गुरुवार, 24 जून 2010

आज करीब 25 से 30 युवा कथाकार हिंदी में गंभीरतापूर्वक कहानियां लिख रहे हैं।

हिंदीभाषी प्रदेशों के बहुत से लोग ऐसा मानते हैं कि ग्लोबलाइजेशन और सूचना क्रांति ने साहित्य से आम आदमी का रिश्ता कमजोर कर दिया है और एक ऐसा समय भी आ सकता है, जब साहित्य जीवन से बेदखल हो जाएगा। ऐसा मानने वालों को साहित्य और आधुनिक रहन-सहन व टेक्नॉलजी में विरोध नजर आता है। उन्हें लगता है कि ग्लोबलाइजेशन के दौर में मोबाइल और इंटरनेट के साथ जवान होने वाली पीढ़ी के लिए गंभीर साहित्य का कोई मोल नहीं रह गया है। उनकी नजर में यह जेनरेशन हिंदी की कोर्सबुक की वजह से प्रेमचंद और दूसरे कुछ लेखकों का नाम भले ही जान जाए, मगर इसके अलावा उसका साहित्य से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन इस राय को पिछले पांच-छह वर्षों में उभरकर आई युवा कथाकारों की पीढ़ी ने गलत साबित कर आज करीब 25 से 30 युवा कथाकार हिंदी में गंभीरतापूर्वक कहानियां लिख रहे हैं। इनकी औसत उम्र 27-28 साल है। यानी इन्होंने उदारीकरण के समय में होश संभाला है। इनमें से ज्यादातर पब्लिक स्कूलों में पढ़े हुए हैं। किसी ने बॉयोटेक्नॉलजी की शिक्षा हासिल की है तो किसी ने मैनेजमेंट की। कोई पब्लिक सेक्टर में बड़े पद पर है तो कोई सिविल सर्विस में है। ये सब आधुनिक टेक्नॉलजी से युक्त हैं। इनमें से कई आपको फेसबुक पर मिलेंगे। कइयों के अपने ब्लॉग हैं। ये अपना लेखन सीधे कंप्यूटर पर करते हैं। इनके लिए साहित्य केवल शौक या टाइम पास नहीं है। अपनी भाषा और साहित्य के प्रति गहरे कमिटमेंट के कारण ही इन्होंने साहित्य-लेखन को अपनाया है। इतने सारे नए लेखकों की एक साथ मौजूदगी इस बात का संकेत है कि कंज्यूमरिज्म के असर के बावजूद हिंदीभाषी परिवारों में अपने बुनियादी मूल्यों से जुड़ाव बचा हुआ है। बल्कि जुड़ाव की प्रक्रिया ने नए सिरे से जोर पकड़ा है। इस वर्ष दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले में पिछली बार की तुलना में दर्शकों की ज्यादा भीड़ और हिंदी प्रकाशकों की बिक्री में 20 से 25 फीसदी की बढ़ोतरी इसका एक प्रमाण है। इन युवा कथाकारों में महिलाओं की संख्या भी अच्छी-खासी है। निश्चय ही यह मिडल क्लास में लड़कियों की शिक्षा-दीक्षा और उन्हें आगे बढ़ाने को लेकर आ रही जागरूकता की देन है। हिंदी कहानी में यह एक खास मोड़ है, जिसमें भारतीय ज्ञानपीठ जैसी संस्थाओं और 'नया ज्ञानोदय' जैसी पत्रिकाओं का महत्वपूर्ण योगदान है। सबसे पहले नया ज्ञानोदय ने दो खंडों में कुछ युवा कथाकारों की कहानियां छापीं, जिनका जबर्दस्त स्वागत हुआ। उसके बाद भारतीय ज्ञानपीठ ने इनमें से कुछ चुनिंदा कथाकारों के कहानी संग्रह छापे। दो साल के भीतर ही इनके दो-दो संस्करण निकल गए और अब कुछ संग्रहों का तीसरा संस्करण भी आने वाला है। भारतीय ज्ञानपीठ ने कहानी, कविता, और उपन्यास के लिए युवाओं को पुरस्कार देना भी शुरू किया है जिससे यंग राइटर्स को काफी प्रोत्साहन मिला है। नया ज्ञानोदय के बाद कुछ और पत्रिकाओं ने भी युवा कथाकारों पर विशेषांक निकाले जिसमें 'प्रगतिशील वसुधा' का विशेषांक काफी महत्वपूर्ण है। इन कहानीकारों का नजरिया पिछली पीढ़ी के कहानीकारों से बिल्कुल अलग है। ये किसी विचार के प्रभाव में नहीं हैं, इसलिए ये समाज को किसी आइडियोलॉजी के चौखटे में कसकर नहीं देखते। ये आमतौर पर शहरों के मध्यवर्गीय लेखक हैं इसलिए इनके कैरक्टर भी शहरी मिडल क्लास के हैं। ज्यादातर कहानियों का नायक मध्यवर्गीय युवा है जो समय के अनेक दबाव झेल रहा है। नौकरी और प्रेम जैसी समस्याओं में उलझा हुआ वह समाज में अपनी पहचान, अपनी जगह बना रहा है। लेकिन वह किसी भी लेवल पर किसी आदर्श को ढोता हुआ नजर नहीं आता। प्रेम और सेक्स को लेकर भी वह किसी उलझन का शिकार नहीं है, बल्कि बेहद व्यावहारिक है। आज की कहानियों में प्रेमी-प्रेमिका शादी और लिवइन रिलेशन को लेकर बेहद स्पष्ट हैं। अब वर्जिनिटी कोई मुद्दा नहीं है, नई जरूरतों के मुताबिक एक-दूसरे के लिए उपयोगी होने का सवाल ज्यादा महत्वपूर्ण है। महिला कथाकारों के यहां भी रिश्तों का परंपरागत रूप देखने को नहीं मिलता। उनकी कहानियों में महिला चरित्र बोल्ड हैं- लेकिन केवल देह के स्तर पर नहीं, बल्कि समाज में अपनी भूमिका निभाने को लेकर भी। उनकी कहानियों में आज की आधुनिक कामकाजी महिला के रहन-सहन और सोच की झलक मिलती है जो अपनी स्वतंत्र पहचान के लिए संघर्ष करती नजर आती है। इन युवा कथाकारों ने भाषा के पुराने ढांचे को तोड़ा है। ये ज्यादातर अपने कैरक्टर और माहौल के हिसाब से ही भाषा लिखते हैं। एक उदाहरण देखिए : 'निकी जॉइंड दिस स्कूल इन नाइंथ और स्कूल में अपने फर्स्ट डे से ही वो मुझे पसंद आ गई थी। अपनी शुरुआती कोशिशों के बाद जब लगा कि निकी मेरी तरफ ध्यान भी नहीं दे रही तब मैंने अपने दोस्तों की मदद मांगी। रवि इज वन ऑव माई फास्ट फ्रेंड्स एंड ही टोल्ड मी कि निकी एक फर्राटा है, उसके घर वाले आर वेरी पावरफुल और मुझे उसका चक्कर छोड़ देना चाहिए। लेकिन मेरी फीलिंग्स को देखते हुए उसने स्कूल्स फॉर्म्युला ट्राई करने को कहा। मेरे स्कूल में अगर किसी लड़की को इम्प्रेस करना होता था तो कनसर्निंग ब्वॉय यूज्ड टु कीप मैसेजेज, फ्लावर्स ऑर कार्ड राइट साइड ऑव द गर्ल्स बैग। यह सब प्रेयर के टाइम पर होता था।' (सिटी पब्लिक स्कूल, वाराणसी, चंदन पाण्डेय ) आज के कहानीकार आधुनिक लाइफ स्टाइल के तमाम ब्योरे देते हैं। उनमें मोबाइल है, चैटिंग है, पिज्जा है, बर्गर है, मिनरल वॉटर है। चूंकि यह सूचनाओं का युग है, इसलिए आज के युवा लेखकों की कहानियों में सूचनाओं की भरमार मिलती है। ये कहानीकार हालात का चित्रण भर करते हैं, लेकिन किसी परिणाम या समाधान की ओर ले जाने की कोशिश नहीं करते। हिंदी के कुछ सीनियर लेखक हिंदी साहित्य की इस यंग ब्रिगेड को संदेह की नजर से भी देखते हैं, लेकिन पाठकों ने इनके लेखन को हाथोंहाथ लिया है। सचाई यह है कि ये युवा कहानीकार हिंदी में पाठकों का एक नया वर्ग तैयार कर रहे हैं।

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