तोमिओ मीजोकामी जापान के हैं, लेकिन
जुबान पर हिन्दी ऐसे जैसे पड़ोस के हों। हिन्दी चिंतन भी है और चिंता भी। जीविका
भी हिंदी और जलवा भी हिन्दी का ही देखना चाहते हैं। बाली उमर में हिन्दी से
मुहब्बत हुई और पढ़ने से लेकर पढ़ाने तक का सफर हिन्दी में। 74 साल के हैं, लेकिन हिन्दी के लिए नौजवानों-सा जोश।
जापान में 600 छात्रों को हिन्दी
सिखा-पढ़ा चुके हैं और 300 फिल्मों गीतों का जापानी में
अनुवाद कर चुके हैं। सुनकर अचरज होगा, लेकिन सुन लीजिए...जिन
शुभा मुद्गल का जादू हिंदुस्तानी संगीतप्रेमियों पर चलता है, उन्हें बचपन में जापानी में लोरी मीजोकामी ने सुनाई थी।
हिन्दी से इश्क भी इन्हें एक हिंदुस्तानी युवती का
हुस्न देखकर हुआ। उनके शब्दों में वो 'परी थी। दसवीं जमात में
पढ़ते थे। पार्क में बैठे थे। 'परी' आई
और दीवाना करके चली गई। कहां गई पता नहीं, लेकिन हिंदी से
प्रेम करना सिखा गई। उसी समय जापान में जवाहरलाल नेहरू आए। उनका भाषण सुना। ऑडियो
आज भी रखा है मेरे पास। लगा जिस देश का पीएम इतना आदर्श है, वह
देश और उस देश की भाषा कितनी अच्छी होगी। इस तरह हिन्दी के पीछे चल पड़ा। पढ़ाई की।
वासेदा यूनिवर्सिटी से 1965 में हिन्दी में बीए कर डाला।
फिर भारत सरकार से ढाई सौ रुपए की छात्रवृत्ति लेकर
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एमए करने आ गया। यहां मैं जिसके घर में रहता था, वह
बहुत नेक परिवार था। उनकी छोटी-सी बेटी शुभा को मैं जापानी में लोरी सुनाता था।
वही बेटी जब बड़ी हुई तो संसार ने उसके सुर को शुभा मुद्गल के नाम से पहचाना। यह
केवल एक संयोग था। तो आप पैदा कब हुए? '1941 में। इतिहास की
दृष्टि से बहुत उथल-पुथल का साल था। दुखद ये था कि इसी साल रवींद्रनाथ टैगोर चले
गए थे। हिंदुस्तानी साहित्यकारों से कितना जुड़ाव। है न!
हिन्दी को लेकर है दोहरा रवैया
हिन्दी पढ़ने और 30 साल तक हिंदी पढ़ाने के
बाद अब मेरी हिंदी की उपासना चल रही है। दुखद यह है कि यहां हिन्दी को लेकर
दिखावा ज्यादा है, जमीन पर काम कम। पीएम और विदेशमंत्री तो
हिन्दी में बोलते हैं, लेकिन विदेश मंत्रालय के सारे
अधिकारी अंग्रेजी में ही बात करते हैं। हिंदुस्तानी अपने रुतबे के लिए अंग्रेजी का
इस्तेमाल करते हैं। अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाते हैं। सबसे पहले
बच्चों को हिंदी स्कूलों में पढ़ाना शुरू करो, फिर हिन्दी की
चिंता करो।
मैं शायद पिछले जन्म में भारतवासी था
इतना हिंदी प्रेम? शायद मैं पिछले जन्म में
भारतीय रहा होऊंगा। तभी तो जब जापान में सारे लोग विदेशी भाषा के नाम पर अंग्रेजी
सीख रहे थे मैंने भारतीय भाषा और भारत के बारे में जानने की ठानी। फिर हिंदुस्तान
आ गया और यहां की संस्कृति में डूब गया। हम जैसे हिन्दी प्रेमियों की प्रबल इच्छा
है कि हिन्दी संयुक्त राष्ट्र की भाषा सूची में शामिल हो, लेकिन
इसके लिए दो-तिहाई बहुमत चाहिए। मुझे लगता है कि पाकिस्तान इसका विरोध कर सकता है।
हमें इस दिशा में प्रयास करना चाहिए क्योंकि इससे हिन्दी की शक्ति का एहसास
दुनिया को होगा।
हंगरी की मारिया को असगर वजाहत से मिली
हिंदी
हंगरी की मारिया नेज्यैशी को हिन्दी के लेखक असगर
वजाहत ने न केवल हिन्दी प्रेमी, बल्कि हिंदी की प्रोफेसर
भी बना दिया। हर साल 40 बच्चों का बैच हंगरी में इनसे हिन्दी
पढ़ता है। हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचंद पर इनकी पीएचडी है। डंके की चोट पर कहती
हैं कि दृढ़ इच्छा शक्ति सीखने की क्षमता हो तो आदमी कोई भी भाषा सीख सकता है।
मारिया ने चहक कर कहा, असगर साहब हमें हंगरी में हिंदी पढ़ाते
थे। उनका अंदाज निराला था।
उनका नाटक ' जिन लाहौर नहीं देखा ते
जनम्या ही नहीं देखा तो और भी मजा आया। उनके बहाने मैं हिन्दी के संसार में उतरी
और हिन्दी ने मुझे अपना बनाया। जैसे मोदी जी कहते हैं कि चाय बेचते-बेचते मैं
हिन्दी सीख गया, इसी तरह मैं भारत के ऑटो वालों से बात-बात
कर-करके हिन्दी सीख गई। जब फिल्मों की बात चली तो हंसते हुए बोलीं, बूढ़ी हो गई हूं इसलिए पुरानी फिल्में ही पसंद हैं। उमराव जान का गाना
अक्सर गुनगुनाती हूं-'दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए,
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए।
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