गुरुवार, 28 जनवरी 2010

डॉ. पी सी सहगल - कमलापति त्रिपाठी स्वर्ण पदक से सम्मानित


मुंबई रेलवे विकास कॉर्पोरेशन के प्रबंध निदेशक डॉ. पी सी सहगल को कमलापति त्रिपाठी राजभाषा स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया है । यह सम्मान दिनांक 27 जनवरी, 2010 को रेलवे बोर्ड नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में अध्यक्ष, रेलवे बोर्ड श्री सुरिन्दर सिंह खुराना के कर-कमलों द्वारा प्रदान किया गया । समारोह में बोर्ड तथा अन्य भारतीय रेलों के सभी वरिष्ठ अधिकारी मौजू़द थे ।

ह सम्मान भारतीय रेलों में कार्यरत अधिकारियों के लिए सर्वोच्च्य सम्मान है जो कि महाप्रबंधक स्तर के अधिकारियों को उनकी विशिष्ठ सेवाओं के लिए दिया जाता है जिसमें राजभाषा के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्यो का समावेश है । यह पहला अवसर है कि भारतीय रेलों के उपक्रमों में कार्यरत प्रबंध निदेशक को यह सम्मान प्राप्त हुआ है ।

उल्लेखनीय है कि डॉ. पी सी सहगल ने हिन्दी में नई तकनीक की ए सी डी सी रेक नामक तकनीकी पुस्तक लिखी है जिसे इसी कार्यक्रम में प्रथम पुरस्कार दिया गया है ।

मंगलवार, 26 जनवरी 2010

भारत में कोई राष्ट्र भाषा है ही नहीं!

क्या आप जानते हैं भारत में कोई राष्ट्र भाषा है ही नहीं! गुजरात हाई कोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि भारत की अपनी कोई राष्ट्र भाषा है ही नहीं। कोर्ट ने कहा है कि भारत में अधिकांश लोगों ने हिन्दी को राष्ट्र भाषा के तौर पर स्वीकार कर लिया है। बहुत से लोग हिन्दी बोलते हैं और हिन्दी की देवनागरी लिपि में लिखते भी हैं। लेकिन यह भी एक तथ्य है कि हिन्दी इस देश की राष्ट्र भाषा है ही नहीं। चीफ जस्टिस एस. जे. मुखोपाध्याय की बेंच ने यह उस समय कहा जब उसे डिब्बाबंद सामान पर हिन्दी में डीटेल लिखे होने के संबंध में एक फैसला सुनाना था। पिछले साल सुरेश कचाड़िया ने गुजरात हाई कोर्ट में पीआईएल दायर करते हुए मांग की थी सामानों पर हिन्दी में सामान से संबंधित डीटेल लिखे होने चाहिए और यह नियम केंद्र और राज्य सरकार द्वारा लागू करवाए जाने चाहिए। पीआईएल में कहा गया था कि डिब्बाबंद सामान पर कीमत आदि जैसी जरूरी जानकारियां हिन्दी में भी लिखी होनी चाहिए। तर्क में कहा गया कि चूंकि हिन्दी इस देश की राष्ट्र भाषा है और देश के अधिकांश लोगों द्वारा समझी जाती है इसलिए यह जानकारी हिन्दी में छपी होनी चाहिए। इस पूरे मामले पर तर्क वितर्क के दौरान कोर्ट का कहना था कि क्या इस तरह का कोई नोटिफिकेशन है कि हिन्दी भारत की राष्ट्र भाषा है क्योंकि हिन्दी तो अब तक 'राज भाषा' यानी ऑफिशल भर है। सरकार द्वारा जारी ऐसा कोई नोटिफिकेशन अब तक कोर्ट में पेश किया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि हिन्दी देश की राज-काज की भाषा है, न कि राष्ट्र भाषा। अदालत ने पीआईएल पर फैसला देते हुए कहा कि निर्माताओं को यह अधिकार है कि वह इंग्लिश में डीटेल अपने सामान पर दें और हिन्दी में न दें। इसलिए, अदालत केंद्र और राज्य सरकार या सामान निर्माताओं को ऐसा कोई आदेश (mandamus) जारी नहीं कर सकती है।

सोमवार, 18 जनवरी 2010

राजभाषा के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य के लिए डॉ. पी सी सहगल को कमलापति त्रिपाठी राजभाषा पदक

राजभाषा के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य के लिए डॉ. पी सी सहगल को कमलापति ​त्रि​पाठी राजभाषा पदक देने की घोषणा रेलवे बोर्ड ने की है । यह पुरस्कार महाप्रबंधक स्तर के अधिकारी को राजभाषा के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य के लिए दिया जाता है । पुरस्कार 27 जनवरी को बोर्ड कार्यालय में प्रदान किया जाएगा । इसके अतिरिक्त डॉ. सहगल को उसी दिन तकनीकी पुस्तक हिन्दी मेंलिखने के लिए लालबहादुर शास्त्री तकनीकी लेखन का प्रथम पुरस्कार भी प्रदान किया जाएगा जिसमें 15 हजार रूपये नकद राशि दी जाती है

रविवार, 10 जनवरी 2010

जहां सिर्फ अंग्रेजी या स्पैनिश या इस तरह की कोई और भाषा है, वहां सिर्फ हिंदी के सहारे काम नहीं चल सकता।

यदि किसी के मन में सचमुच ग्लोबल सिटिजन बनने की लालसा हो तो उसका काम अंग्रेजी के बिना नहीं चल सकता। अंग्रेजी भविष्य का उपकरण है- फ्यूचर टूल। भाषाओं के बारे में किए गए एक मोटे सर्वे से यही नतीजा निकलता है।
दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है चीन की मंदारिन। लगभग 84 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनकी यह प्राथमिक भाषा है। दूसरे देशों में मातृभाषा को प्राथमिक भाषा (प्राइमरी लैंग्वेज) कहते हैं। यदि इनमें उन लोगों को भी शामिल कर लें जो इसे बोल और समझ सकते हैं, लेकिन जिनके लिए यह सेकंडरी लैंग्वेज है तो मंदारिन भाषियों की संख्या एक अरब से भी ज्यादा हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्र में भी यह मान्यता प्राप्त छह भाषाओं में से एक है। लेकिन इसका भौगोलिक विस्तार कम है। यह सिर्फ चीन के एक बड़े हिस्से में बोली जाती है। इसके अलावा तिब्बत, ताइवान, सिंगापुर और ब्रुनेई में भी इसका कुछ-कुछ चलन है।बोलने वालों के लिहाज से स्पैनिश का नंबर दूसरा है, लेकिन इसका भौगोलिक विस्तार मंदारिन से कहीं ज्यादा है। स्पेन के अलावा यह ब्राजील, चिली, इक्वाडोर, कोस्टारिका, डोमनिकन रिपब्लिक, निकारागुआ, पराग, होंडुरास, गुयाना, ग्वाटामाला और अल सल्वाडोर में भी प्रचलित है। यहां तक कि अमेरिका में भी स्पैनिश बोलने वालों की अच्छी तादाद है। स्पैनिश 32 करोड़ लोगों की प्राथमिक भाषा है। यदि इसमें सेकंडरी लैंग्वेज वालों को भी जोड़ लें तो पूरी दुनिया में 40 करोड़ से ज्यादा लोग इस भाषा का व्यवहार कर रहे हैं। यूएन की छह मान्यता प्राप्त भाषाओं में से एक स्पैनिश भी है।
मंदारिन और स्पैनिश की तुलना में अंग्रेजी को अपना प्राइमरी लैंग्वेज बताने वालों की संख्या आज भी कम है, वैसे है यह भी 32 करोड़ के आसपास ही। लेकिन इसमें सेकंडरी लैंग्वेज वालों को मिला दें, तो यह स्पैनिश से कहीं ज्यादा लोकप्रिय है। अंग्रेजी का सबसे मजबूत पक्ष है इसका भौगोलिक विस्तार। ब्रिटेन के अलावा उत्तरी अमेरिका, मध्य अमेरिका और अफ्रीका के ज्यादातर देशों में इसे ऑफिशल लैंग्वेज का स्टेटस मिला हुआ है। इसके अलावा बहुत सारे देश ऐसे हैं, जहां यह प्रचलन में तो खूब है, लेकिन इसे एकमात्र ऑफिशल लैंग्वेज नहीं माना जाता। ज्यादातर एशियाई देशों में इसे यही दर्जा प्राप्त है। इस क्रम में हिंदी को आप चौथे नंबर पर रख सकते हैं। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि वह उर्दू, मैथिली और भोजपुरी आदि सबको अपना ही एक रूप माने। इस तरह प्राइमरी लैंग्वेज की तरह हिंदी लगभग दो करोड़ लोगों की भाषा है और दूसरी भाषा की तरह इसको अपनानेवालों को मिला दें तो पूरी दुनिया में लगभग साढ़े पांच करोड़ लोग किसी न किसी रूप में हिंदी का व्यवहार कर रहे हैं। हिंदी भी सिर्फ हिंदुस्तान के कुछ राज्यों तक सिमटी हुई भाषा नहीं है, यह नेपाल, पाकिस्तान, मॉरिशस, त्रिनिदाद, टबेगो, सूरीनाम, फीजी और यूएई में भी किसी न किसी रूप में मौजूद है।
लेकिन सवाल यह है कि फ्यूचर में भारत से निकलने के बाद हम जाना किधर चाहते हैं? जहां-जहां हिंदी है, वहां भी अंग्रेजी के सहारे काम चल सकता है। लेकिन जहां सिर्फ अंग्रेजी या स्पैनिश या इस तरह की कोई और भाषा है, वहां सिर्फ हिंदी के सहारे काम नहीं चल सकता।

शनिवार, 2 जनवरी 2010

नव वर्ष की शुभकामनाएं

नव वर्ष की शुभकामनाएं
हमारे प्रिय पाठकों को नव वर्ष की शुभकामनाएं
नव वर्ष 2010 आपकेलिए सुख-समृ​द्ध् आरोग्य, तथा मनोकामनाएं पूर्ण करे,
इन्ही शुभकामनाओं द्वारा आपके समक्ष नई आशाओं के साथ
डॉ राजेन्द्र कुमार गुप्ता