गुरुवार, 27 नवंबर 2014

हिंदी के कारण 4 साल लटकी रही ऑडिट रिपोर्ट

उत्तरप्रदेश के  पंचायती राज विभाग की ऑडिट रिपोर्ट प्रदेश सरकार चार साल तक सदन में पेश नहीं कर पाई। वर्ष 2010-11 की ऑडिट रिपोर्ट सरकार ने बुधवार को विधान परिषद में पेश की।
सरकार ने खुद माना है कि यह रिपोर्ट विलंब से पेश की गई लेकिन इसकी जो वजह बताई वह सदन में विपक्ष को गले नहीं उतरी। सरकार ने कहा है कि इसकी यथोचित प्रतियां हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि में प्राप्त करने में विलंब हुआ।
विधान परिषद में प्रदेश सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं की तकनीकी ऑडिट रिपोर्ट और पंचायती राज एवं सहकारी समितियों का बजट ऑडिट पेश किया। मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी सहकारी समितियां और पंचायतें उत्तर प्रदेश की इस रिपोर्ट को पेश करने के दौरान ही सरकार ने लिखित में माना है कि 2010-11 की यह रिपोर्ट विलंब के कारणों सहित पेश की जा रही है।
सदस्यों को इसके कारण भी लिखित तौर पर बताए गए। इसमें लिखा है कि हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि में उपलब्ध न होने के कारण विलंब हुआ। इस पर बीजेपी विधान परिषद दल के नेता ने सवाल उठाया कि क्या विभाग में पूरा काम अंग्रेजी में होता है?
विभाग में लोग हिंदी नहीं जानते और क्या कोई अनुवादक भी नहीं है। इस पर सरकार की ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल सका और कहा गया कि कारणों सहित रिपोर्ट पेश कर दी गई है।

बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

शुभेच्छा

सभी पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभेच्छा ।


(डॉ. राजेन्द्र कुमार गुप्ता)

सोमवार, 29 सितंबर 2014

भाषण की समाप्ति संस्कृत के श्लोक से

शनिवार को न्यू यॉर्क के सेंट्रल पार्क में नरेंद्र मोदी ने युवाओं में जोश भरने वाले भाषण से वहां मौजूद हजारों की तादाद वाली भीड़ का दिल जीत लिया। मोदी ने सेंट्रल पार्क में हुए ग्लोबल सिटिजन फेस्टिवल में हिस्सा लेते हुए स्पीच में से 7 मिनट अंग्रेजी में भाषण दिया। इसके बाद मोदी ने अपने भाषण का समाप्ति संस्कृत के श्लोक से की।
रंगारंग कार्यक्रम के दौरान फिल्म ऐक्टर ह्यू जैकमन ने उन्हें एक 'चाय बेचने वाले' से गुजरात के सीएम बनने और फिर देश के प्रधानमंत्री वाले व्यक्ति के तौर पर भीड़ से इंट्रोड्यूस करवाया। मोदी ने जनता को संबोधित करते हुए टीवी, लैपटॉप, टैबलट और फोन पर उन्हें देखने वालों को भी नमस्ते कहा। मौजूद लोगों ने हाथ हिलाकर और जोरदार तालियां बजाकर मोदी का स्वागत किया।
उन्होंने कहा कि वे बंद कमरे की बजाय पार्क में खुले में युवाओं के बीच ज्यादा बढ़िया महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा, 'क्योंकि आप लोग भविष्य हो। आप जो आज करोगे, उसी से आने वाला कल निर्धारित होगा।'

मोदी ने कहा, 'कुछ लोग विश्वास करते हैं कि दुनिया में बुजुर्गों के ज्ञान के जरिए बदलाव होता है। मैं सोचता हूं कि आदर्शवाद, प्रयोगों, ऊर्जा और युवाओं का कुछ कर दिखाने का जज्बा और बर्ताव ज्यादा ताकतवर होता है।'
उन्होंने यह भी कहा,'भारत के युवाओं से भी मुझे यही उम्मीद है कि वे राष्ट्र को बदलने में हाथ मिलाकर चलेंगे।' इस स्पीच के बाद उन्होंने इसका अंत संस्कृत के इस श्लोक से किया-
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिन सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्ति।।

बुधवार, 17 सितंबर 2014

हिंदी माता हाउस वाइफ बनकर रह गई

व्यक्ति जिस भाषा में दूसरो की मां-बहनों को याद करता है, वही उसकी मातृभाषा होती है। मातृभाषा की यह एक सहज स्वीकार्य परिभाषा हो सकती है। लेकिन, भारतवर्ष में परायों को याद करने के लिए पराई भाषा के इस्तेमाल का चलन लगातार बढ़ रहा है। अब गालियां भी अंग्रेजी में दी जाती हैं। इसलिए मातृभाषा की परिभाषा हमारे लिए कुछ बदल गई है। थोड़ी-बहुत असहमतियों के साथ यह माना जा सकता है कि जिस भाषा की आप सबसे ज्यादा मां-बहन कर सकें, वही आपकी मातृभाषा है। इस खांचे में फिट करके देखें तो हिंदी के मातृभाषा होने में कोई शक नहीं रह जाता।
देश आजाद हुआ तो हिंदी माता को सरकारी बाबुओं के हवाले कर दिया गया गया। बाबुओं ने कहामाई चिंता मत करो, अब हर जगह तुम्हारा ही राज होगा। तुम्हारा खयाल रखने के लिए हर सरकारी दफ्तर में एक अधिकारी रखा जाएगा, जिसका काम ब्लैक बोर्ड पर रोजाना तुम्हारे नाम का एक शब्द लिखना और हर साल 14 सितंबर को तुम्हारे सम्मान में एक कार्यक्रम आयोजित करना होगा। हिंदी अधिकारी तुम्हारे लिए यदा-कदा कवि सम्मेलन भी करवाएगा, जिसमें आनेवाले कवियों को शॉल और श्रीफल के साथ राह खर्च भी दिया जाएगा। देखना माई सरकारी प्रयास से कश्मीर से कन्याकुमारी तक किस तरह लोग तुम्हारी जय-जयकार करेंगे। हिंदी ने कहाअभी मेरी उम्र ही क्या है, मेरे माथे पर बिंदी लगाकर क्यों मुझे माई बनाते हो। मैं अपनी राह खुद चल सकती हूं। लेकिन बाबुओ ने कहा- माताजी ऐसा कैसे हो सकता है, आप अपनी राह चलेंगी तो हमारी नौकरी का क्या होगा। आपके नाम पर देश-विदेश में सम्मेलन कैसे होंगे। नेताओं और बाबुओं को फोकट में विदेश यात्रा के अवसर कैसे मिलेंगे और फिर हम आपकी सेवा ही तो कर रहे हैं।
लेकिन, हिंदी कहां ठहरने वाली थी! अपनी रफ्तार से चलने लगी। गुजरात और महाराष्ट्र पार करके जैसे ही दक्षिण की तरफ बढ़ी कि बवाल शुरू हो गया। हिंदी माता के सपूत मद्रास से लेकर मदुरै तक जगह-जगह पिटने लगे। साइन बोर्ड मिटाए जाने लगे। हिंदी के खिलाफ राजनीतिक स्लोगन बनाए जाने लगे। यह सब देखकर घबराए चाचा नेहरु ने अपने बाबुओं की खबर ली 'तुम लोगो से कहा था, हिंदी माता को इस तरह बेलगाम मत छोड़ो। हिंदी माता का तमिल अम्मा के इलाके में क्या काम? उन्हे पता नहीं कि वह इलाका कितना डेंजरस है। अगर उन्हें और उनके सपूतों को कुछ हो गया तो मैं पूरे देश को क्या जवाब दूंगा?'
चाचा नेहरू ने पूरे देश को समझाया कि ठीक है, हिंदी हमारी मां है। लेकिन अलग-अलग राज्यों में जितनी भी मौसियां हैं, वे भी मां समान हैं। मौसियों को हिंदी माता से कोई बैर नहीं। लेकिन मौसेरे भाइयों का मैं कुछ नहीं कर सकता। इसलिए सीधा रास्ता यही है कि हिंदी माता बाबुओं की निगरानी में आराम फरमाएं, अपने हार्टलैंड से निकलकर कहीं बाहर ना जाएं। चाचा नेहरू ने देश से यह भी कहा कि यह हर्गिज मत भूलो कि तुम्हारी एक पितृभाषा भी है। भारतीय समाज में बाप का दर्जा मां से बड़ा होता है। हमेशा मां का पल्लू पकड़े रहोगे तो जिंदगी में कुछ नहीं कर पाओगे। मातृभाषा लोरी सुनने के लिए ही ठीक है, भारत में रहकर रोटी कमाना चाहते हो तो अंग्रेजी सीखो। पूरा देश चाचा की दिखाई राह पर चल पड़ा। नतीजा यह हुआ कि हर जगह अंग्रेजी वाले के बाप का राज कायम हो गया और हिंदी माता हाउस वाइफ बनकर रह गई।

सोमवार, 15 सितंबर 2014

मुंबई विश्वविद्यालय में हिंदी दिवस मनाया गया।

भारत में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को 'हिंदी-दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर जहां मुंबई स्थित विभिन्न विद्यालयों, महाविद्यालयों और मुंबई विश्वविद्यालय में हिंदी दिवस मनाया गया। वहीं, बैंकों और अन्य गैर सरकारी संस्थानों में भी हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में कई कार्यक्रम आयोजित हुए। इस अवसर विदेशियों ने भी हिंदी भाषा की गरिमा को समझते हुए विभिन्न दूतावासों में भारतीयों के साथ शनिवार को हिंदी भाषा में बातचीत करते हुए नजर आए।
सातांक्रुज-वकोला स्थित पब्लिक नाइट कॉलेज के प्रिसिंपल योगेश नारायण दूबे की ओर से परिसर में हिंदी दिवस सम्मान समारोह का आयोजन किया गया था, जबकि ग्रांट रोड स्थित बीएम रुइया गर्ल्स कॉलेज में मंगलवार को सांस्कृतिक कार्यक्रम, वादविवाद और काव्य पाठ एवं प्रतियोगिता की जाएगी। घनश्याम दास सराफ कॉलेज में डॉ. अचला नागर की उपस्थिति में हिंदी सिनेमा से जुड़े कवियों के गीतों का गायन और योगदान की चर्चा की गई।
घाटकोपर स्थित झुनझुनवाला कॉलेज में भाषण और निबंध प्रतियोगिता, जबिक आर.एन. रुईया कॉलेज में निबंध, स्वरचित काव्य प्रतियोगिता एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित हुआ था। गौरतलब है कि 14 सितंबर, 1949 के दिन संविधान में हिंदी को राजभाषा घोषित करने के उपलक्ष्य में हिंदी दिवस और हिंदी पखवाड़ा मनाया जाता है।
हिंदी दिवस के मौके पर शहर के कई अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में सभी कामकाज एवं पढ़ाई हिंदी में होने की बात विद्यालय प्रबंधन समिति ने कही है। कांदिवली स्थित सेंट लॉरेंस हाईस्कूल के प्रधानाचार्य शशिशेखर चौहान ने बताया कि हिंदी दिवस के मौके पर छात्रों के बीच होने वाली असेंबली बैठक में हिंदी को वरियता दी गई। छात्र-छात्राओं ने हिंदी में काव्य पाठ, काव्य लेखन किया और भाषण दिया। वहीं, अंधेरी स्थित हंसराज मोरारजी पब्लिक स्कूल के शिक्षक सह एसएससी समिति सदस्य उदय नरे ने बताया कि इस अवसर पर विद्यालयों में राष्ट्रभाषा हिंदी के बारे में बच्चों को जानकारी देते हुए हिंदी का महत्व समझाया गया। मालाड स्थिति लेडी फातिमा देवी इंग्लिश उच्च विद्यालय में वाद-विवाद एवं काव्य प्रतियोगिता का आयोजन होने की बात शिक्षक राजेश पंड्या ने कही।
मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में भी हिंदी की भूमिका एवं महत्व के बारे में परिर्चचा की गई। कुल मिलाकर हिंदी दिवस के मौके पर शैक्षणिक संस्थाएं 'हिंदीमय' नजर आया।

गुरुवार, 28 अगस्त 2014

हिंदी समेत देवनागरी लिपि वाली 8 भारतीय भाषाओं के लिए डोमेन नाम लॉन्च

भारत सरकार ने हिंदी समेत देवनागरी लिपि वाली 8 भारतीय भाषाओं के लिए डोमेन नाम लॉन्च कर दिया है। अब इंटरनेट पर कोई वेबसाइट अपना नाम देवनागरी लिपि में रखते हुए पीछे .com या .in जैसे डोमेन की जगह .भारत रख सकती है।
जैसे registry.in को वेब ब्राउज़र में रजिस्ट्री.भारत लिखकर भी खोला जा सकता है। अगर आप टाइप न कर सकते हों, तो ब्राउज़र में 'रजिस्ट्री.भारत' कॉपी-पेस्ट करके देख सकते हैं।
अब वेबसाइट के नाम देवनागरी लिपि का इस्तेमाल करने वाली भाषाओं हिंदी, बोडो, डोगरी, कोंकणी, मैथिली, मराठी, नेपाली और सिंधी में रखे जा सकते हैं।
नैशनल इंटरनेट एक्सचेंज ऑफ इंडिया (NIXI) के सीईओ गोविंद
 पहले ही बता चुके हैं कि ऐसे हर डोमेन का चार्ज 350 रुपए होगा। सब-डोमेन 250 रुपए में मिलेगा। शुरू के दो महीने में यह उन कंपनियों के लिए होगा, जिनके पास कॉपीराइट या ट्रेड मार्क है। इसके बाद यह सभी के लिए उपलब्ध होगा। डोमेन नाम के पंजीकरण में लगी कंपनियां भी हिंदी स्क्रिप्ट वाले डोमेन नाम का पंजीकरण कर सकती हैं।
टेलिकॉम और आईटी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा, 'यह पहल केवल 8 भाषाओं पर नहीं रुक जाएगी। मैंने विभाग से कहा है कि .भारत डोमेन सभी भारतीय भाषाओं में जल्द उपलब्ध होना चाहिए।'
इसके लिए NIXI जल्द ही बांग्ला, उर्दू, पंजाबी, तेलुगू, तमिल और गुजराती के लिए डोमेन नाम जारी करेगी।
रवि शंकर प्रसाद ने बताया, 'हम इस साल 60,000 गांवों तक ब्रॉडबैंड पहुंचा देंगे। अगले साल एक लाख और उसके अगले साल भी एक लाख गांवों तक नैशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क के जरिए ब्रॉडबैंड पहुंचा दिया जाएगा।' मार्च 2017 तक 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड पहुंचाया जाना है, जिसमें 35,000 करोड़ रुपए खर्च होंगे।

बुधवार, 20 अगस्त 2014

हिंदी अदालती कामकाज की आधिकारिक भाषा

अंग्रेजी के बजाय हिंदी को अदालती कामकाज की आधिकारिक भाषा बनाने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कानून मंत्रालय और गृह मंत्रालय को नोटिस जारी किया है। याचिका में कहा गया कि मुकदमे हारने या जीतने वालों को अंग्रेजी में लिखे गए फैसले बमुश्किल ही समझ में आते हैं। जस्टिस एच एल दत्तू और जस्टिस एस ए बोबडे की बेंच ने वकील शिवसागर तिवारी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है। 
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में अंग्रेजी ही आधिकारिक भाषा है। किसी भी राज्य के राज्यपाल अपने यहां के हाई कोर्ट में किसी अन्य भाषा के इस्तेमाल का आदेश दे सकते हैं। निचली अदालतों में हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं का खूब इस्तेमाल होता है।
 

याचिका में दावा किया गया कि स्वतंत्र भारत के शुरुआती 15 वर्षों के लिए ही अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा के रूप में इस्तेमाल करने की बात की गई थी और उसके बाद हिंदी को यह दर्जा मिलना था, लेकिन अब तक इस दिशा में कुछ भी नहीं किया गया है। याचिका में मांग की गई कि देश के सभी हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट में देवनागरी लिपि में हिंदी को अपनाया जाए। 
उत्तर प्रदेश निवासी 75 वर्षीय तिवारी ने संविधान के अनुच्छेद 349 का हवाला दिया, जिसके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है। तिवारी ने याचिका में कहा, 'इसके कारण वादियों को मजबूरन अंग्रेजी का इस्तेमाल करना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट में फैसले अंग्रेजी में सुनाए जाते हैं। विदेशी भाषा में सुनाए गए फैसले वादियों को समझ में नहीं आते हैं, भले ही वे कितने भी पढ़े-लिखे हों क्योंकि विदेशी भाषा की तासीर ही कुछ ऐसी है।'
 
उन्होंने दलील दी, 'इंसाफ का तकाजा यही है कि जो भी निर्णय हो, वह वादी की समझ में आना चाहिए। वादियों को तो दरअसल वकील लोग बताते हैं कि वे मुकदमा हार गए हैं या जीत गए हैं। अगर कोई फैसला देश की राष्ट्र भाषा में सुनाया जाए तो 90 प्रतिशत जनता उस फैसले को समझ सकेगी।'
 याचिका में यह भी कहा गया कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के अलावा दुनिया के किसी भी देश में अंग्रेजी अदालती कामकाज की भाषा नहीं है। याचिका में कहा गया कि अगर किसी को देश की आधिकारिक भाषा यानी हिंदी की अच्छी समझ न हो तो उसे न्यायिक सेवा में भी नहीं लिया जाना चाहिए। तिवारी ने कहा कि आईएएस और आईपीएस अधिकारियों को भी हिंदी में काम करना होता है, भले ही उनकी मातृभाषा दूसरी हो। सेना के अधिकारियों के लिए भी हिंदी ज्ञान अनिवार्य है। 

गुरुवार, 14 अगस्त 2014

हिंदी लैंग्वेज का मिक्स है , सुपरहिट

जिन वजहों से हिंदी साहित्य के आलोचक इन राइटर्स की बुराई करते हैं, उसको ही इन्होंने अपनी ताकत बना लिया है। हिंदी की एक बेस्ट सेलर के लेखक निखिल सचान हों या दिव्य प्रकाश, सबका यही कहना है कि हिंदी में अंग्रेजी की मिक्सिंग में कोई बुराई नहीं है। उनका मनना है कि लोग जिस भाषा में बात करते हैं, उसी भाषा में पढ़ना भी चाहते हैं। कठिन हिंदी को पढ़ने-समझने के लिए यंग जनरेशन के पास वक्त नहीं है। वे तो हर किताब में खुद को ढूंढते हैं और जहां उन्हें अपना अक्स दिखता है, उसे अपना लेते हैं।
मिसाल के तौर पर दिव्य प्रकाश अपनी कहानियों में किसी कॉरपोरेट पात्र का लिखा हुआ लेटर अंग्रेजी में ही लिखते हैं, क्योंकि असल जिंदगी में शायद ही कोई कॉरपोरेट एम्प्लॉई हिंदी में ऑफिशल लेटर लिखता हो। उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं कि इसे कितना स्वीकार किया जाएगा। ऐसा वह अपनी राइटिंग की शुरुआत से ही कर रहे हैं और ऐसा करने में उन्हें कोई हिचक नहीं है।
अगर इन टेक्नोक्रेट राइटर्स की यूएसपी पर गौर करें तो कहीं-न-कहीं नई तकनीक की बेहतर समझ इन्हें परंपरागत हिंदी राइटर्स से अलग करती है। यह समझ केवल तकनीक के इस्तेमाल तक सीमित नहीं है, बल्कि उसके आसपास के माहौल तक बिखरी हुई है। हर राइटर जानता है कि आज की दुनिया के कैरक्टर्स तकनीक को कैसे और किस हद तक इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा, तकनीक उनकी कहानियों और किताबों को दूरदराज तक कैसे पहुंचा सकती है, इसकी समझ भी उन्हें खूब है। लगभग सभी राइटर्स अपने रीडर्स से सोशल मीडिया के जरिए जुड़े हुए हैं, जिससे उन्हें फौरन फीडबैक भी मिलता है।
आईआईटी दिल्ली के स्टूडेंट रहे राइटर प्रचंड प्रवीर का कहना है कि सोशल साइट्स के जरिए उन्हें यह पता चलता रहता है कि उनके रीडर्स का बैकग्राउंड क्या है और उनकी पहुंच कितनी है? इसके अलावा अपनी कहानी या किताब के लिए खास प्रोमो बनाना हो या यूट्यूब पर एक विडियो बनाना हो, ये सब भी इन्हें बखूबी आता है और ये टोटके कमाल करते हैं।
चेतन भगत की 'फाइव पॉइंट सम वन' जब सिनेमा के पर्दे पर 'थ्री इडियट्स' की शक्ल में उतरी, तभी से पॉप्युलर राइटर्स के लिए एक नए युग की शुरुआत हो गई। लोगों में पॉप्युलर हो चुकी कहानी सिनेमा में हिट थी और यह यंग राइटर्स के लिए एक चार्म की तरह सामने आया। 'नमक स्वादानुसार' किताब के राइटर निखिल का कहना है कि अगर बॉलिवुड में मौका मिला तो जरूर लिखूंगा, लेकिन अपनी शर्तों पर। इस मामले में दिव्य प्रकाश काफी लिबरल हैं। वह पहले ही पीयूष मिश्रा के साथ एक शॉर्ट फिल्म लिख चुके हैं और एक अनाम फिल्म लिखने की तैयारी भी कर रहे हैं। दिव्य कहते हैं, 'सिनेमा के जरिए मेरी कहानी बलिया, लंदन, लखनऊ और मुंबई में साथ-साथ पहुंचती है और एक राइटर को इससे ज्यादा क्या चाहिए?' वह मशहूर राइटर राही मासूम रजा की उन लाइनों को अपनी प्रेरणा मानते हैं, जिसमें राही कहते हैं कि अगर फिल्म में चार सीन भी किसी लेखक के मन के हैं तो इससे वह लाखों लोगों तक अपनी बात पहुंचा सकता है।

गुरुवार, 31 जुलाई 2014

जमकर हंगामा

सिविल सेवा ऐप्टिट्यूड टेस्ट (सीसैट) के पैटर्न में बदलाव की मांग को लेकर यूपीएसी के छात्रों ने बुधवार शाम को जमकर हंगामा किया। धरने पर बैठे छात्रों और समर्थकों ने एक पुलिस बूथ और डीटीसी की एक बस में आग लगा दी। आग की वजह से बूथ में रखे कुछ कागजात जल गए। छात्रों के उग्र रूप को देखते हुए पुलिस ने लाठीचार्ज किया और कुछ छात्रों को हिरासत में ले लिया। इसके बाद पुलिस ने मुखर्जी नगर इलाके में धारा-144 लागू कर दी है।
बताया जा रहा है कि सीसैट को लेकर अनशन पर बैठे चार छात्रों समेत दस लोगों को पुलिस ने तबीयत खराब होने की वजह से हिंदूराव अस्पताल में ऐडमिट कराया था। इन छात्रों को वॉर्ड नंबर छह में रखा गया था।
इसी बीच दो छात्र अस्पताल से भागकर फिर से अनशन स्थल पर पहुंच गए और पुलिस के विरोध में कैंडल मार्च निकालने का फैसला किया। लेकिन जब 9 बजे रात को छात्र कैंडल मार्च करते हुए हिंदूराव अस्पताल की तरफ बढ़ने की कोशिश कर रहे थे, तो मौके पर तैनात पुलिस बलों ने उन्हें रोका। वहां कहासुनी होने लगी और मामला इतना बढ़ गया कि छात्रों ने पुलिस बूथ में आग लगा दी। मौके पर पहुंचे दो फायर टेंडर ने आग पर काबू पाया।
यूपीएससी में सीसैट का विरोध कर रही अखिलेश सरकार लगता है राज्य लोक सेवा आयोग में इसे हटाने के मूड में नहीं है। 3 अगस्त को होने वाले पीसीएस 2014 के प्री एग्जाम में सी-सैट हटाने के लिए बुधवार को सैकड़ों छात्रों ने आयोग का घेराव किया।
सुबह से यह प्रदर्शन देर शाम तक चला। पुलिस ने लाठीचार्ज करने के साथ दर्जनभर छात्रनेताओं को हिरासत में लिया है।

सोमवार, 28 जुलाई 2014

हिंदी बड़ी कूल

हिंदी में लिखने वाली यह नई पीढ़ी हर मायने में उस सेट खांचे से अलग है, जो हिंदी की दुनिया ने गढ़े हैं। इनकी लिखने की शैली अलग है, उनकी कहानियां के पात्र अलग हैं। वे दुनिया को ज्यादा नजदीक से देखते-समझते हैं और फिर उसे ज्यों का त्यों कैनवस पर उतार देने में महारत रखते हैं। वे इस राइटिंग को बेहद कूल मानते हैं। इंजीनियरिंग और एमबीए की डिग्री ले चुके दिव्य प्रकाश दुबे कहते हैं कि उन्हें तब बड़ी खुशी हुई, जब अंग्रेजी में लिखने-पढ़ने वाले उनके दोस्तों ने उनकी एक हिंदी किताब पढ़ी और कहा 'हिंदी इज कूल यार, हिंदी की कुछ और किताबें बताओ।'
दरअसल, हिंदी की नई पौध की सबसे बड़ी चुनौती ही है, हिंदी के ऊपर से कूल न होने का टैग हटाना। इन राइटर्स का मानना है कि उन्हें कई बार अहसास हुआ है कि रीडर हिंदी किताब को हाथ में लेकर खुद को अडवांस और कूल नहीं दिखा पाता, जैसा कि अंग्रेजी के रीडर कर पाते हैं। वे मानते हैं कि 'कूल' और 'अनकूल' की यह लड़ाई लंबी है और वे इसे जीत कर रहेंगे

शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

सिविल सेवा परीक्षा में सीसैट का विरोध कर रहे छात्रों ने गुरुवार रात मुखर्जी नगर इलाके में जबर्दस्त तोड़फोड़ की

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल सेवा परीक्षा में सीसैट का विरोध कर रहे छात्रों ने गुरुवार रात मुखर्जी नगर इलाके में जबर्दस्त तोड़फोड़ की और बवाल मचाया। 
प्रदर्शनकारी छात्रों ने पत्थरबाजी की और कई गाड़ियों को अपना निशाना बनाया। मिली जानकारी के मुताबिक, छात्रों ने एक बस और पुलिस वैन में आग लगा दी। साथ ही, एक बाइक भी फूंक डाली। पुलिस ने बेकाबू हुए प्रदर्शनकारी छात्रों को नियंत्रण में करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े। गुस्साए छात्र प्रीलिमनरी टेस्ट (पीटी) को कैंसल किए जाने की मांग कर रहे थे।
 
सिविल सर्विसेज एग्जाम की तैयारी कर रहे ये छात्र इस बात से नाराज थे कि सरकार की हाल की घोषणा के बावजूद यूपीएससी ने 24 अगस्त को होने वाली प्रारंभिक परीक्षा में बैठने वाले अभ्यर्थियों को गुरुवार से ऐडमिट कार्ड जारी करना शुरू कर दिया। जबकि सरकार द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय समिति सिविल सेवा ऐप्टिट्यूट टेस्ट (सीसैट) के पैटर्न को बदलने की परीक्षार्थियों की मांग की स्टडी कर रही है, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले छात्रों और अन्य भाषाई विद्यार्थियों को समान अवसर मिल सकें।

कार्मिक, जन शिकायत और पेंशन राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने सोमवार को कहा था कि सरकार 2-3 दिन में इस मुद्दे पर फैसला करेगी। सिंह ने यूपीएससी से विद्यार्थियों की मांग के मद्देनजर परीक्षा की तारीख टालने पर विचार करने को कहा था। लेकिन अभ्यर्थियों को जारी किए जा रहे ऐडमिट कार्ड के मुताबिक प्रारंभिक परीक्षा की तारीख में कोई बदलाव नहीं किया गया है और यह 24 अगस्त को ही होगी।

बुधवार, 16 जुलाई 2014

भाषा के आधार पर भेदभाव किए जाने के आरोपों की जांच के लिए एक कमेटी गठित

हिंदी माध्यम से सिविल सेवा परीक्षा पास करने की चाह रखने वाले उम्मीदवारों के लिए राहत की खबर है. केंद्र सरकार ने परीक्षा के सिस्टम में भाषा के आधार पर भेदभाव किए जाने के आरोपों की जांच के लिए एक कमेटी गठित कर दी है. केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार यूपीएससी परीक्षा के उम्मीदवारों के साथ अन्याय नहीं होने देगी. उन्होंने कहा कि मामले पर विचार करने के लिए 3 सदस्यों की कमेटी बनाई गई है, जो जल्द ही अपनी रिपोर्ट देगी. उसके बाद ही फैसला हो सकेगा. केंद्र सरकार ने मंगलवार को ही संघ लोक सेवा आयोग द्वारा 24 अगस्त, 2014 को आयोजित सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा को स्थगित करने का आदेश दिया है. गौरतलब है कि सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवार सिविल सेवा योग्यता परीक्षा (सी-सैट) को रद्द करने की लगातार मांग कर रहे थे. 
इसके बाद सरकार ने सिविल सेवा की प्रारंभि‍क परीक्षा फैसला होने तक स्थगित करने का निर्देश दिया.

मंगलवार, 1 जुलाई 2014

एटीएम से जल्द अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी रिसीट

जिन राज्यों में हिंदी बोली जाती है, वहां लगे एटीएम से जल्द अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी रिसीट मिलने लगेंगी। गृह मंत्रालय ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से कहा है कि वह बैंकों से ऐसे एटीएम लेने के लिए निर्देश दे, जिनमें इस तरह की सुविधा हो।
इकनॉमिक टाइम्स के पास गृह मंत्रालय की ओर से भेजे गए पत्र की कॉपी है, जिसे 25 फरवरी को आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन, तब के सेक्रेटरी ऑफ डिपार्टमेंट ऑफ फाइनैंशल सर्विसेज राजीव टकरू और इंडियन बैंक्स असोसिएशन के चेयरमैन के आर कामत के नाम लिखा गया था। पत्र में कहा गया था कि भविष्य में वही एटीएम लिए जाएं, जिनसे हिंदी और अंग्रेजी दोनों में रिसीट मिलें। इसके अलावा एटीएम के फॉरेन सप्लायर्स को मौजूदा एटीएम के सॉफ्टवेयर को अपग्रेड करके हिंदी में भी प्रिंटआउट निकालने लायक बनाने के लिए कहा जाए।

डिपार्टमेंट ऑफ फाइनैंशल सर्विसेज ने 29 जून को गृह मंत्रालय को जवाब दिया है कि इस बारे में विचार किया जा रहा है। गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी इसकी पुष्टि की है। उन्होंने कहा, 'हम इस मामले को देखेंगे। इश्यू यह है कि एटीएम से निकलने वाली रिसीट का प्रिंटआउट उस भाषा में निकले, जिसमें उसका इस्तेमाल हो रहा हो।'
ज्यादातर एटीएम से अंग्रेजी में ही रिसीट निकलती है। भले ही ट्रांजैक्शन हिंदी में किया गया हो। इस मामले में गृह मंत्रालय के कदम उठाने से हो सकता है कि भारतीय बैंकों को एटीएम सप्लाई का काम एक वेंडर कंपनी तक सीमित हो जाए। राजन और टकरू को भेजे गए पत्र में साफ किया गया है कि भारतीय बैंकिंग सेक्टर में इस्तेमाल हो रहे एटीएम मुख्य रूप से तीन एमएनसी- एनसीआर, विनकॉर और डायबोल्ड से सोर्स की जा रही हैं। पत्र में कहा गया है, 'इनमें से दो कंपनियों की मशीनों के सॉफ्टवेयर में हिंदी में प्रिंट करने की सुविधा नहीं है।'
पत्र के मुताबिक यूनियन बैंक ने जो एटीएम डायबोल्ड से ली हैं, सिर्फ उन्हीं में हिंदी के अलावा बांग्ला, तमिल और मलयालम सहित सात क्षेत्रीय भाषाओं में प्रिंट आउट लेने की सुविधा है। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने मंत्रालय को पत्र लिखकर बताया है कि नैशनल कैपिटल रीजन और विनकॉर के एटीएम में यूज होने वाले सॉफ्टवेयर 'बहुत पुराने' हैं और उनसे सिर्फ अंग्रेजी में प्रिंट निकलते हैं। मंत्रालय ने आरबीआई को भेजे पत्र में इस लेटर को नत्थी किया था।
मंत्रालय का कहना है कि इससे सरकार की आधिकारिक भाषा नीति पर विरोधाभासी स्थिति बनती है। गृह मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय, इंडियन बैंक्स असोसिएशन और आरबीआई को भेजे लेटर में लिखा है, 'इस समस्या का मुख्य कारण यह है कि एटीएम के लिए बैंकों की तरफ से दिए जाने वाले टेंडर में यह नहीं लिखा होता है कि उनको अंग्रेजी के अलावा हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में भी प्रिंटआउट की जरूरत होगी। केंद्र की आधिकारिक भाषा नीति के मुताबिक बैंकों को ऐसे उपकरण लेने होंगे, जिनमें अंग्रेजी और हिंदी दोनों में काम करने की सुविधा होगी।'

शुक्रवार, 20 जून 2014

पुरानी सरकार का है हिन्दी वाला फरमान

सरकारी ऑफिसरों को सोशल मीडिया पर हिन्दी का इस्तेमाल करने के होम मिनिस्ट्री के निर्देश को लेकर एक नया दावा सामने आ रहा है। बीजेपी के करीबी माने जाने वाले स्वतंत्र पत्रकार कंचन गुप्ता का कहना है कि यह आदेश नई सरकार का नहीं, बल्कि पिछली सरकार का था। उन्होंने इस सर्कुलर की कॉपी ट्वीट करते हुए कहा है कि यह सर्कुलर तो नए गृहमंत्री के पद संभालने से पहले ही जारी कर दिया गया था। हालांकि, सरकार ने इस मसले पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है।
ट्विटर पर कंचन गुप्ता ने लिखा है, 'मीडिया हमें किस तरह से बेवकूफ बनाता है। सोशल मीडिया में हिंदी यूज करने का फैसला 10 मार्च 2014 को लिया गया था, सर्कुलर 27 मई 2014 को जारी किया गया था और नए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने 29 मई को अपना ऑफिस संभाला था।'
उनका कहना है कि इस फैसले को नई सरकार का फैसला कैसे कहा जा सकता है, जब इसे पिछले सरकार के वक्त लिया गया था और नए मंत्री ने कामकाज शुरू ही नहीं किया था। यह सर्कुलर जारी होने के दो दिन बाद राजनाथ सिंह ने मंत्री के रूप में कामकाज शुरू किया था।
गृह मंत्रालय की तरफ से जारी इस सर्कुलर में लिखा गया था, 'मंत्रालय ने पाया है कि सरकार के कई मंत्रालयों, विभागों, कॉरपोरेशंस और बैंकों के अधिकारियों का ट्विटर, फेसबुक, गूगल, ब्लॉग, यूट्यूब जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अकाउंट है, लेकिन ये अधिकारी इन प्लैटफॉर्म्स पर हिंदी के इस्तेमाल से परहेज करते हैं और सिर्फ अंग्रेजी का इस्तेमाल करते हैं।'
इस सर्कुलर में लिखा था, 'यह आदेश दिया जाता है कि सभी मंत्रालयों, विभागों, कॉरपोरेशंस और बैंकों के जिन अधिकारियों ने ट्विटर, फेसबुक, गूगल, यूट्यूब और ब्लॉग पर अकाउंट बनाया हुआ है, उनको हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखना चाहिए। इस आदेश को सभी संबंधित सरकारी अधिकारियों तक पहुंचाया जाना चाहिए और मंत्रालय के जरिए इसका पालन भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए।'

हिंदी पर बढ़ा विवाद, कश्मीर से तमिलनाड़ु तक विरोध

केंद्रीय गृह मंत्रालय के हिंदी में कामकाज को बढ़ावा देने के निर्देश को लेकर केंद्र और गैर-हिंदीभाषी राज्यों के बीच तलवारें खिंच गई हैं। कश्मीर से लेकर तमिलनाड़ु तक गैर-हिंदीभाषी राज्यों की सरकारों ने केंद्र सरकार के इस निर्देश पर ऐतराज जताया है। यहीं नहीं मोदी सरकार को इस पर अपने ही सहयोगी दलों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। पीएमके और एमडीएमके ने इस पर आपत्ति जाहिर की है।
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता और डीएमके प्रमुख एम. करुणानिधि ने इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर विरोध दर्ज कराया है। चिट्ठी में जयाललिता ने लिखा है कि 1968 में हुए संशोधन के तहत अस्तित्व में आए आधिकारिक भाषा ऐक्ट 1963 के अनुच्छेद 3(1) में कहा गया है कि केंद्र और गैर हिंदीभाषी राज्यों के बीच संवाद के लिए अंग्रेज़ी भाषा का उपयोग किया जाएगा। उन्होंने सोशल मीडिया पर होने वाले संवाद की भाषा अंग्रेजी बनाए रखने की मांग करते हुए तमिल समेत आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं को भारत की आधिकारिक भाषा घोषित करने की अपनी मांग दोहराई है।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर उब्दुल्ला ने भी केंद्र पर दूसरे राज्यों पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया। उमर ने कहा कि भारत अलग-अलग धर्म और भाषाओं का देश है। भाषा को थोपने की कोशिश यहां संभव नहीं है।

एनडीए के घटक दल एमडीएमके प्रमुख वाइको ने तो गैर हिंदीभाषी राज्यों पर हिंदी थोपने को भारत की अखंडता के लिए खतरनाक बता दिया। वाइको ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सोए शेर को न जगाए। एनडीए के दूसरे घटक दल पीएमके ने भी इसका विरोध किया है। पीएमके प्रमुख रामदॉस ने बयान जारी करते हुए कहा कि सरकार को सोशल मीडिया में हिंदी थोपने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। उन्होंने 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा घोषित करने की मांग की।
गौरतलब है कि गुरुवार को गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग ने निर्देश जारी कर कहा कि नई सरकार सभी विभागों एवं सार्वजनिक जीवन में हिंदी मे कामकाज को बढ़ावा देगी। गृह मंत्रालय ने नौकरशाहों को कथित तौर पर निर्देश दिया था कि वे फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग, गूगल और यू-ट्यूब जैसी सोशल मीडिया साइटों पर हिंदी को प्राथमिकता दें।

गुरुवार, 19 जून 2014

हिंदी की बजाय विकास पर ध्‍यान दें मोदी: करुणा‍निधि

गृह मंत्रालय में अब सभी कामकाज हिंदी में होंगे. इस संबंध में बुधवार को गृह मंत्रालय ने निर्देंश जारी कर दिए । बताया जाता है कि सबसे अधिक हिंदी का इस्‍तेमाल करने वाले नौकरशाहों को पुरस्‍कृत भी किया जाएगा. सभी पीएसयू और केंद्रीय मंत्रालयों के लिए सोशल मीडिया और इंटरनेट पर हिंदी को अनिवार्य किया गया. गौरतलब है कि केंद्र सरकार चाहती है कि उसके अफसर हिंदी में ट्वीट करें और साथ ही फेसबुक, गूगल, ब्लॉग्स वगैरह में भी इसका इस्तेमाल करें. ऐसा निर्देश गृह मंत्रालय ने दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद के कारण ऐसा किया जा रहा है।
मालूम हो कि गृह मंत्रालय ने 27 मई को एक पत्र लिखा था, जिसमें सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वालों (सरकार तथा सरकारी अधिकारियों) के लिए हिंदी भाषा का इस्‍तेमाल अनिवार्य माना गया है. पत्र में कहा गया था कि सरकारी अधिकारियों को अपने कमेंट अंग्रेजी के अलावा हिंदी में भी पोस्ट करने होंगे. कुल मिलाकर उनसे हिंदी को वरीयता देने का कहा गया है. गृह मंत्रालय के पत्र में कहा गया है कि इस निर्देश को सभी विभागों के संज्ञान में लाया जाए।
कई सरकारी अधिकारी ट्वीट तो करते हैं लेकिन अंग्रेजी में. इनमें विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरूद्दीन भी हैं. वह विदेश मंत्रालय की ओर से ट्वीट करते हैं. लेकिन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर हिंदी और इंग्लिश दोनों में ट्वीट करते हैं. निर्मला सीतारमण इंग्लिश, हिंदी और तमिल में ट्वीट करती हैं. बीजेपी के मुख्यमंत्री रमन सिंह, शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे अक्सर हिंदी में ट्वीट करते हैं।


हिंदी पर हर काम करने को लेकर फैसले की चारों तरफ आलोचना होने लगी है. डीएमके प्रमुख करुणनिधि ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सोशल नेटवर्क पर हिंदी के इस्‍तेमाल और गृह मंत्रालय के बुधवार को जारी निर्देश पर आपत्ति जताई है. करुणानिधि ने कहा है कि मोदी को हिंदी की बजाय विकास पर ध्‍यान देना चाहिए. उन्‍होंने कहा कि यह गैर हिंदीभाषियों को दोयम दर्जे की तरह समझने जैसा है.

मंगलवार, 17 जून 2014

तमिलनाडु में भी हिंदी की डिमांड

जब 1960 के दशक में तमिलनाडु में हिंदी सीखने को कंपलसरी किया गया, तो कई हिंसक प्रदर्शन हुए। लेकिन, अब हालात में बदलाव आया है, क्योंकि कई पैरंट्स और स्कूलों ने तमिल के एकाधिकार को चुनौती देते हुए एक लड़ाई शुरू कर दी है और वे अब हिंदी को चाहते हैं। 
कोर्ट में दी दस्तक
स्कूल्स और पैरंट्स के एक ग्रुप ने डीएमके सरकार के 2006 में जारी उस ऑर्डर को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया था कि 10वीं क्लास तक सिर्फ तमिल ही पढ़ाई जाएगी। इस ग्रुप के 5 जून को दाखिल पिटिशन पर मद्रास हाई कोर्ट ने एआईएडीएमके सरकार से जवाब मांगा है। चेन्नै के स्टूडेंट्स का कहना है कि हिंदी और दूसरी भाषाएं नहीं सीखने से देश और विदेश में उनकी नौकरी की संभावनाओं पर असर पड़ रहा है।
 

जॉब की जरूरत
मैरिन इंजीनियरिंग करने के इच्छुक 9वीं क्लास के स्टूडेंट कन्नड़ भाषी अनिरुद्ध का कहना है कि वह महसूस करते हैं कि उन्हें तमिल पढ़ने को मजबूर किया जा रहा है। एक निजी टीवी चैनल को उन्होंने कहा, 'मैं उत्तर भारत में जॉब करना चाहता हूं, सो मुझे हिंदी जानने की जरूरत है।' उनके क्लासमेट अश्विन, जो केरल से हैं, ने कहा, 'मैं फ्रेंच सीखना चाहता हूं, जिससे मुझे विदेश में काम करने के बेहतर मौके मिल सकते हैं।'
 
उठने लगी आवाज
यही नहीं, तमिलभाषी भाई जिशनू और मनु भी संस्कृत और हिंदी पढ़ना चाहते हैं। मनु ने कहा, 'हम घर पर तमिल बोलते हैं। ऐसे में स्कूल में भी इसे सीखना बोरिंग है।' उनके भाई कहते हैं, 'यहां तक कि विदेश में भी स्टूडेंट्स को दूसरी भाषाएं सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।'
 
बहरहाल, राज्य की मेन पॉलिटिकल पार्टियां तमिल पढ़ाने को लेकर एकजुट हैं, जिसे वे अक्सर क्षेत्रीय गौरव से जोड़ते हैं। मद्रास हाई कोर्ट ने 2000 में भी स्कूलों को तमिल भाषा में हिदायत देने को खारिज कर दिया था, लिहाजा इस बार भी फैसला कोर्ट ही करेगा।

रविवार, 8 जून 2014

हिंदी में भाषण

नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही वह चमत्कारी काम कर दियाजो अब तक भारत काकोई प्रधानमंत्री नहीं कर सका। उन्होंने पड़ौसी देशों के नेताओं को भारत तो बुलाया हीउनसे हिंदी में ही बात की। येदोनों काम ऐसे हैंजिनके लिए मैं पिछले कई वर्षों से लड़ रहा हूं। मैं सभी प्रधानमंत्रियों को प्रेरित करता रहा हूं लेकिननरेंद्र मोदी में वह संस्कारसामथ्र्य और ईमानदारी है कि उन्होंने गुलाम मानसिकता को छोड़कर महान प्रधानमंत्रीबनने का मार्ग अपने आप चुन लिया है। भाषा के सवाल पर वे उसी मार्ग पर चल रहे हैं जो गुजरात के दो महापुरुषोंदयानंद और गांधी ने हमें बताया था।

यों तो अटलजी ने हमारा अनुरोध स्वीकार करके संयुक्तराष्ट्र संघ में पहली बार हिंदी में भाषण दिया था लेकिन वहभाषण महान वक्ता अटलबिहारी वाजपेयी का नहीं था। वह अफसरों के अंग्रेजी में लिखे भाषण का अनुवाद हिंदी में था,जिसे उन्होंने संयुक्तराष्ट्र में पढ़ दिया था। प्रधानमंत्री चंद्रशेखरजी ने भी मेरे आग्रह पर मालदीव में हुए दक्षेस सम्मेलनमें अपना भाषण हिंदी में दिया था। वह हिंदी का मौलिक भाषण था लेकिन ये दोनों घटनाएं मात्र औपचारिकताएंबनकर रह गईं। अटलजी के दौर में संयुक्तराष्ट्र में और स्वराष्ट्र में भी अंग्रेजी छाई रही। यही चंद्रशेखरजी के अल्पकालमें भी हुआ। नरसिंहरावजी जब चीन गए तो मैंने एक चीनी विद्वान को अनुवाद के लिए तैयार किया था। वहधाराप्रवाह हिंदी बोलता था और दिल्ली में रहकर पढ़ा था लेकिन राव साहब ने पेइचिंग में अपने भाषण और वार्तालापकी भाषा अचानक अंग्रेजी कर दी।

नरेंद्र मोदी ने दक्षेस-नेताओं से हिंदी में बात की। सभी पड़ौसी देशों के नेता हिंदी बोलते और समझते हैंसिवायश्रीलंका और मालदीव के। पड़ौसी देशों के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों से मैं पिछले 40-45 साल से मिलता रहा हूं।श्रीलंका और मालद्वीव के नेताओं से मुझे अंग्रेजी में मजबूरन बात करना पड़ती है वरना नेपालपाकिस्तान,अफगानिस्तानबांग्लादेशभूटान और तिब्बत के नेताओं और आम लोगों से हिंदी में ही बात होती है। नरेंद्र मोदी कोचाहिए कि वे किसी भी औपचारिक अवसर पर हिंदी के अलावा किसी भी विदेशी भाषा में बात  करें। अपनी भाषा मेंकूटनीति करने का महत्व सदियों से स्वयंसिद्ध हो चुका है। संधियों और कानूनी दस्तावेजों में भी स्वभाषा के प्रयोगके लिए सभी महाशक्तियां जोर देती रही हैं। यदि हम अंग्रेजी की बजाय संबंधित देशों की भाषाओं में अनुवादकों केजरिए कूटनीति करें तो हम कहीं ज्यादा प्रभावी और सफल होंगे और अपनी मूलभाषा हिंदी रखें तो पर्याप्त गोपनीयताभी बनाए रख सकेंगे।

क्या विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अपने प्रधानमंत्री के इस स्वभाषा-प्रेम को आगे बढ़ाएंगीसुषमा-जैसी विलक्षणप्रतिभा और वाग्शक्ति की स्वामिनी महिला भी क्या हीन भावना से ग्रस्त हो सकती हैउन्हें अंग्रेजी की गुलामी कीक्या जरुरत हैसुषमाजी के व्यक्तित्व पर लोहियाजी के विचारों कीं गहरी छाप है। वे हिंदी आंदोलन में मेरे साथउत्साहपूर्वक काम करती रही हैं। आज इंडियन एक्सप्रेस में यह पढ़कर मुझे दुख हुआ कि उन्होंने पड़ौसी अतिथियों सेअंग्रेजी में बात की। उन्हें चाहिए कि वे विदेष मंत्रालय के सारे अफसरों से उनका कामकाज हिंदी में करवाएं और खुदउनसे हिंदी में ही बात करें। उन्हें यह आदेश भी दें कि वे अंग्रेजी के अलावा दुनिया की दर्जनों महत्वपूर्ण भाषाएं भी सीखें