शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

मनपसंद ऑडियो बुक सुनने का मजा ही कुछ और है


बहुत जल्द आपके पढ़ने का अंदाज बदल जाएगा। जी हां, बोलने वाली किताबें हमारी जिंदगी में धीरे-धीरे पैर पसार रही हैं। इंटरनैशनल बुक फेयर में इस बार बोलने वाली किताबों में लोग काफी दिलचस्पी ले रहे हैं।दिल्ली की कंपनी रीडो इस कॉन्सेप्ट को आगे बढ़ा रही है।

दिल्ली जैसे शहर में कम से कम एक घंटे की ड्राइव के बाद या मेट्रो पकड़ कर लोग अपने वर्क प्लेस पर पहुंचते हैं। इस दौरान बार-बार एफएम चैनल बदलने और उस पर कुछ भी सुनने के बजाय मनपसंद ऑडियो बुक सुनने का मजा ही कुछ और है। पीतमपुरा से गुड़गांव अपने जॉब पर मेट्रो से जाने वाले विकास नंदा कहते हैं कि मेट्रो में कोने की सीट लेता हूं। फिर अपने आईफोन पर ऑडियो बुक खोल लेता हूं। पेशे से एक आईटी कंपनी में प्रोग्रामर नंदा कहते हैं कि बड़े दिनों से स्टीव जॉब्स की ऑटोबायोग्राफी पढ़ने की तमन्ना थी लेकिन फुर्सत नहीं मिलती थी।

रीडो ने इस काम को आसान कर दिया है। सीपी में जॉब करने वाले ललित अरोड़ा ने भी एक हफ्ते पहले ही पत्रकार एस. हुसैन जैदी की मशहूर किताब डोंगरी टु दुबई ऑडियो बुक मेट्रो में रोजाना सफर करते हुए सुनी। इस बुक में माफिया डॉन दाऊद इब्राहीम और बाकी क्रिमिनल्स की कहानी है। रीडो के सीईओ 32 साल के सुमित सुनेजा कहते हैं कि अगले पांच सालों में भारत में यह इंडस्ट्री 100 मिलियन यूएस डॉलर की होने वाली है और अगले 10 सालों में यह 500 मिलियन यूएस डॉलर की हो जाएगी। हालांकि यह अभी भी अमेरिका के 7 बिलियन डॉलर बिजनेस के मुकाबले काफी पीछे है। पर, कल के बारे में कौन जानता है। उनकी खुद की कंपनी ने पिछले 18 महीनों में सेवन टाइम्स ग्रोथ की है, जो बकौल सुनेजा उम्मीद से ज्यादा है।
सुमित ने बताया कि अभी सारा बिजनेस अंग्रेजी के दम पर है लेकिन अगले बुक फेयर में वह हिंदी के मशहूर उपन्यास और दूसरी किताबों के टाइटल लेकर हाजिर होंगे। उस वक्त बहुत अजीब लगता है जब हमारी भगवद् गीता की ऑडियो बुक हम किसी अमेरिकी कंपनी से खरीदने को मजबूर हों। हिंदी में बिजनेस पोटेंशियल गजब का है, आप बहुत बड़े ऑडियंस से जुड़ते हैं। हिंदी के कम से कम सौ टाइटल लेकर आने का इरादा है। यानी श्रोता को किसी टाइटल के न मिलने पर अफसोस न करना पड़े।
पर हिंदी को लेकर उनका नजरिया बहुत साफ है। हिंदी में हमारी ऑडियो बुक्स आम बोलचाल वाली भाषा में होंगी जो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक को समझ में आए। हिंदी में हम ऐसा कुछ करना चाहते हैं कि हिंदी वालों को भी उसे देखकर और सुनकर रश्क हो।

कोई टिप्पणी नहीं: