शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ज्ञान मंडल, वर्धा

कुछ ठग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चों को वजीफा दिलाने के बहाने सरकारी तिजोरी से कई हजार करोड़ रुपये इसलिए निकालने में सफल हो गए, क्योंकि वजीफा देने से पहले जिन कागजातों के वेरिफकेशन की जरूरत थी, वे वेरिफाई किए ही नहीं गए। गडचिरौली पुलिस ने इस केस में अब तक पांच लोगों को गिरफ्तार किया है, पर विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि इस केस में आदिवासी प्रकल्प व समाज कल्याण विभाग के ही कम से कम 100 सरकारी कर्मचारी व अधिकारी भी पुलिस जांच से बच नहीं सकते।
टेक्निकल कोर्स के बहाने हुए इस एजुकेशन घोटाले की शुरूआत सन 2010-11 से हुई। उस साल राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, ज्ञान मंडल, वर्धा वालों ने पूरे महाराष्ट्र के 28 जिलों में 36 स्टडी सेंटर खोले थे। स्टडी सेंटर की यह संख्या सन 2011-12 में बढ़कर 111, जबकि सन 2012-13 में 252 हो गई। सबसे ज्यादा 24 स्टडी सेंटर नागपुर में खोले गए। धुले व जलगांव में इनकी संख्या 21 रखी गई, जबकि बुलढाना व चंद्रपुर में 20-20 स्टडी सेंटर बनाए गए। आकोला में 15 और अमरावती में भी 19 स्टडी सेंटर अस्तित्व में दिखाए गए। कई छोटे शहरों में 10 से कम भी स्टडी सेंटर खोले गए।

राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, ज्ञान मंडल, वर्धा वालों ने गडचिरौली पुलिस से जो दावा किया, उसके मुताबिक, चूंकि सन 2013 -14 के टेक्निकल कोर्स के लिए उन्हें बहुत देर से परमिशन मिली थी, इसलिए उन्होंने न तो किसी बच्चे को इस साल किसी भी स्टडी सेंटर में इनरोल किया और न ही उनकी परीक्षा ली गई, पर एनबीटी को विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि सन 2013-14 में 9 हजार से ज्यादा बच्चों के नाम पर करोड़ों रुपये निकाल लिए गए।
एक सूत्र के अनुसार, महाराष्ट्र में 29 ट्राइबल प्रॉजेक्ट हैं। सन 2013-14 में इन 29 में से 15 ट्राइबल प्रॉजेक्ट के तहत 89 स्टडी सेंटर में 5483 बच्चों को इनरोल किया गया और आदिवासी प्रकल्प विभाग की तरफ से 2282 बच्चों को कागज पर स्कॉलरशिप दी गई दिखाई गई। इसी तरह समाज कल्याण विभाग के दायरे में आने वाले 13 जिलों के 113 स्टडी सेंटर में 11 हजार 273 बच्चों को इनरोल किया गया और 6925 बच्चों को स्कॉलरशिप दिए जाने के फर्जी कागज तैयार किए गए। यदि कुल हिसाब को देखें, तो सन 2013-14 में कुल 202 स्टडी सेंटरों में 16 हजार 756 बच्चों का प्रवेश दिखाया गया और दावा किया गया कि 9207 बच्चों के नाम पर स्कॉलरशिप के बहाने करोड़ों रुपया हड़प लिया गया। अलग-अलग कोर्स की अलग-अलग फीस होती है, जो न्यूनतम 19 हजार 700 रुपये से शुरू होकर अधिकतम 49 हजार 500 तक बैठती है।
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ज्ञान मंडल, वर्धा का कहना है कि उन्होंने सन 2013-14 में जब किसी भी स्टडी सेंटर में किसी भी स्टूडेंट को इनरोल ही नहीं किया, तो सवाल यह है कि 16 हजार 756 बच्चों को ऐडमिशन किसने दिया और फिर 9207 बच्चों की स्कॉलरशिप किस आधार पर आदिवासी प्रकल्प विभाग व समाज कल्याण विभाग से निकाली गई। ये स्कॉलरशिप दोनों ही सरकारी विभागों की महाराष्ट्र की 28 ब्रांच से बांटी गई। नियम यह है कि कोई भी स्कॉलरशिप देने से पहले उससे जुड़े कागजातों का वेरिफकेशन होना चाहिए। चूंकि ऐसा हुआ नहीं, इसलिए साफ है कि इन 28 ब्रांच में बैठे सरकारी कर्मचारी इस घोटाले में गले-गले तक शामिल थे।
एक अधिकारी का कहना है कि यदि हर ब्रांच से 4 सरकारी कर्मचारियों को इस घोटाले के लिए जिम्मेदार माना जाए, तो यह संख्या 100 से ऊपर पहुंचती है। चूंकि स्कॉलरशिप की यह राशि केंद्र सरकार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चों को राज्य सरकार के मार्फत भेजती है, इसलिए सुपरवाइज अथॉरिटी होने के नाते इन दोनों सरकारी विभागों से जुड़े बड़े अधिकारी, यहां तक पूर्व मंत्री भी अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते। इसलिए आने वाले दिनों में पुलिस इन सभी लोगों का स्टेटमेंट लेने वाली है और संभव है कई को सलाखों के पीछे भी पहुंचा दे। महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि उन्होंने बच्चों को ऑनइलाइन स्कॉलरशिप दी और ठगों ने उसे बहुत चतुराई से ठग लिया। पर सवाल यह है कि ऑनलाइन स्कॉलरशिप बच्चों के अकांउट में सीधे जानी चाहिए थी। चूंकि ऐसा हुआ नहीं, तो इसका जिम्मेदार कौन है।

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

राष्ट्रभाषा प्रचार समिति को पुलिस ने भेजा नोटिस

करोड़ों रुपये के एजुकेशन घोटाले में जांच के घेरे में आई राष्ट्रभाषा प्रचार समिति को पुलिस ने नोटिस भेजा है। गड़चिरौली क्राइम ब्रांच के प्रभारी इंस्पेक्टर रवींद्र पाटील ने सोमवार को एनबीटी को यह जानकारी दी। श्री पाटील ने कहा कि उनकी अब तक की जांच में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति से जुड़े लोगों की भूमिका सवालों के घेरे में है इसलिए पुलिस ने इस केस ने उन्हें नोटिस भेजा है। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति से जुड़े जिम्मेदार लोगों के खिलाफ पुलिस का ऐक्शन उनसे आगे की पूछताछ के बाद लिया जाएगा।
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति पर पुलिस का आरोप है कि उसने यूजीसी से जिन टेक्निकल कोर्स की परमिशन पांच साल के लिए मांगी थी, उनकी फ्रेंजाइजी उसने राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ज्ञान मंडल को दे दी थी। ऐसा करना अवैध है। पुलिस राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के पदाधिकारियों के अलावा ज्ञान मंडल और इंडियन नॉलेज कार्पोरेशन के कुछ लोगों से भी पूछताछ करनेवाली है। इस केस में अब तक पुलिस पांच लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। रवींद्र पाटील के अनुसार, कुछ और अहम गिरफ्तारियों के लिए महाराष्ट्र के अलग-अलग शहरों में पुलिस की टीमें भेजी गई हैं।

पुलिस की जांच में अब तक एक पूर्व मंत्री और एक पॉवरफुल महिला के बेहद करीबी व्यक्ति का नाम भी सामने आया है, पर गडचिरौली पुलिस ने अभी इस बारे में पत्ते नहीं खोले हैं कि इन लोगों से वह कब पूछताछ करेगी। कई लोगों का मानना है कि राज्य सरकार संभव है यह केस स्टेट सीआईडी को ट्रांसफर कर दे।