हिंदी सरल और बोल चाल की भाषा होनी चाहिए, इस में दो राय नहीं, किंतु सरलीकरण के नाम पर प्रचलित
शब्दों को निकाल कर अनावश्यक अंग्रेजी के शब्द ठूंसना हिंदी को दुरूह बनाना होगा
.आज हिंदी के दॆनिक समाचार पत्र यही कर रहे हॆं आठ शब्दों के एक वाक्य में छह शब्द
आप को अग्रेजी के मिल जाएगे जिन में से कुछ तो शायद आम पाठकों की समझ से भी
परे हों . भारत सरकार का आदेश हॆ कि नए विभाग खोलते समय उनके हिदी नाम पर पहले विचार किया जाए फिर अग्रेजी पर
कितु हो उलटा रहा हॆ .आज हिंदी में भी अंग्रेजी के ही नाम रखे जा रहे हॆं .
हम हिंदी को दुनिया की सब से बडी भाषा बताते नहीं
थकते .किंतु विडंबना यह हॆ कि हिंदी बोली तो खूब जारही हॆ.हिंदी लिखी नहीं जारही
.सब युवक रोमन लिपि का ही प्रयोग करते मिलेंगे . ऐसा क्यों हॆ .कारण यह हॆ
कि हम ने हिंदी की लिपि देव नागरी पर उचित ध्यान नही दिया . कंप्यूटर पर नागरी
लिपि को लोकप्रिय बनाया जाए प्राथमिक कक्षाओ से ही कप्यटर पर नागरी लिपि का
अ्भ्यास कराया जाए भाषा और विज्ञान के लेखकों को सम्मानित किया जाए.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें