गुरुवार, 14 अगस्त 2014

हिंदी लैंग्वेज का मिक्स है , सुपरहिट

जिन वजहों से हिंदी साहित्य के आलोचक इन राइटर्स की बुराई करते हैं, उसको ही इन्होंने अपनी ताकत बना लिया है। हिंदी की एक बेस्ट सेलर के लेखक निखिल सचान हों या दिव्य प्रकाश, सबका यही कहना है कि हिंदी में अंग्रेजी की मिक्सिंग में कोई बुराई नहीं है। उनका मनना है कि लोग जिस भाषा में बात करते हैं, उसी भाषा में पढ़ना भी चाहते हैं। कठिन हिंदी को पढ़ने-समझने के लिए यंग जनरेशन के पास वक्त नहीं है। वे तो हर किताब में खुद को ढूंढते हैं और जहां उन्हें अपना अक्स दिखता है, उसे अपना लेते हैं।
मिसाल के तौर पर दिव्य प्रकाश अपनी कहानियों में किसी कॉरपोरेट पात्र का लिखा हुआ लेटर अंग्रेजी में ही लिखते हैं, क्योंकि असल जिंदगी में शायद ही कोई कॉरपोरेट एम्प्लॉई हिंदी में ऑफिशल लेटर लिखता हो। उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं कि इसे कितना स्वीकार किया जाएगा। ऐसा वह अपनी राइटिंग की शुरुआत से ही कर रहे हैं और ऐसा करने में उन्हें कोई हिचक नहीं है।
अगर इन टेक्नोक्रेट राइटर्स की यूएसपी पर गौर करें तो कहीं-न-कहीं नई तकनीक की बेहतर समझ इन्हें परंपरागत हिंदी राइटर्स से अलग करती है। यह समझ केवल तकनीक के इस्तेमाल तक सीमित नहीं है, बल्कि उसके आसपास के माहौल तक बिखरी हुई है। हर राइटर जानता है कि आज की दुनिया के कैरक्टर्स तकनीक को कैसे और किस हद तक इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा, तकनीक उनकी कहानियों और किताबों को दूरदराज तक कैसे पहुंचा सकती है, इसकी समझ भी उन्हें खूब है। लगभग सभी राइटर्स अपने रीडर्स से सोशल मीडिया के जरिए जुड़े हुए हैं, जिससे उन्हें फौरन फीडबैक भी मिलता है।
आईआईटी दिल्ली के स्टूडेंट रहे राइटर प्रचंड प्रवीर का कहना है कि सोशल साइट्स के जरिए उन्हें यह पता चलता रहता है कि उनके रीडर्स का बैकग्राउंड क्या है और उनकी पहुंच कितनी है? इसके अलावा अपनी कहानी या किताब के लिए खास प्रोमो बनाना हो या यूट्यूब पर एक विडियो बनाना हो, ये सब भी इन्हें बखूबी आता है और ये टोटके कमाल करते हैं।
चेतन भगत की 'फाइव पॉइंट सम वन' जब सिनेमा के पर्दे पर 'थ्री इडियट्स' की शक्ल में उतरी, तभी से पॉप्युलर राइटर्स के लिए एक नए युग की शुरुआत हो गई। लोगों में पॉप्युलर हो चुकी कहानी सिनेमा में हिट थी और यह यंग राइटर्स के लिए एक चार्म की तरह सामने आया। 'नमक स्वादानुसार' किताब के राइटर निखिल का कहना है कि अगर बॉलिवुड में मौका मिला तो जरूर लिखूंगा, लेकिन अपनी शर्तों पर। इस मामले में दिव्य प्रकाश काफी लिबरल हैं। वह पहले ही पीयूष मिश्रा के साथ एक शॉर्ट फिल्म लिख चुके हैं और एक अनाम फिल्म लिखने की तैयारी भी कर रहे हैं। दिव्य कहते हैं, 'सिनेमा के जरिए मेरी कहानी बलिया, लंदन, लखनऊ और मुंबई में साथ-साथ पहुंचती है और एक राइटर को इससे ज्यादा क्या चाहिए?' वह मशहूर राइटर राही मासूम रजा की उन लाइनों को अपनी प्रेरणा मानते हैं, जिसमें राही कहते हैं कि अगर फिल्म में चार सीन भी किसी लेखक के मन के हैं तो इससे वह लाखों लोगों तक अपनी बात पहुंचा सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं: