बुधवार, 9 सितंबर 2015

हिन्दी को लेकर हीन भाव लाने की जरुरत नहीं

¨ हिन्दी को लेकर हीन भाव लाने की जरुरत नहीं है। अंग्रेजी का चाहे जितना वर्चस्व स्थापित हो रहा है, ¨ हिन्दी भी इसमें पूरी तरह से फलफूल रही है, क्योंकि आज अंग्रेजी में लिखने वाले लेखकों को हिन्दी ने अपनी ताकत का एहसास करा दिया है। इसके चलते आज अंग्रेजी की किताबों के साथ ही ¨ हिन्दी का वर्जन साथ-साथ आ रहा है।
आज अंग्रेजी के बहुत सारे लेखकों की अनुवादित होकर ¨ हिन्दी में किताबें आ रही हैं, तो दूसरी ओर ¨ हिन्दी के लेखकों की किताबें अंग्रेजी में अनुवाद होकर बिक रही हैं। कथा सम्राट प्रेमचंद की पूस की रात जनवरी नाइट, मुक्ति मार्ग द रोड आफ साल्यूशन, बड़े भाई साहब माई एल्डर बदर्स, गरीब की हाय पावर आफ कर्स के नाम से अनुवाद होकर बिक रही हैं। कई विदेशी राइटरों की मोटिवेशनल किताबों को ¨ हिन्दी में पसंद किया जा रहा है। कई किताबों की अंग्रेजी से अधिक अनुवादित किताबों की मांग है।
बाजार में ये किताबें
शहर के बुक शाप पर नजर दौड़ाने पर साफ दिख रहा है कि भारतीय लेखकों में चेतन भगत, शिव खेड़ा की हिन्दी अनुवादित किताबें खूब बिक रही हैं। इसके अलावा बाजार में ब्रायन ट्रेसी की अधिकतम सफलता, अमीश की मेलूहा के मृत्युंजय, स्टीफन आर कवी की अति प्रभावशाली लोगों की सात आदतें, चेतन भगत की टू स्टेटस, शिवखेड़ा की जीत आपकी, डेविड जे श्वाटर््ज की बड़ी सोच का बड़ा जादू, खालिद हुसैन की हजारों दमकते आफताब, जेके रोलिंग की हैरीपार्टर, द व्हाइट रा की अप्रेषित पत्र, रांडा बर्न की शक्ति आदि जैसी सैकड़ों किताबें बाजार में उपलब्ध हैं। अनुवादित किताबों से ही कई लेखक बेस्ट सेलर में भी शामिल हो गए हैं।
अभी 40 और 60 का अनुपात
पुस्तक विक्रेताओं की माने तो ¨ हिन्दी और अंग्रेजी साहित्य के बीच 40-60 का अनुपात आ गया है। युवा अंग्रेजी साहित्य को अधिक पसंद करते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि ¨ हिन्दी साहित्य को वह नजरअंदाज कर रहे हों। सभी उम्र के लोग प्रेमचंद की गोदान, निर्मला, गबन, शतरंज के खिलाड़ी रवींद्र नाथ टैगोर की चोखेरबाली, गीतांजली और शेषेर कविता के अलावा महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, रामधारी सिंह दिनकर जैसे लेखकों की किताबें पढ़ी जा रही हैं।
¨ हिन्दी का क्रेज कम नहीं

निबंस आउटलेट की संचालिका अलका शर्मा और बुक कार्नर के तुषार नांगिया कहते हैं कि हिंदी साहित्य का क्रेज कभी कम नहीं हुआ और न ही कभी होगा। ज्यादातर विदेशी लेखकों की ¨हदी अनुवादित किताब भी पसंद की जा रही हैं। हर उम्र के लोग ¨हदी साहित्य पढ़ना पसंद करते हैं। आज की पीढ़ी भी प्रेमचंद को पढ़कर बड़ी हो रही है। 

कोई टिप्पणी नहीं: