सोमवार, 16 मई 2011

राजभाषा के रूप में हिन्दी की दुगर्ति

पिछले दिनों संसदीय राजभाषा समिति ने मुंबई सहित अन्य देश के नगरों में राजभाषा के रूप में हिन्दी का जायजा लिया जिसमें समिति के माननीय उपाध्यक्ष श्री सत्यबृत चतुर्वेदी जी भी पधारे और उन्होंने कार्यालयाध्यक्षों को लम्बा चौडा भाषण दिया तथा बडे कॅनवास की बात कहते हुए अधिक से अधिक काम हिन्दी में करने की सलाह दी । यह तो सम्माननीय है कि देश के सांसद भी इस प्रकार की समितियों में आकर फाइव स्टार होटल में रहकर अपने घर में अंग्रेजी के वर्चस्व को पनपते देखकर भी उन नौकरशाहों को भाषा का संदेश देते है जिन्होंने अपनी शिक्षा तथा सारी नौकरी अंग्रेजी के सहारे कर ली है । मैं नहीं मानता कि एक दिन के दौरे से वह भी फाइव स्टार होटल में रहकर तथा केवल भाषण के सहारे देश में हिन्दी आ सकती है , हाँ कुछ बढिया तथा मंहगे उपहार प्राप्त करने का यह अच्छा तरीका है । भाषा एक एैसा मसला है जो इस देश में राजनैतिक कारणों से उपजा हुआ मसला है । यदि इन नेताओं में जरा सी भी शर्म है तो वे इस बात को संसद में उठाएं , अपने प्रधान मंत्री जी से हिन्दी मे काम करने के लिए राजी करें , माननीया सोनिया जी भी अपना सारा काम जब हिन्दी में करेंगी तो सारा हिन्दुस्तान उनका अनुकरण करेगा परन्तु जब तक यह मामला केवल भाषण तथा आदेश तक रहेगा , राजभाषा के रूप में हिन्दी की दुगर्ति होती रहेगी यह मेरा विश्वास है ।