सोमवार, 24 नवंबर 2008

लालू यादव ने उन अस्थाई कर्मचारियों को रेल भवन में स्थाई करने की घोषणा की थी। अफसोस है कि आज तक उस घोषणा पर कोई अमल नहीं हुआ।

कोई मंत्री अगर गरीबों को सपना दिखाते हैं, तो उसे हकीकत मे बदलने की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं की होती है। रेल मंत्री जी ने रेल भवन में पिछले कई वर्षों से काम करने वाले अस्थाई कर्मचारियों के पक्ष में कुछ कहा था। लालू यादव ने उन अस्थाई कर्मचारियों को रेल भवन में स्थाई करने की घोषणा की थी। अफसोस है कि आज तक उस घोषणा पर कोई अमल नहीं हुआ। शायद मंत्री जी भूल चुके होंगे और उनके आदेश की उन्हीं के मंत्रालय में यह दुर्दशा कहां तक उचित है? रेल भवन को विश्वस्तरीय भवनों के रूप में बनाने से ही इन कर्मचारियों का पेट नहीं भर जाएगा। पेट भरता है रोटी से और आदमी की आय होगी तभी भर पेट खा सकेगा न! अतः रेल मंत्री से अनुरोध है कि बरसों पहले अपने दिए उस आदेश को जल्द से जल्द लागू करवाएं। यह उदाहरण केवल एकनहीं अनेकों है । सन् २००६ में रेल राज्यमंत्री नारण भाई राठवा ने हिन्दी कंप्यूटिग फाउण्डेशन के एक समारोह में न्यायमूर्ति चन्द्रशेखर धर्माधिकारी जी की उपस्थिति में एक लाख रूपये का पुरस्कार घोषित किया था, जिसकेलिए पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक ने रेलवे बोर्ड को लिखा भी है , परन्तु आज तक वह पुरस्कार नहीं दिया गया, बताया जाता है कि रेलवे बोर्ड के हिन्दी विभाग का तो भगवान ही मालिक है, वहां हिन्दी के बजाय कुछ ओर ही खेल खेला जाता है । इसी खेल में यह पुरस्कार खो गया है, हमें उम्मीद है कि रेल मत्री इस बारे में पूरी जांच करायेगे और दोषी अधिकारियों को सख्त सजा देने पर विचार करेंगे क्योकि इस प्रकार के कार्य से रेलवे की छवि बिगडती है ।

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