सोमवार, 7 अप्रैल 2014

अतिथि पंडित की मातृ भाषा

एक बार राजा कृष्णचंद्र की सभा में बाहर से आए एक पंडित पधारे। वह उस समय के भारत की अधिकांश प्रचलित भाषाएं, यहां तक कि संस्कृत, अरबी, फारसी आदि प्राचीन भाषाओं में धाराप्रवाह बोलते हुए अपना परिचय देने लगे। पंडित जी द्वारा कई भाषाओं में बोलने पर राजा कृष्णचंद्र ने अपने दरबारियों की ओर संशय भरी दृष्टि से देखा। लेकिन दरबारी यह अनुमान न लगा सके कि दरबार में पधारे पंडित जी की मातृ भाषा क्या है?
राजा कृष्णचंद्र ने गोपाल भांड से पूछा, 'क्या तुम कई भाषाओं के ज्ञाता अतिथि पंडित की मातृ भाषा बता सकते हो?' गोपाल भांड ने बड़ी विनम्रता के साथ कहा,' राजन, मैं तो भाषाओं का जानकार हूं नहीं, किंतु यदि मुझे अपने हिसाब से पता करने की आजादी दी जाए तो मैं यह काम कर सकता हूं।' राजा कृष्णचंद्र ने गोपाल को पता लगाने के लिए अपनी तरह आजादी लेने की स्वीकृति दे दी।
दरबार की सभा होने के बाद सभी दरबारी सीढ़ियेां से उतर रहे थे। गोपाल भांड ने तभी अतिथि पंडित को एक ऐसा धक्का दिया कि वे बेचारे हठात अपनी मातृ भाषा में गाली देते हुए नीचे आ पहुंचे। दरबारियों ने चकित होकर पूछा, 'इस व्यवहार का क्या अर्थ है?'
गोपाल भांड ने विनम्रता से कहा, 'देखिए, तोते को आप राम-राम और राधे-श्याम सिखाया करते हैं। वह भी हमेशा राम-नाम या राधे-श्याम सुनाया करता है। किंतु जब बिल्ली आकर उसे दबोचना चाहती है, तो उसके मुख से टें-टें के सिवाय और कुछ नहीं निकलता। आराम के समय सब भाषाएं चल जाती हैं, किंतु आफत में मातृ भाषा ही काम देती है।