गुरुवार, 25 जुलाई 2013

संस्कृत देवभाषा और किसी खास वर्ग की भाषा है- यह गलत है


अपनी विरासत को समझने के लिए संस्कृत का ज्ञान जरूरी है। यह गलत प्रचारित किया गया है कि संस्कृत देवभाषा और किसी खास वर्ग की भाषा है। यह जनसाधारण की भाषा रही है। इसे किसी भी संप्रदाय विशेष या जाति विशेष से जोड़ना पूरी तरह गलत है। संस्कृत के विकास में मुसलमानों और ईसाइयों का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। अब्दुल रहीम खानखाना ने 'खैटकौतुकम्' 'रहीमकाव्यम्' लिखा है, जो सुप्रसिद्ध काव्य है। उस दौर में तो अनेक ऐसे भी ग्रंथ लिखे गए थे, जिनमें आधे श्लोक को उर्दू, ब्रज, अवधी या भोजपुरी में और आधे को संस्कृत में लिखा गया है। इसलिए इस भाषा को किसी खास वर्ग से जोड़ना आधारहीन है। भारत की तमाम भाषाओं और बोलियों में संस्कृ त के शब्द प्रचूर मात्रा में हैं। इसकी जानकारी अन्य भारतीय भाषाओं को जानने के लिए भी जरूरी है। आप संस्कृत जानते हैं तो अन्य भारतीय भाषाओं को जल्दी सीख सकते हैं। दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ संबंध विकसित करने के लिए संस्कृत का अध्ययन उपयोगी साबित हो सकता है। वहां की सभी भाषाओं में संस्कृत शब्दावली का भरपूर इस्तेमाल होता है। संस्कृ त उन देशों को भारत से जोड़ने वाली महत्वपूर्ण कड़ी है।

हम इसके सामर्थ्य से परिचित नहीं हैं, या फिर जानबूझकर इसकी अनदेखी कर रहे हैं। अगर संस्कृत हमारी राष्ट्रभाषा होती तो भाषा को लेकर जितने विवाद इस देश में हुए या हो रहे हैं, वे नहीं होते। भारत की सभी भाषाओं और बोलियों का मूल स्रोत संस्कृत ही है। देश की किसी भी प्रादेशिक भाषा को ले लीजिए, उस भाषा के शुरुआती सारे लेखक संस्कृत के ही जानकार थे। यही कारण है कि भारत की किसी भी भाषा में लिखे साहित्य में संस्कृत के शब्द भरपूर मात्रा में मिल जाएंगे। प्रादेशिक भाषाओं ने तो साहित्यिक रचनाओं की थीम भी संस्कृत से ही ली है। रामायण, महाभारत और अन्य पौराणिक आख्यान सभी भारतीय भाषाओं के साहित्य के मूल स्रोत रहे हैं। भारत की आम बोलचाल की भाषा में संस्कृत का प्रभाव साफ दिखता है। जैसे, हिंदी में हम 'नींद' कहते हैं। संस्कृ त में हम इसे निद्रा कहते हैं, जो भारत की अनेक प्रादेशिक भाषाओं में इस्तेमाल होता है। यदि द्रविड़ भाषाओं में संस्कृ त शब्दों के प्रतिशत की बात करें तो मलयालम में लगभग 70 प्रतिशत शब्द संस्कृत से निकले हैं। तेलगू में लगभग 60 प्रतिशत संस्कृत शब्द हैं। कन्नड़ व तमिल में भी काफी शब्द संस्कृ त के हैं। पूर्वी भारत की बात करें तो वहां की उड़िया, असमिया और बांग्ला में संस्कृ त शब्दों की भरमार ही है।
दक्षिणपूर्व
 एशिया की भाषाओं में संस्कृ  शब्द अच्छी तादाद में हैं। हां, मूल उच्चारण में जरूर थोड़ाबहुत अंतरहै। यह ठीक वैसे ही है जैसे हमारे यहां 'घट' का 'घड़ा' बन गया। यदि थाई भाषा में दक्षिण पूर्व कहना हो तो वे'आखेय' कहेंगे। यह 'आखेय' संस्कृत के 'आग्नेय' शब्द से बना है। बैंकाक में 9 युनिवर्सिटी हैं जिनमें से 7 के नामसंस्कृत में हैं। एक युनिवर्सिटी का नाम है-धर्मशास्त्र विश्वविद्यालय। इस विश्वविद्यालय की एक बिल्डिंग का नामहै-साला अनेक प्रसंगू। इसका मतलब है मल्टिपरपज बिल्डिंग। लाओ भाषा में 'वन-वे' के लिये 'एक-दिशा मार्ग'शब्द है। इसी तरह से वहां हजारों शब्द संस्कृत के प्रचलित हैं। 'वर्ल्ड बैंक' के लिए 'लोक धनागार' शब्द है।इंडोनेशिया में हाथी को 'गजो' कहा जाता है। हम भी भारत में गज मतलब हाथी ही समझते हैं। फोटो के लिये'रूप' शब्द है। 'गार्डन' के लिये 'उद्यान' शब्द चलता है। अगर आप संस्कृत जानते हैं तो इन देशों में जाने के बादआपको लगेगा ही नहीं कि आप दूसरे देश में हैं।
संस्कृत
 के प्रचार-प्रसार के लिए इसे एक हॉबी सब्जेक्ट के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए। इसके साथ ही संस्कृत केजानकारों को भी आगे आना होगा। सारा काम सरकार पर ही नहीं छोड़ा जा सकता। सरकार आर्थिक सहायता याअन्य सुविधाएं दे देगी। लेकिन व्यक्ति और समाज को ही आगे आना पड़ेगा। आज लोगों में इस भाषा को सीखनेकी उत्सुकता बढ़ी है। विदेशों में भी संस्कृ  सीखने की ललक है। लेकिन दिक्कत यह है कि संस्कृत पढ़ाने वालेअध्यापक खुद ही अपने बच्चों को संस्कृत नहीं पढ़ाते हैं। ऐसे में इस भाषा के जानकारों के ऊपर एक बड़ीजवाबदेही है। संस्कृत महज एक भाषा नहीं है, यह भारत की आत्मा है।

मंगलवार, 9 जुलाई 2013

चीनी सैनिकों ने हिंदी में इलाका खाली करने की धमकी

 चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। एक बार फिर चीनी सेना भारतीय सीमा घुस आई। लेह-लद्दाख के चुमुर इलाके में घुसकर चीनी सेना ने भारतीय सेना द्वारा लगाए गए सिक्यूरिटी कैमरों को भी तोड़ दिया। भारतीय सेना द्वारा बनाए गए कुछ अस्थायी ढांचों को भी गिरा दिया। साथ ही वहां मौजूद लोगों को चीनी सैनिकों ने हिंदी में इलाका खाली करने की धमकी दी।

गौरतलब है कि पिछले 3 महीने में दूसरी बार भारतीय सीमा में चीन ने घुसपैठ की है। इससे पहले अप्रैल-मई में भी चीनी सेना ने दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में घुसकर अपने अस्थायी कैंप स्थापित कर दिए थे। इतना ही नहीं उन्होंने वहां पर जो बोर्ड लगाया था, उस पर लिखा था कि वह यह चीन का इलाका है और आप चीन में हैं।

अंग्रेजी अखबार डीएनए में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, ताजा घुसपैठ की घटना 17 जून की है। उस दिन चीनी सैनिकों ने घुसपैठ के बाद चुमुर में लगे कैमरों को तोड़ दिया। ये कैमरे हाई रेजॉलूशन के थे। भारतीय सेना ने अप्रैल में इन कैमरों को वास्तविक नियंत्रक रेखा (एलएसी) पर चीनी सैनिकों की निगरानी के लिए लगाया था। चीनी सैनिकों में वहां के लोगों को हिंदी में वह जगह तुरंत खाली करने के लिए कहा।

अखबार की खबर के मुताबिक, भारतीय सीमा में घुसे चीनी सैनिक अच्छी तरह से हिंदी जानते थे। उन्होंने वहां रह रहे स्थानीय लोगों से कहा कि वह इस इलाके को तुरंत खाली कर दें, यह इलाका उनका है। इस घुसपैठ की सूचना खुफिया एजेंसियों ने सरकार को दी थी। इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस ने भी इसकी पुष्टि की है।

सरकार इस पूरे मामले में चुप्‍पी साधे हुए है। उत्तराखंड में आई आपदा के समय सरकार किसी अंतरराष्ट्रीय विवाद को जन्‍म नहीं देना चाहती थी। ताजा घटना के बाद 3 जुलाई को दोनों देशों की सेना के बीच हुई फ्लैग मीटिंग में भारतीय सेना के अधिकारियों द्वारा भी यह मुद्दा उठाया गया। सबूत के तौर पर टूटे हुए कैमरे भी दिखाए गए।

अप्रैल-मई में भी चीन की सेना ने दौलत बेग ओल्डी सेक्टर एलएसी का उल्लंघन किया था। इस घटना से दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ गया था, लेकिन भारतीय दबाव के बाद आखिरकार चीनी सैनिक वहां से हट गए थे। हालांकि, भारत को चीनी सरकार की यह बात जरूर माननी पड़ी थी कि इस इलाके में भारतीय सैनिकों की भी मौजूदगी नहीं होगी।

सबसे आश्यर्च की बात यह है कि यह घटना उस समय सामने आई जब रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी का चीन दौरे पर जाना तय हो गया था। एक्सपर्ट्स का मानना है कि चीन की ओर से निरंतर घुसपैठ की घटना चीन की PLA (पीपल्‍स लिबरेशन आर्मी) और PLAN (पीपल्‍स लिबरेशन आर्मी नेवी) के बीच अंदरूनी लड़ाई का नतीजा है। चीनी नेतृत्व के अंदर अप्रत्यक्ष रूप से वर्चस्‍व की लड़ाई जारी है। यही कारण है कि साउथ चाइना समुद्र और लेह लद्दाख सेक्‍टर में चीन का रुख आक्रामक है।