

मगर अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मियों का दुर्भाग्य केवल यहीं समाप्त नहीं हो गया I एक बार फिर भारत सरकार, वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने केवल केद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग के सदस्यें को संशोधित वेतनमान दिए और संवर्ग से बाहर के राजभाषा कर्मियों को यदि किसी ने गलती से ये वेतनमान देभी दिए हों तो संशोधन रद्द करने और, यदि संशोधित वेतनमानों के अनुसार कोई भुगतान किया गया हो तो उसे वापिस लेने का फरमान जारी कर दिया I भारत सरकार के राजभाषा विभाग ने भारत सरकार के ही वित्त एवं कंपनी कार्य मंत्रालय (व्यय विभाग) के यू.ओ सं. 70/11/2000 आई सी दिनांक 13.2.2003 के अन्तर्गत प्राप्त स्वीकृति के अनुसार कार्या.आदे. सं. 13/8/2002 रा.भा.(सेवा) दिनांक 19.2.2003 के माध्यम से (1) कनिष्ठ अनुवादक को रू. 5000-8000 के बदले रू. 5500-9000 का और (2) वरिष्ठ अनुवादक को रू. 5500-9000 के बदले रू. 6500-10500 का वेतनमान प्रदान किया I 27 फरवरी 2003 को जारी एक अन्य कार्यालय आदेश सं. 12/2/97-रा.भा.(सेवा) के माध्यम से सहायक निदेशक (राजभाषा) को रू. 6500-200-10500 के वेतनमान के बदले रू. 7500-250-12000 का वेतनमान प्रदान किया गया I इन आदेशों में यह भी स्पष्ट कहा गया था कि ये वेतनमान केवल केद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग के सदस्यों तक ही सीमित हैं I बाद में, इस संवर्ग के बाहर कार्यरत राजभाषा कर्मियों ने जब इन संशोधित वेतनमानों के लिए आग्रह किया और इस विषय में भारत सरकार के राजभाषा विभाग तथा वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग से संपर्क साधना आरंभ किया तो भारत सरकार, वित्त मंत्रालय, व्यय विभाग ने एक कार्यालय ज्ञापन जारी करके ज़ोर दिया कि फरवरी 2003 में जारी किए गए कार्या.ज्ञाप. के माध्यम से सहायक निदेशक (रा.भा.) वरिष्ठ अनुवादक और कनिष्ठ अनुवादक को प्रदत्त संशोधित वेतन मान केवल केसचिराभासे के सदस्य राजभाषा कर्मियों तक ही सीमित हैं, इसके बाहर अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मियों के लिए नहीं I इतना ही नहीं उस कार्यालय ज्ञापन के हस्ताक्षर कर्त्ता अध्ंिाकारी श्री मनोज जोशी, उप सचिव, व्यय विभाग, वित्त मंत्रालय ने तो उा कार्यालय ज्ञापन में यहां तक कहा है कि यदि गलती से किसी कार्यालय में इनका लाभ दिया गया हो तो वह वापिस ले लिया जाए और लाभार्थियों को संशोधनपूर्व की स्थिति में पहुंचा दिया जाए I वित्त मंत्रालय के इतने वरिष्ठ अधिकारी ने क्या के.प्रशा.न्याया. का निर्णय और उसमें उच्चतम न्यायालय का संदर्भ नहीं पढ़ा होगा?

इसी वित्त मंत्रालय ने के.प्रशा.न्याया. द्वारा ओए 157/90 के मामले में दिनांक 10.1.1992 को दिए निर्णय-आदेश और सीसीपी 212/1993 के मामले में दिनांक 20.10.1993 को दिए गए निर्णय-आदेश का पालन करते हुए भारत सरकार, राजभाषा विभाग को कार्यालय ज्ञापन सं. 12/2/97 -रा.भा. (सेवाएं) दिनांक 8 नवंबर 2000 जारी करने का निदेश दिया जिसके माध्यम से सभी वरि.हि.अनु.को रू. 5500-9000 का और कनि.हि.अनु. को रू. 5000-8000 वेतनमान प्रदान किया गया था I फिर न्यायालय की यह अवमानना क्यूं I

अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मियों ने जब फरवरी 2003 में राजभाषा विभाग द्वारा संशोधित वंतनमानों के लिए अपने-अपने प्रशासनिक मंत्रालयों में मांग की तो उन्हें वित्त मंत्रालय के जवाब के हवाले से बैरंग लौटा दिया गया I उनके प्रति न तो गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग ने सहानुभूति दिखाई और न ही विभिन्न प्रशासनिक मंत्रालयों ने I कोई भी इस संदर्भ में केद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण और उससे पहले सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर ध्यान नहीं दे रहा था I इसका एकमात्र कारण था कि केद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग के समान अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मियों का कोई संवर्ग नहीं था I एक-दो मंत्रालयों में, जहां अधीनस्थ कार्यालय और उनमें काम करने वाले राजभाषा कर्मियों की संख्या पर्याप्त थी, अधीनस्थ कार्यालयों में कार्यरत राजभाषा कर्मियों का अलग संवर्ग बन गया जैसे वित्त मंत्रालय का आयकर विभाग । किन्तु जहां राजभाषा कर्मियों की संख्या 1-1, 2-2 थी, उनका संवर्ग कौन बनाए?

भारत भर में भारत सरकार की राजभाषा नीति के अनुपालन में कितनी और कैसी प्रगति हो रही है तथा कहां-कहां किस-किस सुविधा-उपाय की आवश्यकता है, इस पर नज़र रखने और इसका आकलन करने के लिए एक संसदीय राजभाषा समिति है I इस समिति की रिपोर्ट सीधे-सीधे महामहिम राष्ट्रपति जी को प्रस्तुत की जाती है I इस समिति की रिपोर्ट के प्रथम खंड माननीय राष्ट्रपति जी के आदेश संकल्प सं. 1/20012/1/87-रा.भा. (क-1) दिनांक 30-12-1988 के द्वारा जारी किए गए इस संकल्प की मद सं. 11, ``अधीनस्थ कार्यालयों में अनुवाद संबंधी पदो पर कार्यरत अधिकारियों- कर्मचारियों के अलग-अलग संवर्ग गठित करना'' में निदेश दिया गया है कि विभ्ंिान्न मंत्रालयों / विभागों तथा उपक्रमों को अपने-अपने अधीनस्थ कार्यालयों में संघ की राजभाषा नीति के अनुपालन के लिए अनुवाद संबंधी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए कार्यरत अधिकारियों /कर्मचारियों का भी अलग-अलग संवर्ग गठित करना चाहिए I(इसी में आगे कहा गया कि) जहां संवर्ग का गठन संभव हो, वहां संवर्ग बनाया जाए, जहां पर यह संभव न हो वहां स्टाफ की पदोन्नति के लिए अन्य प्रकार की व्यवस्था की जाए I गृह मंत्रालय का राजभाषा विभाग इस संबंध में अपेक्षित कार्रवाई के लिए आवश्यक निर्देश जारी करे I भारत सरकार के 90% से भी ज्यादा अधीनस्थ कार्यालयों को आज भी राजभाषा विभाग के ऐसे किसी निर्देश का इंतजार है इस विषय में अभी तक न तो कोई व्यावहारिक कदम उठाया गया है और न ही किसी निरीक्षण प्रश्नावली में प्रश्न किया गया है।

अधीनस्थ कार्यालयों में अधिकारियों / कर्मचारियों की अधिकतम अपेक्षित शैक्षणिक योग्यता स्नातक स्तर तक होती है किन्तु एक राजभाषा कर्मी के लिए एम.ए. होना अनिवार्य है I एक कनिष्ठ किन्दी अनुवादक के लिए, जो इस पिरामिड की नींव का पत्थर होता है, बी.ए. स्तर तक हिन्दी, अंग्रेजी का अनिवार्य ज्ञान के साथ-साथ हिन्दी या अंग्रेजी में एम.ए. होना अनिवार्य होता है I किन्तु एक एल.डी.सी. दसवीं पास हो तब भी चलता है I एक डिप्लोमा धारी इंजीनियर सहायक के वेतनमान में नौकरी पाता है I एल.डी.सी., अवर सचिव के पद तक पदोन्नति पा जाता है, डिप्लोमा धारी इंजीनियर, मुख्य अभियंता तक बन जाता है किन्तु अधीनस्थ कार्यालय का एम.ए. पास कनिष्ठ हिन्दी अनुवादक उसी पद पर रिटायर हो जाता है जिस पर भर्ती हुआ था I

कनिष्ठ अनुवादक को नौकरी दी जाती है मानो उस पर बहुत एहसान कर देते हैं I वह हो या उसका हिन्दी अधिकारी, नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह उनकी बातों पर तब तक कोई ध्यान नहीं देता जब तक संसदीय राजभाषा समिति के निरीक्षण जैसा कोई डंडा उनके सिर पर नहीं पड़ता I जहां संसदीय राजभाषा समिति द्वारा निरीक्षण का पत्र मिला वहीं रिकार्ड रूम में धूल फांक रही पुरानी फाइल की तरह राजभाषा कर्मी की तलाश, झाड़ फूंक होती है, उसकी कद्र की जाती है, बाद में उसे फिर रिकार्ड रूम में पें€क दिया जाता है I प्रशासन का जो काम दूसरे कर्मचारी करने से इंकार कर देते हैं, उसके मत्थे मंढ दिया जाता है, और उससे भी यह काम अंग्रेजी में ही करवाना चाहते हैं I हिन्दी अनुवादक एक सहायक स्तर का कर्मचारी होता है, इसलिए उच्चतर अधिकारी उसे कोई भाव नहीं देते I क्योंकि उच्चतर अधिकारियों से उसे अपने कार्य (राजभाषा नीति के अनुपालन) में कोई सहयोग-समर्थन नहीं मिलता, तो दूसरे कर्मचारी भी राजभाषा नीति के अनुपालन के मामले में उदासीनता ही दिखाते हैं I हिन्दी अनुवादक से उम्मीद की जाती है कि वही अनुवाद भी करे और उसको टाइप भी वही करे I अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मियों की यह स्थिति किसी एक या दो कार्यालयों में नहीं बल्कि लगभग शत-प्रतिशत अधीनस्थ कार्यालयों में है I कोई इक्का-दुक्का कार्यालय ही होगा जहां राजभाषा कर्मियों को उचित समर्थन और सहयोग मिलता है, ऐसे में उनके न्यायोचित अधिकारों के लिए उनका समर्थन कौन करेगा I

जब न्यायोचित अधिकारों की बात उठी है तो यहां अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मियों के केद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में एक और सफल संघर्ष की चर्चा करना उचित होगा I जब वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग की मंजूरी पर भारत सरकार के राजभाषा विभाग ने कं.सचि.रा.भा. से. संवर्ग के सहायक निदेशक (राजभाषा), वरिष्ठ हिन्दी अनुवादकों और कनिष्ठ हिन्दी अनुवादकों को फरवरी 2003 में दि 1.1.1996 से संशोधित वेतनमान प्रदान किए और इस संवर्ग से बाहर के राजभाषा कर्मियों को इनसे निर्ममतापूर्वक वंचित रखा तो अधीनस्थ कार्यालयों के दो हिन्दी अनुवादकों श्री धनंजय सिंह और श्री राजेश कुमार गोंड ने के.प्रशा.न्याया. की कोलकात्ता पीठ में दो याचिकाएं क्रमशः OA 912/04 और OA 939/04 दायर कीं I इनमें से एक श्री राजेश कुमार गोंड ने तो भारत सरकार के राजभाषा विभाग को ही प्रतिवादी बनाया था I इन दोनों प्रार्थियों ने अदालत (CAT) से याचना की थी कि (i) अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मियों को भी दिनांक 1.1.1996 से वही संशोधित वेतनमान दिए जाएं जो राजभ्ंाषा विभाग ने 19/2/2003 और 27 फरवरी 2003 को जारी कार्यालय ज्ञापनों द्वारा के.सचि.रा.भा.से. के वरि. अनुवादकों, कनिष्ठ अनुवादकों और सहायक निदेशक (राजभाषा) को प्रदान किए थे और (ii) दिनांक 29.3.2004 का कार्यालय ज्ञापन रद्द किया जाए I माननीय केद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने याचिकाकर्त्ताओं के पक्ष में निर्णय देते हुए दिनांक 09.11.2006 को उपरोक्त दोनों प्रार्थनाएं स्वीकृत कीं I संभवतः, इसी निर्णय को ध्यान में रखते हुए छठे केद्रीय वेतन आयोग ने केद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग के सदस्यों के लिए संशोधित वेतनमानों की सिफारिश करते हुए, यही वेतनमान 1.1.2006 से अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मियों को प्रदान करने की सिफारिश की I इस सिफारिश पर अमल करते हुए भारत सरकार (वित्त मंत्रालय) के व्यय विभाग ने कार्यालय ज्ञापन एफ सं. 1/1/2008-आईसी दिनांक 24 नवंबर 2008 के द्वारा के.सचि.रा.भा.से. संवर्ग के निष्ठ अनुवादक से लेकर निदेशक (रा.भा.) के लिए 1.1.2006 से संशोधित वेतनमान स्वीकृत किए और विभिन्न मंत्रालयों / विभागों को हिदायत दी कि वे ये वेतनमान अधीनस्थ कार्यरत समान पदाधारियों को भी प्रदान करें I नवंबर 2008 से जून 2009 के अंत तक 7 माह बीत चुके हैं, अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मियों तक इन संशोधित वेतनमानों का लाभ नहीं पहुंचा है I वास्तविकता यह है कि केद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग के राजभाषा कर्मियों का पिता-परमपिता तो भारत सरकार, गृह मंत्रालय का राजभाषा विभाग है, वह उनके हितों की अच्छी तरह देखभाल करता है I किन्तु, अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मियों के लाभों के बारे में न तो राजभाषा विभाग कुछ करता है और न ही अधीनस्थ कार्यालयों के प्रशासनिक मंत्रालय या विभाग, क्योंकि उन्हें कोई कष्ट नहीं है I ये प्रशासनिक मंत्रालय या विभाग अपने अधीनस्थ कार्यालयों में राजभाषा नीति अनुपालन की कितनी चिंता करते हैं यह इसी से पता चल जाता है कि इनके द्वारा अपने अधीनस्थ कार्यालयों का वर्ष में कम से कम एक बार किया जाने वाला निरीक्षण 10-10, 20-20 वर्ष तक नहीं होता और यदि होता भी है तो एक रस्म अदायगी से ज्यादा नहीं I

ऐसा नहीं है कि भेदभाव मूलक इस समस्या का समाधान नहीं है I केद्रीय प्रशासनिक न्यायधिकरण ने राजभाषा विभाग के इस भेदभाव मूलक व्यवहार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन माना है I ये दोनों धाराएं समानता के अधिकार से संबंधित हैं I वेतनमानों में असमानता के मूल में केद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग है I वास्तव में, यह संवर्ग राजभाषा संबंधी पदों के सेवा संबंधी विविध पहलुओं में समानता / समरूपता ओर पदोन्नति के अधिक से अधिक अवसर पैदा करने के लिए गठित किया गया था । किन्तु समय बीतने के साथ केद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग के सदस्यों को अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मियों से श्रेष्ठतम समझ उन्हें सेवा संबंधी बेहतर अवसर प्रदान किए गए I अतः इस समस्या के समाधान के लिए केद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग का पुनर्गठन किया जाए I

इसके अन्तर्गत कनिष्ठ अनुवादक, वरिष्ठ अनुवादक और सहायक निदेशक (राजभाषा) के, एक मंत्रालय, उसके विभागों, संबंद्ध और अधीनस्थ कार्यालयों में वर्तमान सभी पदों का उस मंत्रालय के स्तर पर मंत्रालय राजभाषा सेवा संवर्ग बनाया जाए I इस प्रकार एक मंत्रालय में कनिष्ठ अनुवादक को उसी मंत्रालय में सहायक निदेशक (राजभाषा) के पद तक पदोन्नति पाने के अवसर होंगे I जब किसी मंत्रालय का कोई वरिष्ठ अनुवादक सहायक निदेशक (राजभाषा) के पद पर पदोन्नति पाए तो उसकी इस प्रकार पदोन्नति पर नियुक्ति की सूचना (पृष्ठांकन) राजभाषा विभाग को दे दी जाए I

राजभाषा विभाग में केद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग का प्रचालन-नियंत्रण हो I इस संवर्ग में उप-निदेशक (राजभाषा) से लेकर निदेशक (राजभाषा) तक के पद शामिल हो I जैसे ही किसी वरिष्ठ अनुवादक की सहायक निदेशक (राजभाषा) के पद पर पदोन्नति की सूचना राजभाषा विभाग को मिले वह उसे उप-निदेशक (राजभाषा) के पद पर पदोन्नति हेतु सहायक निदेशक (राजभाषा) की वरिष्ठता सूची में शामिल कर ले I यहां हमें एक बात नहीं भूलनी चाहिए कि प्रत्येक मंत्रालय में अराजपत्रित कर्मचारियों का संवर्ग उसी मंत्रालय तक होता है I केद्रीय सचिवालय सेवा के विभिन्न संवर्ग राजपत्रित पदों से विशेषकर "क'' समूह के राजपत्रित पदों से आरंभ होते हैं I इस प्रकार, यदि केद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग का पुनर्गठन होता है तो यह समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी ।
लक्ष्मण गुप्ता

मंगलवार, 25 अगस्त 2009

केंद्रीय कर्मचारियों को सरकार ने त्योहारी सीजन का तोहफा दिया है।



सरकार ने छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद एरियर (बकाया राशि) की दूसरी किश्त जारी करने की घोषणा की है। सूत्रों के अनुसार दूसरी किश्त सितंबर में मिलने की संभावना है। इससे सरकारी खजाने पर करीब 17,500 करोड़ रुपये का भार बढ़ेगा। एरियर सितंबर माह की सैलरी में मिलने की उम्मीद है। वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद वेतन बढ़ोतरी को जनवरी 2006 से लागू किया गया था। इस कारण केंद्रीय कर्मचारियों को एरियर का भुगतान किया गया, मगर सरकार ने इसे दो भागों में देने का फैसला किया। नवंबर 2008 में कुल एरियर का 40 पर्सेंट दिया गया था। अब एरियर का बाकी बचा 60 पर्सेंट दिया जाएगा। देश में करीब 38 लाख केंद्रीय कर्मचारी और पेंशनर हैं। इस आंकड़े में सुरक्षाबल शामिल नहीं हैं, वे भी केंद्र सरकार के आधीन आते हैं। वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार केंद्रीय कर्मचारियों को एरियर राशि जारी कर दी गई है। अब इसका ज्ञापन सभी केंद्रीय सरकारी मंत्रालयों और विभागों में भेजा जाएगा। इसके बाद मंत्रालय और विभाग अपने कर्मचारियों और अधिकारियों की बकाया राशि का आकलन करने के बाद इसे देंगे। ऐसे में एरियर सितंबर माह की सैलरी में ही संभव हो पाएगा। ज्ञापन में कहा गया है कि जिन कर्मचारियों ने 1 जनवरी 2004 के बाद से नौकरी जॉइन की है, उनको दूसरी किश्त तभी मिलेगी, जब वे नई पेंशन स्कीम लेंगे। सरकारी कर्मचारियों को पहले की तरह अपने एरियर की दूसरी किश्त को भी साधारण भविष्य निधि (जीपीएफ) में जमा करने की भी छूट रहेगी।

सोमवार, 17 अगस्त 2009

पार्टी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी के नक्शे कदम पर चलते हुए भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) के सीनियर नेता जसवंत सिंह ने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को एक 'महान भारतीय' करार दिया है। एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में पूर्व विदेश मंत्री सिंह ने बंटवारे के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराया है। इंटरव्यू में सिंह ने कहा कि नेहरू बहुत हद तक केंद्रीकृत नीति में विश्वास करते थे और यही चीज वह देश में लागू करना चाहते थे। जिन्ना एक संघीय नीति चाहते थे, जिसे गांधी भी स्वीकार करते थे। जबकि नेहरू इससे सहमत नहीं थे। नेहरू 1947 तक संघीय भारत के रास्ते में खड़ा रहे। जसवंत ने बंटवारे के लिए जिन्ना को जिम्मेदार मानने की धारणा को खारिज करते हुए कहा कि यह गलत धारणा है और इसे सुधारने की जरूरत है। सिंह ने कहा कि मैं सोचता हूं कि हमने उन्हें गलत समझा क्योंकि हमें एक भय खड़ा करने की जरूरत थी। हमें एक भय की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि इस उपमहाद्वीप की 20वीं शताब्दी की सबसे बड़ी घटना देश का बंटवारा था। जसंवत सिंह द्वारा जिन्ना पर लिखी गई पुस्तक सोमवार को रिलीज होगी। उन्होंने कहा कि वह पाकिस्तानी नेता के व्यक्तित्व से प्रभावित हैं। सिंह ने यह भी सवाल उठाया कि क्यों देशवासी जिन्ना को एक महान भारतीय करार नहीं देते। इस बारे में जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जिन्ना ने काफी कुछ ऐसा किया जो सही मायने में काफी महत्वपूर्ण था। गांधी ने स्वयं जिन्ना को महान भारतीय करार दिया है। इसे हम क्यों नहीं याद रखते हैं। हम यह क्यों नहीं सोचते कि गांधी ने उन्हें ऐसा क्यों कहा।

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

प्रेमचन्द की धनिया अभी भी जिन्दा

प्रेमचंद की धनिया करीब 75 साल बाद गोदान (उपन्यास) से निकलकर रायबरेली के अघौरा गांव में खड़ी है। उन्हीं विद्रोही तेवरों के साथ। इस बार उसका नाम विद्यावती पासी है। धनिया के पति होरी की तरह विद्यावती का घरवाला देसराज भी कर्ज में डूबा अपने मुकद्दर को कोसता है, लेकिन अनपढ़ विद्यावती व्यवस्था को चुनौती देती हुई पूछती है कि जब मकान वालों को कॉलोनी (इंदिरा आवास योजना में पक्का मकान) दे दी गई तो हम बिना छत और दीवारों वाले गरीबों को क्यों नहीं? पिछले साल की बारिश में ढह गए अपने एक कच्चे कमरे के घर को दिखाने के लिए ही विद्यावती अचानक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का हाथ पकड़कर उन्हें घर के अंदर ले तो गई थी, मगर बिठाने के लिए उसके पास चारपाई तक नहीं थी। दलितों के गांव वैसे ही हैं। प्रेमचंद बदलाव की कहानियां लिख रहे थे। मगर गरीब के घर नहीं बदले। यह सारे घर रायबरेली के आसपास के इलाकों- प्रतापगढ़ और बनारस के गांवों में ही प्रेमचंद ने देखे थे। सोनिया अपने संसदीय क्षेत्र के विकास पर बहुत ध्यान देती हैं। इस बार काफी सख्त भी दिखीं। मगर व्यवस्था को चलाने वाले भी कम कलाकार नहीं हैं। दौरे के आखिरी दिन बुधवार को सोनिया की गाड़ी के गुजरने के साथ ही आवाज आती है- मैडम गईं, काम बंद कर दो। यह तल्ख सचाई यूपीए की सबसे महत्वाकांक्षी स्कीम ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा )की है। विडंबना यह है कि सरेआम आंखों में धूल झोंकने का यह कारनामा सोनिया के संसदीय क्षेत्र में किया जा रहा है। देश के सबसे हाई प्रोफाइल संसदीय क्षेत्र रायबरेली में नरेगा के कामों में बेशुमार शिकायतें हैं। एक और मिसाल देखिए। सोनिया गांव बदई पुरवा में नरेगा के अंतर्गत सड़क निर्माण का काम देखने गईं। मौके पर कोई मस्टर रोल नहीं थी। कितने लोगों को यहां काम मिला है? अभी कितने ग्रामीण काम कर रहे हैं? पैसा कब से नहीं मिला? जैसे सवालों का ग्राम प्रधान और बीडीओ के पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं था। सोनिया ने जब वहां खुद खड़े होकर हाजिरी लगवाई तो प्रधान ने सच स्वीकार करते हुए कहा- मैडम जब आप आती हैं तो हमारे गर्दन पर तलवार रख दी जाती है। कहा जाता है कि काम शुरू करवाओ। अब जल्दी और घबराहट में गलतियां होती हैं। हमें माफ कर दो। नरेगा का काम राज्य सरकार के अधिकारी करवाते हैं। गांव के सरपंच कहते हैं कि उन्हें नरेगा का काम तभी मिलता है, जब पहले जिला अधिकारियों को उनका कमिशन मिल जाता है। यह पैसा कहां से दिया जाए? गांव के लोग बताते हैं कि नरेगा में काम दस को मिलता है, मस्टर रोल में नाम लिखे जाते हैं पचास। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी भी अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में नरेगा के कामों को लेकर सार्वजनिक रूप से गुस्सा दिखा चुके हैं। एक अधिकारी ने जब गांववालों को गलत करार देने की कोशिश की थी, तब राहुल ने डांटते हुए कहा था कि लोग गलत नहीं बोलते।

शनिवार, 8 अगस्त 2009

गीतकार गुलशन बावरा का शुक्रवार को दिल का दौरा पड़ने के बाद निधन

'मेरे देश की धरती....' जैसे लोकप्रिय गीतों के रचयिता और जाने माने गीतकार गुलशन बावरा का शुक्रवार को दिल का दौरा पड़ने के बाद निधन हो गया। बाबरा की पड़ोसी मोनिका खन्ना ने बताया- उनकी तबियत कई महीनों से ठीक नहीं थी। शुक्रवार सुबह उन्हें बांद्रा स्थित उनके निवास पर दिल का दौरा पड़ा। उनके परिवार वाले दिल्ली में रहते हैं, जिन्हें सूचना दे दी गई है और वे मुंबई के लिए निकल चुके हैं। उन्होंने कहा कि गुलशन बावरा की इच्छा थी कि उनकी देह को दान किया जाए इसलिए अंतिमसंस्कार नहीं होगा। उनकी देह को जेजे अस्पताल ले जाया जाएगा। वर्तमान पाकिस्तान में जन्मे गुलशन बावरा विभाजन के बाद भारत आ गए थे। अपने 42 सालों के फिल्मी सफर में उन्होंने- 'यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिंदगी', 'तेरी कसम', तुम न होते रहेंगी बहारें और जीवन के हर मोड़ पर मिल जाएंगे हमसफर जैसे यादगार गीत लिखे। यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिंदगी... गाने के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। गुलशन के परिवार में उनकी पत्नी हैं।

गुरुवार, 30 जुलाई 2009

राजभाषा से संबंधित और डॉक्टर एक जगह ही पूरी नौकरी करना चाहते है

राजभाषा से संबंधित और डॉक्टर एक जगह ही पूरी नौकरी करना चाहते है इसीलिए आज तक हिन्दी राजभाषा नहीं बन पाई ।
हाई कोर्ट ने कहा है कि अगर सरकारी कर्मचारी तबादले वाले पद पर हैं तो उन्हें इस बात का अधिकार नहीं है कि वह एक ही जगह पर नौकरी करते रहें। हाई कोर्ट ने कहा कि सर्विस कंडिशन के तहत तबादला होता है इससे इनकार नहीं किया जा सकता। हाई कोर्ट ने एक डॉक्टर की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।

मंगलवार, 21 जुलाई 2009

सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया के चैन्ने आंचलिक कार्यालय में यूनीकोड पर कार्यशाला

सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया के चैन्ने आंचलिक कार्यालय में यूनीकोड पर कार्यशाला को आयोजन किया गया जिसमें प्रमुख्य रूप से हिन्दी कंपटिंग फाउण्डेशन के सचिव डा. राजेन्द्र कुमार गुप्ता को विशेष अतिथि के रूप में बुलाया गया था ।
इस कार्यशाला में तमिलनाडू में इस बैंक के अधिकतकर आई टी अधिकारियों ने भाग लिया और कंप्यूटर में हिन्दी को सरल रूप से प्रयोग के अनेकानेक प्रयोग सीखे ।
यूनीकोड पर ई-मेल और ब्लॉग का प्रशिक्षण विशोष रूप से दिया गया जिसको सभी कर्मचा॑रियों और अधिकारियों के सराहा ।

शनिवार, 18 जुलाई 2009

मातृभाषा में शिक्षा देने के समर्थकों को अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के रूप में बड़ा तरफदार मिल गया

बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने के समर्थकों को अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के रूप में बड़ा तरफदार मिल गया है। बकौल हिलेरी, अमेरिका में भी इस मुद्दे पर बहस जारी है। हिलेरी जेवियर कॉलिज के स्टूडेंट्स के साथ खास इंटरएक्टिव सेशन में हिस्सा ले रही थीं। उनके साथ टीच इंडिया कैंपेन के ब्रैंड ऐंबैसडर आमिर खान और सहयोगी चैनल टाइम्स नाउ के अरनब गोस्वामी भी थे। इस मौके पर हिलेरी आमिर की तारीफ करने से भी नहीं चूकीं। उन्होंने कहा, आमिर खान यहां हमारे साथ हैं, यह मेरे लिए खुशी की बात है। वह न केवल बॉलिवुड के आइकन हैं बल्कि शिक्षा के जबर्दस्त समर्थक भी हैं। हिलेरी ने कहा, मैं यहां यह देखने आई हूं कि अमेरिका और भारत किस तरह शिक्षा के साझा मुद्दे पर काम कर सकते हैं। शिक्षा सभी अंतरों को पाटकर नए अवसर मुहैया कराती है। शिक्षा हमेशा से मेरे दिल के बहुत नजदीक रही है। शिक्षा के माध्यम पर हिलेरी का कहना था, न्यू यॉर्क सिटी में प्रमुख स्कूल स्पैनिश, चाइनीज, रशियन भाषा के हैं। समाज का बड़ा हिस्सा कहता है कि बच्चों को उन्हीं की भाषा में पढ़ाया जाए। लेकिन दिक्कत यह है कि न्यू यॉर्क सिटी के स्कूलों में एक से अधिक भाषा जानने वाले टीचर ज्यादा नहीं हैं। आमिर का मानना था कि किसी भी बच्चे को उसी भाषा में पढ़ाया जाना चाहिए जिसमें वह और उसका परिवार सुकून महसूस कर सके। इससे वह अपनी संस्कृति से जुड़ा रहेगा। अमेरिका में शिक्षा की चुनौतियों पर हिलेरी की कहना था, अमेरिका में शिक्षा पर काफी पैसा खर्च होता है लेकिन हम उन बच्चों के लिए कुछ नहीं करते जो पीछे रह जाते हैं। वहां बहुत ज्यादा असमानता है। भारत में तकनीकी शिक्षा दुनिया में सबसे बेहतरीन है। शिक्षा में अवसर के मुद्दे पर हमें मिलकर काम करना होगा। तारे जमीन पर में शिक्षा के व्यापक स्वरूप पर जोर देने वाले आमिर का कहना था, शिक्षा को सबसे ज्यादा अहमियत दी जानी चाहिए। टीचरों को भी ऊंची सैलरी दी जानी चाहिए ताकि इस क्षेत्र में प्रतिभावान लोगों को खींचा जा सके। हिलेरी ने टीच इंडिया और टीच फॉर इंडिया अभियान की तारीफ करते हुए कहा, इससे ऐसा आंदोलन शुरू होगा जो भारत में शिक्षा क्षेत्र में मौजूद गैरबराबरी को खत्म करने के लिए एक पुल का काम करेगा।

गुरुवार, 9 जुलाई 2009

हास्य कवि ओम व्यास का बुधवार सुबह निधन हो गया।

पिछले महीने एक सड़क हादसे में घायल हुए हास्य कवि ओम व्यास का बुधवार सुबह निधन हो गया। उनका दिल्ली के अपोलो अस्पताल में इलाज चल रहा था। उज्जैन के आईजी पवन जैन ने बताया कि व्यास सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गए थे और उनका दिल्ली के अपोलो अस्पताल में इलाज चल रहा था। बुधवार की सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली। गौरतलब है कि आठ जून की सुबह विदिशा में आयोजित बेतवा महोत्सव में हिस्सा लेकर लौट रहे कवियों का वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस हादसे में कवि ओम प्रकाश आदित्य, लाड सिंह और नीरज पुरी की मौके पर ही मौत हो गई थी जबकि ओम व्यास गंभीर रूप से घायल हुए थे।

मंगलवार, 30 जून 2009

पश्चिम रेलवे के पूर्व मुख्य राजभाषा अधिकारी श्री उत्तम चन्द जी आज सेवानिवृत्त

पश्चिम रेलवे के पूर्व मुख्य राजभाषा अधिकारी श्री उत्तम चन्द जी आज सेवानिवृत्त हो रहे है । श्री उत्तम चन्द इस रेलवे में मुख्य प्रशासन अधिकारी (सर्वे व निर्माण के पद के सेवा निवृत्ति ले रहे है ।
राजभाषा परिवार की ओर से उनके भावी जीवन केलिए शभकामनाएं
उल्लेखनीय है कि श्री उत्तम चन्द जी को मुंबई की कई जानी मानी स्वये सेवी संस्थाओं ने 29 जून 2009 को सम्मानित किया इस मौके पर मध्य रेल के साहित्यकार लेखक और गतिशील व्यक्ति श्री सत्यप्रकाश, सी सी एम भी उपस्थित थे । डॉ. राजेन्द्र कुमार गुप्ता ने उन्हे सम्मान में सहायता की । श्री सत्य प्रकाश जी ने पुष्पगुच्छ दिया । आशीर्वाद के निदेशक डॉ. उमाकान्त बाजपेई ने श्रीफल शॉल, तथा श्रुति संवाद साहित्य कला अकेडमी के अध्यक्ष श्री अरविन्द शर्मा राही ने सम्मान पत्र प्रदान किया । सम्मान पत्र का वाचन श्री अनत श्रीमाली ने किया जिसकी सभी ने मुक्तकंण्ठ से प्रशंसा की ।

गुरुवार, 11 जून 2009

हमारी ओर से अश्रुपूर्ण श्रृद्धांजलि

भोपाल से लगभग 10 किलोमीटर दूर सूखी सेवनिया के नजदीक सोमवार तड़के एक सड़क दुर्घटना में तीन जाने-माने कवियों ओमप्रकाश आदित्य, लाड़सिंह गुर्जर तथा नीरज पुरी की मौत हो गई। दुर्घटना में दो अन्य कवियों सहित तीन लोग घायल हो गए। एसपी जयदीप प्रसाद ने को बताया कि सभी कवि रविवार रात राजधानी के निकट स्थित विदिशा में बेतवा उत्सव में आयोजित कवि सम्मेलन में भाग लेकर लौट रहे थे। इसी दौरान सूखी सेवनिया के निकट संभवत: ड्राइवर को नींद आ गई और गाड़ी किसी अज्ञात वाहन से टकरा गई, जिससे ओमप्रकाश आदित्य और लाड़सिंह गुर्जर की मौके पर ही मृत्यु हो गई जबकि नीरज पुरी ने अस्पताल ले जाते समय दम तोड़ दिया। उन्होंने बताया कि इस दुर्घटना में जानी बैरागी एवं ओम व्यास नाम के कवियों सहित तीन लोग घायल हो गए। उन्हें भोपाल के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। तीन दिवसीय बेतवा महोत्सव का रविवार को अंतिम दिन था और इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन रात लगभग दस बजे शुरु हुआ जो सुबह साढे़ तीन बजे के आसपास समाप्त हुआ। ये सभी कवि एक इनोवा में सवार होकर सुबह चार बजे के लगभग भोपाल के लिये रवाना हुए। प्रसाद ने बताया कि कवियों की इनोवा के पीछे और दो वाहन भी आ रहे थे, जिन्होंने इस घटना की सूचना पुलिस को दी। पुलिस सभी को तुरंत अस्पताल ले गई जहां डॉक्टरों ने ओमप्रकाश आदित्य, लाड़सिंह गुर्जर और नीरज पुरी को मृत घोषित कर दिया।

रविवार, 7 जून 2009

हिन्दी कर्मियों की सेवा संबंधी भर्ती नियमों में संशोधन की आवश्यकता है

टेलीविजन पर एक कार्यक्रम देख कर मन में शंका उत्पन्न होने लगी कि वाकई इस देश की भाषा क्या है । इस कार्यक्रम में हंस के संपादक श्री राजेन्द्र यादव का मानना था कि भाषा पर अब सरकार हावी है अतः इस समय देश में हिन्दी की बात करना वेमानी होगी । हालांकि यह बताया जा रहा था कि आज भी देश में हिन्दी अखबारों की सबसे ज्यादा बिक्री है । लोग हिन्दी के अखबार पढते है और सबसे ज्यादा लोग हिन्दी बोलते और समझते है । यहीं पर डॉ देवेन्द्र जी संस्कृत की हिमायत कर रहे थे उनका मानना था कि यदि सरकार १९४७ में ही संस्कृत को देश की राजभाषा बना देती तो आज कहीं भी विरोध नहीं होता और सारे देश में अपनी भाषा हो जाती । इसी क्रम में अन्य लोगो का मानना था कि हिन्दी में इंजीरिग की पुस्तकें भी उपलब्ध नहीं है तो यह किस आधार पर कहा जा सकता है कि हिन्दी देश की राजभाषा के रुप में स्वीकार्य है ।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या वाकई देश की राजभाषा अब हिन्दी नहीं हो सकती, यदि नही हो सकती तो क्यों न इसे संविधान संशोधन करके देश की जनता के समक्ष किसी एक भाषा को निरूपित किया जाए । हमारा मानना है कि सरकारी ढुलमुल रवैये के कारण और मंत्रालयों में बैठे उन हिन्दी पंडितों के कारण , जिन्हे कंप्यूटर का ज्ञान नहीं है, आज हिन्दी की यह दशा हो रहीं है । आज इस बात पर एक बहस की आवश्यकता है और हिन्दी कर्मियों की सेवा संबंधी भर्ती नियमों में संशोधन की आवश्यकता है जिससे यह भाषा देश की आधुनिक आवश्यकताओं को पूरा कर सके ।

मंगलवार, 2 जून 2009

धन्य है वे सांसद जिन्होंने अपनी मातृभाषा में लोकसभा में शपथ ग्रहण की

धन्य है वे सांसद जिन्होंने अपनी मातृभाषा में लोकसभा में शपथ ग्रहण की क्योंकि यह तो सर्वविदित सत्य है कि कुर्सी का रंग हमेशा विवादित होता है । जब नेता को सांसद का पद जनता दे देती है तो वे अपना कर्त्तव्य भूलकर जनता से किये वायदों को दरकिनार कर देते है और अपनी मौज-मस्ती में डूब जाते है । कभी कभी इन्हे अपनी संसदीय सीट के इलाके की याद भी आतीहै तो वहां के छुट भैया नेताओं को अपनी प्रसंशा में छोटे मोटे जलसे कराने से नहीं चूकते । पर वे धन्य है जिन्होंने संसदीय परंपरा का ध्यान रखकर अपनी भाषा में शपथ ली । हम तो यही चाहतेहै कि वे संसद में भारतीय भाषाओं की उन्नति के लिए काम करें । हम अंग्रेजी विरोधीनहीं हैं पर अपनी भाषा के अपमान को सहना भी हमारे वश में नहीं है अतः हम हमेशा उन्ही का सम्मान करते है जो भारतीयभाषाओं के सम्मान की रक्षा के लिए समर्पित हो ।

शनिवार, 30 मई 2009

राजभाषा हिन्दी के प्रचार और प्रसार केलिए एक और कार्यशाला

भारत सरकार के अधीन कार्यरत सॉफटवेयर टैक्नालॉजी पार्क आफ इंडिया के वाशी स्थित कार्यालय में आज दिनांक ३० मई २००९ को एक हिन्दी कार्यशाला का आयोजन किया गया । इस कार्यशाला में यहां की सुप्रसिद्ध् स्वसंसेवी संस्था आशीर्वाद के निदेशक डॉ उमाकान्त बाजपेई इस कार्यशाला में विशेष रूप से शामिल हुए । उन्होंने उपस्थित सभी कर्मचारियों और अधिकारियों को हिन्दी के बारे में सूचनाएं दी जिन्हे सभी ने सराहा । श्री बाजपेई जी ने इस कार्यशाला में सभी से अनुरोध किया कि वे अपना अधिक से अधिक कार्य हिन्दी में ही करें । उन्होंने इस कार्यालय में यूनीकोड आधारित हो रहे हिन्दी कार्य को देखकर प्रसन्नता जाहिर की । उनका मानना था कि जब तक इस विधा को सभी कार्यालयों में लागू नहीं किया जाएगा तब तक राजभाषा के रूप में हिन्दी आगे नहीं बढ सकेगी । इस कार्यशाला के अंत में संस्थान की प्रशासन अधिकारी राजश्री शिन्दे ने आभार व्यक्त किया ।

शनिवार, 23 मई 2009

नए मंत्रीमंडल में राजभाषा कहां

प्रधान मंत्री ने अंग्रेजी में शपथ ली, १९ में से ४ को छोडकर सभी मंत्री अंग्रेजी में शपथ ले रहे है । भावी मानव संसाधन विकास मंत्री अंग्रेजी में शपथ ले रहे हैं तो हिन्दी की बात क्यों की जाए । इसे अब छोड देना चाहिये । राजभाषा विभाग को समाप्त कर देना चाहिये । क्योंकि अब इस देश में भारतीय भाषाओं की बात नहीं करनी चाहिये जो इस बात को छेडेगा वही समाप्त हो जाएगा । मुलायम की यही गत हुई है वह हिन्दी की बात करता है तो जनता ने उसे नकार दिया, जनता ही अंग्रेजी चाहती है तो हम बिना वजह हिन्दी को क्यों लाद रहे हैं । भारतीय भाषाओं को क्यों यहां की आम जनता पर लाद रहे है, यह प्रश्न अब विचार करने लायक बन गया है ।

सोमवार, 18 मई 2009

हिन्दी विरोधी नेताओं को सबक

हिन्दी विरोधी नेताओं को देश की जनता को सबक सिखाना ही होगा । रेल मंत्री के रूप में लालू प्रसाद के जिस प्रकार से रेलवे में हिन्दी की खिल्ली उडाई ओर अपनी मनमानी के कारण रेलवे में काम कर रहे हिन्दी कर्मचारियों को हतोत्साहित किया , वह जगजाहिर है , कुछ टुच्चे चमचे, जो कि उनकी तथाकथित हिन्दी सलाहकार समिति की सदस्य रहे उन्हें बार बार सुविधा देना और रेल नियमों को ताक पर रखकर हिन्दी का दमन करना श्री लालू की आदत बन गई जिसका परिणाम यह हुआ कि आज लालू आस लगाए बैठे है कि कोई उन्हे बुलाए और वह अपनी साख बचा सकें , पर यह होने वाला नहीं है । जनता ने उन्हे सबक सिखया है ।

हमेशा दल बदलने वालों को सबक सिखाना चाहिये

Rashtriya Lok Dal (RLD) may put off its alliance with the Bharatiya Janata Party (BJP) in UP to join hands with the Congress-led United Progressive Alliance (UPA). Party insiders said that RLD boss Ajit Singh Singh was already in touch with Ahmad Patel, the political advisor of Congress chief Sonia Gandhi. Party sources that some senior leaders of Congress have also approached the RLD chief seeking his support for the UPA, even as it has kept its past allies like the Samajwadi Party at a distance. While Ajit Singh was not available for comment, senior party functionaries confirmed that the party was in touch with the Congress. ‘‘We cannot say anything at this moment,’’ RLD state general secretary Munna Singh Chauhan said while talking to TOI. Chauhan said that the party had indeed been approached by the Congress. ‘‘But we have yet to decide on our future course of action,’’ he said. RLD was already ruing its alliance with the BJP after it suffered a major setback when Anuradha Choudhary and Munshi Ram Pal lost the elections from the Muslim-dominated seats Muzzafarnagar and Nagina. Party sources said that these two defeats were seen as significant despite the fact that the party improved its performance from three seats in 2004 to five this time. A senior RLD leader said that the increased tally in the general elections has come as a morale-booster for the party. ‘‘The performance cannot be dumped anyway,’’ a senior party leader said, in an apparent hint that the RLD may seriously think of joining the UPA. A senior party leader said that their alliance with BJP proved beneficial to the latter as BJP’s national president went on to win the Ghaziabad seat with a majority of Jat voters supporting Rajnath Singh. But RLD had to face setback as Muslim voters drifted away from Choudhary, resulting in her loss. Party workers said that she was quite confident of her win. She had won the Kairana seat in the 2004 general elections by over 3 lakh votes. This time however, she opted for Muzzafarnagar, apparently thinking of further increasing the winning tally for the RLD. A known opportunist, Ajit Singh, had entered into alliance with the Congress in 1999 general elections against the Bhartiya Janata Party (BJP)-led NDA and fought 2004 polls in partnership

शनिवार, 9 मई 2009

राष्ट्रहित में जरूरी हुआ तो हम कांग्रेस के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार हैं।

बीजेपी के अहम रणनीतिकार सुधींद्र कुलकर्णी ने कहा है कि हमारी पार्टी कांग्रेस को राजनीतिक अछूत नहीं मानती है, सो राष्ट्रहित में जरूरी हुआ तो हम कांग्रेस के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार हैं। कुलकर्णी को पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी का करीबी सहयोगी भी माना जाता है। एक चैनल पर उन्होंने कहा, हम आपस में बहुत तू-तू, मैं-मैं कर सकते हैं, लेकिन चुनाव प्रक्रिया के अंतिम दौर में लोग तू और मैं चाहते हैं। दलों को स्थायी सरकार के लिए मिलकर काम करना होगा। आखिरकार कारत पड़े नरम : चुनाव बाद कांग्रेस की सरकार को समर्थन देने से साफ इनकार कर रहे सीपीएम महासचिव प्रकाश कारत ने शनिवार को कोलकाता में इस बारे में कहा कि पहले चुनाव हो जाने दीजिए, 16 मई के बाद सोचा जाएगा। बाद में एक टीवी चैनल पर उन्होंने कहा कि इस मसले पर थर्ड फ्रंट के सहयोगियों के साथ मिलकर फैसला किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव में थर्ड फ्रंट का प्रदर्शन अच्छा रहेगा। साथ ही हमारी नजर जेडी (यू) और एनसीपी पर है। जेडी (यू) के साथ हमारी बातचीत हो रही है। नीतीश की आलोचना क्यों की : कांग्रेस ने एम। वीरप्पा मोइली को पार्टी के मीडिया विभाग के अध्यक्ष पद से हटा दिया है। मोइली ने शुक्रवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ बयान दिया था। पार्टी के महासचिव राहुल गांधी ने हाल ही में नीतीश की तारीफ की थी। पार्टी के मीडिया विभाग के प्रमुख का स्थान अब कांग्रेस के महासचिव जनार्दन द्विवेदी को दिया गया है। मोइली ने कहा है कि मुझे 17 मई तक कर्नाटक में रहना है, इसलिए मैंने जनार्दन द्विवेदी को अपना प्रभार सौंप दिया है। द्विवेदी ने भी यही बात कही। उन्होंने इस बात से भी इनकार किया कि अश्विनी कुमार को प्रवक्ता पद से हटाया गया है। चैनलों पर अश्विनी कुमार को हटाने जाने की चर्चा थी। पासवान ने रखी शर्त : जेडी (यू) की ओर कांग्रेस का झुकाव दिखने के बाद एलजेपी प्रमुख रामविलास पासवान ने शनिवार को कहा, 'मैं यूपीए के साथ रहूंगा। हमारी पार्टी का इस बार कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं हुआ था, क्योंकि यह संभव नहीं था। अब चुनाव बाद गठबंधन होगा।' यह पूछे जाने पर चुनाव बाद गठबंधन कब होगा, इस पर पासवान ने कहा कि अगर सोनिया गांधी आमंत्रण देंगी तो इस पर बात करने का सवाल सामने आता है। एनडीए की ओर टीआरएस : थर्ड फ्रंट के घटक दल तेलंगाना राष्ट्र समिति ने एनडीए की ओर झुकाव दिखाया है। पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर राव लुधियाना में रविवार को होने जा रही एनडीए की रैली में शामिल होंगे। पार्टी के वरिष्ठ नेता विनोद कुमार ने पंजाब के मुख्यमंत्री बादल का बुलावा मंजूर होने की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि एनडीए में शामिल होने पर फैसला चुनाव बाद होगा। आंध्र प्रदेश में सीपीएम के सचिव के। नारायण ने कहा कि अगर राव उस रैली में रहेंगे, जहां आडवाणी हों तो वह हमारे गठबंधन में नहीं रह सकते हैं। आजम पर बरसे मुलायम : समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने शनिवार को आजम खान को पार्टी के खिलाफ काम करने के लिए निशाने पर लिया। आजम और एसपी नेता अमर सिंह के बीच खटपट इन दिनों चर्चा में है। अमर ने शुक्रवार को संकेतों में एक तरह से पार्टी छोड़ने की धमकी दे दी थी। रामपुर में एक चुनावी रैली में मुलायम ने आजम की ओर संकेत कर कहा कि हमने जिस पर विश्वास किया, उसने वक्त आने पर एसपी को सपोर्ट नहीं किया। अब भी समय है, सम्मान सहित वापस आइए। चुनाव प्रचार में लग जाइए।

शुक्रवार, 1 मई 2009

भाषा के विषय में अमेरिकी अधिक संवेदनशील



यह सत्य है ​कि घर की मुर्गी दाल बराबर । वास्तव में यह भारत में भाषा के मामले में तो सही लगता है । यहां पर भाषा के नाम पर इतना अधिक खर्च होने के बावजूद भारतीय भाषाएं कहीं भी नजर नहीं आतीं । परन्तु भारत से अधिक भारतीय भाषाओं की चिन्ता है अमेरिका में रह रहे भारतीयों को जो न केवल अपनी संस्कृ​ति और भाषा को अपने बच्चों को सिखाते है वरन् मनोरंजन के लिए भी अपना भाषा के क​वि सम्मेलन आ​दि को आयोजन प्र​ति वर्ष करते है । अमेरिका के प्रान्त ड्रेट्रियाट में रहने वाली सुजाता जैन ने बताया ​कि वहां प्र​ति वर्ष क​वि सम्मेलन का आयोजन किया जाता है और अर्न्तराष्ट्रीय स्तर के क​वि उसमें भाग लेते है । उन्होंने वहां पर अपनी एक एसोसिएशन भी बनाई है जिएमें वे सब मिलते जुलते है और भारतीय त्यौहार ओर भारतीय भाषाओं के उन्नयन के लिए कार्य करते है । अभी शनिवार को ही वहां पर एक भव्य हास्य क​वि सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है जिसमें कई प्रमुख क​वि भाग ले रहे है । हमारीओर से आप सभी को बधाई और अ​भिनन्दन ।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति मुंबई (केन्द्रीय कार्यालय)की एक बैठक

नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति मुंबई (केन्द्रीय कार्यालय)की एक बैठक आज दिनांक २१ अप्रैल २००९ को पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक श्री आर एन वर्मा की अध्यक्षता में आयोजित की गई । इस बैठक में पश्चिम रेलवे के मुख्य राजभाषा अधिकारी श्री नवीन चन्द्र सिन्हा जी संयोजक के रूप में उपस्थित थे । उन्होने समिति केअध्यक्ष श्री वर्माजी का पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया । इस बैठक के दौरान मुंबई स्थित केन्द्रीय कार्यालयों के लगभग ७० विभागाध्यक्ष भी उपस्थित थे ।
समिति के अध्यक्ष श्री वर्मा जी ने सभी सदस्यों का आह्वान किया कि वे अपने काम में राजभाषा के रूप में हिन्दी का इस्तेमाल बढाएं और सरल हिन्दी का उपयोग करें । उन्होंने अपने भाषण में इस बात पर विशेष बल दिया कि आज का युग सूचना प्रोद्योगिकी का युग है और बिना कंप्यूटर ज्ञान और प्रशिक्षण हिन्दी पीछे रह सकती है और इस क्षेत्र में भी राजभाषा के रूप में हिन्दी के इस्तेमाल को बढावा दिया जाना चाहिये । श्री नवीन चन्द्र सिन्हा जी ने भी सभी सदस्यों से अधिक से अधिक कार्य हिन्दी में करने की अपील की और समिति को और अधिक सक्रिय बनाने के लिए सहयोग देने की भी अपील की । उन्होंने यह भी कहा कि सभी सदस्य कार्यालय अपना अंशदान समय पर भेजते रहे ताकि समिति की गतिविधियां उचित प्रकार से चलती रहें ।
इस बैठक के दौरान हिन्दी में ई-मेल भेजने और विस्टा पर हिन्दी सैटिंग का एक प्रस्तुतिकरण मुंबई रेलवे विकास कॉर्पोरेशन के मुख्य संकेत व दूरसंचार इंजीनियर श्री राजीव शर्मा द्वारा किया गया जिसके कारण यह बैठक रोचक हो गई । सभी प्रतिभागियों ने इस तकनीक को अपने अपने कार्यालय में अपनाने पर इच्छा जाहिर की है ।

शनिवार, 11 अप्रैल 2009

सुप्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर अब नहीं रहे।

सुप्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर अब नहीं रहे। उन्होंने शुक्रवार रात दुनिया को अलविदा कह दिया। वह 97 साल के थे। उनके परिवार में 2 बेटे और 2 बेटियां हैं।
उनके बेटे अतुल प्रभाकर ने बताया कि विष्णु प्रभाकर सीने और मूत्र में संक्रमण के चलते 23 मार्च से महाराजा अग्रसेन अस्पताल में भर्ती थे। उन्होंने 20 मार्च से खाना पीना छोड़ दिया था। अतुल के अनुसार उनके पिता ने शुक्रवार रात लगभग 12 बजकर 45 मिनट पर अंतिम सांस ली। प्रभाकर ने अपनी मृत्यु से पहले ही एम्स को अपने शरीर को दान करने का फैसला कर लिया था।
भले ही विष्णु प्रभाकर हमारे बीच से चले गए लेकिन उनकी रचनाएं हमेशा लोगों के साथ रहेंगी। प्रभाकर को पद्मभूषण दिया गया था, लेकिन सरकार द्वारा किसी साहित्यकार की देर से सुध लेने का आरोप लगाते हुए उन्होंने सम्मान वापस कर दिया था।
उनके बारे में प्रभाकर लिखा गया था, 'साहित्य और पाठकों के बीच स्लिप डिस्क के सही हकीम हैं। यही कारण है कि उनका साहित्य पुरस्कारों के कारण नहीं पाठकों के कारण चर्चित हुआ।' प्रभाकर का जन्म 20 जुलाई 1912 को उत्तरप्रदेश में मुजफ्फरनगर जिले के मीरापुर गांव में हुआ था। छोटी उम्र में ही वह पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से हिसार चले गए थे। प्रभाकर पर महात्मा गांधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया जो आजादी के लिए सतत् संघर्षरत रही।
अपने दौर के लेखकों में वह प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही। हिन्दी मिलाप में 1931 में पहली कहानी छपने के साथ उनके लेखन को एक नया उत्साह मिला और उनकी कलम से साहित्य को समृद्ध करने वाली रचनाएं निकलने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह करीब 8 दशकों तक जारी रहा। आजादी के बाद उन्हें दिल्ली आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक बनाया गया।
नाथूराम शर्मा के कहने पर वह शरतचंद की जीवनी पर आधारित उपन्यास 'मसीहा' लिखने के लिए प्रेरित हुए। विष्णु प्रभाकर को साहित्य सेवा के लिए पद्म भूषण, अर्द्धनारीश्वर के लिए साहित्य अकादमी सम्मान और मूर्तिदेवी सम्मान सहित देश विदेश के अनेक सम्मानों से नवाजा गया।

श्री राजीव सारस्वत इसी काण्ड में शहीद हुए थे

मुम्बई में पिछले साल जब ताज होटल पर आतंकी हमला हुआ तब खाने के टेबल के नीचे छिप कर जान बचाने वाले चार सांसद क्या सार्वजनिक धन से पांच सितारा होटल में ठहरे थे?

इस बारे में सूचना के अधिकार के तहत सवाल के जवाब में लोकसभा सचिवालय ने कहा है कि आधिकारिक काम के लिए यात्रा कर रहे सांसद फाइव स्टार होटेल की सहूलियत नहीं मांग सकते। लेकिन 26 नवंबर 2008 को जब आतंकवादियों ने ताज होटल को निशाना बनाया था तब सीपीएम सांसद एन. एन. कृष्णदास, एनसीपी सांसद जयसिंहराव गायकवाड़, बीएसपी सांसद लाल मणि प्रसाद और बीजेपी सांसद भूपेन्द्र सिंह सोलंकी इसी होटेल में रुके हुए थे।

चारों सांसद हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड और अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के प्रमुखों के साथ बैठक करने वाली लोकसभा की 15 सदस्यीय समिति का हिस्सा थे। लोकसभा सचिवालय ने अलीगढ़ के बिमल खेमानी की आरटीआई याचिका के जवाब में 25 फरवरी को कहा समिति के सदस्य या उनके साथ जाने वाले अधिकारी किसी विशेष होटेल या फाइव स्टार होटेल की सुविधा नहीं मांग सकते।
उल्लेखनीय है कि श्री राजीव सारस्वत इसी काण्ड में शहीद हुए थे । आज तक उन्हे कोई न्याय नहीं मिल सका है

गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

राजभाषा विभाग के सचिव महोदय को खुला पत्र

राजभाषा का राजनैतिकरण बचाने की अपील
राजभाषा के रूप में हिन्दी के प्रचार प्रसार केलिए हमारे संविधान में प्रावधान है और उनके अनुरूप भारत सरकार का काम राजभाषा में कराने केलिए राजभाषा विभाग का सृजन किया गया था अनेक वर्ष बीत जाने के बाद भी राजभाषा के रूप में हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाएं तो अपनी जगह नहीं बना पाई, परन्तु भारत सरकार मे हिन्दी स्टाफ की एक बडी फौज खडी कर दी गई है । राजभाषा विभाग के आदेशों के अनुरूप ही उनकी तैनाती हुई है ।
ये सभी हिन्दी कर्मी क्या कर रहे है इनके काम की जांच करने का जिम्मा किसी भी विभाग को नहीं है । जिस कार्यालय में ये काम करते है वहां के कार्यालयाध्यक्ष के आदेशों के अनुरूप कार्य करने में ये माहिर है । आज भी बदलते परिवेश मे अधिकतर कर्मी अपनी रचनाएं प्रकाशित करने केलिए एक पत्रिका का प्रकाशन अवश्य करते है ।
यदि ध्यान से देखा जाए तो वास्तव में स्टाफ तो है पर हिन्दी कहीं भी नहीं है । आज के युग के अनुरूप इन कर्मियों को कंप्यूटर का बेसिक ज्ञान भी नहीं है ।
राजभाषा विभाग के सचिव महोदय से अनुरोध है कि अब समय आ गया है कि हिन्दी स्टाफ केलिए कंप्यूटर का इंजिनिरिग ज्ञान आवश्यक योग्यता के रूप में करना चाहिये अन्यथा भाषाएं समाप्त हो जांएगी और इस विभाग का अस्तित्व ही नहीं रहेगा ।

सोमवार, 6 अप्रैल 2009

वोट उसी को देंगे जो हमारी भाषा केलिए काम करेगा ।

राजभाषा के रूप में हिन्दी के प्रचार प्रसार की बाते करना अब एक नई राजनैतिक चाल दिखाई पड रही है । भारत को आजाद हुए ६० वर्ष से अधिक का समय बीत गया लेकिन किसी ने इस बात पर विचार नहीं किया कि हमारे देश की भी एक भाषा होनी चाहिये । हांलांकि हमारे विदेश मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने यह माना है कि उनके प्रधान मंत्री न बन पाने को एक कारण यह भी रहा कि उन्हे अच्छी तरह से हिन्दी नहीं आती । आज सभी मंत्रालयों तथा विभागों में हिन्दी के पद है परन्तु हिन्दी कहीं भी नहीं है सभी जगह केवल अंग्रेजी का बोलबाला दिखाई देता है और धडल्ले से अंग्रेजी में भारत सरकार का काम चल रहा है अतः गरीब अपनी रोजी रोटी में से पेट काटकर अपने बच्चों को अंग्रेजी की शिक्षा दिलाने पर मजबूर है यह बात किसी के पल्ले नहीं पडती, आवश्यकता है इस बात को समझने की और उसपर ठोस कार्रवाई करने की । आइये हम सब यह मन बना लें कि वोट उसी को देंगे जो हमारी भाषा केलिए काम करेगा ।

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

इण्टरनेट पर यूनीकोड में कितनी सामग्री उपलब्ध कराई गई

सरकारी कार्यालयों में हिन्दी के प्रयोग को लेकर आज तक जो कुछ भी हुआ है वह काफी नहीं है । आज इस बात की आवश्यकता है कि देश के विभिन्न सरकारी कार्यालयों के अधिकारी यह प्रेरणा लें कि वे अपने काम में हिन्दी का प्रयोग तो करेंगे ही , साथ ही साथ वह सारा काम नवीनतम प्रौद्योगिकी के साथ हो । हम सब जानते है कि दुनिया में अग्रेजी के प्रचलन के पीछे इण्टरनेट पर उपलब्ध सामग्री एक इस प्रकार का बडा साधन है जिससे बच्चे अनायास ही इसकी तरफ चले आते है परन्तु हिन्दी में अब भी बच्चों के प्रोजेक्ट केलिए सामग्री उपलब्ध नहीं है अतः स्कूल तथा कालेजों के बच्चे अपने स्कूल और कालेज के प्रोजेक्ट केलिए अग्रेजी का सहारा लेते है । राजभाषा विभाग इस प्रकार के आदेश जारी करे कि इंदिरा गांधी शील्ड देने केलिए एक महत्वपूर्ण निर्णायक मद यह हो कि उस कार्यालय से इण्टरनेट पर यूनीकोड में कितनी सामग्री उपलब्ध कराई गई है तभी संभव है कि हम इस दौड में कहीं खडे हो सकें ।

गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

हिन्दी अच्छी नहीं, तो प्रधानमंत्री पद नहीं मिल सकता ​, प्रणव दा

उच्च पदो पर आने के लिए राष्ट्रभाषा का महत्व तब पता लगता है जब हाथ से पतंग छूट जाती है, ऐसे विचार है प्रणव दा के, सोनिया भी इसी कारण देश को नहीं चला पाई ।
Most would attribute Pranab Mukherjee's perennial number 2 status to his inability to be on the right side of his party high command. But the man who has shouldered the most challenging of responsibilities for the government in the past five years has an entirely different take on the issue. Mukherjee feels that his "inadequate'' knowledge of Hindi and roots in a state which has been dominated by the Left to the disadvantage of the Congress may well have gone against him. He also said in a TV interview that Congress president Sonia Gandhi was comfortable with Prime Minister Manmohan Singh and that the premier was a "superior intellectual person" lest the party leadership take his comments amiss. Mukherjee, who is contesting Lok Sabha polls for only the second time, said Singh was a "highly-rated economist'' who enjoys the confidence of Congress chief Sonia Gandhi. "I am a very critically self-analysing person. To run this country coming from north India and not be fluent in Hindi is totally unacceptable...My total knowledge of Hindi is inadequate. That is number one,'' said the 73-year-old Mukherjee. "You must have a strong backing from the political party and particularly the state from where you are coming. I am representing a state of the Left party where the Congress party is not in power for a long 32 years,'' he pointed out while replying to a query on his views about the PM's post. Sonia has at least twice publicly made her preference for Singh clear in the past few months. There were times in the past few years when Mukherjee seemed to carrying a major part of the workload -- heading 150-odd GoMs and playing firefighter with allies — and even Leader of Opposition L K Advani complimented him for his efficiency. Yet, Pranab babu, as he is fondly called, has not even attracted a cursory glance as a prospective PM. That he is given to being politically correct was evident again when he said that he did not have Singh's expertise. "I am not a political activist. I don't have that type of expertise. Secondly, he enjoyed the confidence of Mrs Sonia Gandhi and that's why when the office was offered to Mrs Sonia Gandhi, it was for her to decide who she would like to or whom she would find more compatible,'' Mukherjee

रविवार, 15 मार्च 2009

अंग्रेजी हम पर हावी बनी हुई है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक के. सी. सुदर्शन का मानना है कि भारत भले ही 1947 में आजाद हो गया हो मगर वह अब भी अंग्रेजियत का गुलाम है। हम अपनी भाषा तक को आत्मसात नहीं कर पाए है और अंग्रेजी हम पर हावी बनी हुई है। सुदर्शन ने अपनी यह राय शनिवार को संघ के मध्य क्षेत्र कार्यालय समिधा के नवनिर्मित भवन के प्रवेशोत्सव कार्यक्रम के अवसर पर जाहिर की। सुदर्शन ने कहा कि भाषा सिर्फ विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम नहीं है बल्कि इसके जरिए भावों को व्यक्त किया जाता है। उन्होंने कहा कि अंगेजी सीखना बुरा नहीं है मगर उसके रंग में रंग जाना और हिन्दी व संस्कृत को त्यागना बुरा है, क्योंकि ऐसा होने पर अपनापन खो जाता है। वास्तव में भाषा प्रगति का माध्यम है। चीन और जापान इस बात के उदाहरण है कि उन्होंने अपनी भाषा से अपनापन पैदा किया और प्रगति के रास्ते पर चलते रहे। संघ प्रमुख ने भारत की शिक्षा व्यवस्था, प्रशासनिक व्यवस्था, सरकारों से मदद लेकर समाज सेवा करने वालों और संविधान तक पर जमकर हमले बोले। उन्होंने एनसीईआरटी की सातवीं क्लास की इतिहास की पुस्तक का हवाला देते हुए कहा कि इसमें मुगलों के इतिहास को तो 80 पन्नों में बताया गया है मगर शिवाजी को चंद लाइनों में ही समेट दिया गया है। उन्होंने कहा कि भूतकाल का गौरव, वर्तमान की पीड़ा और भविष्य के सपने देश की धरोहर होते हैं मगर वर्तमान में बच्चों को मुगलों और अंग्रेजों का इतिहास पढ़ाया जा रहा है और यह सब हो रहा है केन्दीय मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह के नेतृत्व में। उन्होंने कहा कि अगर सरस्वती शिशु मंदिर भारतीय संस्कृति और गौरवशाली इतिहास को पढ़ाते हैं तो उन पर शिक्षा के भगवाकरण का आरोप लग जाता है। इस मौके पर समाजसेवियों का सम्मान भी किया गया। इस कार्यक्रम में संघ के सह सरकार्यवाहक सुरेश सोनी, प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित बड़ी तादाद में बीजेपी नेता व संघ कार्यकर्ता मौजूद थे।

मंगलवार, 10 मार्च 2009

राजभाषा कार्यकर्ताओं को होली की शुभकामनाएं

भारत जैसे धर्म प्रधान और तीज-त्योहारों वाले देश में होली इकलौता त्योहार है, जो आपके पास धर्म या देवताओं का सहारा ले कर नहीं पहुंचता। इसके साथ जो किंवदंतियां या धर्म कथाएं आ जुड़ी हैं, उनका प्रयोजन आपको किसी देवता विशेष की पूजा करने के लिए प्रेरित करना नहीं है। यह त्योहार हम पुण्य कमाने या अपने पाप नष्ट करने के लिए नहीं मनाते। दशहरा पर आप दुर्गा की पूजा करते हैं, दीवाली पर लक्ष्मी की पूजा करते हैं, मकर संक्रांति और बैसाखी पर दान का पुण्य अर्जित करते हैं, इनके बिना वे त्योहार पूरे नहीं होते। लेकिन होली पर किसकी पूजा करते हैं? न नरसिंहावतार की और न प्रह्लाद की। प्रह्लाद का चरित्र सिर्फ आपको सत्पथ पर चलने की प्रेरणा देता है, लेकिन होली के अपने आयोजन से उसका कोई संबंध नहीं जुड़ता। यह लोक पर्व है, मनुष्यता का पर्व, समाज का पर्व। इसमें आप समाज को सर्वोपरि मानने की घोषणा करते हैं। भारत में होली जैसी धार वाला दूसरा कोई और त्योहार नहीं है। आप लोगों से पूछिए -वे या तो होली से नफरत करते हैं या उसके हुड़दंग में शामिल होते हैं। या तो वे रंग खेलने निकल पड़ते हैं या घर में छुपकर बैठ जाते हैं। दीवाली के साथ ऐसा नहीं होता, दशहरा के साथ ऐसा नहीं होता कि लोग उनका नाम सुन कर ही मतवाले हो उठें या फिर घृणा से भर उठें। ऐसे दिनों पर दरवाजा बंद कर घर में छुप कर कोई नहीं बैठता। इसकी जरूरत ही नहीं पड़ती। उन त्योहारों को कोई कम उत्साह से मनाता है और कोई ज्यादा उत्साह से। लेकिन इतना तीखा विभाजन नहीं होता। ऐसे प्रेम और नफरत का रिश्ता सिर्फ होली के साथ ही होता है। होली के प्रति उदासीन नहीं रहा जा सकता। यह त्योहार आपसे दो टूक सवाल करता है -आप इस खेमे में हो या उस खेमे में। यह ऊपर से ओढ़ी हुई गंभीरता को चीर कर फेंक देता है और आपको आपके असली रूप में उजागर करता है। इसीलिए इसे व्यक्ति के विरेचन का पर्व कहा जाता है। हमारी दमित इच्छाएं और कुंठाएं विमुक्त हो जाती हैं। इस दिन हम देख पाते हैं कि किस तरह समाज ने हमारी कुरूपता देख कर भी हमें खारिज नहीं किया। यह बोध व्यक्ति के विरेचन से कहीं आगे ले जाता है। होली में भारत का सांस्कृतिक मानस छुपा है। उस मानस में क्या है? इसे आप हुल्लड़ और रंगपाशी के रिवाजों से समझिए। आप सजे-संवरे बैठे हैं। दोस्तों और रिश्तेदारों का एक हुजूम आता है और आपको बदशक्ल बना देता है। आप के काले बालों में लाल गुलाल, गोरे चेहरे पर हरा रंग, सफेद कुर्ते पर कीचड़-मिट्टी पोत देता है। और आप हंसते हैं, नाराज नहीं होते। क्योंकि आप किसी व्यक्ति को अच्छे या बुरे रूप में स्वीकार करने के समाज के अधिकार को स्वीकार करते हैं। आपके गोरे रंग या काले बालों को कितना सुंदर माना जाए, यह तो समाज ही तय करता है। आप आईजी-डीआईजी, प्रफेसर, कवि या डॉक्टर हैं, पर किस प्रतिष्ठा के काबिल हैं, यह तो समाज ही तय करता है। होली का फूहड़पन हमको-आपको इसी सचाई का एहसास कराता है। इस बात का एहसास कि जो मान-प्रतिष्ठा है, जिसे हम अपनी खासियत मान लेते हैं, वह सब समाज का ही दिया है। अन्यथा हम सब किसी अन्य मनुष्य की तरह दो हाथ और दो पैरों वाले प्राणी हैं, कोई किसी से अलग नहीं। कैसा राजा, कैसा रंक। टीवी का एक विज्ञापन है -रंग से सराबोर एक बच्चा बारी-बारी से कई लोगों के पास जाता है और उनसे टॉफी के लिए पैसे मांगता है। उसके चेहरे पर इतना रंग पुता है कि उनमें से कोई नहीं पहचान पाता कि वह उनका बच्चा नहीं है। होली दरअसल हमें यही समझाती है कि जिंदगी के कई रंग ऐसे हैं, जिनमें डूबने के बाद हम सब एक जैसे होते हैं। हमारी वृत्तियों में, खुशियों में, मन के भीतर बैठे किसी बच्चे या युवा के नैसर्गिक उल्लास में कोई फर्क नहीं होता। जब हम बदशक्ल बनाए जाने या अपने ड्रॉइंग रूम को गंदा किए जाने से नफरत करते हैं, तो असल में हम उस झूठे अहंकार से घिरे होते हैं। किसी ने हमें रंग लगा दिया, कपड़े गीले कर दिए, भागने को मजबूर कर दिया तो हमारी ठसक, हमारी वह नकली प्रतिष्ठा, इज्जत की कलई उतर गई। लेकिन अपने लाड़ले के गाल पर एक लाल सा टीका लगा कर क्यों भला खुश होते हैं? या किसी को भूत सा चेहरा लिए झूम-झूम कर जोगिरा गाते देख कर क्यों हंसी आती है? या जब प्रेमिका चुटकी भर गुलाल फेंक कर भागती है, तब एक पिचकारी उसे मार कर आप भला क्यों निहाल हो जाते हैं? इसलिए कि यह पिचकारी उसे अपने रंग में रंग लेने, अपने हिसाब से ढाल लेने की आपकी इच्छा को मंजूर कर लेने की उसकी इच्छा का प्रतीक है। ठीक है, तुम जैसा चाहो, वैसे रंग डालो। लेकिन फिर ऐसे ही भला आपको भी कोई क्यों नहीं रंगे? क्या आपके दोस्तों और संबंधियों का -आपसे प्रेम करने वाले दूसरे लोगों का आप पर कोई अधिकार नहीं बनता? यदि एक दिन कपड़े पर कीचड़ डाल कर, किसी को मूर्ख नरेश कह कर मन की नफरत या गुस्सा निकल जाए तो क्या हर्ज है? सालों भर मन में दबा रहेगा तो रोडरेज होगा, पार्किन्ग और खिड़की का शीशा टूटने पर झगड़ा होगा। होली की थोड़ी सी ठिठोली, अवैध जुगुप्साकारी संबंधों से तो बेहतर होगी -जगहंसाई होगी पर परिवार तो नहीं तोड़ेगी। होली सिर्फ रंगों से नहीं होती। हास्य इसमें अनिवार्य रूप से शामिल है। लोग एक दूसरे का नामकरण करते हैं, चटपटी टिप्पणियां करते हैं, मूर्ख बनाते हैं और ऐसा करते हुए व्यक्ति की तमाम पहचान गौण हो जाती हैं और हर व्यक्ति समान धरातल पर आ खड़ा होता है। यह पैमाना है किसी समाज के सदस्यों की व्यक्तिवादी प्रवृत्ति को नापने का। हमारी सहनशक्ति को जांचने का। जो समाज एक-दूसरे पर हंसने का माद्दा नहीं रखता, वह भला एक साथ खुशी से जीवन कैसे गुजार सकता है। यह समाज और उसकी इकाइयों की सहनशक्ति का पैमाना है। आप लोगों पर हंसते हैं और लोग आप पर हंसते हैं, फिर भी कोई बुरा नहीं मानता। और सब लोग साथ रहते हैं।

रविवार, 1 मार्च 2009

भारतीय भाषाओं में सामग्री नेट पर उपलब्ध हो सके

हो गया राजभाषा सम्मेलन और शुभकामनाओं का दौर चला आधे दिन
भारत सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा आयोजित राजभाषा सम्मेलन २८ फरवरी २००९ को बडोदरा में संपन्न हो गया जहां पर झूठे आंकडो के आधार पर राजभाषा शील्ड और ट्राफी बांटी गई और इस प्रकार भारत के संविधान में वर्णित हिन्दी राजभाषा के रूप में स्थापित हो गई । हम इसका स्वागत करते है परन्तु एक शख्स जब पुरस्कार लेने आ रहे थे तो पीछे से आवाज आ रही थी कि इस हिन्दी अफसर के नाम का बोर्ड भी अंग्रेजी में है तो पुरस्कार किस आधार पर दिया गया, यह प्रश्न विचारणीय है । मेंरी चर्चा इस बारे में विभाग के संयुक्त सचिव जी से भी हुई है निसंदेह वे एक अच्छे इंसान है और अभी वे इस विभाग में कुछ ठोस करना भी चाहते है जैसा कि उन्होने मुझसे वायदा किया, मैं उनसे मिलने दिलली भी जाने का प्रयास करूंगा ।
इस सम्मेलन में कुछ सॉफटवेयर्स का प्रर्दशन हुआ जिसकी कोई आवश्यकता नहीं थी, सचिव महोदय ने बार-बार लीला सॉफ्टवेयर के माध्यम से हिन्दी सीखने की बात की क्योंकि मुझे लगता है कि उन्हे यही बताया गया था कि हिन्दी सीखने केलिए केवल लीला ही है । शायद वे नहीं जानते कि अब विश्व में हिन्दी लीला से नहीं अपितु अनेक प्रकार के टूल्स नेट पर उपलब्ध हैं जिनसे दुनिया हिन्दी सीख रही है, लीला तो थोपा जा रहा है इससे हिन्दी का विकास नहीं, अपितु विनाश हो रहा है । खैर मेरा मकसद यहां पर सचिव जी के बारे में टिपपणी करने का नहीं है । हम चाहते है कि वास्तव में हिन्दी भारत देश की राजभाषा बने और इस प्रकार के टूल्स उपलब्ध कराये जाएं जिनसे यह संभव हो सके ।
मैं बार बार यह लिखता रहता हूं कि अंग्रेजी में अरबो पृष्ट की सामग्री केवल अग्रेजी में हर विषय पर उपलब्ध है बच्चे नेट पर जाते है और अपने मनपसंद विषय पर सामग्री बटोर लेते है लेकिन यह केवल अंग्रेजी में है, भारतीय भाषाओं में नहीं । राजभाषा विभाग कुछ ऐसा काम करे ताकि भारतीय संस्कृति और उसके सभी पहलुओं पर भारतीय भाषाओं में सामग्री नेट पर उपलब्ध हो सके । शायद वह दिन शीघ्र आए तो हमें प्रसन्नता होगी ।

बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

राजभाषा के रूप में हिन्दी को दिशा मिलने की क्या संभावना बनती है ।

बडोदरा में राजभाषा विभाग द्वारा दिनांक २८ फरवरी २००९ को एक राजभाषा सम्मेलन का आयोजन महज एक दिखावा है राजभाषा के रूप में हिन्दी को बढावा देने के लिए जो उपाय करने चाहिये उनमें अभी भी बहुत सी कमियां है और उन्हे दूर करने के लिए राजभाषा विभाग के पास कोई भी ठोस उपाय नहीं है । यह स्पष्ट है कि अभी हॉल में हुए सर्वेक्षण के मुताबिक करीब १७० भारतीय भाषाएं विलुप्त हो जांएगी, यह खतरा हमें इस बात का संकेत दे रहा है कि भविष्य में हिन्दी का भी यही हाल हो सकता है ।

भारत सरकार ने राजभाषा विभाग को यह जिम्मेदारी सौंपी है कि वह इस कार्यकी भरपाई करें , परन्तु ढाक के वही तीन पात , कुछ भी नहीं हो पा रहा है इस सम्मेलन में भी जो कार्यक्रम बनाया गया है वह लीक से हटकर नहीं है अतः हमें इस सम्मेलन से भी कोई आशा की किरण नजर नहीं आती,देखते है कि क्या होता है इस सम्मेलन में , और राजभाषा के रूप में हिन्दी को दिशा मिलने की क्या संभावना बनती है ।

सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

कोंकण रेलवे में ई-मेल पर हिन्दी कार्यशाला तथा विचार गोष्ठी का आयोजन

कोंकण रेलवे में ई-मेल पर हिन्दी कार्यशाला तथा विचार गोष्ठी का आयोजन आज दिनांक २४ फरवरी २००९ को बेलापुर में हुआ । इस कार्यशाला में डॉ राजेन्द्र गुप्ता ने इस तकनीकी विषय पर प्रस्तुतिकरण किया । कार्यशाला में वरिष्ट राजभाषा अधिकारी श्री विश्वमित्र ने संयोजन किया और इस कार्यशाला में इस निगम के श्री नेविल, वरिष्ठ सिस्टम प्रोग्रामर, श्री जे एस श्रीवास्तव, सहायक विद्युत अभियंता, श्री एस वी शेट्टी, वरिष्ठ लोको निरीक्षक, श्री बृजेश पाण्डेय, वरिष्ट लोको निरीक्षक, श्री महामुलकर, राजभाषा सहायक और टाइपिस्ट श्री दुबे ने भाग लिया

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

बडोदरा में राजभाषा सम्मेलन

28 फरवरी 2009 को बडरोदरा में राजभाषा विभाग द्वारा सम्मेलन आयोजित
राजभाषा विभाग द्वारा एक राजभाषा सम्मेलन का आयोजन बडोदरा में 28 फरवरी 2009 को किया जा रहा है जिसमें वही पुरानी लीक पर कुछ झूटे आंकडो पर आधारित पुरस्कार दिए जाएंगे और राजभाषा कर्मी अपनी पीठ अपने आप थपथपाएंगे । भारत को स्वतंत्र हुए अब 60 साल से भी ज्यादा हो गए है और आज भी राजभाषा विभाग जिन आंकडों के आधार पर पुरस्कार दे रहा है, लगता हे ​कि यह राजभाषा के साथ बेमानी है । इस प्रकार तो हिन्दी कभी भी राजभाषा नहीं हो सकेगी । आज भी यह सत्य है ​कि विभिन्न विभागों में लगे हुए सिस्टम कंप्यूटरों में हिन्दी का समावेश नहीं हो सका है क्या राजभाषा विभाग यह जानने की कोशिश करेगा ​कि सरकारी दफ्तरों में जहां कंप्यूटर प्रणालियां विकसित की गई है, उन्हे डॉटा प्रोसेसिंग, डाटा इनपुट और डाटा आउटपुर (तीनों ) में हिन्दी का समावेश कब तक हो जाएगा । मैं यहां पर रेलवे का ही जिक्र कर रहा हू, जहां पर लगभग 8 प्रकार की कंप्यूटर प्रणालियां है और आज तक एक भी प्रणाली उक्त पैमाने पर खरी नहीं है । यहां तक ​कि पब्लिक रिर्जवेशन सिस्टम में आज भी डाटा केवल अंग्रेजी में भरा जाता है । भले ही, उसका आउटपुट द्विभाषी हो ।
राजभाषा विभाग द्वारा तैनात कार्यान्वयन कर्मचारी/अधिकारी केवल निगमों और ऐसे कार्यालयों का निरीक्षण करते है जहां उन्हे गिफ्ट मिल जाता है , यह जो सम्मेलन हो रहा है उसमें भी तेल कंपनी कुछ कर रही होगी , ऐसा विश्वास किया जा सकता है इन सब बातों की जांच होनी चाहिये ​कि गिफ्ट देकर किसे राजभाषा के नाम पर ट्राफी दी गई । इससे इस विभाग में पारदर्शिता आएगी और आम आदमी में सरकार के प्र​ति विश्वास बढेगा ।

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

पुणे एस टी पी आय कार्यालय में ई-मेल पर कार्यशाला,


हिंदी ई-मेल पर कार्यशाला
भारतीय सोफ्ट्वेअर प्रौद्योगिकी पार्क – पुणे में आज दिनांक 14 फरवरी 09 को एक हिन्दी कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें ई-मेल पर हिन्दी के प्रयोग को सिखाचा गया । इस कार्यशाला का उद्धाटन केन्द्र के संयुक्त निदेशक श्रीमती सोनंल जी ने किया और इस कार्यशाला मे प्रथम राजभाषा संबंधी
व्याख्यान केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो के निदेशक डॉ दंगल झाल्टे जी ने किया और इस कार्यशाला में ई-मेल विषय पर व्याख्यान डॉ राजेन्द्र गुप्ता ने दिया ।इस कार्यशाला में भाग लेने वाले प्रमुख रूप से इस कार्यालय के अधिकारी और कर्मचारी थे । इस कार्यशाला की समीक्षा केन्द्र की संयुक्त निदेशक सौ सोनंल जी ने की ।
श्रीमती सोनंल जी ने केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो के निदेशक डॉ दंगल झाल्टे का स्वागत करते हुए कहा कि यह हमारी पहली कार्यशाला है और हम अपने कार्यालय में हिन्दी का प्रयोग प्रसार कैसे बढा सकते है, इसपर आज हम विचार करेंगे , उन्होने आशा जताई कि आज की कार्यशाला हमारे कर्मचारियों केलिए लाभदायक होगी ।
सभी कर्मचारियों ने आश्वासन दिया कि वे इस तकनीक का प्रयोग अवश्य करेंगे । इस कार्यशाला के आयोजन में श्री निलेश का विशेष योगदान रहा ।

सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

संसदीय राजभाषा समिति ने किया कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का निरीक्षण

संसदीय राजभाषा समिति ने किया कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया कानिरीक्षण और जायजा लिया वहां पर हो रहे राजभाषा संबंधी कामकाज का ।
संसदीय राजभाषा समिति ने ९ फरवरी २००९ को नई दिल्ली में कंटेनर कार्पोरेशन आफ इंडिया के कॉपोरेट कार्यालय का निरीक्षण किया जिसमें उन्होने वहां पर हो रहे कामकाज की समीक्षा की ।
यह सर्वविदित है कि किसी भी कार्यालय में राजभाषा नियमों के अनुसार कार्य नहीं हो रहा है जब भी इस प्रकार की समिति कोई निरीक्षण करती है तो कुछ न कुछ कार्य झूटा औरसच्चा मिलाकर दिखा दिया जाता है या उसे पेश किया जाता है ताकि समिति को कोई शक न हो, परन्तु वास्तविकता यह है कि इन कार्यालयों में हिन्दी के नाम पर रोटियां सेकी जा रही है और काम के नाम पर कुछ भी नहीं हो रहा है । सभी काम आराम से अंग्रेजी में चलाया जा रहा है, वैबसाइट पर कुछ भी धारा ३(३) में आने वाला कोई भी डाक्यूमैण्ट हिन्दी में नहीं है यह इस कार्यालय की बात नहीं, वरन प्रत्येक कार्यालय का हाल है इस पर कौन ध्यान देगा, राजभषा से संबंध रखने वाला यही सोचता है ।

शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

हमारी शिक्षा व्यवस्था पर अंग्रेजी हावी हो गई है।

उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के भाजनता पार्टी छोड़ने और समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाने के बाद अब आरएसएस प्रमुख सुदर्शन ने बाबरी मस्जिद गिराने की घटना पर यह कहते हुए सबको चौंका दिया है कि विवादित ढांचा कारसेवकों ने नहीं बल्कि खुद तत्कालीन राज्य सरकार ने गिराया था।

आरएसएस प्रमुख के.एस. सुदर्शन ने शनिवार को यहां स्टेडियम ग्राउंड पर ' प्रकट समारोह ' को संबोधित करते हुए कहा कि ' दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा कारसेवकों ने नहीं बल्कि सरकार ने गिराया था। मैं उस समय वहां मौजूद था। हम लोग वहां एक गैर विवादित स्थान पर निर्माण कार्य करना चाहते थे, लेकिन पीछे से अचानक कुछ सरकारी लोग आए और उन्होंने ढांचा गिरा दिया। '

यहां से लगभग तीन किलोमीटर दूर दुपाड़ा मार्ग स्थित जैन फार्म हाउस पर आरएसएस के मध्य भारत प्रांत के रविवार से शुरू हुए तीन दिवसीय कार्यकर्ता शिविर में शामिल होने आए सुदर्शन ने अंग्रेजी भाषा पर प्रहार करते हुए कहा कि हम भारतीय अपने दिमाग से अंग्रेजों और अंग्रेजी को नहीं निकाल पा रहे हैं। हमारी शिक्षा व्यवस्था पर अंग्रेजी हावी हो गई है।

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

हिन्दी ई-मेल पर कार्यशाला,

हिन्दी ई-मेल पर कार्यशाला
भारतीय सोफ्ट्वेअर प्रौद्योगिकी पार्क – मुंबई में आज दिनांक 7 फरवरी 09 को एक हिन्दी कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें ई-मेल पर हिन्दी के प्रयोग को सिखाचा गया । इस कार्यशाला का उद्घाटन प्रशासनिक अधिकारी श्रीमती राजश्री शिन्दे ने किया और इस कार्यशाला में व्याख्यान डॉ। राजेन्द्र गुप्ता ने दिया ।इस कार्यशाला में भाग लेने वाले प्रमुख रूप से इस कार्यालय के अधिकारी और कर्मचारी थे । इस कार्यशाला की समीक्षा सुश्री भावना मीणा ने की तथा सभी कर्मचारियों ने आश्वासन दिया कि वे इस तकनीक का प्रयोग अवश्य करेंगे । इस कार्यशाला के आयोजन में श्री रवि पाटिल का विशेष योगदान रहा ।

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति नवी मुंबई द्वारा वैज्ञानिक विषय पर संगोष्ठी आयोजित

नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति नवी मुंबई द्वारा वैज्ञानिक विषय पर संगोष्ठी आयोजित
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति नवी मुंबई द्वारा वैज्ञानिक विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई , यह गोष्ठी दिनांक 5 फरवरी 2009 को बेलापुर स्थित पजाब नेशनल बैंक के आडिटोरियम में आयोजित हुई । इस संगोष्ठी में राजभाषा विभाग के उपनिदेशक डॉ. मोती लाल गुप्ता सहित भारतीय भूचुम्बकत्तव संस्थान की निदेशक प्रो भट्टाचार्य तथा उनके साथियों ने वैज्ञानिक विषयों पर प्रकाश डाला । इस प्रकार की संगोष्ठी आयोजित होने से यह बात साफ हो जाती है कि वैज्ञानिक विषय भी भारतीय भाषाओं में अच्छी तरह बताए जा सकते है । कॉटन कार्पोरेशन आफ इंडिया की महाप्रबंधक राजभाषा डॉ. रीता कुमार इस संगोष्ठी के आयोजन को सफल बनाने में कामयाब रही ।

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

मुंबई रेलवे विकास कॉर्पोरेशनलि। चर्चगेट मुंबई में हिन्दी ई-मेल पर कार्यशाला सम्पन्नहुई

मुंबई रेलवे विकास कॉर्पोरेशनलि। चर्चगेट मुंबई में हिन्दी ई-मेल पर कार्यशाला सम्पन्नहुई
मुंबई रेलवे विकास कॉर्पोरेशनलि चर्चगेट मुंबई में हिन्दी ई-मेल पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया, यह कार्यशाला दिनांक ३ फरवरी २००९ को चर्चगेट स्थ्ति सभा कक्ष में आयोजित की गई, इस कार्यशाला में मुंबई के सभी सरकारी कार्यालयों के अधिकारी और कर्मचारियों ने भाग लिया । ज्ञात है कि राजभाषा के रूप में हिन्दी के विकास में बदलती हुई विकास की दौड में हिन्दी का काम कंप्यूटर पर कम हो रहा है । इसी को ध्यान में रखकर इस कार्यशाला का आयोजन किया गया । नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति सरकारी कार्यालयों के तत्वावधान में यह कार्यशाला प्रातः ११ बजे से सांय तक चली । इस कार्यशाला का उद्घटन डॉ पी सी सहगल, प्रबंध निदेशक एम आर वी सी ने किया । यह उम्मीद की जाती है कि इस प्रकार के आयोजनों से राजभाषा के रूप में हिन्दी का विकास अधिक से अधिक होगा ।इस कार्यशाला में मुख्य रूप से ई-मेल पर व्याख्यान श्री राजीव शर्मा, मुख्य संकेत व दूरसंचार इंजीनियर एम आर वी सी का हुआ और श्री प्रभात सहाय, मुख्य राजभाषा अधिकारी के मार्गदर्शन में यह कार्यशाला आयोजित होगी । पश्चिम रेलवे के उपमहाप्रबंधक (राजभाषा ) श्री के पी सत्यनंदन ने प्रबंध निदेशक श्री सहगल का स्वागत पुष्पगुच्छ देकर किया kएमआर वी सी के उपमहाप्रबंधक (राजभाषा) डॉ राजेन्द्र गुप्ता तथा श्री बी के शर्मा ने आयोजन को सफल बनाने में हर संभव सहयोग दिया , उम्मीद की जाती है कि इस प्रकार की कार्यशालाएं अन्य कार्यालयों में भी निरंतर चलाई जाती रहेंगी ।

रविवार, 1 फ़रवरी 2009

मुंबई रेलवे विकास कॉर्पोरेशनलि। चर्चगेट मुंबई में हिन्दी ई-मेल पर कार्यशाला

मुंबई रेलवे विकास कॉर्पोरेशनलि। चर्चगेट मुंबई में हिन्दी ई-मेल पर एक कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है यह कार्यशाला दिनांक ३ फरवरी २००९ को चर्चगेट स्थ्ति सभा कक्ष में आयोजित की जाएगी, इस कार्यशाला में मुंबई के सभी सरकारी कार्यालयों के अधिकारी और कर्मचारी भाग ले रहे है । ज्ञात है कि राजभाषा के रूप में हिन्दी के विकास में बदलती हुई विकास की दौड में हिन्दी का काम कंप्यूटर पर कम हो रहा है । इसी को ध्यान में रखकर इस कार्यशाला का आयोजन किया गया है । नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति सरकारी कार्यालयों के तत्वावधान में यह कार्यशाला प्रातः ११ बजे से सांय तक चलेगी ।
इस कार्यशाला का उद्घटन डॉ। पी सी सहगल, प्रबंध निदेशक एम आर वी सी करेंगे
उम्मीद की जाती है कि इस प्रकार के आयोजनों से राजभाषा के रूप में हिन्दी का विकास अधिक से अधिक होगा ।
इस कार्यशाला में मुख्य रूप से ई-मेल पर व्याख्यान श्री राजीव शर्मा, मुख्य संकेत व दूरसंचार इंजीनियर एम आर वी सी का होगा और श्री प्रभात सहाय, मुख्य राजभाषा अधिकारी के मार्गदर्शन में यह कार्यशाला आयोजित होगी ।
उपमहाप्रबंधक (राजभाषा) डॉ राजेन्द्र गुप्ता इस कार्यशाला केलिए प्रयत्नशील हैं ।

गुरुवार, 22 जनवरी 2009

जो चमचागिरी नहीं करे, तो भरे डिमोशन और स्थानान्तरण

जो चमचागिरी नहीं करे, तो भरे डिमोशन और स्थानान्तरण
रेलवे विभाग के राजभाषा विभाग में अब काम के बजाय चमचागिरी हावी हो गई है, जो साहेब की चमचागिरी नही करता वह अनेकानेक यातनाएं सहन करता है, यही हुआ अब तक और आज भी हो रहा है । हम बार बार कह रहे है कि रेलवे बोर्ड या किसी भी रेल में अधिकारियों को हिन्दी से कोई लेना देना नहीं है यहा तो बोर्ड में राजभाषा निदेशालय में बैठा उपनिदेशक जो कर दे वही फाइनल हो जाता है और वहां पर बैठा है सिंधी, कहते है कि यह कौम ही इस प्रकार की है कि इनसे खतरनाक तो सांप भी नहीं होता, एक बार सांप का काटा बच सकता है सिंधी का काटा नहीं बच सकता । यही किया है हाल में वरिष्ट राजभाषा अधिकारियों की तैनाती में , उसने जो कर दिया उस पर सभी ने अपनी मोहर लगा दी, और बेचारी परेशान हुए है पश्चिम रेल के और इलाहाबाद में नियुक्त राजभाषा अधिकारी ।
ध्यान देने लायक जो तथ्य है उनपर गौर ही नहीं किया गया जैसे कि ः
१ सभी रेलों पर एक एक अधिकारी समान अनुपात से दिया जाना चाहिये था
२ उक्त रेलों पर नियमानुसार ५० प्रतिशत ही संघ लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित तैनात किये जाने चाहिये थे परन्तु यह भी नहीं किया गया ।
३ पश्चिम रेल पर पांच मण्डल है और पांच ही राजभाषा अधिकारी , यदि उक्त तीन अधिकारी आ जाएंगे तो पहले से ही कार्यरत नियमित रूप में चयनित अधिकारी कहां जाएंगे, यह सोचना बोर्ड का काम है ।
४ उत्तर रेल और मध्य रेल में एक भी सीधी भर्गी वाला अधिकारी क्यों नहीं दिया गया, इन रेलों पर क्या मेहरबानी है ।
५ यह ठीक है कि तदर्थ अधिकारियों को पदोन्नत किया जा सकता है लेकिन पदोन्नत होने के बाद वे कहां जाएंगे, क्योंकि उनकी रिक्ती तो नियमित चयन करके भर दी गई है और नियमित चयनित अधिकारियों को पदावनत नहीं किया जा सकता ।
६ इसी प्रकार इलाहाबाद में दो सीधी तैनाती कर दी गई है और वहां पर कार्यरत अधिकारियों केलिए परेशानी खडी की गई है ।
७ यदि सबसे जूनियर को ही पदोन्नति करनी है तो महाप्रबंधक को तदर्थ राजभाषा अधिकारी भरने की पावन बोर्ड ने क्यों नहीं दी ।
८ मोटवानी ने पहले भी हिन्दी कंपटिंग फाउण्डेशन के मामले में अडंगा लगाया था जो कि संसदीय राजभाषा समिति के हस्तक्षेप के कारण ठीक हुआ है , अतः जब बोर्ड जानता है कि यह व्यक्ति गलत है और गलत कार्य कराता है तो उसे रेल क्लेम ट्रीबुनल में क्यों नहीं भेजा जाता ।
९ बोर्ड को पहले भी एक प्रस्ताव भेजा गया था कि निमार्ण विभाग में जिस प्रकार सब विभागों केलिए पद सृजन हेतु एक प्रतिशत निर्धारित कर दिया है उसमें हिनदी केलिए भी कुछ प्रतिशत होना चाहिये, लेकिन ऐसे प्रस्तावों पर बोर्ड विचार ही नहीं करता क्योंकि इनसे रेलों पर नियुक्त कर्मचारियों का भला होता है ।
अब देखते है कि इन रेलों के महाप्रबंधक अपने अधिकारियों को बचाने केलिए क्या करते है, उन्हे करना भी चाहिये और यह फर्ज भी है । जब तक पहले से नियुक्त नियमित अधिकारियों कोपूरा काम नहीं मिलता , हमारा मानना है कि तब तक सीधी भर्ती वालों को ज्वाइन नहीं करने देना चाहिये,

सोमवार, 19 जनवरी 2009

सलाहकार समितियों में केवल उन्ही को नामित करना होगा जो वास्तव में इस कार्य को बढाने में सरकार की मदद कर सकते हैं

राजभाषा के रूप में हिन्दी का सपना कब पूरा होगा, यह असाघ्य रोग हो गया है, हम बार बार इस बात की ओर इशारा कर रहे है कि जिनके कधे पर इसकी जिम्मेवारी दी गई है वे इस जिममेवारी को यदि पूरा नहीं कर पाते तो उन्हे पद से हटा दिया जाना चाहिये । यहां हमारा मकसद उन्हे नौकरी से निकालने का नहीं है, वरन् उनकी जगह काबिल कर्मियों को लाने का है । लेकिन जब इसपर भी राजनीति हो तो कोई कुछ नहीं कह सकता । आज सभी जानते है कि जमाना कंप्यूटर का है ओर इस जमाने में यदि हिन्दी को साथ साथ लेकर नहीं चला गया तो वह दिन दूर नहीं , जब सरकारी कार्यालय से हिन्दी नाम समाप्त हो जाएगा ।
मैं रेलवे विभाग के बारे में कुछ कहना अपना फर्ज समझता हू जहां हिन्दी के नाम पर काफी कुछ हो रहा है, लेकिन हिन्दी कहीं भी दिखाई नहीं देती, आज की तारीख में रेलवे के सभी कंप्यूटर सिस्टम केवल इग्रेजी में काम कर रहे है यहां तक कि उनमें हिनदी में काम करने की सहूलियत भी नहीं है । इसका दोषी कोन है, इसपर विचार करने की जरूरत है । रेलवे में प्रयुक्त फायस, एफ एम आय एस, अफ्रेश, स्टोर सिस्टम, पी एम आय एस, आदि सभी केवल अंग्रेजी में ही काम करने के लायक है, हिन्दी उन्हे रास नहीं आती । इसपर संसदीय राजभाषा समिति ने कई बार प्रश्न उठाया, लेकिन वही ढाक के तीन पात, स्थिति वहीं की वहीं है । जरा सी भी नहीं बदली । अतः राजभाषा कानून कहां गया, और इसकी क्या महत्तता है यह भी विचार होना चाहिये, रेलवे की हिन्दी सलाहकार समिति में राजभाषा विभाग जिन्हे प्रतिनिधि के तौर पर भेजता है, वे सभी कैसे है, यह सब जानते है , वे केवल मजा करने केलिए सदस्य बनते है मत्री तक अपनी ताकत रखते है लेकिल केवल अपनेलिए, हिन्दी से उनका कोई लेना देना नहीं होता । प्रश्न यह भी उठता है तो इस प्रकार से देख को धोका देने केलिए ऐसे विभाग की आवश्यकता क्या है , अतः ऐसे विभाग को तुरन्त बन्द कर देना चाहिये ।
लेकिन ऐसा करना भी उचित नहीं है, सवाल यह भारतीय संस्कृति का है और इसे बचाने केलिए यह विभाग बनाया गया है ताकि भारतीय भाषाओं का संवर्धन हो सके, अतः इस विभाग को अब मूक दृष्टा न होकर गंभीर रूप से सोचना होगा और सलाहकार समितियों में केवल उन्ही को नामित करना होगा जो वास्तव में इस कार्य को बढाने में सरकार की मदद कर सकते हैं ।