मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

हिंदी और दूसरे भाषाई अखबारों और समाचार चैनलों में अभी तक 'वी' को 'वी' ही लिखा

कुछ दिन पहले इंडियन फर्राटा रेस दूसरी बार भी सेबेस्टियन वेटल ने जीत ली। लेकिन यह बात बहुत कम लोग जान पाए कि दोनों बार ये रेस दरअसल सेबेस्टियन वेटल ने नहीं बल्कि सेबेस्तियन फेटल ने जीती। यह भी कम ही लोग जानते हैं कि जर्मन सिम्फनी जादूगर दरअसल बेथोफेन थे, बेथोवेन नहीं। दरअसल जर्मन भाषा में 'वी' का उच्चारण 'फ ' की तरह किया जाता है जैसे बंगाल-बिहार में इस 'वी' या 'व' को 'भ' उच्चारित करते हैं।
कुछ साल पहले तक तो इस 'वी' को हिंदी में 'वी' लिखना और 'वी' उच्चारित करना समझ में आता था क्योंकि तब तक भारत में जर्मन कार कंपनी फोल्क्स्वैगन नहीं आई थी। लेकिन अब तो लगभग हर बड़े शहर में इसके शोरूम हैं और टीवी पर इसका विज्ञापन भी आता है जिसमें साफ -साफ फोल्क्स्वैगन बोला जाता है जो इंग्लिश के शब्द 'वी' से शुरू होता है। टीवी स्क्रीन पर इंग्लिश में लिखकर भी आता है।

लेकिन हिंदी और दूसरे भाषाई अखबारों और समाचार चैनलों में अभी तक इस 'वी' को 'वी' ही लिखा और बोला जा रहा है। बात सिर्फ जर्मनी की ही नहीं, पांच वर्षों तक फ्रांस के राष्ट्रपति रहे निकोलस सर्कोजी दरअसल निकोला सारकोजी थे। फ्रेंच के कई शब्दों, खास तौर पर संज्ञा के आखिर के 'एस' को बोला नहीं जाता, चूंकि निकोला के नाम के आखिर में 'एस' लगा था तो सभी ने उस आशिक बेचारे को पांच साल तक निकोला से निकोलस बनाए रखा। जिस तरह जर्मन चांसलर अंगेला मैरकल को एंजिला मैर्कल बनाए हुए हैं क्योंकि उनके नाम में 'जी' शामिल है।
इसी तरह बुंगा-बुंगा पार्टी वाले इटली के पूर्व प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी नहीं बल्कि सेल्वियो बैर्लुस्कोनी हैं। चीन के राष्ट्रपति झी जिनपिंग नहीं, शी जिनपिंग बनेंगे और प्रधानमंत्री ली केमियांग नहीं बल्कि ली क क्यांग होंगे। कामयाब जासूस, नाकाम आशिक सीआईए प्रमुख डेविड पेट्रेयस या पेट्रियस तो हो सकते हैं पर पैट्रियास बिलकुल नहीं, जैसा कि मीडिया में बोला-लिखा जा रहा है। तुर्की के प्रधानमंत्री का नाम रेचेप तय्यब एर्दोआन है न कि रिसेप तय्यप एर्दोगान। चूंकि उनका नाम रेचेप लिखने में इंग्लिश का 'सी' आता है तो रेचेप कर दिया और एर्दोआन के बीच में 'जी' शब्द आता तो एर्दोगान। लेकिन शुक्र है कि एर्दोजान नहीं लिखा गया, जैसा कि अंगेला मैरकल के मामले में किया जा रहा है।

अरब देशों के नामों के साथ भी भद्दा मजाक होता है। अरबी नामों का तर्जुमा करने में 'स' और 'श' के लिए वहां के उच्चारण के अनुसार इंग्लिश में 'डी' या 'टी एच' लिखा जाता है जो यहां अपने ढंग से पढ़ा और लिखा जाता है। और तो और दक्षिण भारत के विख्यात हीरो कमल हासन को कमल हसन लिखा जाता है, उनकी बेटी श्रुति के आगे भी हसन लिखा जाने लगा। इस तरह के सैकड़ों उदाहरण हैं। उत्तर-पूर्व और दक्षिण के लोगों के नाम हम लोग सही से उच्चारित नहीं करते। लेकिन हैरत है कि 'गुची' पर्स को कोई भी गुक्की या गुस्सी नहीं बोलता है।

हालांकि उसकी स्पेलिंग अपने उच्चारण से बिलकुल मेल नहीं खाती। उसमें दो बार इंग्लिश का 'सी' आया है और अपने यहां इस 'सी' को 'क' के उच्चारण की तरह इस्तेमाल करने की परंपरा है। ये विरोधाभास फोल्क्सवैगन की तरह ही है, यानी बाजार का दबाव जहां ज्यादा है वहां सब सही है। यह समस्या सिर्फ भारत की नहीं हैदुनियामें सभी जगह यह दिक्कत आती है। अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों के मीडिया संस्थानों ने ऐसे सॉफ्टवेयर तैयारकराए हैं जिनमें जिस देश का शब्द है उस देश के कॉलम में जाकर इंग्लिश में उसे फीड करने पर उस शब्द कासही उच्चारण बोलकर वो सॉफ्टवेयर सुना देता है।

मीडिया की विश्वसनीयता में इस बात का बड़ा हाथ है कि उनकी जानकारियां सही होती हैं। इस तरह कासॉफ्टवेयर तैयार कराना  बहुत खर्चीला काम है और  पेचीदा। लेकिन भारत में हजारों करोड़ रुपये की न्यूजइंडस्ट्री में इस तरह की पहल शायद किसी मीडिया संस्थान ने अभी तक नहीं की है

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