मंगलवार, 21 अप्रैल 2009
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति मुंबई (केन्द्रीय कार्यालय)की एक बैठक
समिति के अध्यक्ष श्री वर्मा जी ने सभी सदस्यों का आह्वान किया कि वे अपने काम में राजभाषा के रूप में हिन्दी का इस्तेमाल बढाएं और सरल हिन्दी का उपयोग करें । उन्होंने अपने भाषण में इस बात पर विशेष बल दिया कि आज का युग सूचना प्रोद्योगिकी का युग है और बिना कंप्यूटर ज्ञान और प्रशिक्षण हिन्दी पीछे रह सकती है और इस क्षेत्र में भी राजभाषा के रूप में हिन्दी के इस्तेमाल को बढावा दिया जाना चाहिये । श्री नवीन चन्द्र सिन्हा जी ने भी सभी सदस्यों से अधिक से अधिक कार्य हिन्दी में करने की अपील की और समिति को और अधिक सक्रिय बनाने के लिए सहयोग देने की भी अपील की । उन्होंने यह भी कहा कि सभी सदस्य कार्यालय अपना अंशदान समय पर भेजते रहे ताकि समिति की गतिविधियां उचित प्रकार से चलती रहें ।
इस बैठक के दौरान हिन्दी में ई-मेल भेजने और विस्टा पर हिन्दी सैटिंग का एक प्रस्तुतिकरण मुंबई रेलवे विकास कॉर्पोरेशन के मुख्य संकेत व दूरसंचार इंजीनियर श्री राजीव शर्मा द्वारा किया गया जिसके कारण यह बैठक रोचक हो गई । सभी प्रतिभागियों ने इस तकनीक को अपने अपने कार्यालय में अपनाने पर इच्छा जाहिर की है ।
शनिवार, 11 अप्रैल 2009
सुप्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर अब नहीं रहे।
उनके बेटे अतुल प्रभाकर ने बताया कि विष्णु प्रभाकर सीने और मूत्र में संक्रमण के चलते 23 मार्च से महाराजा अग्रसेन अस्पताल में भर्ती थे। उन्होंने 20 मार्च से खाना पीना छोड़ दिया था। अतुल के अनुसार उनके पिता ने शुक्रवार रात लगभग 12 बजकर 45 मिनट पर अंतिम सांस ली। प्रभाकर ने अपनी मृत्यु से पहले ही एम्स को अपने शरीर को दान करने का फैसला कर लिया था।
भले ही विष्णु प्रभाकर हमारे बीच से चले गए लेकिन उनकी रचनाएं हमेशा लोगों के साथ रहेंगी। प्रभाकर को पद्मभूषण दिया गया था, लेकिन सरकार द्वारा किसी साहित्यकार की देर से सुध लेने का आरोप लगाते हुए उन्होंने सम्मान वापस कर दिया था।
उनके बारे में प्रभाकर लिखा गया था, 'साहित्य और पाठकों के बीच स्लिप डिस्क के सही हकीम हैं। यही कारण है कि उनका साहित्य पुरस्कारों के कारण नहीं पाठकों के कारण चर्चित हुआ।' प्रभाकर का जन्म 20 जुलाई 1912 को उत्तरप्रदेश में मुजफ्फरनगर जिले के मीरापुर गांव में हुआ था। छोटी उम्र में ही वह पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से हिसार चले गए थे। प्रभाकर पर महात्मा गांधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया जो आजादी के लिए सतत् संघर्षरत रही।
अपने दौर के लेखकों में वह प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही। हिन्दी मिलाप में 1931 में पहली कहानी छपने के साथ उनके लेखन को एक नया उत्साह मिला और उनकी कलम से साहित्य को समृद्ध करने वाली रचनाएं निकलने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह करीब 8 दशकों तक जारी रहा। आजादी के बाद उन्हें दिल्ली आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक बनाया गया।
नाथूराम शर्मा के कहने पर वह शरतचंद की जीवनी पर आधारित उपन्यास 'मसीहा' लिखने के लिए प्रेरित हुए। विष्णु प्रभाकर को साहित्य सेवा के लिए पद्म भूषण, अर्द्धनारीश्वर के लिए साहित्य अकादमी सम्मान और मूर्तिदेवी सम्मान सहित देश विदेश के अनेक सम्मानों से नवाजा गया।
श्री राजीव सारस्वत इसी काण्ड में शहीद हुए थे
इस बारे में सूचना के अधिकार के तहत सवाल के जवाब में लोकसभा सचिवालय ने कहा है कि आधिकारिक काम के लिए यात्रा कर रहे सांसद फाइव स्टार होटेल की सहूलियत नहीं मांग सकते। लेकिन 26 नवंबर 2008 को जब आतंकवादियों ने ताज होटल को निशाना बनाया था तब सीपीएम सांसद एन. एन. कृष्णदास, एनसीपी सांसद जयसिंहराव गायकवाड़, बीएसपी सांसद लाल मणि प्रसाद और बीजेपी सांसद भूपेन्द्र सिंह सोलंकी इसी होटेल में रुके हुए थे।
चारों सांसद हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड और अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के प्रमुखों के साथ बैठक करने वाली लोकसभा की 15 सदस्यीय समिति का हिस्सा थे। लोकसभा सचिवालय ने अलीगढ़ के बिमल खेमानी की आरटीआई याचिका के जवाब में 25 फरवरी को कहा समिति के सदस्य या उनके साथ जाने वाले अधिकारी किसी विशेष होटेल या फाइव स्टार होटेल की सुविधा नहीं मांग सकते।
उल्लेखनीय है कि श्री राजीव सारस्वत इसी काण्ड में शहीद हुए थे । आज तक उन्हे कोई न्याय नहीं मिल सका है
गुरुवार, 9 अप्रैल 2009
राजभाषा विभाग के सचिव महोदय को खुला पत्र
राजभाषा के रूप में हिन्दी के प्रचार प्रसार केलिए हमारे संविधान में प्रावधान है और उनके अनुरूप भारत सरकार का काम राजभाषा में कराने केलिए राजभाषा विभाग का सृजन किया गया था अनेक वर्ष बीत जाने के बाद भी राजभाषा के रूप में हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाएं तो अपनी जगह नहीं बना पाई, परन्तु भारत सरकार मे हिन्दी स्टाफ की एक बडी फौज खडी कर दी गई है । राजभाषा विभाग के आदेशों के अनुरूप ही उनकी तैनाती हुई है ।
ये सभी हिन्दी कर्मी क्या कर रहे है इनके काम की जांच करने का जिम्मा किसी भी विभाग को नहीं है । जिस कार्यालय में ये काम करते है वहां के कार्यालयाध्यक्ष के आदेशों के अनुरूप कार्य करने में ये माहिर है । आज भी बदलते परिवेश मे अधिकतर कर्मी अपनी रचनाएं प्रकाशित करने केलिए एक पत्रिका का प्रकाशन अवश्य करते है ।
यदि ध्यान से देखा जाए तो वास्तव में स्टाफ तो है पर हिन्दी कहीं भी नहीं है । आज के युग के अनुरूप इन कर्मियों को कंप्यूटर का बेसिक ज्ञान भी नहीं है ।
राजभाषा विभाग के सचिव महोदय से अनुरोध है कि अब समय आ गया है कि हिन्दी स्टाफ केलिए कंप्यूटर का इंजिनिरिग ज्ञान आवश्यक योग्यता के रूप में करना चाहिये अन्यथा भाषाएं समाप्त हो जांएगी और इस विभाग का अस्तित्व ही नहीं रहेगा ।
सोमवार, 6 अप्रैल 2009
वोट उसी को देंगे जो हमारी भाषा केलिए काम करेगा ।
शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009
इण्टरनेट पर यूनीकोड में कितनी सामग्री उपलब्ध कराई गई
सरकारी कार्यालयों में हिन्दी के प्रयोग को लेकर आज तक जो कुछ भी हुआ है वह काफी नहीं है । आज इस बात की आवश्यकता है कि देश के विभिन्न सरकारी कार्यालयों के अधिकारी यह प्रेरणा लें कि वे अपने काम में हिन्दी का प्रयोग तो करेंगे ही , साथ ही साथ वह सारा काम नवीनतम प्रौद्योगिकी के साथ हो । हम सब जानते है कि दुनिया में अग्रेजी के प्रचलन के पीछे इण्टरनेट पर उपलब्ध सामग्री एक इस प्रकार का बडा साधन है जिससे बच्चे अनायास ही इसकी तरफ चले आते है परन्तु हिन्दी में अब भी बच्चों के प्रोजेक्ट केलिए सामग्री उपलब्ध नहीं है अतः स्कूल तथा कालेजों के बच्चे अपने स्कूल और कालेज के प्रोजेक्ट केलिए अग्रेजी का सहारा लेते है । राजभाषा विभाग इस प्रकार के आदेश जारी करे कि इंदिरा गांधी शील्ड देने केलिए एक महत्वपूर्ण निर्णायक मद यह हो कि उस कार्यालय से इण्टरनेट पर यूनीकोड में कितनी सामग्री उपलब्ध कराई गई है तभी संभव है कि हम इस दौड में कहीं खडे हो सकें ।