शुक्रवार, 20 जून 2014

पुरानी सरकार का है हिन्दी वाला फरमान

सरकारी ऑफिसरों को सोशल मीडिया पर हिन्दी का इस्तेमाल करने के होम मिनिस्ट्री के निर्देश को लेकर एक नया दावा सामने आ रहा है। बीजेपी के करीबी माने जाने वाले स्वतंत्र पत्रकार कंचन गुप्ता का कहना है कि यह आदेश नई सरकार का नहीं, बल्कि पिछली सरकार का था। उन्होंने इस सर्कुलर की कॉपी ट्वीट करते हुए कहा है कि यह सर्कुलर तो नए गृहमंत्री के पद संभालने से पहले ही जारी कर दिया गया था। हालांकि, सरकार ने इस मसले पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है।
ट्विटर पर कंचन गुप्ता ने लिखा है, 'मीडिया हमें किस तरह से बेवकूफ बनाता है। सोशल मीडिया में हिंदी यूज करने का फैसला 10 मार्च 2014 को लिया गया था, सर्कुलर 27 मई 2014 को जारी किया गया था और नए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने 29 मई को अपना ऑफिस संभाला था।'
उनका कहना है कि इस फैसले को नई सरकार का फैसला कैसे कहा जा सकता है, जब इसे पिछले सरकार के वक्त लिया गया था और नए मंत्री ने कामकाज शुरू ही नहीं किया था। यह सर्कुलर जारी होने के दो दिन बाद राजनाथ सिंह ने मंत्री के रूप में कामकाज शुरू किया था।
गृह मंत्रालय की तरफ से जारी इस सर्कुलर में लिखा गया था, 'मंत्रालय ने पाया है कि सरकार के कई मंत्रालयों, विभागों, कॉरपोरेशंस और बैंकों के अधिकारियों का ट्विटर, फेसबुक, गूगल, ब्लॉग, यूट्यूब जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अकाउंट है, लेकिन ये अधिकारी इन प्लैटफॉर्म्स पर हिंदी के इस्तेमाल से परहेज करते हैं और सिर्फ अंग्रेजी का इस्तेमाल करते हैं।'
इस सर्कुलर में लिखा था, 'यह आदेश दिया जाता है कि सभी मंत्रालयों, विभागों, कॉरपोरेशंस और बैंकों के जिन अधिकारियों ने ट्विटर, फेसबुक, गूगल, यूट्यूब और ब्लॉग पर अकाउंट बनाया हुआ है, उनको हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखना चाहिए। इस आदेश को सभी संबंधित सरकारी अधिकारियों तक पहुंचाया जाना चाहिए और मंत्रालय के जरिए इसका पालन भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए।'

हिंदी पर बढ़ा विवाद, कश्मीर से तमिलनाड़ु तक विरोध

केंद्रीय गृह मंत्रालय के हिंदी में कामकाज को बढ़ावा देने के निर्देश को लेकर केंद्र और गैर-हिंदीभाषी राज्यों के बीच तलवारें खिंच गई हैं। कश्मीर से लेकर तमिलनाड़ु तक गैर-हिंदीभाषी राज्यों की सरकारों ने केंद्र सरकार के इस निर्देश पर ऐतराज जताया है। यहीं नहीं मोदी सरकार को इस पर अपने ही सहयोगी दलों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। पीएमके और एमडीएमके ने इस पर आपत्ति जाहिर की है।
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता और डीएमके प्रमुख एम. करुणानिधि ने इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर विरोध दर्ज कराया है। चिट्ठी में जयाललिता ने लिखा है कि 1968 में हुए संशोधन के तहत अस्तित्व में आए आधिकारिक भाषा ऐक्ट 1963 के अनुच्छेद 3(1) में कहा गया है कि केंद्र और गैर हिंदीभाषी राज्यों के बीच संवाद के लिए अंग्रेज़ी भाषा का उपयोग किया जाएगा। उन्होंने सोशल मीडिया पर होने वाले संवाद की भाषा अंग्रेजी बनाए रखने की मांग करते हुए तमिल समेत आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं को भारत की आधिकारिक भाषा घोषित करने की अपनी मांग दोहराई है।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर उब्दुल्ला ने भी केंद्र पर दूसरे राज्यों पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया। उमर ने कहा कि भारत अलग-अलग धर्म और भाषाओं का देश है। भाषा को थोपने की कोशिश यहां संभव नहीं है।

एनडीए के घटक दल एमडीएमके प्रमुख वाइको ने तो गैर हिंदीभाषी राज्यों पर हिंदी थोपने को भारत की अखंडता के लिए खतरनाक बता दिया। वाइको ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सोए शेर को न जगाए। एनडीए के दूसरे घटक दल पीएमके ने भी इसका विरोध किया है। पीएमके प्रमुख रामदॉस ने बयान जारी करते हुए कहा कि सरकार को सोशल मीडिया में हिंदी थोपने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। उन्होंने 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा घोषित करने की मांग की।
गौरतलब है कि गुरुवार को गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग ने निर्देश जारी कर कहा कि नई सरकार सभी विभागों एवं सार्वजनिक जीवन में हिंदी मे कामकाज को बढ़ावा देगी। गृह मंत्रालय ने नौकरशाहों को कथित तौर पर निर्देश दिया था कि वे फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग, गूगल और यू-ट्यूब जैसी सोशल मीडिया साइटों पर हिंदी को प्राथमिकता दें।

गुरुवार, 19 जून 2014

हिंदी की बजाय विकास पर ध्‍यान दें मोदी: करुणा‍निधि

गृह मंत्रालय में अब सभी कामकाज हिंदी में होंगे. इस संबंध में बुधवार को गृह मंत्रालय ने निर्देंश जारी कर दिए । बताया जाता है कि सबसे अधिक हिंदी का इस्‍तेमाल करने वाले नौकरशाहों को पुरस्‍कृत भी किया जाएगा. सभी पीएसयू और केंद्रीय मंत्रालयों के लिए सोशल मीडिया और इंटरनेट पर हिंदी को अनिवार्य किया गया. गौरतलब है कि केंद्र सरकार चाहती है कि उसके अफसर हिंदी में ट्वीट करें और साथ ही फेसबुक, गूगल, ब्लॉग्स वगैरह में भी इसका इस्तेमाल करें. ऐसा निर्देश गृह मंत्रालय ने दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद के कारण ऐसा किया जा रहा है।
मालूम हो कि गृह मंत्रालय ने 27 मई को एक पत्र लिखा था, जिसमें सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वालों (सरकार तथा सरकारी अधिकारियों) के लिए हिंदी भाषा का इस्‍तेमाल अनिवार्य माना गया है. पत्र में कहा गया था कि सरकारी अधिकारियों को अपने कमेंट अंग्रेजी के अलावा हिंदी में भी पोस्ट करने होंगे. कुल मिलाकर उनसे हिंदी को वरीयता देने का कहा गया है. गृह मंत्रालय के पत्र में कहा गया है कि इस निर्देश को सभी विभागों के संज्ञान में लाया जाए।
कई सरकारी अधिकारी ट्वीट तो करते हैं लेकिन अंग्रेजी में. इनमें विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरूद्दीन भी हैं. वह विदेश मंत्रालय की ओर से ट्वीट करते हैं. लेकिन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर हिंदी और इंग्लिश दोनों में ट्वीट करते हैं. निर्मला सीतारमण इंग्लिश, हिंदी और तमिल में ट्वीट करती हैं. बीजेपी के मुख्यमंत्री रमन सिंह, शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे अक्सर हिंदी में ट्वीट करते हैं।


हिंदी पर हर काम करने को लेकर फैसले की चारों तरफ आलोचना होने लगी है. डीएमके प्रमुख करुणनिधि ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सोशल नेटवर्क पर हिंदी के इस्‍तेमाल और गृह मंत्रालय के बुधवार को जारी निर्देश पर आपत्ति जताई है. करुणानिधि ने कहा है कि मोदी को हिंदी की बजाय विकास पर ध्‍यान देना चाहिए. उन्‍होंने कहा कि यह गैर हिंदीभाषियों को दोयम दर्जे की तरह समझने जैसा है.

मंगलवार, 17 जून 2014

तमिलनाडु में भी हिंदी की डिमांड

जब 1960 के दशक में तमिलनाडु में हिंदी सीखने को कंपलसरी किया गया, तो कई हिंसक प्रदर्शन हुए। लेकिन, अब हालात में बदलाव आया है, क्योंकि कई पैरंट्स और स्कूलों ने तमिल के एकाधिकार को चुनौती देते हुए एक लड़ाई शुरू कर दी है और वे अब हिंदी को चाहते हैं। 
कोर्ट में दी दस्तक
स्कूल्स और पैरंट्स के एक ग्रुप ने डीएमके सरकार के 2006 में जारी उस ऑर्डर को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया था कि 10वीं क्लास तक सिर्फ तमिल ही पढ़ाई जाएगी। इस ग्रुप के 5 जून को दाखिल पिटिशन पर मद्रास हाई कोर्ट ने एआईएडीएमके सरकार से जवाब मांगा है। चेन्नै के स्टूडेंट्स का कहना है कि हिंदी और दूसरी भाषाएं नहीं सीखने से देश और विदेश में उनकी नौकरी की संभावनाओं पर असर पड़ रहा है।
 

जॉब की जरूरत
मैरिन इंजीनियरिंग करने के इच्छुक 9वीं क्लास के स्टूडेंट कन्नड़ भाषी अनिरुद्ध का कहना है कि वह महसूस करते हैं कि उन्हें तमिल पढ़ने को मजबूर किया जा रहा है। एक निजी टीवी चैनल को उन्होंने कहा, 'मैं उत्तर भारत में जॉब करना चाहता हूं, सो मुझे हिंदी जानने की जरूरत है।' उनके क्लासमेट अश्विन, जो केरल से हैं, ने कहा, 'मैं फ्रेंच सीखना चाहता हूं, जिससे मुझे विदेश में काम करने के बेहतर मौके मिल सकते हैं।'
 
उठने लगी आवाज
यही नहीं, तमिलभाषी भाई जिशनू और मनु भी संस्कृत और हिंदी पढ़ना चाहते हैं। मनु ने कहा, 'हम घर पर तमिल बोलते हैं। ऐसे में स्कूल में भी इसे सीखना बोरिंग है।' उनके भाई कहते हैं, 'यहां तक कि विदेश में भी स्टूडेंट्स को दूसरी भाषाएं सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।'
 
बहरहाल, राज्य की मेन पॉलिटिकल पार्टियां तमिल पढ़ाने को लेकर एकजुट हैं, जिसे वे अक्सर क्षेत्रीय गौरव से जोड़ते हैं। मद्रास हाई कोर्ट ने 2000 में भी स्कूलों को तमिल भाषा में हिदायत देने को खारिज कर दिया था, लिहाजा इस बार भी फैसला कोर्ट ही करेगा।

रविवार, 8 जून 2014

हिंदी में भाषण

नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही वह चमत्कारी काम कर दियाजो अब तक भारत काकोई प्रधानमंत्री नहीं कर सका। उन्होंने पड़ौसी देशों के नेताओं को भारत तो बुलाया हीउनसे हिंदी में ही बात की। येदोनों काम ऐसे हैंजिनके लिए मैं पिछले कई वर्षों से लड़ रहा हूं। मैं सभी प्रधानमंत्रियों को प्रेरित करता रहा हूं लेकिननरेंद्र मोदी में वह संस्कारसामथ्र्य और ईमानदारी है कि उन्होंने गुलाम मानसिकता को छोड़कर महान प्रधानमंत्रीबनने का मार्ग अपने आप चुन लिया है। भाषा के सवाल पर वे उसी मार्ग पर चल रहे हैं जो गुजरात के दो महापुरुषोंदयानंद और गांधी ने हमें बताया था।

यों तो अटलजी ने हमारा अनुरोध स्वीकार करके संयुक्तराष्ट्र संघ में पहली बार हिंदी में भाषण दिया था लेकिन वहभाषण महान वक्ता अटलबिहारी वाजपेयी का नहीं था। वह अफसरों के अंग्रेजी में लिखे भाषण का अनुवाद हिंदी में था,जिसे उन्होंने संयुक्तराष्ट्र में पढ़ दिया था। प्रधानमंत्री चंद्रशेखरजी ने भी मेरे आग्रह पर मालदीव में हुए दक्षेस सम्मेलनमें अपना भाषण हिंदी में दिया था। वह हिंदी का मौलिक भाषण था लेकिन ये दोनों घटनाएं मात्र औपचारिकताएंबनकर रह गईं। अटलजी के दौर में संयुक्तराष्ट्र में और स्वराष्ट्र में भी अंग्रेजी छाई रही। यही चंद्रशेखरजी के अल्पकालमें भी हुआ। नरसिंहरावजी जब चीन गए तो मैंने एक चीनी विद्वान को अनुवाद के लिए तैयार किया था। वहधाराप्रवाह हिंदी बोलता था और दिल्ली में रहकर पढ़ा था लेकिन राव साहब ने पेइचिंग में अपने भाषण और वार्तालापकी भाषा अचानक अंग्रेजी कर दी।

नरेंद्र मोदी ने दक्षेस-नेताओं से हिंदी में बात की। सभी पड़ौसी देशों के नेता हिंदी बोलते और समझते हैंसिवायश्रीलंका और मालदीव के। पड़ौसी देशों के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों से मैं पिछले 40-45 साल से मिलता रहा हूं।श्रीलंका और मालद्वीव के नेताओं से मुझे अंग्रेजी में मजबूरन बात करना पड़ती है वरना नेपालपाकिस्तान,अफगानिस्तानबांग्लादेशभूटान और तिब्बत के नेताओं और आम लोगों से हिंदी में ही बात होती है। नरेंद्र मोदी कोचाहिए कि वे किसी भी औपचारिक अवसर पर हिंदी के अलावा किसी भी विदेशी भाषा में बात  करें। अपनी भाषा मेंकूटनीति करने का महत्व सदियों से स्वयंसिद्ध हो चुका है। संधियों और कानूनी दस्तावेजों में भी स्वभाषा के प्रयोगके लिए सभी महाशक्तियां जोर देती रही हैं। यदि हम अंग्रेजी की बजाय संबंधित देशों की भाषाओं में अनुवादकों केजरिए कूटनीति करें तो हम कहीं ज्यादा प्रभावी और सफल होंगे और अपनी मूलभाषा हिंदी रखें तो पर्याप्त गोपनीयताभी बनाए रख सकेंगे।

क्या विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अपने प्रधानमंत्री के इस स्वभाषा-प्रेम को आगे बढ़ाएंगीसुषमा-जैसी विलक्षणप्रतिभा और वाग्शक्ति की स्वामिनी महिला भी क्या हीन भावना से ग्रस्त हो सकती हैउन्हें अंग्रेजी की गुलामी कीक्या जरुरत हैसुषमाजी के व्यक्तित्व पर लोहियाजी के विचारों कीं गहरी छाप है। वे हिंदी आंदोलन में मेरे साथउत्साहपूर्वक काम करती रही हैं। आज इंडियन एक्सप्रेस में यह पढ़कर मुझे दुख हुआ कि उन्होंने पड़ौसी अतिथियों सेअंग्रेजी में बात की। उन्हें चाहिए कि वे विदेष मंत्रालय के सारे अफसरों से उनका कामकाज हिंदी में करवाएं और खुदउनसे हिंदी में ही बात करें। उन्हें यह आदेश भी दें कि वे अंग्रेजी के अलावा दुनिया की दर्जनों महत्वपूर्ण भाषाएं भी सीखें