गुरुवार, 19 सितंबर 2013

हिंदी का सौभाग्य है कि वो एक मुख्य भाषा बनकर आगे चल रही है

ये बात हर मौके पर उठकर आती है कि हिंदी गर्त में जा रही है , हिंदी बोलने वाले कम हो रहे हैं या हिंदी जानने वाले हिंदी बोलना ही नहीं चाहते ! कुछ सच्चाई तो है इन बातों में लेकिन पूर्ण सच्चाई नहीं है ! हर एक आदमी की मानसिकता अलग होती है , कोई हिंदी बोलना शान के खिलाफ समझता है , कोई इसे गरीबों की भाषा समझता है तो कोई इसे अभिव्यक्ति और सम्मान की भाषा समझता है ! ये सही है कि हमारे हिंदी के फिल्म अभिनेता ज्यादातर सार्वजनिक स्थानों पर अंग्रेजी में वार्तालाप करते हुए दीखते हैं लेकिन यही लोग हिंदी फिल्में पाने और अपना प्रचार करने के लिए हिंदी का प्रयोग करते हैं ! इसमें उन्हें दोष देना गलत है क्योंकि पेट सबसे बड़ी जरुरत है वो चाहे किसान का हो , मजदूर का हो या एक अभिनेता का हो ! लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो हमेशा ही हिंदी को वरीयता देते हैं ! निश्चित ही सबसे पहला नाम महानायक अमिताभ बच्चन का आता है जो न केवल हिंदी बोलते हैं बल्कि बहुत शुद्ध और उच्चकोटि की हिंदी बोलते हैं ! मनोज वाजपायी , आशुतोष राणा की हिंदी से कौन वाकिफ नहीं है ? इसी दौर में प्रकाश झा जैसे डाइरेक्टर हिंदी को बढ़ावा देते हुए दीखते हैं ! और क्यूंकि हम सब जानते हैं कि हिंदी फिल्मों का बाज़ार दिनों दिन भारत से निकलकर श्री लंका और दुबई के रास्ते होते हुए यूरोप और जापान तक की गलियों में पहुँच रहा है , तो ऐसे में हिंदी का बोलबाला स्वतः ही दिखने लगता है ! कभी कभी हिंदी को लेकर दक्षिण में जो कुछ दिखाई देता है असल में वो असली नहीं है वो पैदा किया हुआ होता है ! क्यूंकि अगर वो पैदा नहीं होगा तो वोट बटोरने की मशीन ख़त्म हो जायेगी और मुझे ये गलत भी नहीं लगता ! गलत यानी कि ये की उन पर हिंदी थोपी जाए आखिर क्यूँ थोपी जाए दक्षिण में हिंदी हिंदी भारतीय भाषाओँ की बड़ी बहन जैसी है और मुझे लगता है उसे छोटी बहनों को भी प्यार करना चाहिए ! हिंदी , क्यूंकि बड़ी बहन है तो उसे और दूसरी भाषाओँ को भी सम्मान और उचित स्थान देना चाहिए ! हिंदी स्वयं में ही इतनी सुन्दर भाषा है कि लोग खिचे आते हैं ! मुझे उत्तर पूर्व में बहुत बार यात्रा करने का अवसर प्राप्त हुआ है लेकिन मुझे कभी भी ऐसी समस्या नहीं आई कि मैं अपनी बात हिंदी में उन लोगों को नहीं समझा सका ! हाँ , ये जरुर है कि ग्रामीण इलाकों में जरुर कुछ मुश्किल आती है किन्तु ऐसा तो हर जगह होता है ! आपको भोजपुरी समझने में दिक्कत हो सकती है , आपको राजस्थानी समझने में दिक्कत हो सकती है और यहाँ तक कि आपको हरियाणवी समझने में भी परेशानी हो सकती है लेकिन ये सब हिंदी के साथ चलती रहती हैं !

आज़ादी से पहले या आज़ादी के बाद भारत में जब जब सामाजिक आन्दोलन हुए हैं उनमें हिंदी को प्राथमिकता मिली है ! लोगों ने अपने विचार , अपने आन्दोलन , अपनी क्रांति को हिंदी के माध्यम से व्यक्त किया है ! भगत सिंह ने हमेशा पंजाबी और हिंदी में लिखा है ! लोहिया , राज नारायण जी से लेकर अन्ना हजारे तक ने अपनी अभिव्यक्ति को हिंदी में ही व्यक्त किया है और हिंदी ने ही इन आंदोलनों और क्रांतियों को सांस दी हैं और अपने उच्चतम शिखर तक गयी हैं ! इसलिए मुझे लगता है हिंदी में वो ताकत है जो किसी भी आन्दोलन और सामाजिक परिवर्तन को आगे लेकर जा सकती है ! हिंदी का सौभाग्य है कि वो एक मुख्य भाषा बनकर आगे चल रही है और मुझे भरोसा है कि एक दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा में में भी जरुर हिंदी को आधिकारिक भाषा का सम्मान मिलेगा ! ये मिल सकता है अगर हम इसकी पैरवी प्रभावी तरीके से करें ! संयुक्त राष्ट्र महासभा में माननीय अटल बिहारी वाजपायी जी द्वारा दिया गया भाषण किसे याद नहीं है ? इसलिए हिंदी के लिए ये जरुरी हो जाता है कि उसकी हिमायत प्रभावी तरीके से हो ! हिंदी के प्रति कुछ शब्द काव्य के रूप में लिखकर आपसे विदा लेता हूँ :

मन समर्पित तन समर्पित और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ मातृ-भू तुझको अभी कुछ और भी दूँ ॥
माँ तुम्हारा ऋण बहुत है मैं अकिंचन
किन्तु इतना कर रहा फिर भी निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब
स्वीकार कर लेना दयाकर यह समर्पण
गान अर्पित प्राण अर्पित रक्त का कण-कण समर्पित ॥


माँज दो तलवार को लाओ न देरी
बाँध दो कसकर कमर पर ढाल मेरी
भाल पर मल दो चरण की धूलि थोड़ी
शीष पर आशीष की छाया घनेरी
स्वप्न अर्पित प्रश्न अर्पित आयु का क्षण-क्षण समर्पित ॥

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