मंगलवार, 15 सितंबर 2009

हिन्दी मठाधीशों को प्रणाम करता हूं

हिन्दी को राजभाषा के रूप में अपनाना चाहिये, केवल दिवस मनाने से कोई अर्थ नहीं, अब समय आ गया है कि सरकारी दफ्तरों से हिन्दी अफसर नाम का मठाधीश हटा दिया जाए और हिन्दी को अपने आप फलने फूलने दिया जाए ।
भारत को आजाद हुए 63 साल बीत गए, कई सरकार आई और कई गई, वही ढाक के तीन पात, भारत को अभी तक अपनी भाषा नहीं मिल पाई ।सारे भारत में केन्द्रीय सरकारी कार्यालयों मे राजभाषा सप्ताह, राजभाषा दिवस, और यहां तक कि राजभाषा माह मनाए जा रहे है । वही पुरानी ढर्रे की प्रतियोगिताएं, वही पुराने संदेश, और वही पुराने ढंग । न कुछ बदला है और न ही कुछ बदलेगा । हिन्दी विभाग में बैठक हिन्दी अधिकारी वही पुराने ढंग से अपने अपने राग अलापते रहेंगे और एक प्रतीकात्मक कार्य अपने ढंग से करते रहेगे ।
आज के बदलते युग में वैश्विक सोच, उसे कार्यान्वन करने के लिए उपयुक्त ज्ञान की आवश्यकता है जो कि आज के तथाकथित हिन्दी अफसरों के पास नहीं है बहुत से मेरे साथी है जिन्हे आज भी कंप्यूटर चलाना नहीं आता और इस 14 सितम्बर 2009 को उन्हें इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार मिल गया है । मैं इस प्रकार के हिन्दी मठाधीशों को प्रणाम करता हूं और भगवान से प्रार्थना करता हूं कि मेरे भारत को इस प्रकार के मठाधीशों से बचाए ।

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