शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

प्रेमचन्द की धनिया अभी भी जिन्दा

प्रेमचंद की धनिया करीब 75 साल बाद गोदान (उपन्यास) से निकलकर रायबरेली के अघौरा गांव में खड़ी है। उन्हीं विद्रोही तेवरों के साथ। इस बार उसका नाम विद्यावती पासी है। धनिया के पति होरी की तरह विद्यावती का घरवाला देसराज भी कर्ज में डूबा अपने मुकद्दर को कोसता है, लेकिन अनपढ़ विद्यावती व्यवस्था को चुनौती देती हुई पूछती है कि जब मकान वालों को कॉलोनी (इंदिरा आवास योजना में पक्का मकान) दे दी गई तो हम बिना छत और दीवारों वाले गरीबों को क्यों नहीं? पिछले साल की बारिश में ढह गए अपने एक कच्चे कमरे के घर को दिखाने के लिए ही विद्यावती अचानक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का हाथ पकड़कर उन्हें घर के अंदर ले तो गई थी, मगर बिठाने के लिए उसके पास चारपाई तक नहीं थी। दलितों के गांव वैसे ही हैं। प्रेमचंद बदलाव की कहानियां लिख रहे थे। मगर गरीब के घर नहीं बदले। यह सारे घर रायबरेली के आसपास के इलाकों- प्रतापगढ़ और बनारस के गांवों में ही प्रेमचंद ने देखे थे। सोनिया अपने संसदीय क्षेत्र के विकास पर बहुत ध्यान देती हैं। इस बार काफी सख्त भी दिखीं। मगर व्यवस्था को चलाने वाले भी कम कलाकार नहीं हैं। दौरे के आखिरी दिन बुधवार को सोनिया की गाड़ी के गुजरने के साथ ही आवाज आती है- मैडम गईं, काम बंद कर दो। यह तल्ख सचाई यूपीए की सबसे महत्वाकांक्षी स्कीम ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा )की है। विडंबना यह है कि सरेआम आंखों में धूल झोंकने का यह कारनामा सोनिया के संसदीय क्षेत्र में किया जा रहा है। देश के सबसे हाई प्रोफाइल संसदीय क्षेत्र रायबरेली में नरेगा के कामों में बेशुमार शिकायतें हैं। एक और मिसाल देखिए। सोनिया गांव बदई पुरवा में नरेगा के अंतर्गत सड़क निर्माण का काम देखने गईं। मौके पर कोई मस्टर रोल नहीं थी। कितने लोगों को यहां काम मिला है? अभी कितने ग्रामीण काम कर रहे हैं? पैसा कब से नहीं मिला? जैसे सवालों का ग्राम प्रधान और बीडीओ के पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं था। सोनिया ने जब वहां खुद खड़े होकर हाजिरी लगवाई तो प्रधान ने सच स्वीकार करते हुए कहा- मैडम जब आप आती हैं तो हमारे गर्दन पर तलवार रख दी जाती है। कहा जाता है कि काम शुरू करवाओ। अब जल्दी और घबराहट में गलतियां होती हैं। हमें माफ कर दो। नरेगा का काम राज्य सरकार के अधिकारी करवाते हैं। गांव के सरपंच कहते हैं कि उन्हें नरेगा का काम तभी मिलता है, जब पहले जिला अधिकारियों को उनका कमिशन मिल जाता है। यह पैसा कहां से दिया जाए? गांव के लोग बताते हैं कि नरेगा में काम दस को मिलता है, मस्टर रोल में नाम लिखे जाते हैं पचास। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी भी अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में नरेगा के कामों को लेकर सार्वजनिक रूप से गुस्सा दिखा चुके हैं। एक अधिकारी ने जब गांववालों को गलत करार देने की कोशिश की थी, तब राहुल ने डांटते हुए कहा था कि लोग गलत नहीं बोलते।

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