रविवार, 8 जून 2014

हिंदी में भाषण

नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही वह चमत्कारी काम कर दियाजो अब तक भारत काकोई प्रधानमंत्री नहीं कर सका। उन्होंने पड़ौसी देशों के नेताओं को भारत तो बुलाया हीउनसे हिंदी में ही बात की। येदोनों काम ऐसे हैंजिनके लिए मैं पिछले कई वर्षों से लड़ रहा हूं। मैं सभी प्रधानमंत्रियों को प्रेरित करता रहा हूं लेकिननरेंद्र मोदी में वह संस्कारसामथ्र्य और ईमानदारी है कि उन्होंने गुलाम मानसिकता को छोड़कर महान प्रधानमंत्रीबनने का मार्ग अपने आप चुन लिया है। भाषा के सवाल पर वे उसी मार्ग पर चल रहे हैं जो गुजरात के दो महापुरुषोंदयानंद और गांधी ने हमें बताया था।

यों तो अटलजी ने हमारा अनुरोध स्वीकार करके संयुक्तराष्ट्र संघ में पहली बार हिंदी में भाषण दिया था लेकिन वहभाषण महान वक्ता अटलबिहारी वाजपेयी का नहीं था। वह अफसरों के अंग्रेजी में लिखे भाषण का अनुवाद हिंदी में था,जिसे उन्होंने संयुक्तराष्ट्र में पढ़ दिया था। प्रधानमंत्री चंद्रशेखरजी ने भी मेरे आग्रह पर मालदीव में हुए दक्षेस सम्मेलनमें अपना भाषण हिंदी में दिया था। वह हिंदी का मौलिक भाषण था लेकिन ये दोनों घटनाएं मात्र औपचारिकताएंबनकर रह गईं। अटलजी के दौर में संयुक्तराष्ट्र में और स्वराष्ट्र में भी अंग्रेजी छाई रही। यही चंद्रशेखरजी के अल्पकालमें भी हुआ। नरसिंहरावजी जब चीन गए तो मैंने एक चीनी विद्वान को अनुवाद के लिए तैयार किया था। वहधाराप्रवाह हिंदी बोलता था और दिल्ली में रहकर पढ़ा था लेकिन राव साहब ने पेइचिंग में अपने भाषण और वार्तालापकी भाषा अचानक अंग्रेजी कर दी।

नरेंद्र मोदी ने दक्षेस-नेताओं से हिंदी में बात की। सभी पड़ौसी देशों के नेता हिंदी बोलते और समझते हैंसिवायश्रीलंका और मालदीव के। पड़ौसी देशों के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों से मैं पिछले 40-45 साल से मिलता रहा हूं।श्रीलंका और मालद्वीव के नेताओं से मुझे अंग्रेजी में मजबूरन बात करना पड़ती है वरना नेपालपाकिस्तान,अफगानिस्तानबांग्लादेशभूटान और तिब्बत के नेताओं और आम लोगों से हिंदी में ही बात होती है। नरेंद्र मोदी कोचाहिए कि वे किसी भी औपचारिक अवसर पर हिंदी के अलावा किसी भी विदेशी भाषा में बात  करें। अपनी भाषा मेंकूटनीति करने का महत्व सदियों से स्वयंसिद्ध हो चुका है। संधियों और कानूनी दस्तावेजों में भी स्वभाषा के प्रयोगके लिए सभी महाशक्तियां जोर देती रही हैं। यदि हम अंग्रेजी की बजाय संबंधित देशों की भाषाओं में अनुवादकों केजरिए कूटनीति करें तो हम कहीं ज्यादा प्रभावी और सफल होंगे और अपनी मूलभाषा हिंदी रखें तो पर्याप्त गोपनीयताभी बनाए रख सकेंगे।

क्या विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अपने प्रधानमंत्री के इस स्वभाषा-प्रेम को आगे बढ़ाएंगीसुषमा-जैसी विलक्षणप्रतिभा और वाग्शक्ति की स्वामिनी महिला भी क्या हीन भावना से ग्रस्त हो सकती हैउन्हें अंग्रेजी की गुलामी कीक्या जरुरत हैसुषमाजी के व्यक्तित्व पर लोहियाजी के विचारों कीं गहरी छाप है। वे हिंदी आंदोलन में मेरे साथउत्साहपूर्वक काम करती रही हैं। आज इंडियन एक्सप्रेस में यह पढ़कर मुझे दुख हुआ कि उन्होंने पड़ौसी अतिथियों सेअंग्रेजी में बात की। उन्हें चाहिए कि वे विदेष मंत्रालय के सारे अफसरों से उनका कामकाज हिंदी में करवाएं और खुदउनसे हिंदी में ही बात करें। उन्हें यह आदेश भी दें कि वे अंग्रेजी के अलावा दुनिया की दर्जनों महत्वपूर्ण भाषाएं भी सीखें 

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