सोमवार, 6 अप्रैल 2009

वोट उसी को देंगे जो हमारी भाषा केलिए काम करेगा ।

राजभाषा के रूप में हिन्दी के प्रचार प्रसार की बाते करना अब एक नई राजनैतिक चाल दिखाई पड रही है । भारत को आजाद हुए ६० वर्ष से अधिक का समय बीत गया लेकिन किसी ने इस बात पर विचार नहीं किया कि हमारे देश की भी एक भाषा होनी चाहिये । हांलांकि हमारे विदेश मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने यह माना है कि उनके प्रधान मंत्री न बन पाने को एक कारण यह भी रहा कि उन्हे अच्छी तरह से हिन्दी नहीं आती । आज सभी मंत्रालयों तथा विभागों में हिन्दी के पद है परन्तु हिन्दी कहीं भी नहीं है सभी जगह केवल अंग्रेजी का बोलबाला दिखाई देता है और धडल्ले से अंग्रेजी में भारत सरकार का काम चल रहा है अतः गरीब अपनी रोजी रोटी में से पेट काटकर अपने बच्चों को अंग्रेजी की शिक्षा दिलाने पर मजबूर है यह बात किसी के पल्ले नहीं पडती, आवश्यकता है इस बात को समझने की और उसपर ठोस कार्रवाई करने की । आइये हम सब यह मन बना लें कि वोट उसी को देंगे जो हमारी भाषा केलिए काम करेगा ।

1 टिप्पणी:

Anil Kumar ने कहा…

हिंदी का नगण्य ज्ञान होने के बावजूद देवेगौड़ा भी तो प्रधानमंत्री बने थे! भाषा एक मुद्दा है - गरीबी, अशिक्षा, आधारभूत सुविधायें भी मुद्दे हैं।