बुधवार, 23 सितंबर 2009

झूठे आंकडो के सहारे आखिर कब तक टिकोगे

वैसे तो यह सर्वविदित है कि भारत सरकार में झूटे आंकडे देकर ही आम आदमी को तसल्ली दी जाती है । सादगी का ढोंग रेल यात्रा करके ही किया जाता है परन्तु वास्तव में यदि पूरे खर्च का आकलन किया जाए तो वह हवाई यात्रा से कम ही रहेगा ।
राजभाषा के रूप में हिन्दी की भी कमाबेस वही हालत है, आंकडे बनाए जाते है और तिमाही रिपोर्ट मे दे दिए जाते है । हर बार यही कहा जाता है कि उच्च अधिकारी दस्तखत करने से पहले आंकडों की जांच कर ले, लेकिन फुर्सत किसे है इसकी ।
आंकडो के बल पर राजभाषा शील्ड, इंदिरा गांधी राजभाषा शील्ड प्राप्त करने के समाचार आ रहे है वे कार्यालय भी इस दौड में आ गए है जिनके यहां राजभाषा के रूप में हिन्दी का कुछ भी काम नहीं होता , फिर विश्वसनीयता कहां है और किसे फिक्र है इस प्रकार की विश्वसनीयता को बनाए रखने की क्योंकि जब काम बिना जांच के ही पूरा हो रहा है और बिना किए ही शील्ड मिल रहे है तो फिर काम क्यों किया जाए । कहते हैं कि यदि काम किया जाएगा तो गलती भी होगी और गलती होगी तो खिंचाई भी होगी । अतः कोई भी राजभाषा अधिकारी नहीं चाहता कि इस प्रकार के पचडे में पडे, उसे तो अपने उच्च अधिकारी को प्रसन्न रखना है और उसके लिए चाहिये एक शील्ड । सो झूटे आंकडों के आधार पर प्राप्त कर लेता है और साल भर आराम करता है या कहानी , लेख और कविता रचकर अपनी विद्वता का प्रदर्शन करता है । मैं तहेदिल से ऐसे अधिकारियो को बधाई देता हूं और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं ।

कोई टिप्पणी नहीं: