शुक्रवार, 20 जून 2014

हिंदी पर बढ़ा विवाद, कश्मीर से तमिलनाड़ु तक विरोध

केंद्रीय गृह मंत्रालय के हिंदी में कामकाज को बढ़ावा देने के निर्देश को लेकर केंद्र और गैर-हिंदीभाषी राज्यों के बीच तलवारें खिंच गई हैं। कश्मीर से लेकर तमिलनाड़ु तक गैर-हिंदीभाषी राज्यों की सरकारों ने केंद्र सरकार के इस निर्देश पर ऐतराज जताया है। यहीं नहीं मोदी सरकार को इस पर अपने ही सहयोगी दलों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। पीएमके और एमडीएमके ने इस पर आपत्ति जाहिर की है।
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता और डीएमके प्रमुख एम. करुणानिधि ने इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर विरोध दर्ज कराया है। चिट्ठी में जयाललिता ने लिखा है कि 1968 में हुए संशोधन के तहत अस्तित्व में आए आधिकारिक भाषा ऐक्ट 1963 के अनुच्छेद 3(1) में कहा गया है कि केंद्र और गैर हिंदीभाषी राज्यों के बीच संवाद के लिए अंग्रेज़ी भाषा का उपयोग किया जाएगा। उन्होंने सोशल मीडिया पर होने वाले संवाद की भाषा अंग्रेजी बनाए रखने की मांग करते हुए तमिल समेत आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं को भारत की आधिकारिक भाषा घोषित करने की अपनी मांग दोहराई है।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर उब्दुल्ला ने भी केंद्र पर दूसरे राज्यों पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया। उमर ने कहा कि भारत अलग-अलग धर्म और भाषाओं का देश है। भाषा को थोपने की कोशिश यहां संभव नहीं है।

एनडीए के घटक दल एमडीएमके प्रमुख वाइको ने तो गैर हिंदीभाषी राज्यों पर हिंदी थोपने को भारत की अखंडता के लिए खतरनाक बता दिया। वाइको ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सोए शेर को न जगाए। एनडीए के दूसरे घटक दल पीएमके ने भी इसका विरोध किया है। पीएमके प्रमुख रामदॉस ने बयान जारी करते हुए कहा कि सरकार को सोशल मीडिया में हिंदी थोपने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। उन्होंने 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा घोषित करने की मांग की।
गौरतलब है कि गुरुवार को गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग ने निर्देश जारी कर कहा कि नई सरकार सभी विभागों एवं सार्वजनिक जीवन में हिंदी मे कामकाज को बढ़ावा देगी। गृह मंत्रालय ने नौकरशाहों को कथित तौर पर निर्देश दिया था कि वे फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग, गूगल और यू-ट्यूब जैसी सोशल मीडिया साइटों पर हिंदी को प्राथमिकता दें।

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