बुधवार, 16 सितंबर 2009

राजभाषा को खूंटी पर टांग रहे है राजभाषा कर्मी, बधाई

बडे सौभाग्य की बात है कि आज भी भारत जैसे देश की कोई राजभाषा नहीं है यदि है तो केवल कागजों पर, जिन लोगों ने यह स्वप्न संजोये थे कि हिन्दुस्तानी भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो , यदि आज की तस्वीर को देखते जो कि बदलते परिवेश के कारण हो गई है तो शायद वे अपनी करनी पर पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ और नहीं सोचते । आज भारत देश के सभी राजभाषा कर्मी राजभाषा सप्ताह मना रहे है और कविता , भाषण यहां तक कि हिन्दी के नाम पर पाक प्रतियोगिताएं भी करा रहे हैं । यह भी केवल इसी माह तक सीमित रहेगा । भारत सरकार के मंत्रालयों से संदेश आते है कि इन्हे पढा जाए और इनपर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए । बस उनका काम यहीं तक सीमित है वे केवल सुनिश्चित करने को लिखा सकते है सुनिश्चित करा नहीं सकते क्योंकि वे स्वयं बदलते परिवेश के कारण हुए बदलाव में ढल नहीं पाए है आज भी अनेकानेक कार्यालयों में हिन्दी कर्मी कंप्यूटर नहीं सीख पाए है तो किस ताकत पर वे कंप्यूटरों पर राजभाषा के रूप में हिन्दी सुनिश्चित करा सकते है । आज हमारा मत है कि हिन्दी को राजभाषा कर्मियों से भगवान बचाए , शायद भारत का जनमानस अपनी भाषाओं को अपना ले । मुझे बहुत अच्छा लगा कि तमिल के एक केन्द्रीय मंत्री ने स्पष्ट कहा कि मुझे संसद में तमिल में बोलने की छूट होनी चाहिये यह स्वागत योग्य है कम से कम इसी तरह भारतीय भाषाओं का भविष्य तो अंधकारमय नही रहेगा ।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

राजभाषा संगठन में 3 तरह के लोग हैं पहले जो हिंदी को राजभाषा मानकर संगठन में आए और अब दुःखी हैं। दूसरे जो अंग्रेजी को राजभाषा तथा अंग्रेजी अफसरों को हाकिम मानकर आंकड़े बनाते हैं ईनाम बांटते हैं सर सर से आगे बात नहीं करते, तीसरे सरकारी कर्मचारी वेतनभोगी हैं वेतन के आगे कुछ नहीं जानते। भाई का सामना किसी दूसरे तरीके के राजभाषा वाले से हो गया होगा इस लिये सबको लपेट लिया। राजभाषा संगठन के पास कोई ताकत नहीं है कि वह हिंदी भाषी क्षेत्र में भी किसी को अंग्रेजी लिखने से रोक सके गैर हिंदी भाषियों की तो बात ही दूर है। नियमानुसार राजभाषा हिंदी का प्रयोग सबसे बड़े एधिकारी को सुनिश्चित करना होता है जो सबसे ज्यादा अंग्रेजी लिखता बोलता है अंग्रेज अफसर की तरह तो पिद्दी सा हिंदी अफसर जो 3 या 4 दर्जे उससे नीचे होता है येस सर से ज्यादा कर भी क्या सकता है। हिंदी संगठन को इसीलिये बिना सींग का बछड़ा कहा जाता है। हां कुछेक लोग समितियों के सदस्य बन कर अपना कुछ स्वार्थ सिद्ध कर लें तो ही गनीमत है एभी तक हिंदी का मानक की बोर्ड तो बना नहीं सके आगे की उम्मीद इनसे क्या कर लें। वैसे नेहरू जी ने 1959 में यह संविधान बनवा दिया है कि जब तक देश के सभी राज्यों की विधान सभाएं हिंदी का राजभाषा बनाने का प्रस्ताव पारित नहीं भेजेंगी अंग्रेजी को केंद्र राजभाषा के रूप में काम में लेगा। वैसे हमारी राजभाषा हिंदी होगी पर अधिकृत भाषा हर जगह अंग्रेजी होगी सर्वोच्च न्यायलय सिर्फ अंग्रेजी में फैसले देगा उच्च न्यायलयों में हिंदी काम में ली जा सकती है किंतु अधिकृत अंग्रेजी ही होगी। अब भी यदि राजभाषा कर्मियों को हिंदी राजभाषा की खूंटी पर टांगनी है तो पोस्ट हाजिर है।