सोमवार, 29 सितंबर 2014

भाषण की समाप्ति संस्कृत के श्लोक से

शनिवार को न्यू यॉर्क के सेंट्रल पार्क में नरेंद्र मोदी ने युवाओं में जोश भरने वाले भाषण से वहां मौजूद हजारों की तादाद वाली भीड़ का दिल जीत लिया। मोदी ने सेंट्रल पार्क में हुए ग्लोबल सिटिजन फेस्टिवल में हिस्सा लेते हुए स्पीच में से 7 मिनट अंग्रेजी में भाषण दिया। इसके बाद मोदी ने अपने भाषण का समाप्ति संस्कृत के श्लोक से की।
रंगारंग कार्यक्रम के दौरान फिल्म ऐक्टर ह्यू जैकमन ने उन्हें एक 'चाय बेचने वाले' से गुजरात के सीएम बनने और फिर देश के प्रधानमंत्री वाले व्यक्ति के तौर पर भीड़ से इंट्रोड्यूस करवाया। मोदी ने जनता को संबोधित करते हुए टीवी, लैपटॉप, टैबलट और फोन पर उन्हें देखने वालों को भी नमस्ते कहा। मौजूद लोगों ने हाथ हिलाकर और जोरदार तालियां बजाकर मोदी का स्वागत किया।
उन्होंने कहा कि वे बंद कमरे की बजाय पार्क में खुले में युवाओं के बीच ज्यादा बढ़िया महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा, 'क्योंकि आप लोग भविष्य हो। आप जो आज करोगे, उसी से आने वाला कल निर्धारित होगा।'

मोदी ने कहा, 'कुछ लोग विश्वास करते हैं कि दुनिया में बुजुर्गों के ज्ञान के जरिए बदलाव होता है। मैं सोचता हूं कि आदर्शवाद, प्रयोगों, ऊर्जा और युवाओं का कुछ कर दिखाने का जज्बा और बर्ताव ज्यादा ताकतवर होता है।'
उन्होंने यह भी कहा,'भारत के युवाओं से भी मुझे यही उम्मीद है कि वे राष्ट्र को बदलने में हाथ मिलाकर चलेंगे।' इस स्पीच के बाद उन्होंने इसका अंत संस्कृत के इस श्लोक से किया-
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिन सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्ति।।

बुधवार, 17 सितंबर 2014

हिंदी माता हाउस वाइफ बनकर रह गई

व्यक्ति जिस भाषा में दूसरो की मां-बहनों को याद करता है, वही उसकी मातृभाषा होती है। मातृभाषा की यह एक सहज स्वीकार्य परिभाषा हो सकती है। लेकिन, भारतवर्ष में परायों को याद करने के लिए पराई भाषा के इस्तेमाल का चलन लगातार बढ़ रहा है। अब गालियां भी अंग्रेजी में दी जाती हैं। इसलिए मातृभाषा की परिभाषा हमारे लिए कुछ बदल गई है। थोड़ी-बहुत असहमतियों के साथ यह माना जा सकता है कि जिस भाषा की आप सबसे ज्यादा मां-बहन कर सकें, वही आपकी मातृभाषा है। इस खांचे में फिट करके देखें तो हिंदी के मातृभाषा होने में कोई शक नहीं रह जाता।
देश आजाद हुआ तो हिंदी माता को सरकारी बाबुओं के हवाले कर दिया गया गया। बाबुओं ने कहामाई चिंता मत करो, अब हर जगह तुम्हारा ही राज होगा। तुम्हारा खयाल रखने के लिए हर सरकारी दफ्तर में एक अधिकारी रखा जाएगा, जिसका काम ब्लैक बोर्ड पर रोजाना तुम्हारे नाम का एक शब्द लिखना और हर साल 14 सितंबर को तुम्हारे सम्मान में एक कार्यक्रम आयोजित करना होगा। हिंदी अधिकारी तुम्हारे लिए यदा-कदा कवि सम्मेलन भी करवाएगा, जिसमें आनेवाले कवियों को शॉल और श्रीफल के साथ राह खर्च भी दिया जाएगा। देखना माई सरकारी प्रयास से कश्मीर से कन्याकुमारी तक किस तरह लोग तुम्हारी जय-जयकार करेंगे। हिंदी ने कहाअभी मेरी उम्र ही क्या है, मेरे माथे पर बिंदी लगाकर क्यों मुझे माई बनाते हो। मैं अपनी राह खुद चल सकती हूं। लेकिन बाबुओ ने कहा- माताजी ऐसा कैसे हो सकता है, आप अपनी राह चलेंगी तो हमारी नौकरी का क्या होगा। आपके नाम पर देश-विदेश में सम्मेलन कैसे होंगे। नेताओं और बाबुओं को फोकट में विदेश यात्रा के अवसर कैसे मिलेंगे और फिर हम आपकी सेवा ही तो कर रहे हैं।
लेकिन, हिंदी कहां ठहरने वाली थी! अपनी रफ्तार से चलने लगी। गुजरात और महाराष्ट्र पार करके जैसे ही दक्षिण की तरफ बढ़ी कि बवाल शुरू हो गया। हिंदी माता के सपूत मद्रास से लेकर मदुरै तक जगह-जगह पिटने लगे। साइन बोर्ड मिटाए जाने लगे। हिंदी के खिलाफ राजनीतिक स्लोगन बनाए जाने लगे। यह सब देखकर घबराए चाचा नेहरु ने अपने बाबुओं की खबर ली 'तुम लोगो से कहा था, हिंदी माता को इस तरह बेलगाम मत छोड़ो। हिंदी माता का तमिल अम्मा के इलाके में क्या काम? उन्हे पता नहीं कि वह इलाका कितना डेंजरस है। अगर उन्हें और उनके सपूतों को कुछ हो गया तो मैं पूरे देश को क्या जवाब दूंगा?'
चाचा नेहरू ने पूरे देश को समझाया कि ठीक है, हिंदी हमारी मां है। लेकिन अलग-अलग राज्यों में जितनी भी मौसियां हैं, वे भी मां समान हैं। मौसियों को हिंदी माता से कोई बैर नहीं। लेकिन मौसेरे भाइयों का मैं कुछ नहीं कर सकता। इसलिए सीधा रास्ता यही है कि हिंदी माता बाबुओं की निगरानी में आराम फरमाएं, अपने हार्टलैंड से निकलकर कहीं बाहर ना जाएं। चाचा नेहरू ने देश से यह भी कहा कि यह हर्गिज मत भूलो कि तुम्हारी एक पितृभाषा भी है। भारतीय समाज में बाप का दर्जा मां से बड़ा होता है। हमेशा मां का पल्लू पकड़े रहोगे तो जिंदगी में कुछ नहीं कर पाओगे। मातृभाषा लोरी सुनने के लिए ही ठीक है, भारत में रहकर रोटी कमाना चाहते हो तो अंग्रेजी सीखो। पूरा देश चाचा की दिखाई राह पर चल पड़ा। नतीजा यह हुआ कि हर जगह अंग्रेजी वाले के बाप का राज कायम हो गया और हिंदी माता हाउस वाइफ बनकर रह गई।

सोमवार, 15 सितंबर 2014

मुंबई विश्वविद्यालय में हिंदी दिवस मनाया गया।

भारत में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को 'हिंदी-दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर जहां मुंबई स्थित विभिन्न विद्यालयों, महाविद्यालयों और मुंबई विश्वविद्यालय में हिंदी दिवस मनाया गया। वहीं, बैंकों और अन्य गैर सरकारी संस्थानों में भी हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में कई कार्यक्रम आयोजित हुए। इस अवसर विदेशियों ने भी हिंदी भाषा की गरिमा को समझते हुए विभिन्न दूतावासों में भारतीयों के साथ शनिवार को हिंदी भाषा में बातचीत करते हुए नजर आए।
सातांक्रुज-वकोला स्थित पब्लिक नाइट कॉलेज के प्रिसिंपल योगेश नारायण दूबे की ओर से परिसर में हिंदी दिवस सम्मान समारोह का आयोजन किया गया था, जबकि ग्रांट रोड स्थित बीएम रुइया गर्ल्स कॉलेज में मंगलवार को सांस्कृतिक कार्यक्रम, वादविवाद और काव्य पाठ एवं प्रतियोगिता की जाएगी। घनश्याम दास सराफ कॉलेज में डॉ. अचला नागर की उपस्थिति में हिंदी सिनेमा से जुड़े कवियों के गीतों का गायन और योगदान की चर्चा की गई।
घाटकोपर स्थित झुनझुनवाला कॉलेज में भाषण और निबंध प्रतियोगिता, जबिक आर.एन. रुईया कॉलेज में निबंध, स्वरचित काव्य प्रतियोगिता एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित हुआ था। गौरतलब है कि 14 सितंबर, 1949 के दिन संविधान में हिंदी को राजभाषा घोषित करने के उपलक्ष्य में हिंदी दिवस और हिंदी पखवाड़ा मनाया जाता है।
हिंदी दिवस के मौके पर शहर के कई अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में सभी कामकाज एवं पढ़ाई हिंदी में होने की बात विद्यालय प्रबंधन समिति ने कही है। कांदिवली स्थित सेंट लॉरेंस हाईस्कूल के प्रधानाचार्य शशिशेखर चौहान ने बताया कि हिंदी दिवस के मौके पर छात्रों के बीच होने वाली असेंबली बैठक में हिंदी को वरियता दी गई। छात्र-छात्राओं ने हिंदी में काव्य पाठ, काव्य लेखन किया और भाषण दिया। वहीं, अंधेरी स्थित हंसराज मोरारजी पब्लिक स्कूल के शिक्षक सह एसएससी समिति सदस्य उदय नरे ने बताया कि इस अवसर पर विद्यालयों में राष्ट्रभाषा हिंदी के बारे में बच्चों को जानकारी देते हुए हिंदी का महत्व समझाया गया। मालाड स्थिति लेडी फातिमा देवी इंग्लिश उच्च विद्यालय में वाद-विवाद एवं काव्य प्रतियोगिता का आयोजन होने की बात शिक्षक राजेश पंड्या ने कही।
मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में भी हिंदी की भूमिका एवं महत्व के बारे में परिर्चचा की गई। कुल मिलाकर हिंदी दिवस के मौके पर शैक्षणिक संस्थाएं 'हिंदीमय' नजर आया।