शनिवार, 7 जून 2008
हिन्दी की दुर्दशा का आलम
हिन्दी की दुर्दशा का आलम यह है कि भारत कि संसद को भी इसकी परवाह नही है संसद कि एक समिति सरकारी दफ्तरों मे हिन्दी का निरीक्षण भी करती है लकिन कोई फ़ायदा नहीं होता। हिन्दी अधिकारी नाम का प्राणी सब झूठे आंकरे डे देता है और समिति उसपर विश्वास करती है। आज रेलवे मे सभी कम्पूटर सिस्टम केवल अंग्रेजी मे काम कर राहे है । रेलवे के बडे अफसर हिंदी वालों पर हँसते है और उनकी मजाक बनाते है क्योंकि उन्हें कम्पूटर नही आता। हर्ष कुमार नाम का अफसर तो अपने आप को बहुत बडा मानता है उसने Hindi Computing Foundation को भी खत्म करने कि साजिश रच ली है जिसका सीधा नुकसान लालू को अगले चुनाव मे होगा जहाँ बिहार के लोग उनसे पूछ लेंगे कि हिन्दी वालो को नोकरी केसे मिलेगी जब हिन्दी ही खत्म हो जायगी
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2 टिप्पणियां:
दोस्त, हिन्दी की दुर्दशा पर आपकी चिंता उचित नहीं है, खास कर तब जब आपने अपने ब्लोग का शीर्षक अंग्रेजी में रखा है...
हिन्दी!!!
मुझे सुनी डोंगर जी की बात बेहद भली लगी. कृपया विचार किया जाए. शेष आपके हिंदी पर चिंता जहाँ स्वाभाविक लगी वहीं बेहतर सोच. मगर सवाल सवाल ही रहें...ये न्याय न खुद के साथ है न खुद-ब-खुद सवालों के. लिखते रहिये. शुभकामनायें.
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उल्टा तीर
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