सोमवार, 21 सितंबर 2015

रोमन लिपि को अपनाकर हम हिंदी को बचा सकते हैं

'हिंदी का महत्व बनाम अंग्रेजी' हमारे समाज की एक स्थायी बहस है। बड़े पैमाने पर देखें तो इसका विस्तार 'कोई भी देसी भाषा बनाम अंग्रेजी' की बहस तक किया जा सकता है, साथ में यह पुछल्ला भी जोड़ा जा सकता है कि किस तरह अंग्रेजी स्थानीय भाषाओं को खत्म करती जा रही है। यह राजनीतिक रूप से संवेदनशील मसला है। हर सरकार खुद को अन्य किसी भी सरकार से ज्यादा हिंदी हितैषी साबित करने पर आमादा है। इसी का नतीजा है कि बीच-बीच में आपको हिंदी उन्नयन अभियानों के दर्शन होते रहते हैं। इसके तहत सरकारी दफ्तर अनिवार्य रूप से अपने सारे सर्कुलर हिंदी में जारी करते हैं और ज्यादातर सरकारी स्कूल हिंदी मीडियम में ही डटे रहते हैं।

इस बीच अंग्रेजी बिना किसी उन्नयन अभियान के ही अभूतपूर्व गति से आगे बढ़ती जा रही है। वजह यह कि अंग्रेजी लोगों को बेहतर करियर की उम्मीद बंधाती है। इससे समाज में उनका रुतबा बढ़ता है। सूचना और मनोरंजन की एक बिल्कुल नई दुनिया उनके सामने खुल जाती है, और टेक्नॉलजी तक पहुंच भी बढ़ती है। हकीकत यही है कि अंग्रेजी की सामान्य जानकारी के बिना आप आज एक मोबाइल फोन या बेसिक मेसेजिंग ऐप्स का भी इस्तेमाल नहीं कर सकते।
हिंदी प्रेमियों का दुख-
बहुत से हिंदी प्रेमी और शुद्धतावादी आज के नए समाज से दुखी हैं, जहां युवा अपनी मातृभाषा को दरकिनार कर जल्द से जल्द अंग्रेजी की दुनिया में जाने को आतुर हैं। लेकिन हिंदी थोपने की जितनी कोशिश वे करते हैं, युवा उससे कहीं ज्यादा विरोध करते हैं। ऐसे में एक हिंदी प्रेमी (इसमें मैं भी शामिल हूं) क्या करे? और बाकी तमाम लोग ऐसा क्या करें कि हिंदी एक बोझ या बाध्यता न लगे? इसका समाधान यह है कि रोमन हिंदी अपनाई जाए। रोमन हिंदी हिंगलिश नहीं है। यह देवनागरी की बजाय ऐंग्लो-सैक्सन लिपि में लिखी हुई हिंदी भाषा है। उदाहरण के लिए 'आप कैसे हैं' को इस तरह लिखा जाए: 'aap kaise hain?'
ऐसा करना जरूरी क्यों है? ऐंग्लो सैक्सन लिपि व्यापक प्रचलन में है। यह कंप्यूटर के कीबोर्ड और मोबाइल की टच स्क्रीन में इस्तेमाल की जाती है। यह काफी लोकप्रिय है, खासकर युवाओं में। आज करोड़ों भारतीय व्हाट्सऐप का प्रयोग करते हैं, जहां तकरीबन सारी बातचीत हिंदी में होती है, लेकिन इसकी लिपि रोमन हुआ करती है। जी हां, देवनागरी लिपि डाउनलोड करने की सुविधा भी है, पर शायद ही कोई उसे प्रयोग में लाता हो। कई देवनागरी कीबोर्ड फोन में लिप्यांतरण करते हैं। यानी आप पहले रोमन में हिंदी टाइप करते हैं, फिर एक सॉफ्टवेयर उसका हिंदी टेक्स्ट तैयार करता है। जाहिर है, यूजर मूल रूप से रोमन हिंदी का ही इस्तेमाल कर रहा है।
रोमन हिंदी बॉलिवुड के पोस्टरों और विज्ञापनों में पहले ही प्रचलित हो चुकी है। ज्यादातर हिंदी फिल्मों के स्क्रीनप्ले रोमन हिंदी में लिखे जा रहे हैं। किसी भी बड़े शहर में घूमने निकलिए, यह मुमकिन नहीं कि रोमन लिपि में लिखे हिंदी कैप्शनों वाली होर्डिंग्स न दिखें। मगर, हिंदी के विद्वान, परंपरावादी और इसे बचाने की मुहिम में लगे लोग या तो इन बातों से अनजान हैं या बिल्कुल उदासीन। वे हिंदी भाषा और उसकी लिपि में कोई अंतर नहीं समझते। लोग आज भी हिंदी से प्यार करते हैं। बस आज की टेक्नॉलजी-आधारित जिंदगी में उस लिपि को शामिल करना उनके लिए मुश्किल हो गया है।
रोमन लिपि को अपनाकर हम हिंदी को बचा सकते हैं। देश की एकता के लिहाज से भी यह बड़ा कदम होगा क्योंकि इससे हिंदी और अंग्रेजी बोलने वाले एक-दूसरे के करीब आएंगे। तय है कि हिंदी के शुद्धतावादी यह सुझाव पसंद नहीं करेंगे। वे हिंदी को बिल्कुल उसी रूप में बनाए रखना चाहते हैं जैसी कि यह थी। मगर, वे भूल जाते हैं कि भाषा वक्त के साथ विकसित होती है। और आज वैश्वीकरण के दौर में अगर हिंदी एक ग्लोबल स्क्रिप्ट अपनाती है तो यह उसके लिए कई तरह से फायदेमंद होगा। इससे दुनिया भर में बहुत सारे लोग हिंदी सीखने को प्रोत्साहित होंगे। कई उर्दू शायर अपनी रचनाएं पारंपरिक उर्दू के बजाय देवनागरी में प्रकाशित कराते रहे हैं। ऐसा वे बड़े स्तर पर अपनी पहुंच बनाने के लिए किया करते हैं। लेकिन यह बीते वक्त की बात हो चुकी है। आज के समय की मांग यह है कि हिंदी को एक नए रूप में अपडेट किया जाए। इसकी शुरुआत हम सरकारी सूचनाओं और सार्वजनिक संकेतों को रोमन हिंदी में लाकर कर सकते हैं, ताकि लोगों में इसकी प्रतिक्रिया देखी जा सके।

किनारे पड़ने का खतरा-

संभावना यह भी है कि रोमन हिंदी प्रिंट मीडिया और किताबों के लिए एक नया उद्योग ही खड़ा कर दे। लाखों लोग इसका इस्तेमाल पहले से करते आ रहे हैं लेकिन अब तक किसी ने इसकी नई संभावनाओं के बारे में सोचा नहीं था। वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य लिपि हिंदी भाषा के लिए भी उम्दा साबित होगी। ऐसा न हुआ तो हिंदी के लिए, अंग्रेजी के हमले के चलते किनारे पड़ जाने का खतरा बना हुआ है। दरअसल, एक भाषा को हमें शुद्धता के नजरिए से नहीं देखना चाहिए। उसे समय के साथ चलना और विकसित होना होगा। waqt ke sath badalna zaroori hai. मतलब आप समझ ही गए होंगे।

शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

हिन्दी के श्रद्धांजलि दिवस पर विशेष

हिन्दी के श्रद्धांजलि दिवस पर विशेष
हिन्दी के श्रद्धांजलि दिवस पर विशेष
हिन्दी नहीं .... समस्त भारतीय भाषाएं
Ø सभी भारतीय भाषाओं का स्तर समान हो...
Ø 343 (1) में संशोधन हो हिन्दी की जगह समस्त भारतीय भाषाओं को समान स्थान दिया जाए । इससे अखिल भारतीय हिन्दुस्तानी भाषा का स्वतः विकास होगा ।
Ø 343  (2) को डिलीट किया जाए....
Ø 348 में अंग्रेजी को कट करके भारतीय भाषाओं को पेस्ट किया जाए
Ø भारतीय भाषाओं को उदार बना कर विदेशी भाषाओं से आये शब्दों को भारतीय भाषाओं में समाहित किया जाए..
Ø हिन्दी को भारत की देवनागरी के अलावा भारतीय भाषाओं को लिखने के लिए अन्य लिपीयों में भी लिखा जाए। इसी प्रकार तमाम भारतीय भाषाओं को देवनागरी में लिखने की परम्परा का विकास किया जाए ।
जरा बताएं कि लिपी का भेद मिट जाए तो जरा तो हिन्दी और उर्दू मे क्या भेद है ?

मंगलवार, 15 सितंबर 2015

टीचर ने हिदी न सुना पाने पर बच्ची के बाल ही पूरी तरह नोंचते हुए उखाड़ दिए

यहां के स्कूल में एक बच्ची के साथ उसकी शिक्षिका ने इंसानियत को शर्मसार करने वाला व्यवहार किया है। टीचर ने हिदी न सुना पाने पर बच्ची के बाल ही पूरी तरह नोंचते हुए उखाड़ दिए। मामले में उपायुक्त, जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी को शिकायत दी गई है। 
रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना बलौरी गांव स्थित सरकारी प्राइमरी स्कूल की है। यहां पर दूसरी कक्षा की एक छात्रा अंकिती के बालों को एक अध्यापिका ने हिदी न पढ़ने के कारण नोंचा, जिससे बालिका को सेक्टर-6 के सामान्य अस्पताल में दाखिल कराना पड़ा।
छात्रा अंकिती के पिता मलकीत सिह ने बताया कि उनकी सात वर्षीय बेटी बलौरी के सरकारी स्कूल में पढ़ती है। अध्यापिका सुनीता ने जब उसे हिदी पढ़ने के लिए कहा तो वह पढ़ नहीं पाई, जिससे खफा होकर उसने बच्ची के बाल जड़ से ही उखाड़ दिए।
वह अपनी बेटी को सेक्टर-6 के सामान्य अस्पताल लाए, जहां पर उसका उपचार किया गया। बाद में उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में जाकर इस घटना की जानकारी दी।

मामला उपायुक्त के संज्ञान में लाया गया, जिन्होंने तुरंत कार्रवाई करते हुए उनके घर दो सरकारी मुलाजिम भेजकर इसकी पूरी जानकारी ली। साथ ही तहसीलदार को भी अस्पताल में जांच के लिए भेजा। मलकीत सिह ने मांग की है कि अध्यापिका सुनीता के खिलाफ कार्रवाई की जाए।

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

इस हिन्‍दी प्रेमी ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी

हिन्‍दी के लिए हिन्‍दी के विद्वानों, भाषाविदों और सरकारों की कोशिशों के बीच आम आदमी का एक उदाहरण ऐसा भी है जो तकरीबन सालभर से इस मशाल को जलाए हुए है। बेटे को आंध्र प्रदेश के एक विश्वविद्यालय में प्रवेश दिलाने के लिए हिन्‍दी में पत्राचार किया, वहां से जवाब मिला कि हमारे यहां अंग्रेजी में ही पत्र व्यवहार होता है। हिन्‍दी का अनुवादक नहीं।
फिर क्या था बैतूल के इस हिन्‍दी प्रेमी ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी और आज लड़ाई इस मुकाम तक पहुंच गई है कि सभी सरकारी दफ्तरों को, चाहे वे दक्षिण के ही क्यों न हों, हिन्‍दी में जवाब देना पड़ेगा।
कहानी कुछ यूं है-बैतूल जिले के मुलतई के रहने वाले शंकरलाल पंवार के बेटे ने क्लेट के बाद आंध्र प्रदेश के दामोदरन संजीवनिया नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, विशाखापट्टनम में फरवरी माह में दाखिले की प्रक्रिया पूरी की। जब प्रवेश नहीं हुआ तो सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी।
पत्र हिन्‍दी में लिखा गया। विवि ने जानकारी देने की बजाय यह लिखा कि उनके यहां सारा पत्र व्यवहार अंग्रेजी में होता है। हिन्‍दी का अनुवादक नहीं है। पंवार ने इसकी शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय को की। पत्र गृह मंत्रालय को गया और वहां से उच्च शिक्षा विभाग के संयुक्त सचिव को फटकार लगाई गई। पत्र में कहा गया कि यह राजभाषा नियम का उल्लंघन है।
हिन्‍दी में चाहे किसी भी क्षेत्र से पत्र प्राप्त हो, किसी भी राज्य सरकार, व्यक्ति या केंद्र सरकार के कार्यालय से प्राप्त हो, केंद्र सरकार के कार्यालय से जवाब हिन्‍दी में ही जाएगा। ऐसा न होने की स्थिति में अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। 12 अगस्त को यह पत्र मानव संसाधन विकास मंत्रालय से संबंधित विभागों को भेजा गया।

पंवार के अनुसार, ऐसा होने से देश के सभी हिन्‍दी भाषियों को सूचना के अधिकार के तहत हिन्‍दी में जानकारी मिलने लगेगी। कोई भी संस्थान बहाना बनाने की स्थिति में नहीं होगा। आम आदमी की छोटी-छोटी ऐसी ही लड़ाइयों से भाषा बलवान होगी।

हंगरी की मारिया को असगर वजाहत से मिली हिंदी

तोमिओ मीजोकामी जापान के हैं, लेकिन जुबान पर हिन्‍दी ऐसे जैसे पड़ोस के हों। हिन्‍दी चिंतन भी है और चिंता भी। जीविका भी हिंदी और जलवा भी हिन्‍दी का ही देखना चाहते हैं। बाली उमर में हिन्‍दी से मुहब्बत हुई और पढ़ने से लेकर पढ़ाने तक का सफर हिन्‍दी में। 74 साल के हैं, लेकिन हिन्‍दी के लिए नौजवानों-सा जोश।
जापान में 600 छात्रों को हिन्‍दी सिखा-पढ़ा चुके हैं और 300 फिल्मों गीतों का जापानी में अनुवाद कर चुके हैं। सुनकर अचरज होगा, लेकिन सुन लीजिए...जिन शुभा मुद्गल का जादू हिंदुस्तानी संगीतप्रेमियों पर चलता है, उन्हें बचपन में जापानी में लोरी मीजोकामी ने सुनाई थी।
हिन्‍दी से इश्क भी इन्हें एक हिंदुस्तानी युवती का हुस्न देखकर हुआ। उनके शब्दों में वो 'परी थी। दसवीं जमात में पढ़ते थे। पार्क में बैठे थे। 'परी' आई और दीवाना करके चली गई। कहां गई पता नहीं, लेकिन हिंदी से प्रेम करना सिखा गई। उसी समय जापान में जवाहरलाल नेहरू आए। उनका भाषण सुना। ऑडियो आज भी रखा है मेरे पास। लगा जिस देश का पीएम इतना आदर्श है, वह देश और उस देश की भाषा कितनी अच्छी होगी। इस तरह हिन्‍दी के पीछे चल पड़ा। पढ़ाई की। वासेदा यूनिवर्सिटी से 1965 में हिन्‍दी में बीए कर डाला।
फिर भारत सरकार से ढाई सौ रुपए की छात्रवृत्ति लेकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एमए करने आ गया। यहां मैं जिसके घर में रहता था, वह बहुत नेक परिवार था। उनकी छोटी-सी बेटी शुभा को मैं जापानी में लोरी सुनाता था। वही बेटी जब बड़ी हुई तो संसार ने उसके सुर को शुभा मुद्गल के नाम से पहचाना। यह केवल एक संयोग था। तो आप पैदा कब हुए? '1941 में। इतिहास की दृष्टि से बहुत उथल-पुथल का साल था। दुखद ये था कि इसी साल रवींद्रनाथ टैगोर चले गए थे। हिंदुस्तानी साहित्यकारों से कितना जुड़ाव। है न!
हिन्‍दी को लेकर है दोहरा रवैया
हिन्‍दी पढ़ने और 30 साल तक हिंदी पढ़ाने के बाद अब मेरी हिंदी की उपासना चल रही है। दुखद यह है कि यहां हिन्‍दी को लेकर दिखावा ज्यादा है, जमीन पर काम कम। पीएम और विदेशमंत्री तो हिन्‍दी में बोलते हैं, लेकिन विदेश मंत्रालय के सारे अधिकारी अंग्रेजी में ही बात करते हैं। हिंदुस्तानी अपने रुतबे के लिए अंग्रेजी का इस्तेमाल करते हैं। अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाते हैं। सबसे पहले बच्चों को हिंदी स्कूलों में पढ़ाना शुरू करो, फिर हिन्‍दी की चिंता करो।
मैं शायद पिछले जन्म में भारतवासी था
इतना हिंदी प्रेम? शायद मैं पिछले जन्म में भारतीय रहा होऊंगा। तभी तो जब जापान में सारे लोग विदेशी भाषा के नाम पर अंग्रेजी सीख रहे थे मैंने भारतीय भाषा और भारत के बारे में जानने की ठानी। फिर हिंदुस्तान आ गया और यहां की संस्कृति में डूब गया। हम जैसे हिन्‍दी प्रेमियों की प्रबल इच्छा है कि हिन्‍दी संयुक्त राष्ट्र की भाषा सूची में शामिल हो, लेकिन इसके लिए दो-तिहाई बहुमत चाहिए। मुझे लगता है कि पाकिस्तान इसका विरोध कर सकता है। हमें इस दिशा में प्रयास करना चाहिए क्योंकि इससे हिन्‍दी की शक्ति का एहसास दुनिया को होगा।
हंगरी की मारिया को असगर वजाहत से मिली हिंदी
हंगरी की मारिया नेज्यैशी को हिन्‍दी के लेखक असगर वजाहत ने न केवल हिन्‍दी प्रेमी, बल्कि हिंदी की प्रोफेसर भी बना दिया। हर साल 40 बच्चों का बैच हंगरी में इनसे हिन्‍दी पढ़ता है। हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचंद पर इनकी पीएचडी है। डंके की चोट पर कहती हैं कि दृढ़ इच्छा शक्ति सीखने की क्षमता हो तो आदमी कोई भी भाषा सीख सकता है। मारिया ने चहक कर कहा, असगर साहब हमें हंगरी में हिंदी पढ़ाते थे। उनका अंदाज निराला था।

उनका नाटक ' जिन लाहौर नहीं देखा ते जनम्या ही नहीं देखा तो और भी मजा आया। उनके बहाने मैं हिन्‍दी के संसार में उतरी और हिन्‍दी ने मुझे अपना बनाया। जैसे मोदी जी कहते हैं कि चाय बेचते-बेचते मैं हिन्‍दी सीख गया, इसी तरह मैं भारत के ऑटो वालों से बात-बात कर-करके हिन्‍दी सीख गई। जब फिल्मों की बात चली तो हंसते हुए बोलीं, बूढ़ी हो गई हूं इसलिए पुरानी फिल्में ही पसंद हैं। उमराव जान का गाना अक्सर गुनगुनाती हूं-'दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए, बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए।

बुधवार, 9 सितंबर 2015

विश्व हिंदी सम्मेलन

विश्व हिंदी सम्मेलन की प्रदर्शनी में 400 साल पुरानी दुर्लभ पांडुलिपि देखने का सुनहरा मौका मिल रहा है। इस पांडुलिपि में 18 ग्रंथ शामिल हैं। इसमें गीता मुख्य है। खास बात यह है कि पांडुलिपि के 415 में से 24 पेज सोने के पानी से लिखे गए हैं। प्राकृतिक रंगों और सोने के पानी से छह दुर्लभ चित्र भी पांडुलिपि में उकेरे गए हैं।
इनमें पंचमुखी हनुमान और श्रीकृष्ण का विराट रूप शामिल है। हिंदी विवि के संस्कृत विभाग में पदस्थ डॉ. शीतांशु त्रिपाठी सम्मेलन के लिए विशेष तौर से ऐसी चुनिंदा पांडुलिपियों का संग्रह लेकर आए हैं। डॉ. त्रिपाठी ने बताया कार्बन डेटिंग से यह पता लगाया है कि पांडुलिपि 400 साल पुरानी है।

मुख्यमंत्री ने भी निरीक्षण के दौरान इस पांडुलिपि में खासी दिलचस्पी दिखाई। डॉ. त्रिपाठी से इसके बारे में जानकारी ली और पढ़ी भी। इसके अलावा, 520 साल पुरानी पांडुलिपि भी यहां प्रदर्शित की है। इसमें कालिदास की रघुवंश की व्याख्या की गई है।

हिन्दी को लेकर हीन भाव लाने की जरुरत नहीं

¨ हिन्दी को लेकर हीन भाव लाने की जरुरत नहीं है। अंग्रेजी का चाहे जितना वर्चस्व स्थापित हो रहा है, ¨ हिन्दी भी इसमें पूरी तरह से फलफूल रही है, क्योंकि आज अंग्रेजी में लिखने वाले लेखकों को हिन्दी ने अपनी ताकत का एहसास करा दिया है। इसके चलते आज अंग्रेजी की किताबों के साथ ही ¨ हिन्दी का वर्जन साथ-साथ आ रहा है।
आज अंग्रेजी के बहुत सारे लेखकों की अनुवादित होकर ¨ हिन्दी में किताबें आ रही हैं, तो दूसरी ओर ¨ हिन्दी के लेखकों की किताबें अंग्रेजी में अनुवाद होकर बिक रही हैं। कथा सम्राट प्रेमचंद की पूस की रात जनवरी नाइट, मुक्ति मार्ग द रोड आफ साल्यूशन, बड़े भाई साहब माई एल्डर बदर्स, गरीब की हाय पावर आफ कर्स के नाम से अनुवाद होकर बिक रही हैं। कई विदेशी राइटरों की मोटिवेशनल किताबों को ¨ हिन्दी में पसंद किया जा रहा है। कई किताबों की अंग्रेजी से अधिक अनुवादित किताबों की मांग है।
बाजार में ये किताबें
शहर के बुक शाप पर नजर दौड़ाने पर साफ दिख रहा है कि भारतीय लेखकों में चेतन भगत, शिव खेड़ा की हिन्दी अनुवादित किताबें खूब बिक रही हैं। इसके अलावा बाजार में ब्रायन ट्रेसी की अधिकतम सफलता, अमीश की मेलूहा के मृत्युंजय, स्टीफन आर कवी की अति प्रभावशाली लोगों की सात आदतें, चेतन भगत की टू स्टेटस, शिवखेड़ा की जीत आपकी, डेविड जे श्वाटर््ज की बड़ी सोच का बड़ा जादू, खालिद हुसैन की हजारों दमकते आफताब, जेके रोलिंग की हैरीपार्टर, द व्हाइट रा की अप्रेषित पत्र, रांडा बर्न की शक्ति आदि जैसी सैकड़ों किताबें बाजार में उपलब्ध हैं। अनुवादित किताबों से ही कई लेखक बेस्ट सेलर में भी शामिल हो गए हैं।
अभी 40 और 60 का अनुपात
पुस्तक विक्रेताओं की माने तो ¨ हिन्दी और अंग्रेजी साहित्य के बीच 40-60 का अनुपात आ गया है। युवा अंग्रेजी साहित्य को अधिक पसंद करते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि ¨ हिन्दी साहित्य को वह नजरअंदाज कर रहे हों। सभी उम्र के लोग प्रेमचंद की गोदान, निर्मला, गबन, शतरंज के खिलाड़ी रवींद्र नाथ टैगोर की चोखेरबाली, गीतांजली और शेषेर कविता के अलावा महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, रामधारी सिंह दिनकर जैसे लेखकों की किताबें पढ़ी जा रही हैं।
¨ हिन्दी का क्रेज कम नहीं

निबंस आउटलेट की संचालिका अलका शर्मा और बुक कार्नर के तुषार नांगिया कहते हैं कि हिंदी साहित्य का क्रेज कभी कम नहीं हुआ और न ही कभी होगा। ज्यादातर विदेशी लेखकों की ¨हदी अनुवादित किताब भी पसंद की जा रही हैं। हर उम्र के लोग ¨हदी साहित्य पढ़ना पसंद करते हैं। आज की पीढ़ी भी प्रेमचंद को पढ़कर बड़ी हो रही है। 

सोमवार, 7 सितंबर 2015

विश्व हिंदी सम्मेलन

10वें विश्व हिंदी सम्मेलन की गूंज शुरू हो गई है। वर्ष 1983 में नई दिल्ली में आयोजित तीसरे विश्व हिंदी सम्मेलन के लगभग 32 वर्ष बाद विश्व हिंदी सम्मेलन इस बार भारत में 10 से 12 सितंबर को भोपाल में आयोजित हो रहा है। पहले दो सम्मेलन गैरसरकारी थे, तीसरा मानव संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत हुआ, किंतु चौथे सम्मेलन से यह आयोजन विदेश मंत्रालय के अधीन हो गया और सभी प्रकार के निर्णय मंत्रालय स्तर पर होने लगे। विदेशों में आयोजन होने के कारण भी यह सभी के आकर्षण का कारण बना रहा है।
विश्व हिंदी सम्मेलनों की प्रासंगिकता सदा प्रश्नों के घेरे में रही है, इस बार भी अनेक शंकाएं हैं। इस सम्मेलन से क्या उद्देश्य पूर्ण हो रहा है? इन सम्मेलनों में पारित संकल्पों के नतीजतन वर्धा में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय स्थापित किया गया। मॉरीशस में विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना हो चुकी है। पूर्व के सम्मेलनों में पारित संकल्पों के अनुसार 10 जनवरी का दिन विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
प्रथम सम्मेलन में यह विचार किया गया कि विश्व में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए एक अलग संस्था होनी चाहिए। इसी उद्देश्य से विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना मॉरीशस में की गई है। आज हिंदी का प्रयोग विश्व के अनेक महाद्वीपों में किया जा रहा है। हिंदी पूरे विश्व में अपने अस्तित्व को आकार दे रही है। ऐसे में विश्व हिंदी सचिवालय महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है। इसी प्रकार महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा की पीठों की स्थापना पूरे भारत में हो, इसकी आवश्यकता है। इससे विश्व हिंदी सम्मेलन में लिए गए संकल्पों की सार्थकता बढ़ेगी।
भूमंडलीकरण के इस युग में हिंदी तेजी से विश्व भाषा बनती जा रही है, किंतु हिंदी के सामने कई व्यावहारिक संकट भी हैं, जिनमें सबसे बड़ा संकट विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में हिंदी के छात्रों में भारी कमी आना है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इन संकटों को नकारती हैं। वह कहती हैं कि ऐसा नहीं कह सकते कि विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ने वाले छात्रों की संख्या में कमी आई है, बल्कि प्राथमिक स्तर पर हिंदी शिक्षण में बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई है। उनके अनुसार अंग्रेजी भाषी देशों के विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ने वाले विदेशी छात्रों की समस्याएं अन्य देशों जैसे फ्रांस, जर्मनी, हंगरी, रूस, जापान, कोरिया आदि के विश्वविद्यालयों में हिंदी के छात्रों की समस्याओं से अलग हैं।
उन्होंने बताया कि अंग्रेजी भाषी देशों में हिंदी को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाया जाता है, जबकि अन्य देशों में विद्यार्थी अपनी-अपनी भाषा के माध्यम से हिंदी पढ़ते हैं। जिन देशों में पहले से हिंदी शिक्षण नहीं हो रहा है, उनमें हिंदी शिक्षण की शुरुआत करने तथा हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करने के लिए विदेश मंत्रालय एक नई नीति पर कार्य कर रहा है। इनमें मंत्रालय में हिंदी प्रचार-प्रसार तंत्र को संवद्र्धित करना और हिंदी शिक्षण पीठों की स्थापना करके हिंदी भाषा के प्रति रुचि जगाना है। केंद्रीय हिंदी संस्थान से जो विदेशी छात्र हिंदी सीखकर अपने-अपने देश वापस जाते हैं, उन देशों में हिंदी शिक्षण और प्रचार-प्रसार में उनकी मदद लेना जैसे विषय विचाराधीन हैं।
जब से प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन की शुरुआत हुई है, तभी से हिंदी को संयुक्त राष्ट्र में स्थापित किए जाने की बात की जाती रही है। लेकिन ये सपना अभी दूर ही दिखता है। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में जो छह आधिकारिक भाषाएं अंग्रेजी, रूसी, फ्रांसीसी, चीनी, स्पेनिश और अरबी हैं, इनमें से चार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की भाषाएं हैं और अन्य दो अनेक संबंधित देशों द्वारा बोली जाती हैं। संयुक्त राष्ट्र में किसी भी भाषा को आधिकारिक भाषाओं में शामिल करने के लिए दो पहलू हैं। प्रशासनिक व वित्तीय निहितार्थ। प्रशासनिक प्रक्रिया के तहत संयुक्त राष्ट्र महासभा से एक संकल्प पारित करवाना होगा, जिसके लिए कुल सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। पूर्व सरकार ने 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस और वर्तमान सरकार ने पिछले वर्ष 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में पारित करवा लिया था। आशा है कि एक दिन हम सभी हिंदी प्रेमियों का सपना पूरा होगा।
विश्व हिंदी सम्मेलन की शुरुआत भी राजनीतिक उथल-पुथल के समय आपातकाल से पहले हुई थी। इस सम्मेलन को उस समय सभी ने सहजता से स्वीकार नहीं किया था। प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन की पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले लल्लन प्रसाद व्यास ने बताया था कि उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को भी आमंत्रित किया था, वह उनसे मिलने भी गए, किंतु वाजपेयी आयोजन में भाग लेने नहीं आए और बाद में आपातकाल के समय अटलजी ने यह लिखा - बनने चली विश्व भाषा जो, अपने घर में दासी, सिंहासन पर अंग्रेजी है, लखकर दुनिया हांसी, लखकर दुनिया हांसी, हिंदी दां बनते चपरासी, अफसर सारे अंग्रेजी मय, अवधी या मद्रासी, कह कैदी कविराय, विश्व की चिंता छोड़ो, पहले घर में, अंग्रेजी के गढ़ को तोड़ो।

अटलजी ने सत्य ही लिखा है। अभी तक भारतीय संसद में लोकसभा में अफसरशाही की बाधाओं के कारण राजभाषा समिति का गठन ही नहीं हो पाया है। 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन पर सबकी नजर है। यह हिंदी साहित्य के बजाय भाषा पर केंद्रित है। इसकी सार्थकता समय सिद्ध करेगा।

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

शुभकामनायें

हमारे सभी पाठकों को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें