मंगलवार, 30 जून 2009

पश्चिम रेलवे के पूर्व मुख्य राजभाषा अधिकारी श्री उत्तम चन्द जी आज सेवानिवृत्त

पश्चिम रेलवे के पूर्व मुख्य राजभाषा अधिकारी श्री उत्तम चन्द जी आज सेवानिवृत्त हो रहे है । श्री उत्तम चन्द इस रेलवे में मुख्य प्रशासन अधिकारी (सर्वे व निर्माण के पद के सेवा निवृत्ति ले रहे है ।
राजभाषा परिवार की ओर से उनके भावी जीवन केलिए शभकामनाएं
उल्लेखनीय है कि श्री उत्तम चन्द जी को मुंबई की कई जानी मानी स्वये सेवी संस्थाओं ने 29 जून 2009 को सम्मानित किया इस मौके पर मध्य रेल के साहित्यकार लेखक और गतिशील व्यक्ति श्री सत्यप्रकाश, सी सी एम भी उपस्थित थे । डॉ. राजेन्द्र कुमार गुप्ता ने उन्हे सम्मान में सहायता की । श्री सत्य प्रकाश जी ने पुष्पगुच्छ दिया । आशीर्वाद के निदेशक डॉ. उमाकान्त बाजपेई ने श्रीफल शॉल, तथा श्रुति संवाद साहित्य कला अकेडमी के अध्यक्ष श्री अरविन्द शर्मा राही ने सम्मान पत्र प्रदान किया । सम्मान पत्र का वाचन श्री अनत श्रीमाली ने किया जिसकी सभी ने मुक्तकंण्ठ से प्रशंसा की ।

गुरुवार, 11 जून 2009

हमारी ओर से अश्रुपूर्ण श्रृद्धांजलि

भोपाल से लगभग 10 किलोमीटर दूर सूखी सेवनिया के नजदीक सोमवार तड़के एक सड़क दुर्घटना में तीन जाने-माने कवियों ओमप्रकाश आदित्य, लाड़सिंह गुर्जर तथा नीरज पुरी की मौत हो गई। दुर्घटना में दो अन्य कवियों सहित तीन लोग घायल हो गए। एसपी जयदीप प्रसाद ने को बताया कि सभी कवि रविवार रात राजधानी के निकट स्थित विदिशा में बेतवा उत्सव में आयोजित कवि सम्मेलन में भाग लेकर लौट रहे थे। इसी दौरान सूखी सेवनिया के निकट संभवत: ड्राइवर को नींद आ गई और गाड़ी किसी अज्ञात वाहन से टकरा गई, जिससे ओमप्रकाश आदित्य और लाड़सिंह गुर्जर की मौके पर ही मृत्यु हो गई जबकि नीरज पुरी ने अस्पताल ले जाते समय दम तोड़ दिया। उन्होंने बताया कि इस दुर्घटना में जानी बैरागी एवं ओम व्यास नाम के कवियों सहित तीन लोग घायल हो गए। उन्हें भोपाल के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। तीन दिवसीय बेतवा महोत्सव का रविवार को अंतिम दिन था और इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन रात लगभग दस बजे शुरु हुआ जो सुबह साढे़ तीन बजे के आसपास समाप्त हुआ। ये सभी कवि एक इनोवा में सवार होकर सुबह चार बजे के लगभग भोपाल के लिये रवाना हुए। प्रसाद ने बताया कि कवियों की इनोवा के पीछे और दो वाहन भी आ रहे थे, जिन्होंने इस घटना की सूचना पुलिस को दी। पुलिस सभी को तुरंत अस्पताल ले गई जहां डॉक्टरों ने ओमप्रकाश आदित्य, लाड़सिंह गुर्जर और नीरज पुरी को मृत घोषित कर दिया।

रविवार, 7 जून 2009

हिन्दी कर्मियों की सेवा संबंधी भर्ती नियमों में संशोधन की आवश्यकता है

टेलीविजन पर एक कार्यक्रम देख कर मन में शंका उत्पन्न होने लगी कि वाकई इस देश की भाषा क्या है । इस कार्यक्रम में हंस के संपादक श्री राजेन्द्र यादव का मानना था कि भाषा पर अब सरकार हावी है अतः इस समय देश में हिन्दी की बात करना वेमानी होगी । हालांकि यह बताया जा रहा था कि आज भी देश में हिन्दी अखबारों की सबसे ज्यादा बिक्री है । लोग हिन्दी के अखबार पढते है और सबसे ज्यादा लोग हिन्दी बोलते और समझते है । यहीं पर डॉ देवेन्द्र जी संस्कृत की हिमायत कर रहे थे उनका मानना था कि यदि सरकार १९४७ में ही संस्कृत को देश की राजभाषा बना देती तो आज कहीं भी विरोध नहीं होता और सारे देश में अपनी भाषा हो जाती । इसी क्रम में अन्य लोगो का मानना था कि हिन्दी में इंजीरिग की पुस्तकें भी उपलब्ध नहीं है तो यह किस आधार पर कहा जा सकता है कि हिन्दी देश की राजभाषा के रुप में स्वीकार्य है ।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या वाकई देश की राजभाषा अब हिन्दी नहीं हो सकती, यदि नही हो सकती तो क्यों न इसे संविधान संशोधन करके देश की जनता के समक्ष किसी एक भाषा को निरूपित किया जाए । हमारा मानना है कि सरकारी ढुलमुल रवैये के कारण और मंत्रालयों में बैठे उन हिन्दी पंडितों के कारण , जिन्हे कंप्यूटर का ज्ञान नहीं है, आज हिन्दी की यह दशा हो रहीं है । आज इस बात पर एक बहस की आवश्यकता है और हिन्दी कर्मियों की सेवा संबंधी भर्ती नियमों में संशोधन की आवश्यकता है जिससे यह भाषा देश की आधुनिक आवश्यकताओं को पूरा कर सके ।

मंगलवार, 2 जून 2009

धन्य है वे सांसद जिन्होंने अपनी मातृभाषा में लोकसभा में शपथ ग्रहण की

धन्य है वे सांसद जिन्होंने अपनी मातृभाषा में लोकसभा में शपथ ग्रहण की क्योंकि यह तो सर्वविदित सत्य है कि कुर्सी का रंग हमेशा विवादित होता है । जब नेता को सांसद का पद जनता दे देती है तो वे अपना कर्त्तव्य भूलकर जनता से किये वायदों को दरकिनार कर देते है और अपनी मौज-मस्ती में डूब जाते है । कभी कभी इन्हे अपनी संसदीय सीट के इलाके की याद भी आतीहै तो वहां के छुट भैया नेताओं को अपनी प्रसंशा में छोटे मोटे जलसे कराने से नहीं चूकते । पर वे धन्य है जिन्होंने संसदीय परंपरा का ध्यान रखकर अपनी भाषा में शपथ ली । हम तो यही चाहतेहै कि वे संसद में भारतीय भाषाओं की उन्नति के लिए काम करें । हम अंग्रेजी विरोधीनहीं हैं पर अपनी भाषा के अपमान को सहना भी हमारे वश में नहीं है अतः हम हमेशा उन्ही का सम्मान करते है जो भारतीयभाषाओं के सम्मान की रक्षा के लिए समर्पित हो ।