गुरुवार, 2 जून 2011

संसदीय राजभाषा समिति ने आज दिनांक 1 जून को महामहिम राष्ट्रपति जी से भेंट कर उन्हे अपनी सिफारिशो का 9 वां खण्ड सौंप दिया

संसदीय राजभाषा समिति ने आज दिनांक 1 जून को महामहिम राष्ट्रपति जी से भेंट कर उन्हे अपनी सिफारिशो का 9 वां खण्ड सौंप दिया ।
ज्ञातव्य है कि इस खण्ड में राजभाषा के रूप में हिन्दी के प्रसार प्रयोग को सरकारी कार्यालयों में बढाने के लिए अनेक उपाय सुझाए गए है साथ ही साथ भाषा को सरकारी आदेशो और साथ ही साथ स्वयं सेवी संगठनों की सहायता लेकर चलने की बात पर जोर दिया गया है ।हिन्दी कंप्यूटिंग फाउण्डेशन के बारे में संसदीय राजभाषा समिति ने अपने इस खण्ड में महामहिम राष्ट्रपति जी से संस्तुति की है जो कि महामहिम राष्ट्रपति जी ने स्वीकार कर ली है अब देखना यह है कि इन संस्तुतियों पर राजभाषा विभाग कब तक आदेश जारी करता है ।

सोमवार, 16 मई 2011

राजभाषा के रूप में हिन्दी की दुगर्ति

पिछले दिनों संसदीय राजभाषा समिति ने मुंबई सहित अन्य देश के नगरों में राजभाषा के रूप में हिन्दी का जायजा लिया जिसमें समिति के माननीय उपाध्यक्ष श्री सत्यबृत चतुर्वेदी जी भी पधारे और उन्होंने कार्यालयाध्यक्षों को लम्बा चौडा भाषण दिया तथा बडे कॅनवास की बात कहते हुए अधिक से अधिक काम हिन्दी में करने की सलाह दी । यह तो सम्माननीय है कि देश के सांसद भी इस प्रकार की समितियों में आकर फाइव स्टार होटल में रहकर अपने घर में अंग्रेजी के वर्चस्व को पनपते देखकर भी उन नौकरशाहों को भाषा का संदेश देते है जिन्होंने अपनी शिक्षा तथा सारी नौकरी अंग्रेजी के सहारे कर ली है । मैं नहीं मानता कि एक दिन के दौरे से वह भी फाइव स्टार होटल में रहकर तथा केवल भाषण के सहारे देश में हिन्दी आ सकती है , हाँ कुछ बढिया तथा मंहगे उपहार प्राप्त करने का यह अच्छा तरीका है । भाषा एक एैसा मसला है जो इस देश में राजनैतिक कारणों से उपजा हुआ मसला है । यदि इन नेताओं में जरा सी भी शर्म है तो वे इस बात को संसद में उठाएं , अपने प्रधान मंत्री जी से हिन्दी मे काम करने के लिए राजी करें , माननीया सोनिया जी भी अपना सारा काम जब हिन्दी में करेंगी तो सारा हिन्दुस्तान उनका अनुकरण करेगा परन्तु जब तक यह मामला केवल भाषण तथा आदेश तक रहेगा , राजभाषा के रूप में हिन्दी की दुगर्ति होती रहेगी यह मेरा विश्वास है ।

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

कहानी और कविता प्रतियोगिता का आयोजन

युवा वर्ग में लेखन अभिरूचि जगाने और हिंदी भाषा के प्रति दिलचस्पी बढ़ाने के उद्देश्य से पिछले दिनों मुंबई के कई कॉलेजों में कहानी और कविता प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। सोफिया कॉलेज की छात्रा पारुल रावत को कविता और झुनझुनवाला कॉलेज छात्र शैलेश भारत को कहानी के लिए प्रथम पुरस्कार मिला। कंचन दुबे और अशोक गुप्ता को द्वितीय तथा सुचिता पारेख और नाजिया अंसारी को तृतीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। विजेताओं को पुरस्कार जानी-मानी अभिनेत्री सुलभा आर्य ने दिया। निर्णायक मंडल के सदस्यों में हरियश राय और प्रेमरंजन अनिमेष शामिल रहे। इस प्रतियोगिता का आयोजन जनवादी लेखक संघ मुंबई, साहित्यिक पत्रिका चिंतन दिशा, हिमाचल मित्र और परिदृश्य प्रकाशन के सौजन्य से किया गया। आने वाले वर्षों में भी कविता प्रतियोगिता का आयोजन हिंदी सेवी डा वंशीधर पंडा और कहानी प्रतियोगिता का आयोजन उर्दू कहानीकार महमूद अय्यूबी की स्मृति में किया जाएगा।

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

अलग पहचान बनाई गीतकार इरशाद कामिल ने

गीतकार इरशाद कामिल ने 'जब वी मेट', 'लव आज कल' और 'वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई' जैसी फिल्मों के गीत लिखकर अपनी एक अलग पहचान बनाई है। वह पुराने गानों को सही ट्रीटमेंट के साथ रिवाइव करने के पक्षधर हैं। पिछले दिनों राइटर्स और प्रड्यूसर्स असोसिएशन में कॉपीराइट-रॉयल्टी मुद्दे पर हुए विवाद और फिल्म संगीत के विभिन्न आयामों पर उनसे दुर्गेश सिंह की बातचीत: म्यूजिक से जुड़े लोगों को कॉपीराइट और रॉयल्टी मिले, इस पर फिल्म प्रड्यूसर्स असोसिएशन के लोगों में नाराजगी क्यों है? दरअसल प्रड्यूसर्स को मामले की बारीकी का पता ही नहीं चल पा रहा है। संगीत से जुड़े सभी तकनीशियनों का बहुत सारा पैसा फंसा रहता है, जिसका फायदा निर्माताओं को भी नहीं मिलता। अब निर्माताओं और संगीत कंपनियों को लग रहा है कि उनकी कमाई हमको मिलने वाली है। पहले एक बार फिल्म का संगीत निर्माता के पास जाने के बाद हमें एक भी पैसा नहीं मिलता था लेकिन इस ऐक्ट के पारित होने के बाद जितने भी माध्यमों के जरिए संगीत गूंजेगा, सबको अपनी कमाई का कुछ न कुछ हिस्सा गीतकार, संगीतकार और उसकी पूरी टीम को देना होगा। एफएम रेडियो से लेकर सभी आधुनिक माध्यम इसके दायरे में आएंगे। हर दौर में प्लैगेरिज्म एक मुद्दा रहा है। विदेशी धुनों को चुराकर हम उसमें अपना टैग लगा देते हैं। इस दौर के सबसे सफल संगीतकार प्रीतम पर भी यह आरोप लगते रहे हैं। फिल्म इंडस्ट्री में क्रिएटिविटी पर कॉमर्स हावी हो गई है। और यह किसी से छिपा भी नहीं है। फिल्म निर्माता हमसे हिट धुनें चाहते हैं। जब लोग उन्हीं हिट धुनों को चोरी किए जाने के बावजूद खूब पसंद करते हैं तो फिर उस पर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है? अस्सी के दशक से लेकर नब्बे के दशक और आज के दौर में सर्वाधिक हिट धुनें विवादों में ही रही हैं। संगीत के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों ने क्या संगीत की आत्मा खत्म कर दी है? आज गिनती के नए गाने हैं जिन्हें गुनगुनाने का मन करता है... देखिए, अकेले में संगीत सुनता या गुनगुनाता हुआ एक आदमी प्राय: अतीत में ही जाना चाहता है। हो सकता है कि बीस सालों बाद आज के ही गाने गुनगुनाने को मिलें। पिछला इंसान आज के इंसान से कहीं बेहतर और ईमानदार था। शंकर-जयकिशन की तर्ज पर अगर हम आज लाइव आरकेस्ट्रा के लिए पचास-साठ लोगों की सेवाएं लेंगे तो एक साल में गिनती की फिल्मों का संगीत तैयार होगा। इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आज की जरूरत हैं। पुराने गानों को रिवाइव करने का चलन शुरू हो गया है। उस बारे में क्या कहना है? मेरा स्पष्ट तौर पर कहना है कि आप पुराने गीतों की आत्मा को जिंदा नहीं रख सकते तो उसको खत्म करने का आपको कोई अधिकार नहीं है। 'दम मारो दम' गीत के निर्माता दुर्भाग्य से ऐसा नहीं कर पाए हैं। आर डी दा के संगीत के साथ एक बुरा ट्रीटमेंट है यह। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि पुराने गानों को रिवाइव ही नहीं करना चाहिए। उनकी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए रिवाइव करना जरूरी भी है लेकिन सही ट्रीटमेंट के साथ। कैसेट, सीडी, डीवीडी और अब ऑनलाइन म्यूजिक रिलीज हो रहा है। कुछ संगीतकारों ने इंटरनेट पर म्यूजिक जारी कर उसके अधिकार तक अपने पास रखे हैं... तमाम माध्यमों के आने से संगीत की पहुंच बढ़ी हैं। आज हमारा कोई रिश्तेदार अमेरिका में तो डीवीडी या वीसीडी नहीं खरीद सकता। पर वह ऑनलाइन क्लिक करके गाने सुन सकता है। विशेष रूप से एफएम ने संगीत के क्षेत्र में क्रांति ही कर दी है। पॉकेट एफएम के आने के बाद से तो बच्चा-बच्चा भी संगीत सुन रहा है। जिन संगीतकारों ने अपना म्यूजिक ऑनलाइन जारी किया है, वे निश्चित तौर पर अपने मेहनताने को लेकर सशंकित थे। कॉपीराइट और रॉयल्टी ऐक्ट इसी आशंका के खात्मे की बात करता है। लोक संगीत की इतनी बड़ी धरोहर होने के बाद भी हम कब तक पाश्चात्य संगीत का सहारा लेते रहेंगे? अब लोक संगीत को महत्व दिया जाने लगा है। हाल के दिनों में आया सबसे हिट आइटम सांग एक लोकगीत से ही लिया गया है। लेकिन हमें जरूरत है कि लोक संगीत का सही तरीके से प्रयोग करें। पंजाब के लोकगीत हमारी फिल्मों में शुरू से ही बहुतायत में छाए रहे हैं लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार के लोकगीतों को आधार बनाकर संगीत का निर्माण किया जाना अपने आप में बहुत सुखद है। हां, एक अहम बात यह भी है कि हमारी युवा पीढ़ी पर लोकगीतों का असर तभी होगा जब फिल्म संगीत के जरिए उन्हें सामने लाया जाएगा। विशुद्ध लोकगीत सुनना मेट्रो के युवाओं को शायद ही भाए।

मंगलवार, 1 मार्च 2011

Chinese Language School have been a journey of discovery

Ke Nian didn't know that Kolkata had a sizeable Chinese population or that Tagore whom she had grown up admiring hailed from this part of the country. Images of crowded roads, village huts and cows strolling down city streets on TV clouded her opinion. Till she travelled here from the Hubei province to teach in a language school and joined the Chini adda' sessions held every month. She took part in one such session on Sunday along with about a 100 others from both communities. Chinese consul general Zhang Lizhong presided over the session that included a documentary on Tagore's links with China. "It came as a complete revelation to me that Tagore had close ties with Chinese authors and that he took a keen interest in China. Honestly, I was not even aware that he had travelled to China thrice. Or, that the Chinese in Kolkata have become so Indianized," said Nian with a grin. For many in the Chinese community here, the adda sessions organized by The Chinese Language School have been a journey of discovery. It has helped them come out of their shell and indulge in exchanges with locals who have been exploring a lot more about China than just their food. And it's not just the students who have joined the classes and are reciting Chinese poems. Scores of curious Kolkatans are exploring Chinese history and culture. Take, for instance, Rajesh Kanoi who went to China as an English teacher in 2001. After entering the country through Shenzen via Hong Kong, he was left amazed by the dazzling metro. "China, I had perceived, would be less sparkling, perhaps a shade colourless. But I had no idea that the country had changed. Even more surprising was the interest they took in Indian culture and their love for Tagore. Every student I met at the university asked me about the bard," adding, "when I relived these experiences after returning home, few would believe me." But thanks to the sessions that started in 2008, a growing number of Kolkatans are fast becoming more knowledgeable about their neighbours across the Himalayas. Ayesha Mallik, a regular at these sessions and Chinese language student, said she discovered more about Buddhism in China and its roots in India after having interacted with her teachers. "It turned out to be an eye-opener. Strangely, there has always been very little information available about China and we have never attempted to break the barrier between the communities," she added. The sessions helped us to discover the commonalities that our history, culture and interests are similar. The ties always existed, we just needed to break the ice which has been done," said Mallik. For many, the sessions are a stepping stone to joining language classes on their way to China for a job. Business exchanges and professional opportunities have forced both communities to know more about each other. "This holds true for Kolkata for we have a lot of people travelling to China for work. Many spend months there, often years. They can't do without the language or help but find out about the culture there. Whatever be the reason, it has helped Kolkatans forge a tie with the members of the community in the city," said Charisma Saraff, vice-principal of The Chinese Language School. Shilpa Baheti, a regular at the session, picked up the language in less than a year. "It's a challenge learning Chinese. I would perhaps have not taken it unless my husband had business interests there. Now that I have, I thoroughly enjoy interacting with the Chinese both in Kolkata and in China. I now have more Chinese friends than Indian acquaintances here," she said. Li Chin, a Tangra resident and language teacher, said the Chini adda sessions have become a part of her very being. Having spent most of her life interacting only with Chinese neighbours, her world changed after she started attending the sessions. "There was so much to share with the Bengalis and other communities here. It's a collaboration that will help enrich the city. Sadly, we had never attempted to discover that earlier ," she gushed. It could indeed be a win-win situation for both, felt Lizhong. "Learning the language has become a compulsion for many due to professional reasons. But let it serve as an excuse for us to come together," said Lizhong. Read more: Language bridges gap, brings China & India on same page - The Times of India http://timesofindia.indiatimes.com/city/kolkata-/Language-bridges-gap-brings-China-India-on-same-page/articleshow/7590398.cms#ixzz1FKxZ5Ngs

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

अंग्रेजी विषय को अनिवार्य बना दिया गया

यूपीएससी ने सिविल सर्विसेज, प्रीलिम्स 2011 के लिए जो नया पाठ्यक्त्रम घोषित किया है उसमें अंग्रेजी विषय को अनिवार्य बना दिया गया है। अभी तक इसके दो प्रश्नपत्र होते थे। एक सामान्य ज्ञान का और दूसरा किसी एक ऐच्छिक विषय का जिसे विद्यार्थी अपनी रुचि के अनुसार चुनता था। नई परीक्षा योजना के तहत इस विषय वाले प्रश्नपत्र के स्थान पर 200 अंकों का एक नया प्रश्नपत्र होगा, जिसमें से 30 अंक अंग्रेजी समझने की कुशलता के होंगे। हिंदी व भारतीय भाषाओं को इसमें कोई स्थान नहीं होगा। यह प्रश्न पत्र 'क्वॉलिफाइंग' नहीं होगा, बल्कि इसके अंक 'मेरिट' में जोड़े जाएंगे, जहां एक-एक अंक निर्णायक सिद्ध होता है। स्पष्ट है कि इस योजना द्वारा अंग्रेजी भाषा को अनिवार्य रूप से थोपा जा रहा है और हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के लिए दरवाजे अनंत काल के लिए बंद किए जा रहे हैं। विदेशी भाषा ज्ञान दुनिया के किसी भी स्वतंत्र देश की प्रशासनिक सेवा परीक्षा में विदेशी भाषा ज्ञान की अनिवार्यता नहीं है। भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी विभिन्न राज्यों में नियुक्त होते हैं, जहां वे संबंधित राज्य की भाषा सीखते हैं। दक्षिण भारत के अधिकारी उत्तर भारत में नियुक्ति के दौरान सुंदर हिंदी बोलते और लिखते हैं। इसी प्रकार उत्तर के अधिकारी भी दक्षिण या पूर्वोत्तर की भाषाओं में कुशलता से कार्य करते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यह मुद्दा अनेक बार उठाया गया कि क्या संघ की सिविल सेवा परीक्षा केवल उन थोड़े से लोगों के लिए है जो अंग्रेजी के माध्यम से अध्ययन करते हैं, और उन बहुसंख्यक छात्रों के लिए नहीं है जो भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करते हैं। संसद का संकल्प 18 जनवरी 1968 को संसद के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से एक संकल्प एफ. 5/8/65 रा. भा. पारित किया था। इसका पैरा 4 इस प्रकार है- और जबकि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि संघ की लोक सेवाओं के विषय में देश के विभिन्न भागों के लोगों के न्यायोचित दावों और हितों का पूर्ण परित्राण किया जाए, यह सभा संकल्प करती है- कि उन विशेष सेवाओं अथवा पदों को छोड़कर, जिनके लिए ऐसी किसी सेवा अथवा पद के कर्तव्यों के संतोषजनक निष्पादन हेतु केवल अंग्रेजी अथवा केवल हिंदी अथवा दोनों, जैसी कि स्थिति हो, का उच्च-स्तर का ज्ञान आवश्यक समझा जाए, संघ सेवाओं अथवा पदों के लिए भर्ती करने हेतु उम्मीदवारों के चयन के समय हिंदी अथवा अंग्रेजी में से किसी एक का ज्ञान अनिवार्यत: अपेक्षित होगा। 1977 में डॉ . दौलतसिंह कोठारी की अध्यक्षता में एक आयोग गठित हुआ जिस ने संघ लोक सेवा आयोग तथा कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग आदि के विचारों को ध्यान में रखते हुए सर्वसम्मति से यह सिफारिश की कि परीक्षा का माध्यम भारत की प्रमुख भाषाओं में से कोई भी भाषा हो सकती है। 1979 में संघ लोक सेवा आयोग ने इन सिफारिशों को क्त्रियान्वित किया और भारतीय प्रशासनिक आदि सेवाओं की परीक्षा के लिए संविधान की आठवीं अनुसूची में से किसी भी भारतीय भाषा को परीक्षा का माध्यम बनाने की छूट दी गई। इस परिवर्तन का लाभ उन उम्मीदवारों को मिला जो महानगरों से बाहर रहते थे या अंग्रेजी के महंगे विद्यालयों में नहीं पढ़ सकते थे। उनके पास प्रतिभा , गुण , योग्यता थी किंतु अंग्रेजी माध्यम ने उन्हें बाहर कर रखा था। इन सिफारिशों को लागू हुए 30 वर्ष हो चुके हैं। इस अवधि में यह कभी नहीं सुनाई पड़ा कि भारतीय भाषाओं के माध्यम से जो प्रशासक आ रहे हैं , वे किसी भी तरह से अंग्रेजी माध्यम वालों से कमतर हैं। यह स्थिति मैकाले के मानसपुत्रों को सहन नहीं हो रही है। अब चुपके से एक दांव लगाकर कहा जा रहा है कि सेवा में सुधार किया जा रहा है। आज तक किसी भी अध्ययन या अनुसंधान से ऐसा निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका है कि प्रवेश परीक्षा के स्तर पर अंग्रेजी का ज्ञान होना भावी प्रशासन के लिए परमावश्यक गुण है। चयन के बाद हर चयनित अभ्यर्थी को 3 वर्ष का आधारिक पाठ्यक्त्रम और प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके बाद भी वह अनेक विशेषित पाठ्यक्त्रमों में भाग लेता रहता है और प्रशिक्षण चलता रहता है। जब सिविल सेवा अधिकारी केंद्र की सेवा में आता है , तो यहां राजभाषा हिंदी में काम करने की छूट होती है। फिर सेवा के लिए क्वालिफाइंग स्तर पर ही अंग्रेजी का उच्च ज्ञान जांचने का क्या तात्पर्य हो सकता है ? इस तथाकथित योग्यता या अभिरुचि की परीक्षा में कुछ भी मौलिक नहीं है। इसका प्रयोग गैर सरकारी संस्थाएं और प्रबंधन संस्थान करते हैं , जहां से इसकी नकल कर ली गई है। प्रबंधन प्रशासन का विकल्प नहीं है। यह विचारणीय है कि क्या लोक प्रशासन और निजी उद्योगों का प्रबंधन एक ही है , या उनमें भिन्न गुणों की अपेक्षा है। क्या एक कल्याणकारी राज्य के प्रशासक केवल प्रबंधक हुआ करते हैं ? और हों भी तो अंग्रेजी ज्ञान का प्रशासनिक कामकाज से क्या रिश्ता है ? बराबर की टक्कर संघ लोक सेवा आयोग के वार्षिक प्रतिवेदन बताते हैं कि हिंदी और भारतीय भाषाओं के माध्यम से बहुत बड़ी संख्या में परीक्षार्थी उत्तीर्ण हो रहे है और यह संख्या निरंतर बढ़ रही है। इनकी संख्या अंग्रेजी माध्यम वालों के बराबर पहुंच रही है। प्राप्त सूचना के अनुसार 2006 की मुख्य परीक्षा में हिंदी माध्यम से 3360, अन्य भारतीय भाषाओं से 250 तथा अंग्रेजी माध्यम से 3937 परीक्षार्थी बैठे थे। 2007 की मुख्य परीक्षा में हिंदी माध्यम से 3751, अन्य भारतीय भाषाओं से 318 तथा अंग्रेजी माध्यम से 4815 परीक्षार्थी , और 2008 की मुख्य परीक्षा में हिंदी माध्यम से 5117, अन्य भारतीय भाषाओं से 381 तथा अंग्रेजी माध्यम से 5822 परीक्षार्थी बैठे थे। ये आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि भारतीय भाषाओं के माध्यम से परीक्षार्थियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। ऐसे में षड्यंत्र पूर्वक किया जा रहा यह परिवर्तन वर्ग विशेष के लाभ के लिए है और यह कोठारी समिति द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक और सामाजिक सिद्धांतों के विपरीत है।

सोमवार, 3 जनवरी 2011

डेविड हेडली ने हिंदी में बात की।

डेविड हेडली पाकिस्तान में पैदा हुआ, अमेरिका में बड़ा हुआ, इसलिए वह हिंदी जानता होगा, इसकी शायद ही कभी किसी ने कल्पना की होगी। पर उसने एनआईए टीम को बताया कि 26/11 से पहले उसने मुंबई की रेकी के दौरान कई बार लोगों से हिंदी में बात की। अब वह सोचता है कि ऐसा करके उसने खुद के एक्सपोज होने का जोखिम उठाया था, उसे यह रिस्क नहीं उठाना चाहिए था। हेडली ने पूछताछ में यह भी बताया कि वह जाली नोट भी भारत लाता था। एक बार उसे मेजर इकबाल नामक साजिशकर्ता ने काफी संख्या में इंडियन फेक करेंसी और 40 हजार पाकिस्तानी रुपये दिए थे। ऐसा कहा जाता है कि यह मेजर पाकिस्तानी आर्मी से जुड़ा हुआ था। हेडली का दावा है कि इसी मेजर इकबाल के कहने पर वह एक बार पुणे गया था। मेजर इकबाल ने एक बार हेडली से कहा था कि वह अगली बार जब मुंबई से वापस पाकिस्तान आए, तो वह एक ऐसी स्पाई पेन ड्राइव उसके लिए लेकर आए, जिसे कैमरे में फिट किया जा सके। मेजर इकबाल हेडली से जब भी पाकिस्तान से मुंबई में कॉल करता था, तो कभी भी पाकिस्तान का नहीं, बल्कि न्यूयार्क का सिम कार्ड यूज करता था।

नववर्ष आपको मंगलमय हो

नववर्ष आपको मंगलमय हो, जीवन पथ पर ज्योतिर्मय जय हो
सत्य न्याय और प्रेम पताका, सुगंध सुवासित नूतन किसलय हो
रहे कोई न शत्रु जग में, हे प्रभुराम प्रेममय जग हो
विपुल कीर्ती भारत की होवे, उच्च तिरंगा प्रखर अमर हो
कर जोर पुन: विनती करता, नववर्ष आपको मंगलमय हो