हिंदी में लिखने वाली यह
नई पीढ़ी हर मायने में उस सेट खांचे से अलग है, जो हिंदी की दुनिया ने गढ़े हैं। इनकी लिखने की शैली अलग है, उनकी कहानियां के पात्र अलग हैं। वे दुनिया को ज्यादा नजदीक से
देखते-समझते हैं और फिर उसे ज्यों का त्यों कैनवस पर उतार देने में महारत रखते
हैं। वे इस राइटिंग को बेहद कूल मानते हैं। इंजीनियरिंग और एमबीए की डिग्री ले
चुके दिव्य प्रकाश दुबे कहते हैं कि उन्हें तब बड़ी खुशी हुई, जब अंग्रेजी में लिखने-पढ़ने वाले उनके दोस्तों ने उनकी एक हिंदी किताब
पढ़ी और कहा 'हिंदी इज कूल यार, हिंदी
की कुछ और किताबें बताओ।'
दरअसल, हिंदी की नई पौध की सबसे बड़ी चुनौती ही है, हिंदी के ऊपर से कूल न होने का टैग हटाना। इन राइटर्स का मानना है कि उन्हें कई बार अहसास हुआ है कि रीडर हिंदी किताब को हाथ में लेकर खुद को अडवांस और कूल नहीं दिखा पाता, जैसा कि अंग्रेजी के रीडर कर पाते हैं। वे मानते हैं कि 'कूल' और 'अनकूल' की यह लड़ाई लंबी है और वे इसे जीत कर रहेंगे
दरअसल, हिंदी की नई पौध की सबसे बड़ी चुनौती ही है, हिंदी के ऊपर से कूल न होने का टैग हटाना। इन राइटर्स का मानना है कि उन्हें कई बार अहसास हुआ है कि रीडर हिंदी किताब को हाथ में लेकर खुद को अडवांस और कूल नहीं दिखा पाता, जैसा कि अंग्रेजी के रीडर कर पाते हैं। वे मानते हैं कि 'कूल' और 'अनकूल' की यह लड़ाई लंबी है और वे इसे जीत कर रहेंगे
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