मंगलवार, 30 नवंबर 2010

मराठी भाषा की फिल्मों को दिखाने और अखबारों को रखने के अलावा इस भाषा में अनाउंसमेंट

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ( MNS ) ने जेट एयरवेज़ से कहा कि मुंबई से ऑपरेट होने वाली फ्लाइट्स में मराठी भाषा की फिल्मों को दिखाने और अखबारों को रखने के अलावा इस भाषा में अनाउंसमेंट भी की जाए। एमएनएस के विधायक नितिन सरदेसाई ने जेट एयरवेज के सीईओ को एक चिट्ठी में लिखा है, ' हमारी मांग है कि आपको मराठी में अनाउंसमेंट शुरू करनी चाहिए। मुंबई से जाने वाली फ्लाइट्स में मराठी फिल्मों को दिखाया जाए और मराठी अखबार रखे जाएं। ' सरदेसाई ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि जेट एयरवेज़ इसका ख्याल नहीं रखती तो उन्हें विकल्प का पता होना चाहिए। सरदेसाई ने कहा कि हाल ही में मुंबई से लंदन की जेट की एक उड़ान में उन्होंने देखा कि हिंदी के साथ ही तमिल, मलयालम और गुजराती में फिल्में दिखाई जा रही हैं। उन्होंने कहा, ' कंपनी का मुख्यालय मुंबई में है। आपको पता है कि आपकी एयरलाइन से लाखों मराठी लोग यात्रा करते हैं। इसके बावजूद आप उनकी सुविधाओं के प्रति उदासीनता दिखाते हैं। '

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

स्व. श्री बाबूराव विष्णु पराडकर जी के 125वीं जयंती को देश भर में जीवंत करने का प्रयास

भारतीय पत्रकारिता की अलख जगाने वाले ख्याति लब्ध पत्रकार स्व. श्री बाबूराव विष्णु पराडकर जी के 125वीं जयंती को देश भर में जीवंत करने का प्रयास किया गया है। इसी कड़ी में उनकी जयंती के सवा सौ साल पूरा होने पर मुंबई यूनिवर्सिटी ने भारतीय पत्रकारिता पर विचार मंथन आयोजित किया है, जिसमें देश भर से विद्वान जुटे हैं। इन्हीं में एक प्रो. राममोहन पाठक बताते हैं कि अंग्रेजी शासन की दमनकारी तोप के मुकाबिल अपना हथियार यानी अपना अखबार लेकर खड़े साधनहीन-सुविधा विहीन संपादकों की कड़ी में एक नाम- बाबूराव विष्णु पराडकर ही काफी है। एनबीटी से विशेष बातचीत में प्रो. पाठक ने मौजूदा पत्रकारिता पर चर्चा करते हुए बताया कि उद्वेलन के इस दौर में पराडकर को भारतीय पत्रकारिता की थाती समझकर उनसे काफी कुछ सीखा-समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि आधुनिक पत्रकारिता के इस दौर में आज मीडिया कर्म, मीडिया की भूमिका और मीडियाकर्मियों के समक्ष तमाम सवाल खड़े किए जा रहे हैं। एक जेब में पिस्तौल, दूसरी में गुप्त पत्र 'रणभेरी' और हाथों में 'आज'-'संसार' जैसे पत्रों को संवारने, जुझारू तेवर देने वाली लेखनी के धनी पराडकरजी ने जेल जाने, अखबार की बंदी, अर्थदंड जैसे दमन की परवाह किए बगैर पत्रकारिता का वरण किया। मुफलिसी में सारा जीवन न्यौछावर करने वाले इस मराठी मानुष ने आजादी के बाद देश की आर्थिक गुलामी के खिलाफ धारदार लेखनी चलाई। मराठी भाषी होते हुए भी हिंदी के इस सेवक की जीवनयात्रा अविस्मरणीय है। प्रो. पाठक के मुताबिक पराडकरजी मिशनरी जर्नलिज्म के शीर्ष मानदंड हैं, यही वजह है कि सवा सौ साल बाद भी वे प्रासंगिक हैं।