10वें विश्व
हिंदी सम्मेलन की गूंज शुरू हो गई है। वर्ष 1983 में नई
दिल्ली में आयोजित तीसरे विश्व हिंदी सम्मेलन के लगभग 32 वर्ष
बाद विश्व हिंदी सम्मेलन इस बार भारत में 10 से 12 सितंबर को भोपाल में आयोजित हो रहा है। पहले दो सम्मेलन गैरसरकारी थे,
तीसरा मानव संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत हुआ, किंतु
चौथे सम्मेलन से यह आयोजन विदेश मंत्रालय के अधीन हो गया और सभी प्रकार के निर्णय
मंत्रालय स्तर पर होने लगे। विदेशों में आयोजन होने के कारण भी यह सभी के आकर्षण
का कारण बना रहा है।
विश्व हिंदी सम्मेलनों की प्रासंगिकता सदा प्रश्नों के घेरे में रही है, इस
बार भी अनेक शंकाएं हैं। इस सम्मेलन से क्या उद्देश्य पूर्ण हो रहा है? इन सम्मेलनों में पारित संकल्पों के नतीजतन वर्धा में महात्मा गांधी
अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय स्थापित किया गया। मॉरीशस में विश्व हिंदी
सचिवालय की स्थापना हो चुकी है। पूर्व के सम्मेलनों में पारित संकल्पों के अनुसार 10
जनवरी का दिन विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
प्रथम सम्मेलन में यह विचार किया गया कि विश्व में हिंदी के प्रचार-प्रसार
के लिए एक अलग संस्था होनी चाहिए। इसी उद्देश्य से विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना
मॉरीशस में की गई है। आज हिंदी का प्रयोग विश्व के अनेक महाद्वीपों में किया जा
रहा है। हिंदी पूरे विश्व में अपने अस्तित्व को आकार दे रही है। ऐसे में विश्व
हिंदी सचिवालय महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है। इसी प्रकार महात्मा गांधी
अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा की पीठों की स्थापना पूरे भारत
में हो, इसकी आवश्यकता है। इससे विश्व हिंदी सम्मेलन में लिए
गए संकल्पों की सार्थकता बढ़ेगी।
भूमंडलीकरण के इस युग में हिंदी तेजी से विश्व भाषा बनती जा रही है, किंतु
हिंदी के सामने कई व्यावहारिक संकट भी हैं, जिनमें सबसे बड़ा
संकट विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में हिंदी के छात्रों में भारी कमी आना है।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इन संकटों को नकारती हैं। वह कहती हैं कि ऐसा नहीं कह
सकते कि विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ने वाले छात्रों की संख्या में कमी आई
है, बल्कि प्राथमिक स्तर पर हिंदी शिक्षण में बड़े पैमाने पर
वृद्धि हुई है। उनके अनुसार अंग्रेजी भाषी देशों के विश्वविद्यालयों में हिंदी
पढ़ने वाले विदेशी छात्रों की समस्याएं अन्य देशों जैसे फ्रांस, जर्मनी, हंगरी, रूस, जापान, कोरिया आदि के विश्वविद्यालयों में हिंदी के
छात्रों की समस्याओं से अलग हैं।
उन्होंने बताया कि अंग्रेजी भाषी देशों में हिंदी को अंग्रेजी माध्यम से
पढ़ाया जाता है, जबकि अन्य देशों में विद्यार्थी अपनी-अपनी भाषा के माध्यम
से हिंदी पढ़ते हैं। जिन देशों में पहले से हिंदी शिक्षण नहीं हो रहा है, उनमें हिंदी शिक्षण की शुरुआत करने तथा हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करने
के लिए विदेश मंत्रालय एक नई नीति पर कार्य कर रहा है। इनमें मंत्रालय में हिंदी
प्रचार-प्रसार तंत्र को संवद्र्धित करना और हिंदी शिक्षण पीठों की स्थापना करके
हिंदी भाषा के प्रति रुचि जगाना है। केंद्रीय हिंदी संस्थान से जो विदेशी छात्र
हिंदी सीखकर अपने-अपने देश वापस जाते हैं, उन देशों में
हिंदी शिक्षण और प्रचार-प्रसार में उनकी मदद लेना जैसे विषय विचाराधीन हैं।
जब से प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन की शुरुआत हुई है, तभी
से हिंदी को संयुक्त राष्ट्र में स्थापित किए जाने की बात की जाती रही है। लेकिन
ये सपना अभी दूर ही दिखता है। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में जो छह आधिकारिक
भाषाएं अंग्रेजी, रूसी, फ्रांसीसी,
चीनी, स्पेनिश और अरबी हैं, इनमें से चार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की भाषाएं
हैं और अन्य दो अनेक संबंधित देशों द्वारा बोली जाती हैं। संयुक्त राष्ट्र में
किसी भी भाषा को आधिकारिक भाषाओं में शामिल करने के लिए दो पहलू हैं। प्रशासनिक व
वित्तीय निहितार्थ। प्रशासनिक प्रक्रिया के तहत संयुक्त राष्ट्र महासभा से एक
संकल्प पारित करवाना होगा, जिसके लिए कुल सदस्यों के
दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। पूर्व सरकार ने 2 अक्टूबर
को विश्व अहिंसा दिवस और वर्तमान सरकार ने पिछले वर्ष 21 जून
को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में पारित करवा लिया था। आशा है कि एक दिन हम
सभी हिंदी प्रेमियों का सपना पूरा होगा।
विश्व हिंदी सम्मेलन की शुरुआत भी राजनीतिक उथल-पुथल के समय आपातकाल से
पहले हुई थी। इस सम्मेलन को उस समय सभी ने सहजता से स्वीकार नहीं किया था। प्रथम
विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन की पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले
लल्लन प्रसाद व्यास ने बताया था कि उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को भी आमंत्रित
किया था, वह उनसे मिलने भी गए, किंतु वाजपेयी
आयोजन में भाग लेने नहीं आए और बाद में आपातकाल के समय अटलजी ने यह लिखा - बनने
चली विश्व भाषा जो, अपने घर में दासी, सिंहासन
पर अंग्रेजी है, लखकर दुनिया हांसी, लखकर
दुनिया हांसी, हिंदी दां बनते चपरासी, अफसर
सारे अंग्रेजी मय, अवधी या मद्रासी, कह
कैदी कविराय, विश्व की चिंता छोड़ो, पहले
घर में, अंग्रेजी के गढ़ को तोड़ो।
अटलजी ने सत्य ही लिखा है। अभी तक भारतीय संसद में लोकसभा में अफसरशाही की
बाधाओं के कारण राजभाषा समिति का गठन ही नहीं हो पाया है। 10वें
विश्व हिंदी सम्मेलन पर सबकी नजर है। यह हिंदी साहित्य के बजाय भाषा पर केंद्रित
है। इसकी सार्थकता समय सिद्ध करेगा।
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