शुक्रवार, 21 मार्च 2014

बकवास , न जाने लोग क्यों पढ़ते हैं'

मैं तो बकवास लिखता हूं, न जाने लोग क्यों पढ़ते हैं'... इस हद तक अपनी आलोचना करने वाली हस्ती खुशवंत सिंह के अलावा और कौन सी हो सकती है? शरारत तो मानो उनकी जिंदगी का हिस्सा थी। यहां तक कि जब उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी तो उसके टाइटल में भी शरारत को जगह थी- 'सच, प्यार और थोड़ी सी शरारत' (ट्रुथ, लव एंड लिटिल मैलिस)। 'ट्रेन टु पाकिस्तान' जैसी मशहूर किताब के रचयिता खुशवंत सिंह ने वकील, संपादक और लेखक के रूप में शान से जिंदगी जी। वे आखिरी दम तक काम करते रहे। उनका कॉलम 'ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर' (विद् मैलाइस टुवार्ड्स वन एंड ऑल) बेशुमार पॉपुलर था। यह देश के लगभग 50 अखबारों में एक साथ छपता था। 
खुशवंत सिंह अपनी बेबाकी के लिए भी मशहूर थे। वह उन चंद लोगों में थे जिन्होंने इमरजेंसी लगाने के इंदिरा गांधी के फैसले का खुलकर समर्थन किया था। हालांकि बाद में उनके रिश्ते बिगड़ गए और वे मेनका गांधी के करीब आ गए। बाद में उन्होंने ब्लू स्टार ऑपरेशन के लिए इंदिरा का खुलकर विरोध भी किया। वे इतना नाराज थे कि उन्होंने पद्म भूषण अवॉर्ड भी सरकार को लौटा दिया। खुशवंत ने अपनी बायोग्राफी में इस बारे में काफी विस्तार से लिखा है। 
2 फरवरी 1915 को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के हदाली में जन्मे खुशवंत की कलम के कायल लोगों की कमी नहीं है। पॉलिटिक्स पर लिखना और तमाम मॉडर्न टॉपिक्स पर तंज कसना उनका प्रिय शगल था। 1995 में उनकी किताब 'विमिन ऐंड मैन इन माई लाइफ' आई तो साबित हो गया कि उनकी तरह हर किसी में आइने की तरह जिंदगी को सबके सामने रखने की हिम्मत नहीं होती। उनके लिखने का स्टाइल ही अलग था। उन्होंने अपनी पहली ही किताब 'द मार्क ऑफ विष्णु ऐंड अदर स्टोरीज' (1950) से अंधविश्वास पर कटाक्ष करने की शुरुआत की थी। वे जिंदगी भर नास्तिक रहे और कलम से इसका समर्थन भी करते रहे। उन्होंने वकालत भी की और लंदन उच्चायोग में भी काम किया। 

महावीर प्रसाद द्विवेदी शतकोत्तर स्वर्ण जयंती संगोष्ठी का आयोजन

मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग तथा महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकैडमी के संयुक्त प्रयास से आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी शतकोत्तर स्वर्ण जयंती संगोष्ठी का आयोजन 18 और 19 मार्च को संपन्न हुआ। हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विषय प्रवर्तन किया। उद्  घाटन सत्र में हिंदी की प्रख्यात लेखिका श्रीमती चित्रा मुदगल ने आचार्य द्विवेदी के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करते हुए उनके भाषिक अवदान की अहमियत बताई। महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकैडमी के कार्याध्यक्ष डॉ. दामोदर खडसे ने अकैडमी की गतिविधियों की परिचय देते हुए आचार्य द्विवेदी के साहित्यक अवदान पर प्रकाश डाला। 
प्रख्यात आलोचक डॉ. देवेंद्र चौबे ने अपने बीज भाषण में साहित्य में आचार्य द्विवेदी की महत्ता को स्पष्ट किया। मुंबई विश्वविद्यालय के उप कुलपति डॉ. नरेश चंद्र ने प्रतिभागी विद्ववानों का स्वागत किया। उद्
  घाटन व्याख्यान में प्रख्यात चिंतक डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय ने आचार्य द्विवेदी के समग्र अवदान पर सार्थक एवं विचारोत्तेजक वक्तव्य दिया। कुल छह सत्रों में संपन्न हुए इस आयोजन में आचार्य द्विवेदी की काव्य दृष्टि, भाषिक चितंन, पत्रकारिता, नवजागरण तथा उनके व्यक्तित्व के अनछुए संदर्भों पर देश भर से आए विद्  वानों नें अपने शोध पत्रों के माध्यम से विचार व्यक्त किए। डॉ. योजना रावत, डॉ. श्रीराम परिहार, डॉ. के.एन. तिवारी, अनुराग त्रिपाठी, विश्वनाथ सचदेव, डॉ. हरिमोहन बुधौलीया, डॉ. कृपाशंकर चौबे, सुंदरचंद ठाकुर, प्रेम शुक्ल, डॉ. संजीव दुबे, डॉ. पांडेय शशिभूषण शीतांशु, डॉ. रवि भूषण, डॉ. मंजुल उपाध्याय, डॉ. चंद्रदेव कवडे, आदि विद्ववानो नें विभिन्न दृष्टि कोणों से आचार्य द्विवेदी के साहित्यक एंव सांस्कृतिक योगदान पर शोध परक विचार प्रस्तुत किए। मुंबई के डॉ. शतीश पांडेय, डॉ. जीतेंद्र पांडेय, डॉ. ऋषिकेश मिश्र, डॉ. सुजाता पाटील, डॉ. श्याम सुंदर पांडेय, ने भी शोध पत्र प्रस्तुत किए। हिंदी विभाग के डॉ. रतनकुमार पांडेय, डॉ. विष्णु सरवदे, डॉ माधव पंडित, डॉ. दत्तात्रय मुरुमकर, डॉ. हूबनाथ पांडेय, डॉ. बिनीता सहाय, डॉ. सचिन गपाट, प्रा.सुनील वल्वी आदि ने आयोजन को सफल वा सार्थक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।