बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

राजभाषा के रूप में हिन्दी को दिशा मिलने की क्या संभावना बनती है ।

बडोदरा में राजभाषा विभाग द्वारा दिनांक २८ फरवरी २००९ को एक राजभाषा सम्मेलन का आयोजन महज एक दिखावा है राजभाषा के रूप में हिन्दी को बढावा देने के लिए जो उपाय करने चाहिये उनमें अभी भी बहुत सी कमियां है और उन्हे दूर करने के लिए राजभाषा विभाग के पास कोई भी ठोस उपाय नहीं है । यह स्पष्ट है कि अभी हॉल में हुए सर्वेक्षण के मुताबिक करीब १७० भारतीय भाषाएं विलुप्त हो जांएगी, यह खतरा हमें इस बात का संकेत दे रहा है कि भविष्य में हिन्दी का भी यही हाल हो सकता है ।

भारत सरकार ने राजभाषा विभाग को यह जिम्मेदारी सौंपी है कि वह इस कार्यकी भरपाई करें , परन्तु ढाक के वही तीन पात , कुछ भी नहीं हो पा रहा है इस सम्मेलन में भी जो कार्यक्रम बनाया गया है वह लीक से हटकर नहीं है अतः हमें इस सम्मेलन से भी कोई आशा की किरण नजर नहीं आती,देखते है कि क्या होता है इस सम्मेलन में , और राजभाषा के रूप में हिन्दी को दिशा मिलने की क्या संभावना बनती है ।

1 टिप्पणी:

नेपाल हिन्दी सहित्य परिषद ने कहा…

हिन्दी विश्व भाषा बनने की राह पर अग्रसर है। लेकिन दुःख की बात है की भारत सरकार मे बैठे नेता हिन्दी के विकास के प्रति इमान्दार नही है। हिन्दी मे उच्चतम शिक्षा प्राप्त कर सकना हरेक भारतीय का अधिकार है।