बुधवार, 17 सितंबर 2014

हिंदी माता हाउस वाइफ बनकर रह गई

व्यक्ति जिस भाषा में दूसरो की मां-बहनों को याद करता है, वही उसकी मातृभाषा होती है। मातृभाषा की यह एक सहज स्वीकार्य परिभाषा हो सकती है। लेकिन, भारतवर्ष में परायों को याद करने के लिए पराई भाषा के इस्तेमाल का चलन लगातार बढ़ रहा है। अब गालियां भी अंग्रेजी में दी जाती हैं। इसलिए मातृभाषा की परिभाषा हमारे लिए कुछ बदल गई है। थोड़ी-बहुत असहमतियों के साथ यह माना जा सकता है कि जिस भाषा की आप सबसे ज्यादा मां-बहन कर सकें, वही आपकी मातृभाषा है। इस खांचे में फिट करके देखें तो हिंदी के मातृभाषा होने में कोई शक नहीं रह जाता।
देश आजाद हुआ तो हिंदी माता को सरकारी बाबुओं के हवाले कर दिया गया गया। बाबुओं ने कहामाई चिंता मत करो, अब हर जगह तुम्हारा ही राज होगा। तुम्हारा खयाल रखने के लिए हर सरकारी दफ्तर में एक अधिकारी रखा जाएगा, जिसका काम ब्लैक बोर्ड पर रोजाना तुम्हारे नाम का एक शब्द लिखना और हर साल 14 सितंबर को तुम्हारे सम्मान में एक कार्यक्रम आयोजित करना होगा। हिंदी अधिकारी तुम्हारे लिए यदा-कदा कवि सम्मेलन भी करवाएगा, जिसमें आनेवाले कवियों को शॉल और श्रीफल के साथ राह खर्च भी दिया जाएगा। देखना माई सरकारी प्रयास से कश्मीर से कन्याकुमारी तक किस तरह लोग तुम्हारी जय-जयकार करेंगे। हिंदी ने कहाअभी मेरी उम्र ही क्या है, मेरे माथे पर बिंदी लगाकर क्यों मुझे माई बनाते हो। मैं अपनी राह खुद चल सकती हूं। लेकिन बाबुओ ने कहा- माताजी ऐसा कैसे हो सकता है, आप अपनी राह चलेंगी तो हमारी नौकरी का क्या होगा। आपके नाम पर देश-विदेश में सम्मेलन कैसे होंगे। नेताओं और बाबुओं को फोकट में विदेश यात्रा के अवसर कैसे मिलेंगे और फिर हम आपकी सेवा ही तो कर रहे हैं।
लेकिन, हिंदी कहां ठहरने वाली थी! अपनी रफ्तार से चलने लगी। गुजरात और महाराष्ट्र पार करके जैसे ही दक्षिण की तरफ बढ़ी कि बवाल शुरू हो गया। हिंदी माता के सपूत मद्रास से लेकर मदुरै तक जगह-जगह पिटने लगे। साइन बोर्ड मिटाए जाने लगे। हिंदी के खिलाफ राजनीतिक स्लोगन बनाए जाने लगे। यह सब देखकर घबराए चाचा नेहरु ने अपने बाबुओं की खबर ली 'तुम लोगो से कहा था, हिंदी माता को इस तरह बेलगाम मत छोड़ो। हिंदी माता का तमिल अम्मा के इलाके में क्या काम? उन्हे पता नहीं कि वह इलाका कितना डेंजरस है। अगर उन्हें और उनके सपूतों को कुछ हो गया तो मैं पूरे देश को क्या जवाब दूंगा?'
चाचा नेहरू ने पूरे देश को समझाया कि ठीक है, हिंदी हमारी मां है। लेकिन अलग-अलग राज्यों में जितनी भी मौसियां हैं, वे भी मां समान हैं। मौसियों को हिंदी माता से कोई बैर नहीं। लेकिन मौसेरे भाइयों का मैं कुछ नहीं कर सकता। इसलिए सीधा रास्ता यही है कि हिंदी माता बाबुओं की निगरानी में आराम फरमाएं, अपने हार्टलैंड से निकलकर कहीं बाहर ना जाएं। चाचा नेहरू ने देश से यह भी कहा कि यह हर्गिज मत भूलो कि तुम्हारी एक पितृभाषा भी है। भारतीय समाज में बाप का दर्जा मां से बड़ा होता है। हमेशा मां का पल्लू पकड़े रहोगे तो जिंदगी में कुछ नहीं कर पाओगे। मातृभाषा लोरी सुनने के लिए ही ठीक है, भारत में रहकर रोटी कमाना चाहते हो तो अंग्रेजी सीखो। पूरा देश चाचा की दिखाई राह पर चल पड़ा। नतीजा यह हुआ कि हर जगह अंग्रेजी वाले के बाप का राज कायम हो गया और हिंदी माता हाउस वाइफ बनकर रह गई।

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