बुधवार, 12 नवंबर 2008

मनसे की गुंडागर्दी : मुंबई पुलिस का निकम्मापन उजागर

मुंबई : उत्तर भारतीयों के विरुद्ध महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के उपद्रव से निपटने में राज्य सरकार की उदासीनता और टालमटोल के तो राजनीतिक कारण समझ में आते हैं, लेकिन उपद्रवकारियों को खुली छूट देने में मुंबई पुलिस की ढिलाई को ही जिम्मेदार माना जायेगा। पहले दौर की गुंडागर्दी में मनसे ने उत्तरभारतीय टैक्सी-रिक्शा चालकों की पिटाई की और अब दूसरे दौर में उसने रेलवे भर्ती बोर्ड की परीक्षा देने आये निर्दोष छात्रों पर हिंसक हमला बोला। लेकिन दोनों ही दफा पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। यही नहीं राज्य सरकार ने अपनी राजनीतिक रणनीति के दायरे में रहकर जब मनसे प्रमुख राज ठाकरे और उनके निरंकुश कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई की तब भी वे शहर की शांति को भंग करने तथा बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ करने में सफल हो गये। यहां तक कि उन्होंने अदालत परिसर में भी शर्मनाक हुल्लड़ मचाया और पुलिस लाचार बनी तमाशा देखती रही। जिस प्रकार से मनसे के चंद मुस्टंडों ने मुंबई में रह रहे करीब ४० लाख उत्तर भारतीयों में भय का माहौल कायम कर दिया है, यह मुंबई पुलिस की अकर्मण्यता का शर्मनाक परिणाम है। क्या यह मान लिया जाये कि कभी स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस के बाद विश्व की दूसरी मजबूत पुलिस व्यवस्था के रूप में विख्यात रही मुंबई पुलिस आज इतनी अकर्मण्य हो चुकी है कि उससे मनसे के चंद गुंडे नहीं संभल पा रहे हैं। मनसे से निपटने में पुलिस के नाकारापन से आम लोग हैरत में हैं। उन्हें डर इस बात का है कि यदि किसी अन्य मामले को लेकर मनसे की हिंसक कार्यशैली की गाज कभी गैर उत्तर भारतीयों पर गिरी तो क्या होगा? एक सवाल जो आज मुंबई के आम लोगों के मन में है, वह यह है कि बड़े-बड़े अपराधियों पर अंकुश लगानेवाली मुंबई पुलिस आखिर मनसे मामले में नकारा क्यों साबित हो रही है? पुलिस सूत्रों की मानें तो मुंबई पुलिस में मनसे से हमदर्दी रखनेवाले अधिकारियों-कर्मियों की कमी नहीं है। वे जानबूझकर ऐसे समय में मूक दर्शक बने रहते हैं। सूत्रों का कहना है कि मुंबई पुलिस में मनसे प्रमुख राज ठाकरे की अंदर तक पहुंच है और यह तब से है जब से वह शिवसेना के युवा संगठन `विद्यार्थी सेना' के अध्यक्ष थे। उस वक्त पुलिस और प्रशासन में राज की तूती बोलती थी। नतीजा राज और उनके मुस्टंडे तोड़फोड़ किया करते थे और पुलिस तमाशाबीन बनी रहती थी। आज भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। यह राज्य की शांति और व्यवस्था के लिए तो ख़तरा है ही, मुंबई पुलिस और राज्य प्रशासन की प्रतिष्ठा के लिए भी कम नुकसानदेह नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं: