मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

साहित्य अकादमी ने जिन कवियों लेखकों को आमंत्रित किया, उन्हें पत्र हिन्दी अथवा क्षेत्रीय भाषाओं की जगह अंग्रेजी में लिख भेजा।

कितना कठिन होता है, जब हमें अपनी ही भाषा से दूर कर दिया जाए। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन काम करने वाले साहित्य अकादमी ने। पिछले महीने अकादमी के क्षेत्रीय कार्यालय, मुम्बई द्वारा गोवा में हिन्दी पखवाड़ा गतिविधि के तहत कार्यक्रम आयोजित हुए। इसके लिए साहित्य अकादमी ने जिन कवियों लेखकों को आमंत्रित किया, उन्हें पत्र हिन्दी अथवा क्षेत्रीय भाषाओं की जगह अंग्रेजी में लिख भेजा। ऐसा ही एक आमंत्रण पत्र सिंधु दुर्ग की कवियित्री प्रतीक्षा संदीप देवलते को भी भेजा गया। अंग्रेजी में लिखे गए पत्र में प्रतीक्षा को गोवा में काव्यपाठ के लिए आमंत्रित किया गया था। हालांकि, हिंदी पखवाड़े के लिए अंग्रेजी में लिखा आमंत्रण पाकर प्रतीक्षा ने विरोध स्वरूप कार्यक्रम में भाग नहीं लिया। साहित्य अकादमी की इस कारगुजारी से आहत देवलते ने एनबीटी को बताया कि राष्ट्रभाषा एवं राजभाषा के साथ ऐसा मजाक आखिर कब तक चलेगा। अंग्रेजी में लिखा आमंत्रण पत्र पाकर मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा और मैंने कार्यक्रम में शामिल न होना ही उचित समझा।

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