सोमवार, 30 अगस्त 2010

'अंग्रेजी हटाओ' के झंडाबरदारों ने कहा कि यह भाषा हमें अपनी ही संस्कृति से काटकर अलग कर रही है।

इस साल 25 अक्टूबर को यूपी में एक मंदिर का उद्घाटन होने वाला है। यह तो कोई खास बात नहीं है, लेकिन जिस देवी का यह मंदिर है, वही उसे खास बनाता है। यह अंग्रेजी देवी को समर्पित है और उद्घाटन का दिन वही है, जिस दिन कुख्यात या विख्यात थॉमस बेबिंग्टन मैकॉले के जन्म की 210 वीं वर्षगांठ है। मैकॉले को आप किस श्रेणी में रखते हैं, यह आपके नजरिए पर निर्भर करता है। दस्तावेजों में दर्ज यह है कि उसने भारत में अंग्रेजी की पढ़ाई शुरू कराई ताकि ब्राउन क्लर्कों की एक ऐसी फौज तैयार की जा सके, जो अंग्रेजी हुकूमत के कामकाज को बखूबी संभाल सके। ब्रिटेन से अंग्रेज बाबुओं को लाने में खर्चा अधिक लगता था। मैकॉले की उस कोशिश को आधुनिक बीपीओ इंडस्ट्री का पूर्वावतार कह सकते हैं। जैसा कि दूसरी चीजों के साथ हुआ, इस बीपीओ के चक्कर में आई अंग्रेजी के साथ भी सामाजिक-सांस्कृतिक विवाद शुरू हुए। मुलायम सिंह जैसे 'अंग्रेजी हटाओ' के झंडाबरदारों ने कहा कि यह भाषा हमें अपनी ही संस्कृति से काटकर अलग कर रही है। उनकी बात में दम है। हालांकि उन्होंने अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों में ही पढ़ाया -देश में भी और विदेश में भी। अंग्रेजी के समर्थकों में आजकल एक प्रमुख नाम है सुश्री मायावती का। वह आंबेडकर की इस लाइन का समर्थन करती हैं कि दलितों का उद्धार पश्चिमी ढंग की शिक्षा-दीक्षा से ही संभव होगा। उनका मानना है कि विश्व की व्यापारिक भाषा का ज्ञान भारत को दुनिया के दूसरे देशों पर बढ़त देता है और देखिए कि चीन किस तरह से अपनी आबादी को अंग्रेजी सिखाने के लिए बेचैन हो रहा है। इस नजर से देखें तो मैकॉले ने हमें एक वरदान ही दिया था। और ऐसे हर वरदान का कोई स्मारक तो बनना ही चाहिए। इसलिए आइए अंग्रेजी का एक मंदिर बना ही लें, वह भी हिंदी के हृदय प्रदेश में। लेकिन इसका उद्घाटन मैकॉले के जन्मदिन पर क्यों हो? जो उसके द्वारा और बाकी ब्रिटिशर्स द्वारा किए जाने वाले दमन और शोषण की ही याद दिलाए। इस मंदिर का उद्घाटन हम भारत के स्वाधीनता दिवस 15 अगस्त के दिन भी कर सकते थे। असल में समस्या यह है कि हम आज भी अंग्रेजी को एक विदेशी भाषा के रूप में देखते हैं। एक बोझ, जो ब्रिटिशर्स ने हम पर लाद दिया। हमें खुद को इस सोच से मुक्त करना चाहिए और इसका भारतीयकरण कर लेना चाहिए। जैसे क्रिकेट कभी अंग्रेजों का खेल था, लेकिन आईपीएल ने इसका पूरी तरह से भारतीयकरण कर दिया है। रोजमर्रा की बातचीत , साहित्य , विज्ञापनों और मनोरंजन के क्षेत्र में हमने अंग्रेजी का भी काफी भारतीयकरण कर दिया है। निश्चित रूप से ऐसा करने वाले सिर्फ हम ही नहीं हैं। अमेरिकी इंग्लिश ने अपनी शब्द संपदा और स्पेलिंग के साथ बहुत पहले ही खुद को स्वाधीन बना लिया था। इसी तरह ऑस्टे्रलियाई इंग्लिश अलग है , जिसे इसके सानुनासिक उच्चारण की वजह से स्ट्राइन कहा जाने लगा है। इसी तरह न्यूजीलैंड की अंग्रेजी अलग है और जमैका की अलग। सही बात यह है कि इंग्लिश नाम की भाषा बहुत पहले पुरातन पड़ चुकी है। अंतरराष्ट्रीय संवाद में उसकी संभ्रांत शैली और बारीक अर्थों का कोई मतलब नहीं रह गया है और न ही स्थानीय अभिव्यक्तियों के जुड़ने से उसका प्रदूषण होता है। इसलिए आईपीएल की तरह हमारी अपनी अंग्रेजी को भी बस एक ऐसी ही ब्रांडिंग की जरूरत है , जो हमारी ग्लोबल जरूरतों को भी पूरा करे और जिसमें हमारे भारतीय योगदान के लिए भी पर्याप्त जगह हो। भारत में संभवत : किसी भी अन्य देश से ज्यादा अंग्रेजी भाषी लोग हैं। हमें अंग्रेजों ने आजादी नहीं दी थी। हमने उनसे आजादी ले ली थी। इसी तरह , इतने वर्षों में हमने अंग्रेजी हासिल कर ली है - नगालैंड जैसे हमारे राज्यों की यह राजकीय भाषा है। इसलिए आइए अंग्रेजी भगाएं और एक नई भाषा की ब्रांडिंग करें अपनी अंतरराष्ट्रीय जरूरतों के लिए , जिसे हम अंतर्बोली कह कर बुला सकते हैं।

बुधवार, 25 अगस्त 2010

भारी बारिश से मध्य दिल्ली के कई इलाकों में जल जमाव


दिल्ली में बुधवार सुबह हुई तेज वर्षा से कई स्थानों पर पानी भरने के साथ ही सड़क जाम की समस्या फिर सामने आ गई। इससे अपने दफ्तर जाने के लिए निकले लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। भारी बारिश से मध्य दिल्ली के कई इलाकों में जल जमाव हो गया है। कुछ स्थानों पर तो दो फीट तक पानी जमा हो गया। इसके कारण आश्रम, बाहरी रिंग रोड, धौलाकुआं, प्रगति मैदान, राजघाट, डीएनडी, अजमेरी गेट जैसे स्थानों पर भारी जाम लग गया है। उधर यमुना नदी खतरे के निशान से करीब एक फीट ऊपर बह रही है। बाढ़ के खतरे को देखते हुए यमुना में गिरने वाले शहर के सभी नालों को बंद कर दिया गया है।