शुक्रवार, 26 मार्च 2010

राजभाषा सम्मेलन का लुत्फ

मैं भी दिनांक 27 मार्च 2010 को आयोजित राजभाषा सम्मेलन का लुत्फ उठाने जा रहा हूं क्योंकि इस सम्मेलन में सरकारी प्रायोजित खाना, प्रायोजित बैग, पैन पैड तथा कुछ अभिशाप्त पत्रिकाओं की दुगर्ती देखने का अहसास कर मन को आनंदित महसूस करूंगा ।
स्पष्ट है कि हिनदी आज राष्ट्रभाषा नहीं है यह राजभाषा विभाग का कथन है तथा राजभाषा के नाम पर झूठे आंकडों के खेल में कोई महाझूठा प्रथम पुरस्कार प्राप्त करता है तो दूसरे अगले वर्ष उससे अधिक झूठ बोलने का संकल्प लेते है । राजभाषा विभाग इस कडी में एक संयोजक की भूमिका में है वह कुछ अति अवांछित व्यक्तियों को विभिनन मंत्रालयों की हिन्दी सलाहकार समितियों में नामित कर उन्हे धन्य कर देता है जिन्होने राजभाषा और राष्ट्रभाषा के अन्तर को समझने की कोशिश भी कभी नहीं की । खैर यह तो खीजने की बात ही कही जाएगी परन्तु मैं अपने को भाग्यशाली मानता हूं कि इस सम्मेलन की वजय से दमण में घूमने का मौका मिलेगा ।

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