शुक्रवार, 21 मई 2010

वेबसाइट्स-ब्लॉग्स को आज भी विज्ञापन नहीं मिल रहे हैं

हिन्दी सहित अन्य भाषाओं में ब्लॉगिंग करने वालों की आर्थिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ओजस सॉफ्टेक प्राइवेट लिमिटेड ने 'एफिलेट प्रोग्राम' शुरू किया है, जिसका इस्तेमाल कर ब्लॉगर कमाई कर सकते हैं। ओजस सॉफ्टेक के एफिलेट कार्यक्रम की शुरुआत बुधवार को आगरा में केंद्रीय हिन्दी संस्थान के रिजस्ट्रार चंद्रकांत त्रिपाठी ने की। ओजस सॉफ्टेक के डायरेक्टर प्रतीक पांडे ने बताया कि हिन्दी की वेबसाइट्स-ब्लॉग्स को आज भी विज्ञापन नहीं मिल रहे हैं और इसी को ध्यान में रखकर ओजस ने यह कदम उठाया है। 'एस्ट्रो कैंप डॉट कॉम' के इस एफिलेट प्रोग्राम का इस्तेमाल बेहद सरल है। एफिलेट कार्यक्रम को सामान्य अर्थों में विज्ञापन कहा जा सकता है। इसके लिए वेबसाइट के संचालकों या ब्लागरों को सिर्फ एस्ट्रोकैंप की वेबसाइट 'एस्ट्रो कैंप डॉट कॉम/एफिलेट' पर एफिलेट प्रोग्राम का फॉर्म भरकर एक कोड हासिल करना होगा, जिसे वे अपने ब्लॉग अथवा वेबसाइट पर लगा सकते हैं।

वेबसाइट्स-ब्लॉग्स को आज भी विज्ञापन नहीं मिल रहे हैं

हिन्दी सहित अन्य भाषाओं में ब्लॉगिंग करने वालों की आर्थिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ओजस सॉफ्टेक प्राइवेट लिमिटेड ने 'एफिलेट प्रोग्राम' शुरू किया है, जिसका इस्तेमाल कर ब्लॉगर कमाई कर सकते हैं। ओजस सॉफ्टेक के एफिलेट कार्यक्रम की शुरुआत बुधवार को आगरा में केंद्रीय हिन्दी संस्थान के रिजस्ट्रार चंद्रकांत त्रिपाठी ने की। ओजस सॉफ्टेक के डायरेक्टर प्रतीक पांडे ने बताया कि हिन्दी की वेबसाइट्स-ब्लॉग्स को आज भी विज्ञापन नहीं मिल रहे हैं और इसी को ध्यान में रखकर ओजस ने यह कदम उठाया है। 'एस्ट्रो कैंप डॉट कॉम' के इस एफिलेट प्रोग्राम का इस्तेमाल बेहद सरल है। एफिलेट कार्यक्रम को सामान्य अर्थों में विज्ञापन कहा जा सकता है। इसके लिए वेबसाइट के संचालकों या ब्लागरों को सिर्फ एस्ट्रोकैंप की वेबसाइट 'एस्ट्रो कैंप डॉट कॉम/एफिलेट' पर एफिलेट प्रोग्राम का फॉर्म भरकर एक कोड हासिल करना होगा, जिसे वे अपने ब्लॉग अथवा वेबसाइट पर लगा सकते हैं।

वेबसाइट्स-ब्लॉग्स को आज भी विज्ञापन नहीं मिल रहे हैं

हिन्दी सहित अन्य भाषाओं में ब्लॉगिंग करने वालों की आर्थिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ओजस सॉफ्टेक प्राइवेट लिमिटेड ने 'एफिलेट प्रोग्राम' शुरू किया है, जिसका इस्तेमाल कर ब्लॉगर कमाई कर सकते हैं। ओजस सॉफ्टेक के एफिलेट कार्यक्रम की शुरुआत बुधवार को आगरा में केंद्रीय हिन्दी संस्थान के रिजस्ट्रार चंद्रकांत त्रिपाठी ने की। ओजस सॉफ्टेक के डायरेक्टर प्रतीक पांडे ने बताया कि हिन्दी की वेबसाइट्स-ब्लॉग्स को आज भी विज्ञापन नहीं मिल रहे हैं और इसी को ध्यान में रखकर ओजस ने यह कदम उठाया है। 'एस्ट्रो कैंप डॉट कॉम' के इस एफिलेट प्रोग्राम का इस्तेमाल बेहद सरल है। एफिलेट कार्यक्रम को सामान्य अर्थों में विज्ञापन कहा जा सकता है। इसके लिए वेबसाइट के संचालकों या ब्लागरों को सिर्फ एस्ट्रोकैंप की वेबसाइट 'एस्ट्रो कैंप डॉट कॉम/एफिलेट' पर एफिलेट प्रोग्राम का फॉर्म भरकर एक कोड हासिल करना होगा, जिसे वे अपने ब्लॉग अथवा वेबसाइट पर लगा सकते हैं।

सोमवार, 17 मई 2010

आकाशवाणी के खाते में तमिल विदेशी भाषा है।

हमारी आकाशवाणी के खाते में तमिल विदेशी भाषा है। सिंधी और नेपाली विदेशी भाषाएं हैं। पुड्डुचेरी में फ्रेंच को राज्यभाषा जैसी मान्यता प्राप्त है, लेकिन आकाशवाणी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। एक नियम के रूप में वह इन सभी भाषाओं को वर्षों से विदेशी भाषा मानती चली आ रही है। आकाशवाणी में कई भारतीय भाषाएं विदेशी भाषा के रूप में दर्ज हैं। यही नहीं, इसे आधार बनाकर वहां वर्षों से हिंदीभाषी कर्मचारियों को दोयम दर्जे का समझा जाता है और उन्हें वेतन आदि सुविधाएं अपेक्षाकृत कम दी जाती हैं। अंग्रेजों के शासन काल में भारत के लोगों को जिस पद पर काम करने के एवज में सौ से डेढ़ सौ रुपये वेतन दिया जाता था, उसी पद पर गोरी चमड़ी वाले यूरोप के मूलवासियों को एक हजार रुपया वेतन मिलता था। अंग्रेजों के जाने के बाद चमड़ी के रंग के आधार पर तो नहीं लेकिन उम्र, लिंग, जाति और धर्म के आधार पर एक ही काम के लिए मजदूरी या वेतन कम-ज्यादा होने की शिकायतें आम रही हैं। कई संस्थानों में भाषा के स्तर पर भी समान पद और काम के बदले अलग-अलग वेतन मिलने की शिकायतें आई हैं। लेकिन ऐसी शिकायतें आमतौर पर निजी संस्थानों में दिखती रही हैं। संविधान में जाति, लिंग, धर्म, भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं करने की शपथ ली गई है लिहाजा आमतौर पर इन आधारों पर सरकारी संस्थानों में ऐसे भेदभाव की शिकायत नहीं पाई जाती है। आकाशवाणी में जारी भाषाई भेदभाव को इस नियम का भी अपवाद माना जा सकता है।

आकाशवाणी के खाते में तमिल विदेशी भाषा है।

हमारी आकाशवाणी के खाते में तमिल विदेशी भाषा है। सिंधी और नेपाली विदेशी भाषाएं हैं। पुड्डुचेरी में फ्रेंच को राज्यभाषा जैसी मान्यता प्राप्त है, लेकिन आकाशवाणी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। एक नियम के रूप में वह इन सभी भाषाओं को वर्षों से विदेशी भाषा मानती चली आ रही है। आकाशवाणी में कई भारतीय भाषाएं विदेशी भाषा के रूप में दर्ज हैं। यही नहीं, इसे आधार बनाकर वहां वर्षों से हिंदीभाषी कर्मचारियों को दोयम दर्जे का समझा जाता है और उन्हें वेतन आदि सुविधाएं अपेक्षाकृत कम दी जाती हैं। अंग्रेजों के शासन काल में भारत के लोगों को जिस पद पर काम करने के एवज में सौ से डेढ़ सौ रुपये वेतन दिया जाता था, उसी पद पर गोरी चमड़ी वाले यूरोप के मूलवासियों को एक हजार रुपया वेतन मिलता था। अंग्रेजों के जाने के बाद चमड़ी के रंग के आधार पर तो नहीं लेकिन उम्र, लिंग, जाति और धर्म के आधार पर एक ही काम के लिए मजदूरी या वेतन कम-ज्यादा होने की शिकायतें आम रही हैं। कई संस्थानों में भाषा के स्तर पर भी समान पद और काम के बदले अलग-अलग वेतन मिलने की शिकायतें आई हैं। लेकिन ऐसी शिकायतें आमतौर पर निजी संस्थानों में दिखती रही हैं। संविधान में जाति, लिंग, धर्म, भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं करने की शपथ ली गई है लिहाजा आमतौर पर इन आधारों पर सरकारी संस्थानों में ऐसे भेदभाव की शिकायत नहीं पाई जाती है। आकाशवाणी में जारी भाषाई भेदभाव को इस नियम का भी अपवाद माना जा सकता है।

बुधवार, 12 मई 2010

शीला दीक्षित ने 27 साहित्यकारों को सम्मानित किया।

दिल्ली सचिवालय में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने 27 साहित्यकारों को सम्मानित किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, कवि और लेखक जगन्नाथ प्रसाद के अलावा कई विधायक और साहित्यकार भी मौजूद थे। हिंदी अकादमी के वर्ष 2007-08 से लेकर 2009-10 के लिए साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। 2008-09 के लिए साहित्य सम्मान छह साहित्यकारों को दिया गया। इनमें गगन गिल के अलावा द्रोणवीर कोहली, प्रो. इंद्रनाथ चौधरी, सुरेश सलिल, रामेश्वर प्रेम और डॉ. अब्दुल बिस्मिल्लाह शामिल हैं। 2008-09 का काका हाथरसी सम्मान मशहूर कार्टूनिस्ट इरफान को दिया गया। 2009-10 के लिए सम्मान पाने वालों में कन्हैया लाल नंदन, प्रो. सुधीश पचौरी, डॉ. असगर वजाहत, डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी, डॉ. मुजीब रिजवी और बालेंदु दाधीच शामिल हैं। 2007-08 के साहित्यिक कृति पुरस्कार आठ लेखकों को दिए गए। इनमें दया प्रकाश सिन्हा, आदित्य अवस्थी, प्रो. पवन कुमार माथुर, प्रो. पी.के. आर्य, सूरजपाल चौहान, कृपाशंकर सिंह ओर मुकेश शर्मा प्रमुख हैं। 2007-08 के बाल एवं किशोर साहित्य के लिए छह लेखकों को पुरस्कार दिए गए। ये हैं : राधा कांत भारती, डॉ. सरस्वती बाली, पूरनचंद कांडपाल, अखिल चंद, कुसुम लता सिंह और मधुलिका अग्रवाल।